आर्ट परफॉरमेंस व कला बदलावों के बारे में
डॉ. कृष्णा महावर से बातचीत
अभी हाल ही हुए कला मेले में प्रस्तुत आर्ट
परफॉरमेंस को उपस्थित कलाकारों व कला प्रेमियों ने खासा पसन्द किया। पहली
बार कला मेले में हुई यह प्रस्तुति कला जगत की नई विधा के रूप में
धीरे-धीरे अपना प्रभाव जमा रही है। नाटक ना होने के बावजूद भी अंग संचालन
के जरिये किसी परिकल्पना पर दिया गया प्रस्तुतिकरण कलाकार के मंतव्य को
बहुत ही सहज तरीके से स्पष्ट करता है और लोगों के दिल में उतर जाता है।कला मेले के आर्ट परफॉरमेंस 'इन बिटवीन द एलिमेंट्स ऑफ पेंटिंग्स,द बॉडी एंड द स्पेस' की परिकल्पना डॉ कृष्णा महावर की थी। लगभग 35 मिनट के इस परफॉरमेंस को डॉ महावर ने अपने 20 विद्यार्थियों के सहयोग से प्रस्तुत किया। इस परफॉरमेंस की उर्जा व कला की नई तकनीक से पाठकों को रूबरू करवाने के लिए मूमल ने डॉ. कृष्णा महावर से बातचीत की। इस बातचीत के प्रमुख अंश यहां दिए जा रहे हैं। (सं.)
मूमल- कृष्णा जी, कला मेले में दी गई प्रस्तुति गहन अभ्यास की ओर संकेत कर रही थी। आप अपने कला अभ्यास व अध्यापन को किस तरह संतुलित करती है।
डॉ. कृष्णा महावर- वास्तव में मुझे यह दो अलग चीज़े लगती ही नही हैं। एक कला शिक्षक को स्वयं भी कार्य करते रहना चाहिए और नवीन कार्यो, तकनीको व शैलियों से अपडेट होते रहना चाहिए। मैं यह सब करते हुए अपने स्टूडेंट्स से साझा भी करती चलती हूं तो मेरा स्वयं का अभ्यास और अध्यापन दोनो ही पूरक हो जाते हैं।
मूमल- आपने परफॉरमेंस आर्ट ही क्यो चुना?
डॉ. कृष्णा महावर- मैं 20 वर्षो से चित्रकला माध्यम में कार्य कर रही हूं बीच बीच मे इंस्टालेशन, मल्टीमीडिया माध्यम भी एक्सप्लोर किये। मैने महसूस किया कि जो बात परफॉरमेंस के द्वारा सीधे व आक्रामक तरिके से संप्रेषित होती हैं ऐसी स्वतंत्रता अन्य किसी माध्यम में है ही नही। इसमे बस सशरीर कलाकार है और चारो और दर्शक। निजी राजनीति से उपजे मुद्दों से लेकर यह शैली सामाजिक-राजनीतिक , फेमेनिज़्म से जुड़े मुद्दों को लोगो तक पंहुचने का एक सशक्त माध्यम प्रतीत होता हैं।
मूमल- कला मेले में प्रस्तुत परफॉरमेंस की प्रक्रिया क्या रही।
डॉ. कृष्णा महावर - इस परफॉरमेंस पर हमने दो महीने तक कार्य किया था । शुरुआती कुछ दिन तो मैंने प्रोजेक्टर पर स्टूडेंट्स को दुनिया भर के प्रसिद्ध परफॉरमिंग आर्टिस्ट्स के परफॉरमेंस ही दिखाए। फिर कुछ दिन बॉडी मूमेंट्स पर काम किया। धीरे धीरे छोटे छोटे शब्द को लेकर इम्प्रोवाईजेशन करने लगे। जैसे केवल रेखा, या केवल टेक्सचर, या स्पेस आदि। सभी स्टूडेंट्स विजुुअल आर्टस से हैं जिन्होंने कभी अपने शरीर के साथ काम ही नही किया था। फिर भी कांसेप्ट के साथ सभी मे एक आत्मविश्वाश आने लगा था। और वे एन्जॉय भी करने लगे। उनके लिए ये बिल्कुल नई दुनिया को जानने जैसा था।
मूमल- कृष्णा जी, आप कोटा से हैं। जयपुर आने के बाद के कला सम्बन्धी बदलावो के बारे में बतलाइये ?
