सोमवार, 16 जून 2014

MOOMAL June-2

सुधि पाठक,
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गुरुवार, 12 जून 2014

केशव मलिक का निधन...एक खामोश अवसान

कला समीक्षक केशव मलिक का निधन


मूमल नेटवर्क, नई दिल्ली। वरिष्ठ कला समीक्षक, संपादक व कवि पद्मश्री केशव मलिक अब हमारे बीच नहीं रहे। उन्होंने 10 जून, 2014 को देर रात दिल्ली में अंतिम सांस ली, वे 90 वर्ष के थे।रात को उन्हें दिल का दौरा पडऩे के बाद उनके परिजन उन्हें गंगाराम अस्पताल में ले गए, जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। 11 जून की शाम लोधी रोड स्थित श्मशान घाट में उनका अंतिम संस्कार हुआ।
अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत में 5 नवंबर 1924 को जन्में केशव मलिक की प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली और कलकत्ता में हुई। अमर सिंह कॉलेज श्रीनगर, कश्मीर से 1945 में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद 1947-48 में उन्हें जवाहर नेहरू के निजी सचिव के तौर पर काम करने का अवसर मिला। बाद के वर्षों में उच्च शिक्षा के लिए 1950-58 तक लगातार यूरोप और अमरीका की यात्राएं की। भारत लौटने के बाद साल 1960 से लगातार कलासमीक्षक के तौर पर अखबारों एवं पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेखन व संपादन से जुड़े रहे।
एक खामोश अवसान
केशव मलिक नहीं रहे यह सुन कर झटका लगा। हालांकि पिछले काफी समय से वे अस्वस्थ चल रहे थे फिर भी जब कोई उन्हें प्रदर्शनी उद्घाटन के लिये बुलाता था, वे आ जाते थे। हर कला आयोजन में उनकी उपस्थिति चाहने वालों से लेकर अपने केटेलॉग में उनके विचार की दो लाइनें शामिल कराने को महीनों उनकी खुशामद करने वालों की भीड़ में इस व्यक्तित्व का एक खामोश अवसान चौकाने वाला रहा।
इसमें कोई शक नहीं कि उनके जैसे कला आलोचक कम ही होते हैं। वे एक कवि भी थे, यह बात तो लगभग सभी जानते हैं परन्तु वे चित्रकार भी थे, यह बात कम ही लोगों को पता होगी। पत्रकारों के लिए उनसे बातचीत करना हमेशा सुखद रहता था। चाहे वह प्रदर्शनी में हो या उनके घर पर। उनसे कला की दुनिया और कला आलोचना की स्थिति को लेकर उनके पास एक लम्बा अनुभव था। वे कला आलोचना की स्थिति को लेकर बहुत खुश नहीं थे, क्योंकि समाचार पत्रों ने अपने यहां कला समीक्षा के लिये जगह खत्म कर दी। एक आलोचक के रूप में कैसे किसी कृति को देखा जाए इसको लेकर 'मूमल' ने एक स्तम्भ भी आरंभ किया। उस समय उन्होंने एक बात कही थी जो अब भी याद है। उन्होंने कहा था कि कला पर लिखने के लिये सिर्फ  कला को देखना ही काफी नहीं है बल्कि उसे जीना भी जरूरी है। उनकी याद हमेशा बनी रहेगी।

केशव मलिक कहते थे कि कलाकार को संवेदनशील होना चाहिए। कला को संवेदना से अलग नहीं किया जा सकता कलाकार की आत्मशुद्धी एक अनिवार्य प्रक्रिया है। कला आपको अध्यात्म की ओर ले जाती है। अत: कलाकार को अपनी संवेदनाओं को आध्यात्म की ओर ले जाना चाहिए। इससे मनुष्य जन्म की सार्थकता प्राप्त होगी। हर समय नया या ओरीजिनल निर्माण करना, या करने की सोचना यह मात्र एक भ्रम होता है। अत: कार्य एवं प्रक्रिया पर ही कलाकार ने ध्यान देना चाहिए। इस प्रक्रिया को आत्मशुद्धि की प्रक्रिया बनाना चाहिए। अध्यात्म के सिवाय कला एक कारीगरी हो सकती है। उससे कलाकार कारीगर बन सकता है कलाकार नहीं। 

मंगलवार, 3 जून 2014

Art Market आर्ट मार्केट में भी बिजनेस स्टंट


आर्ट वल्र्ड में एक बार फिर बूम है। रिसेशन के बाद आर्ट मार्केट ने उबरने में बेशक समय लिया, लेकिन सिचुएशन ज्यादा अच्छी हो गई। गैलरीज़ में भीड़ जुट रही है और इसीलिये, रिसेशन में कदम पीछे खींचने वाले आर्टिस्ट अपना काम निकाल रहे हैं। भरपूर काम है उनके पास, पैसा भी खूब मिल रहा है। पैसा ही इस दुनिया में सक्सेस का पैमाना है। प्रोफेशनल होकर बात की जाए तो करोड़ का आंकड़ा छूने वाले आर्टिस्ट यहां सबसे सक्सेसफुल है। लाख और हजार में अपनी कला की कीमत पाने वाले सेकेंड और थर्ड। 
कई तरह के एडवांस टूल 
ऊपर से बेहद छोटी सी दिखने वाली कला की दुनिया असल में बहुत बड़ी है और इतना ही बड़ा है आर्ट मार्केट। करोड़ों डॉलर्स का है इसका आकार और यह पूरी दुनिया में फैला है। बहुत कम लोग जानते होंगे कि अन्य बाजारों की तरह आर्ट मार्केट में भी बिजनेस स्टंट अपनाए जाते हैं। अन्य बाजारों की तरह यहां भी इंटरनेट जैसे एडवांस टूल यूज होते हैं। गैलरीज में आर्ट एग्जीबिशन से भी कमाई होती है। आर्टिस्ट भी अन्य बिजनेसमैन्स की तरह मार्केट पर नजर रखते हैं और स्टेटजी अपनाते हैं। सीधे खरीदने वाले बायर्स के अलावा उन तक आर्ट पहुंचाने वाले मीडिएटर्स भी होते हैं जो सेल में कुछ हिस्सा लेते हैं।
कीमत से तय होता है कद
ऐसे में यह सवाल उठता है कि कला का मूल उद्देश्य क्या पैसा है? बिल्कुल नहीं, लेकिन आर्टिस्ट को भी तो जीना है। खास बात यह है कि आर्टिस्ट का कद उसकी कला की कीमत से होता है। हालांकि आज भी कई आर्टिस्ट पैसा कमाने के लिए नहीं बल्कि सैटिस्फैक्शन पाने को कला सृजन करते हैं पर मोस्टली इस विचार पर चलते हैं कि जीना है तो पैसा कमाना है और समझदारी से ज्यादा कमाई हो जाए तो इसमें हर्ज क्या है? फिर पेंटिंग की कॉस्ट से ही कद मापा जा रहा है तो यह सब मजबूरी भी हो
जाता है।
रजा सबसे बड़े आर्टिस्ट
पेंटिंग्स की कीमत से हिसाब से एसएच रजा भारत के सबसे बड़े आर्टिस्ट हैं क्योंकि उनकी सौराष्ट्र टाइटिल वाली पेंटिंग 16 करोड़ 53 लाख में बिकी। एफएन सूजा सेकेंड और तैयब मेहता थर्ड हैं जिनकी पेंटिंग्स 11 करोड़ 25 लाख और आठ करोड़ 20 लाख में बिकी हैं। वूमैन आर्टिस्ट आफ द सेंचुरी अमृता शेरगिल की विलेज सीन 6 करोड़ 90 लाख में खरीदी गई। इंडियन पिकासो कहे जाने वाले मकबूल फि़दा हुसैन का स्थान सातवां है। हुसैन की पेंटिंग बैटल बिटवीन गंगा एंड यमुना: महाभारत की कीमत 6 करोड़ 50 लाख मिली है। इसी नजर से भारती खेर, वीएस गायतोंडे, सुबोध गुप्ता और जहांगीर सबावाला भी बड़े कलाकार हैं। यह सब टॉप टेन में हैं। सबावाला की एक पेंटिंग जून 2010 में एक करोड़ 17 लाख में बिकी है, रजा की सौराष्ट्र को भी पिछले ही दिनों 16 करोड़ 73 लाख में बेचा गया। दोबारा बिक्री में 20 लाख अधिक मिले, इसलिये लोगों के लिए आर्ट आइटम्स खरीदना इन्वेस्टमेंट और बिजनेस भी है। कीमत के हिसाब से इंडिया के टॉप 25 आर्ट आइटम्स इन्हीं कलाकारों के हैं।
इंटरनेट का जमाना है 
कला की दुनिया में भी इंटरनेट का जमाना है इसलिये ही तो सूजा और सबावाला की आर्ट को करोड़ों की कीमत आनलाइन सेल से मिली है। इसी का रिजल्ट है कि एक आनलाइन सेल में चार करोड़ 20 लाख के आफर तो सिर्फ ब्लैकबेरी और आईफोन्स के जरिए मिले। रिसेशन के झटके से उबरने के बाद आर्ट वल्र्ड में रौनक लौट चुकी है। गैलरीज फिर आर्ट वर्क से सज रही हैं। नहीं तो, मुंबई की फेमस जहांगीर आर्ट गैलरी में भी भीड़ छंट गई थी। लंबे इंतजार के बाद एग्जीबिशन का मौका मिलने के बाद भी तमाम कलाकार वहां नहीं पहुंचे थे। जो पहुंचे, वो खाली हाथ लौट आए। यह समय उनके डंप हुए आर्ट वर्क के बिकने का है।


रविवार, 1 जून 2014

इतिहास हुई ऐतिहासिक इमारत


राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट का नया भवन अब 'शिक्षा संकुल' में
राजस्थान का सबसे पुराना कला संस्थान राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट अब नए भवन में शिफ्ट होने जा रहा है। विद्यार्थी व शिक्षक अब 2014-15 के नए सत्र के साथ अपना शिक्षण प्रशिक्षण शिक्षा संकुल स्थित कॉलेज की नई बिल्डिंग में करेंगे।
जयपुर दरबार महाराजा सवाई रामसिंह द्वितीय के संरक्षण में 1857 में आरम्भ हुए संस्थान का यह भवन आज विश्व भर में राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट के नाम से अपनी पहचान बना चुका है।
कॉलेज के नए भवन को कला शिक्षण के आधुनिक उपकरणें से सजाने का काम कॉलेज के वरिष्ठ व अनुभवी सदस्यों को सौंपा गया है। बेसमेंट को मिलाकर कॉलेज की बिल्डिंग का पांच मंजिला निमार्ण में कक्षाओं के साथ पेंटिंग्स, स्क्लपचर व आर्ट स्टोर, आर्ट गैलेरीज, कम्प्यूटर लैब, लायब्रेरी व कॉन्फै्रन्स रूम के साथ ग्राफिक, स्क्लपचर व पेंटिंग स्टूडियोज का निमार्ण किया गया है। यह सभी स्टूडियोज व लैब कला के आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित रहेगे। इसके साथ ही मूर्तिशिल्प का अभ्यास करने के लिए कॉलेज से सटा खुला मैदान भी विद्यार्थियों को आकर्षित करेगा। खुले व शोर शराबे रहित वातावरण में कला अभ्यास के प्रति विद्यार्थी अपना ध्यान केन्द्रित कर पाएंगे।
कलाकारी, कारोबारियों की?   
एक इतिहास का हाथ से यूं फिसल जाना बहुत दुखद है। इससे भी ज्यादा दुख की बात यह है कि भवन खाली होने की चर्चा के साथ ही ऐसे मौकों की तलाश में लगे रहने वाले कई व्यावसायिक लोगों की नजरें इस हवेली पर हैं। इनमें कला के वे बड़े कारोबारी भी शामिल हैं जो मौकों की तलाश नहीं करते, बल्कि ऐसे मौकों की रचना करते और कराते हैं। उल्लेखनीय है कि कुछ वर्ष पहले आमेर की कई कलात्मक, ऐतिहासिक और बहुमूल्य हवेलियां, यहां तक कि महल के हिस्से तक निजी कारोबारियों के हाथों में सौंप दिए गए।
बात कहां से उठी?
अब राजस्थान स्कूल आफ  आर्ट का इस अनमोल भवन के भी किसी  निजी स्वामित्व में जाने के कयास लगाए जा रहे हैं। सरकार तो आर्ट स्कूल को भवन के बदले भवन देकर अपना दायित्व पूरा कर चुकी है। सब जुगाड़ हो रहा है। लेकिन, कोई यह बताने को तैयार नहीं है कि यह बात कहां से उठी या उठवाई गई कि राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट को नए भवन की जरूरत है...।  इस भवन का वास्तविक मूल्यांकन करवाने की बात भी अभी तक किसी ने भी नहीं की है। एक तरफ जेडीए व पीडब्ल्यूडी भवन पर अपने स्वामित्व के दावे कर रहें हैं, वही दूसरी ओर प.ं शिवदीन का परिवार भवन को पाने की कोशिशों में लगा है। इसे पाने की लाइन में लगे कारोबारियों की लॉबिंग शुरू हो गई है। हालांकि अभी तक कोई खुलकर कोई सामने नहीं आया है। अब देखना यह है कि यह प्राचीन धरोहर किस के नाम होती है?
भवन खुद एक कलाकृति
सबसे बड़ी बात कि तब और अब के पर्यावरण के अनुकूल बना यह भवन छूट जाएगा। जयपुर दरबार के खास दरबारियों में शामिल पं. शिवदीन की यह हवेली जालीदार कलात्मक झरोखों व महराबों से सुसज्जित है। इसमें आज तक इस पुराने भवन में 46-47 डिग्री सेल्सियस की भीषण गर्मी में भी किसी एसी या कूलर की जरूरत नहीं पड़ी। प्रिंसिपल रूम तक में कभी एसी या कृलर नहीं लगा। यहां के कलात्मक झरोखे ठंडी प्राकृतिक हवा के साथ भवन को ठंडा रखने का काम करते रहे। यह बात अलहदा है कि इनके वास्तु या निर्माण तकनीक को समझने की जरूरत किसी ने नहीं महसूस नहीं की।
यही धरी रह जाएगी धरोहर
सरकार द्वारा प्रदत्त नए भवन में जाने के बाद राजस्थान स्कूल ऑफ  आर्ट को अपने ऐतिहासिक भवन के साथ इससे जुड़े अनेक दुर्लभ भित्ति चित्रों से हाथ धोना पड़ेगा। प्राचीन कलात्मक निमार्ण के साथ इस भवन की दीवारों पर कई महान कलाकारों की कृतियां और हस्ताक्षर अंकित हैं। पदमश्री रामगोपाल विजयवर्गीय, स्व. श्री पी.एन.चोयल द्वारा बनाए गए भित्ति चित्रों के साथ तब मोलेला व गुजरात से आए विख्यात कलाकार के बनाए म्युरल से कला क्षेत्र की धरोहर का वह हिस्सा हो गई दीवारें अब यहीं रह जाएंगी। इन्हें चाह कर भी राजस्थान स्कूल ऑफ  आर्ट का प्रशासन नए भवन में साथ नहीं ले जा पाएगा।
उत्साह भी है उदासी भी 
यहां की कलाकृतियों, कला उपकरणों व अन्य सामान को नए भवन तक पहुंचाने के लिए 70 से अधिक ट्रकों की बात कही जा रही है, लेकिन इससे अधिक सौ ट्रक तक सामान हो सकता है। इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि जाने-अनजाने कई चीजें छूट जाएंगी या छोडऩी पड़ेंगी। नए भवन में जाने के लिए कॉलज स्टॉफ और स्टूडेंट्स के मन में उत्साह है, वहीं इस कॉलेज की पहचान बन चुकी पुरानी एतिहासिक इमारत को छोडऩे की मायूसी भी है। कहते हैं कि एक युग की समाप्ति के बाद भी अवशेषों में बीते युग की प्रतिध्वनियां अनन्तकाल तक गूंजती है। जब-जब राजस्थान स्कूल ऑफ  आर्ट का नाम लिया जाएगा तब-तब आर्ट कॉलेज को समर्पित पं. शिवदीन की यह हवेली हर किसी के जहन में कौंधेगी।

इस संस्थान ने देश व दुनिया को कई नामचीन आर्टिस्ट दिए हैं। ना केवल विद्यार्थियों ने बल्कि यहां के शिक्षकों ने भी शीर्ष कलाकारों के रूप में विश्व स्तर पर देश का प्रतिनिधित्व किया है।
कॉलेज के पुराने विद्यार्थी
पदमश्री रामगोपाल विजयवर्गीय, देवकीनन्दन शर्मा, रूपचन्द जैन, पी.एन. चोयल, सुरेश चन्द राजौरिया, रघुनन्दन शर्मा, आनन्द शर्मा, हरिशंकर गुप्ता और विजय जोशी।
युवा कलाकार
विनय शर्मा, रामकिशन अडिग, श्वेत गोयल, रवीन्द्र शर्मा माइकल, मुकेश शर्मा, लालचन्द मारोठिया, धर्मेन्द्र राठौड़, मनीष शर्मा, गौरीशंकर शर्मा और दीपक खण्डेलवाल।
यहीं के विद्यार्थी अब यहीं के शिक्षक
हरशिव शर्मा, विनोद मैनी, जगमोहन माथोडिय़ा, नरेन्द्र सिंह यादव और देवीलाल वर्मा।
-राहुल सेन