मंगलवार, 2 जून 2009

शिव भक्तों को राहत देगी जम्मू सरकार और होटल व्यवसाई

जम्मू।पिछले साल श्री अमरनाथ यात्रा के दौरान उठे जमीन विवाद के बाद इस साल की अमरनाथ वार्षिक यात्रा कई मान्यों में महत्वपूर्ण हो गई है। इस वार्षिक यात्रा को जहां राज्य में शांति बहाली से जोड़कर देखा जा रहा है, वहीं इस बार की यात्रा राज्य के पर्यटन उद्योग के लिए भी काफी महत्वपूर्ण साबित होगी।
राज्य सरकार को उम्मीद है कि अमरनाथ यात्रा में पुरानी रौनक लौटने से राज्य में शांति की फिजा लौटेगी, इससे पर्यटन उद्योग को भी मजबूती मिलेगी। राज्यपाल एवं श्री अमरनाथ यात्रा श्राइन बोर्ड के चेयरमैन एनएन वोहरा ने भी गत दिनों के अपने बालटाल दौरे के दौरान स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि यात्रा शुरू होने से पूर्व किसी को भी पवित्र गुफा की ओर बढ़ने न दिया जाए। इसके पीछे बोर्ड का एकमात्र उद्देश्य यही है कि यात्रा के दौरान भारी भीड़ जुटाई जाए और इस यात्रा को अमन का संदेश बनाकर पूरे देश तक पहुंचाया जा सके। यही कारण है कि पर्यटन विभाग को इस बार की यात्रा के लिए खास प्रबंध करने के निर्देश दिए गए हैं। जानकारी के मुताबिक पर्यटन विभाग इस बार जम्मू पहुंचने वाले शिव भक्तों के लिए कुछ विशेष पैकेज तैयार कर रहा है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण व लंबी अवधि का पैकेज श्रद्धालुओं को यात्रा के साथ कश्मीर घाटी की सैर करवाने का है। जम्मू-कश्मीर टूरिज्म डेवलपमेंट कारपोरेशन (जेकेटीडीसी) के इस पैकेज में श्रद्धालुओं को यात्रा से पूर्व या यात्रा के पश्चात घाटी के प्रमुख पर्यटन स्थलों की सैर करवाई जाएगी।
यात्रा करने से पूर्व या पश्चात जम्मू ठहरने के इच्छुक श्रद्धालुओं के लिए भी पर्यटन विभाग ने कुछ पैकेज तैयार किए हैं। जेकेटीडीसी ने इसके लिए शिवखौड़ी व अन्य धार्मिक स्थलों का सर्किट पैकेज तैयार किया है। दो से तीन दिन के इस पैकेज में श्रद्धालुओं को शिवखौड़ी के दर्शन करवाए जाएंगे। इसके अलावा उन्हें जम्मू के स्थानीय मंदिरों की भी सैर कराई जाएगी।
पर्यटन विभाग के निदेशक एसएम साहनी के अनुसार विभाग अमरनाथ यात्रा को लेकर पूरी तरह से तैयार है। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए पर्याप्त प्रबंध किए जा रहे हैं। पिछले साल की तरह इस बार भी श्रद्धालुओं के ठहरने की व्यवस्था भगवती नगर स्थित आधार शिविर में की जाएगी। साहनी ने कहा कि जेकेटीडीसी श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए कुछ पैकेज भी तैयार कर रही है, जो शिव भक्तों के साथ-साथ पर्यटकों के लिए भी राहत का काम करेगा।
श्री बाबा अमरनाथ यात्रा पर आने वाले शिवभक्तों के लिए जम्मू के होटल व्यवसायियों ने कमरों के किराए में तीस प्रतिशत व होटल के रेस्तरां में खाने पर बीस प्रतिशत छूट देने का ऐलान किया है। यह छूट शहर के छोटे-बड़े 300 होटल व लॉज में मिलेगी।
आल जम्मू होटल एंड लॉज एसोसिएशन के प्रधान इन्द्रजीत खजुरिया ने श्री अमरनाथ यात्रा प्रबंधन पर चर्चा करने के लिए जम्मू के डिवीजनल कमिश्नर डॉ. पवन कोतवाल की अध्यक्षता में हुई उच्च स्तरीय बैठक में इस छूट की घोषणा की। खजुरिया ने कहा कि उनकी एसोसिएशन के 300 सदस्य हैं और इन तमाम होटलों व लॉज के कमरों में बाबा बर्फानी के भक्तों को तीस प्रतिशत छूट दी जाएगी। इसके अलावा होटल के रेस्तरां में भी बीस प्रतिशत छूट मिलेगी।
इस बीच जम्मू पर्यटन विकास मंडल ने होटलों पर लगे सेल्स टैक्स को माफ करने के सरकारी फैसले का स्वागत करते हुए अपील की है कि होटल रेस्तरां में परोसे जाने वाले खाने पर लगने वाला वैट भी माफ किया जाए, ताकि पर्यटकों को कुछ और राहत मिल सके। मंडल ने तवी नदी के साथ-साथ भगवती नगर स्थित यात्री निवास तक एक सड़क का निर्माण करने की भी मांग की। मंडल ने कहा है कि अगर मंदिर-मस्जिद चौक से पूर्व सांइस कालेज के पिछले रास्ते तवी के किनारे-किनारे भगवती नगर स्थित आधार शिविर तक सड़क निकाली जाए तो इससे सांइस कालेज रोड व भगवती नगर रोड पर लोड कम होगा, जिससे यात्रियों को भी काफी सुविधा होगी।

मंगलवार, 31 मार्च 2009

सुनो....छोटी सी गुडिय़ा की लम्बी कहानी


जयपुर में 'पुतुल यात्रा'

मूमल नेटवर्क, जयपुर। मंदी के माहौल में क्लोजिंग की आपाधापी के बीच जयपुरवासियों के लिए मार्च का आखिरी सप्ताह बचपन की गुडिय़ों वाली सुहानी यादों को ताजा करने वाला रहा। संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली और जवाहर कला केन्द्र, जयपुर की और से यहां 21 से 31 मार्च तक आयोजित 'पुतुल यात्रा' में देश के कमोबेश तमाम प्रदेशों की गुडिय़ों का मेला लगा। कार्टून करेक्टर्स के साथ बचपन बिता रहे बच्चों के लिए जहां ये कौतुहल का मेला रहा, वहीं उनके अभिभावकों के लिए यह बचपन की यादों का मेला बना।

हालांकि यहां न तो दादी-नानी द्वारा घर के पुराने कपड़ों से पोतो-पोतियों के लिए जतन से बनाई गई कोई गुडिय़ा थी, ना आज की कोई लेटेस्ट बार्बी डॉल की व्यापक रेन्ज। ना पड़ौस गुड्डे के संग ब्याहने को तैयार कोई घरेलू गुडिय़ा रानी नजर आई, ना मेलों में मिलने वाला बबुआ ही कही दिखा। फिर भी बहुत कुछ था जो सीधे बचपन से जुड़ा था और सराहनीय था। पूरे प्रदर्शन पर गुडिय़ों के नाम पर कठपुतलियों का वर्चस्व छाया हुआ था। इस प्रदर्शनी में जहां विभिन्न प्रांतों में इस कला की दशा और दिशा की बानगी देखने को मिली वही पुतुल यात्रा में इससे जुड़े विविध विवरणों से पुतुल संबंधी तथ्य पुतुल प्रेमियों तक पहुंचाने की यह अकादमी की कोशिश कारगर रही।

पुतुल निर्माण के नजरिए से तीन श्रेणियों में बांटी गई पपेट्स में धागा, छड़ और दस्ताना पपेट्स के जरिए 27 से 31 मार्च तक विभिन्न प्रस्तुतियों के माध्यम से जेकेके में शानदार समा बंधा रहा। विभिन्न प्रदेशों से आए नामी-गिरामी कलाकारों ने राजस्थानियों को यह अहसास कराया कि केवल कठपुतली के नाम से जानी जा रही इस कला का दायरा कितना बड़ा, मनोरंजक और ज्ञान वर्धक है। पुतुल यात्रा ने इस बात का भी भान कराया कि यह कला कितनी सजीव और मानस पटल पर कहीं भीतर तक उतर जाने वाली है। शायद यही कारण है कि कभी राजा-महाराजाओं की यशगाथा कहने के लिए इनका सहारा लिया जाता था और आज के कई पापुलर टीवी चैनल अपनी बात कहने के लिए इनका ही सहारा ले रहे हैं। लिज्जत पापड़ का कुर्रम-कुर्रम वाले पावरफुल एड का असर कौन नहीं जानता?

वहीं इस कला का दूसरा पहलू यह है कि संगीत नाटक अकादमी अगर ऐसे आयोजन न करे तो यह कला दर्शकों के लिए तरस जाती है। अब कही दिखती भी है तो उन पार्टियों के बीच कहीं कोने में, जहां कुछ गिने-चुने बच्चों के अलावा कोई नहीं होता। पुतुल कलाकारों का कहना था कि कुल मिलाकर स्थिति अच्छी नहीं है। ऐसे हालात में इस कला को ज्यादा दिन जिंदा रख पाना कठिन होगा।

मूमल व्यूज - कठपुतली कला दर्शकों को तरस रही है। इसका सब से बड़ा कारण यह लगता है कि यह ओवर प्रोजेक्ट होती जा रही है। क्योंकि आज हर किसी को हर कहीं कठपुतलियां नजर आ रही हैँ। कमोबेश हर कोई किसी न किसी के हाथ की कठपुतली है। यहां तक कि जो किसी को नचा रहा है, खुद उसकी डोर भी किसी न किसी के हाथों है। वह केवल नचा ही नहीं रहा नाच भी रहा है। अब आप ही बताईये, जब हर जगह हम यही सब देख और जी रहे हैं तो अलग से कठपुतली का खेल देखने का वक्त कहां से निकाला जाए? बताईये..... दिल पर हाथ रख कर बताईए ना।

गुरुवार, 15 जनवरी 2009

मेलों की बहार

1.ताज महोत्सव, आगरा, 18-27 फरवरी 2009.
सूरजकुंड मेले की ही तरह ताज महोत्सव भी शिल्प, कला, संगीत व स्वाद के मिश्रण का आयोजन है। बसंद के आते-आते ताज नगरी आगरा में सारे रंग बिखर जाते हैं। महोत्सव ताजमहल के ठीक निकट शिल्पग्राम में होता है। महोत्सव की शुरुआत मुगल साम्राज्य के वैभव की पूरी छटा बिखेरने के साथ होती है। यहां आपको आगरा के संगमरमर का, सहारनपुर के लकडी का, मुरादाबाद के पीतल का, भदोही के कालीनों का, खुर्जा के मिट्टी का, लखनऊ के चिकन का, बनारस के सिल्क का.. काम देखने को मिलेगा। उत्तर प्रदेश के हर इलाके के खास पकवान चखने को मिलेंगे। लोकनृत्य का भी भरपूर आयोजन होता है। यहां आप नौटंकी भी देख सकेंगे, राजस्थान का सपेरा नृत्य भी और महाराष्ट्र का लावणी भी.. ठीक ठेठ उसी अंदाज में जैसे सदियों से होते चले आए हैं। भारत के इतिहास में आगरा और ताजमहल की एक खास जगह है। उसे महसूस करने का इससे बेहतर मौका और कोई नहीं हो सकता।
2.शेखावटी मेला, नवलगढ, सीकर, राजस्थान, 14-17 फरवरी 2009.
राजस्थान के शेखावटी अंचल की विशिष्ट कला व संस्कृतिको बढावा देने के लिए हर साल राज्य के पर्यटन विभाग और सीकर, चुरू व झुंझूनू के जिला प्रशासनों द्वारा मिलकर इस मेले का आयोजन किया जाता है। राजस्थान में सैलानी आम तौर पर इस इलाके में नहीं पहुंच पाते। यह मेला पर्यटन को भी नई जगह देने का प्रयास है। यह इलाका बडी तेजी से रूरल टूरिज्म का केंद्र भी बनता जा रहा है। तीन जिलों में होने वाले इस मेले का केंद्र नवलगढ में होता है जो अपनी हवेलियों पर फ्रेस्को पेंटिंगों के चलते दुनियाभर में लोकप्रिय है। इन हवेलियों को दुनिया की सबसे बडी खुली दीर्घा भी कहा जाता है।
3.मरु मेला, जैसलमेर, राजस्थान। 7-9 फरवरी 2009.
रेगिस्तान को उसके पूरे वैभव के साथ देखने का अद्भुत मौका। राजस्थान पर्यटन विकास निगम (आरटीडीसी) द्वारा हर साल सर्दियों में आयोजित किए जाने वाले इस मेले के तीन दिनों में यहां की सांस्कृतिक छटा अपने पूरे शबाब पर होती है। गैर व अग्नि नृत्य मुख्य आकर्षण होते हैं। पगडी बांधने, मूंछों की लंबाई, पनिहारिन मटका रेस, रस्साकसी और मि. डेजर्ट जैसी स्पर्धाएं भी होती हैं। तमाम स्पर्धाओं में विदेशी सैलानी भी जमकर हिस्सेदारी करते हैं। मेले का समापन माघ पूर्णिमा के दिन होता है। धवल चांदनी में चमकते रेत के टीलों पर ऊंट की सवारी करने और लोकनृत्य देखने का आनंद ही कुछ और है। रेगिस्तान, खास तौर पर जैसलमेर देखने का यह सबसे बेहतरीन समय है जब रेत पर नंगे पांव चलते हुए आपके तलवे जलेंगे नहीं बल्कि ठंडक पहुंचाएंगे।
4.सूरजकुंड हस्तशिल्प मेला, सूरजकुंड, हरियाणा। 1-15 फरवरी 2009.
उत्तर भारत के सबसे बहुप्रतीक्षित मेलों में से यह एक है। हर साल इसके आयोजन की तारीख तय होने से पहले से योजना बनाना थोडा आसान हो जाता है। हस्तशिल्प, लोकनृत्यों व लोककलाओं का अद्भुत संगम हरियाणा टूरिज्म के इस आयोजन में देखने को मिल जाता है। इस बार पहली मर्तबा सार्क देशों के शिल्पकारों के अलावा मिस्त्र, थाईलैंड व ब्राजील के भी शिल्पकार हिस्सा लेंगे। जाहिर है कि इस बार से इस शिल्प मेले का स्वरूप अंतरराष्ट्रीय हो जाएगा। राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल मेले का उद्घाटन करने वाली हैं। मिस्त्र से शिल्पकारों के अलावा लोकनर्तकों का एक दल भी आ रहा है जो उद्घाटन समारोह के अलावा रोजाना अपना कार्यक्रम देगा। मिस्त्र के लजीज पकवान भी फूड कोर्ट में खास स्टाल पर चखने को मिलेंगे। कुछ देशभर के माहौल और कुछ विदेशी कलाकारों की भागीदारी के कारण सुरक्षा के खासे इंतजाम रहेंगे। सूरजकुंड दिल्ली से सटा होने के कारण दिल्लीवासियों के लिए तो यह खास मेला होता ही है, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और कई अन्य जगहों से लोग यहां पहुंचते हैं।
5.खजुराहो नृत्य समारोह, खजुराहो, मध्य प्रदेश। 25 फरवरी-3 मार्च 2009.
इतिहास की हर धरोहर के पास कहने को एक कहानी होती है। खजुराहो प्रेम व अध्यात्म के मिलन की अद्भुत कहानी कहता है। सात दिन के इस समारोह में मानो यहां के पश्चिमी समूह के मंदिरों की दीवारें सजीव हो उठती हैं। मंदिरों का वैभव अपने चरम पर होता है। मंदिर परिसर में कत्थक, भरत नाट्यम, ओडिसी, कुचिपुडी, मणिपुरी व कत्थकली देखने का अनुभव ही कुछ अलग है। देश के सर्वश्रेष्ठ शास्त्रीय नर्तक अपनी कला से इस शिल्प को जिंदा कर देते हैं। खजुराहो की अपनी प्रसिद्धि दुनियाभर में कम नहीं, फिर यह नृत्य समारोह देशी-विदेशी पर्यटकों को खींचने का अलग बहाना बन जाता है। इसीलिए इसे अंतरराष्ट्रीय समारोह का दरजा भी हासिल है।

मंगलवार, 6 जनवरी 2009

राजमल सुराना संगीत समारोह

स्रुतिमंडलकी ओर से आयोजित राजमल सुराना संगीत समारोह रविवार को यहां महाराणा प्रताप सभागार में पंडित जसराज की प्रात: कालीन शास्त्रीय संगीत सभा से आरम्भ। इस मौके पर राज्य राज्यपाल एसके सिंह और उनकी श्रीमती मंजू सिंह भी उपस्थित थीं। राज्यपाल सिंह ने तीन दिवसीय 33वें राजमल सुराना स्मृति समारोह, 09 का दीप प्रज्वलित कर शुभारंभ किया। उन्होंने पद्मश्री उस्ताद राशीद खां को माला पहनाकर फल भेंट कर और शॉल ओढ़ाकर राजमल सुराना संगीत पुरस्कार से नवाजा। पर्यटन, कला एवं संस्कृति मंत्री श्रीमती बीना काक ने उस्ताद खां को इक्यावन हजार रुपए का चेक और स्मृति चिह्न भेंट किया। राज्यपाल सिंह और काक ने स्वर्गीय राजमल सुराना के चित्र पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी।

इससे पहले श्रुति मण्डल के अध्यक्ष प्रकाश सुराना ने राज्यपाल को पुष्प गुच्छ भेंट कर स्वागत किया। मंजू सिंह का शोभा सुराना ने पुष्प गुच्छ भेंट कर स्वागत किया। पंडित जसराज की संगीत प्रस्तुति से स्वर सहयोग रतन मोहन शर्मा ने दिया। तबले पर केदार पंडित, मृदंग पर श्रीधर पार्थसारथी, हारमोनियम पर मुकुंद पेटकर और तानपुरे पर मुकुंद लाठ और अर्पिता चटर्जी ने संगत दी।