डॉ. कृष्णा महावर- जयपुर में एक खास बात है वो है आर्ट एक्सपोजऱ, जो राजस्थान के किसी अन्य शहर में नही है। आजकल तो यहां कला गतिविधियां भी बहुत बढ़ गयी है। में तो कोटा रहती थी तब भी जयपुर से निरंतर संपर्क में थी। अपने रिसर्च वर्क के लिए लगभग 10 वर्ष अनियमित रूप से अपडाउन किया। उस दौरान जेकेके विजिट तो अवश्य ही होता था। तब कई बार निराशा भी हुआ करती थी कि वहां कुछ भी प्रदर्शित हो जाया करता था। आज जेकेके की प्रदर्शनियां, नवरस फेस्टिवल हो, जयपुर आर्ट समिट हो, ललित कला अकादमी की कला गतिविधियां हो या अन्य निजी कला आयोजन सभी से एक्सपोजऱ बढ़ा हैं। इनसे नई पीढ़ी को काफी कुछ सीखने को मिलता है। किसी समय राजस्थान पूरे भारत के आर्ट मेप में नीचले स्थान पर आता था। आज दिल्ली, भोपाल, मुम्बई के स्तर के आयोजन यहीं होने लगे हैं तो यहां रहने का मन भी बना लिया वरना तो एक वर्ष पहले तक वापस कोटा लौटने कि तैयारी में ही थी।
मूमल- आज की कला शिक्षा में बहुत बदलावों की आवश्यकता है। आप तो इस क्षेत्र में लंबे समय से हैं, क्या महसूस करती हैं?
डॉ. कृष्णा महावर -आज समय तेजी से बदल रहा है, कई नए माध्यम और शैलियां प्रचलन में आ गए है। परंतु उच्च शिक्षा में पाठ्यक्रम अभी भी पुराना ही है। हम कक्षाओं में आधुनिक कलाओ से ही जूझते रहते है और दुनिया की कला उत्तर आधुनिक समय में भी प्रवेश कर चुकी हैं। विद्यार्थी भी जब बाहर जाकर राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय उत्सव में कला देखते है तो विरोधाभासों से गुजरते हैं कि हमे पढ़ाया कुछ जाता है और बाहर की प्रायोगिक दुनिया तो कुछ और ही है। बहुत ही आवश्यक रूप में सर्वप्रथम पाठ्यक्रमो को समकालीन बनाया जाए। शिक्षक भी स्वयं को अपडेट रखे। वैसे भी कला की शिक्षा को एक स्वतंत्र माहौल की सख्त आवश्यता होती हैं जो चार दीवारी के अंदर और मात्र किताबी पढ़ाई से नही सीखी जा सकती।
मूमल- इस वार्तालाप का अन्त हो इससे पहले आप युवा कलाकारों से कुछ कहना चाहेंगी?
डॉ. कृष्णा महावर - जरूर, कला निरंतर अभ्यास का विषय है। पढ़ाई खत्म करते ही कुछ युवा अपने आप को आर्टिस्ट समझने लगते है जो मात्र एक खुशफहमी में रहना ही है। जुनून और मेहनत के साथ ही लगातार कुछ नया पढ़ते रहना भी बहुत जरूरी है। हाथ की स्किल तो अभ्यास से आ जाती है परंतु क्रिएटिविटी तो प्रकृति, समाज, साहित्य व अन्य कलाओं (नाटक, कविता, संगीत, सिनेमा आदि) के साथ समझ विकसित करने से ही आती है। वह भी एक निश्चित समय पर, धीरे-धीरे...। मुख्यतया महिला कलाकारों से भी कहना चाहूंगी कि हमारी जि़ंदगी बहुत चुनौतयों भरी होती है। मुझे भी कई बार चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। पढ़ाई, नौकरी, शादी, परिवार, सभी के बीच अपना कला अभ्यास करते रहना स्वयं के जुनून से ही संभव है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें