रविवार, 7 अप्रैल 2013

Art World में ये क्या हो रहा है?

ये क्या हो रहा है?
कला शिक्षा के नाम पर...

मूमल नेटवर्क, जयपुर। शहर की कला शिक्षा के दो मुख्य केन्द्रों पर कला शिक्षा के साथ-साथ अतिरिक्त ज्ञान दिए जाने के एक अलग सिलसिले को लेकर कुछ कलाविदों ने गंभीर चिंता व्यक्त की है। कोर्स से अलग ज्ञान बांट रहे कुछ गुरुजनों के इस अभियान में विद्यार्थियों को जयपुर में कला जगत की बुराईयों के साथ-साथ कला अकादमी और कुछ स्थापित कलाकारों के प्रति विशेष रूप से सावधान रहने पर जोर दिया जाता है।
सावधान
शहर के प्रमुख कलाविदों ने एक चर्चा के दौरान सार्वजनिक रूप से बताया कि राजस्थान स्कूल आफ आर्ट हो या राजस्थान विश्वविद्यालय का दृश्यकला विभाग, दोनों संस्थाओं के कुछ गुरुजनों द्वारा विद्यार्थियों के मन में स्थानीय स्थापित कलाकारों व कला अकादमी के प्रति सावधान रहने की भावना भरने का काम किया जा रहा है। चौंकाने वाली बात यह है कि यह सिलसिला लम्बे अर्से से चल रहा है। राजस्थान विश्वविद्यालय के दृश्यकला विभाग में स्थिति अधिक बुरी है।
आगे नहीं बढऩे देंगे
देश-विदेश में अपनी कला के बल पर पहचान बनाने वाले वरिष्ठे कलाकारों के प्रति यह कहते हुए सावधान किया जाता है कि यह लोग युवा कलाकारों को आगे नहीं बढऩे देंगे, आपकी तरक्की की बात पता चलेगी तो आपका पत्ता काट लेगें, पुरस्कारों में आपको दोयम दर्जे पर रखेंगे, भेदभाव करेंगे इत्यादि।
परिणामस्वरूप कुंठा
अपनी इस सीख से विद्यार्थियों के कोमल मन पर आशंका के बादल फैलाने वाले और मुख्य धारा से कट कर चलने की सीख देने वाले यह गुरुजन विद्यार्थियों का कितना भला कर रहे हैं, सहज ही समझा जा सकता है। ये गुरुजन विद्यार्थियों को अपनी कला निखारने और उसके बल पर कला जगत में अपने बलबूते पर अपना नाम आगे लाने की प्रेरणा कभी नहीं दे पाते। परिणामस्वरूप नकारात्मक भाव से भरा हुआ विद्यार्थी कुंठा का शिकार हो जाता है। ऐसे में अच्छा काम करने के बावजूद भी चारों बुरे ही बुरे की कल्पना करता हुआ कला विद्यार्थी मुख्य धारा से कटा रहता है और अपनी कूंची के नकारात्मक परिणामों के साथ उदय होने के साथ ही अस्त हो  जाता है।
कथनी कुछ... करनी कुछ
दूसरी और विद्यार्थियों में कुंठा भरने वाले यही गुरुजन जिनका विरोध करते हैं और जिनसे सावधान रहने को कहते हैं उन्हीं के एक इशारे पर गद्गद् हुए उनके इर्द-गिर्द हाजिर नजर आते हैं। जब उनसे इस आचरण का कारण पूछा जाता है तो जवाब मिलता है कि अपना और विद्यार्थियों का भविष्य बचाने के लिए उन्हें ऐसा मजबूरी में करना पड़ रहा है। इन दोनों संस्थाओं के कुछ कला गुरुओं से जब इस बारे में खुलकर चर्चा की गई तो अधिकांश ने ऑफ द रिकार्ड इस बात को स्वीकार किया साथ ही यह भी जोड़ा कि हर वरिष्ठ विद्यार्थियों से अपनी हजूरी चाहता है... क्या हम और क्या वो? 
मूमल व्यूज:
हालांकि मूमल कला जगत के वरिष्ठों की इस राजनीति में शामिल नहीं, यह भी जरूरी नहीं कि समाचारों में प्रकाशित हर विचार से मूमल सहमत हो, लेकिन प्रत्येक पक्ष के विचार प्रकट करने के अधिकार की रक्षा जरूर करता है।