सोमवार, 26 नवंबर 2012

Indian Monalisa अर्थात किशनगढ़ की 'बणी-ठणी'

इंडियन 'मोनालिसा' कहलाने वाली राजस्थान कि किशनगढ़ रियासत की लोकप्रिय मिनियेचर पेंटिंग 'बणी-ठणी' के बारे में विस्तृत विवरण और अध्ययन यहां प्रस्तुत है। इसके लिए सीधे मूमल दर्शना पर आपका स्वागत है। विषय विशेष के सम्बन्ध में अधिक जानने के लिए शीर्षक को क्लिक करें। 
. एक था राजा... और एक 'बणी-ठणी'

. ऐसे बनी 'बणी-ठणी'

. आखिर किसने बनाई 'बणी-ठणी'

. 'बणी-ठणी' की देहभाषा

. 'बणी-ठणी' का एक समग्र दर्शन

. चित्रगीतिका में 'बणी-ठणी'

शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

Bani Thani बणी-ठणी: दर्शन व विवेचन

राजस्थान की 'मोनालिसा' कहाने वाली किशनगढ़ की कृति 'बणी-ठणी' के बारे में विस्तार जानिए...
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बुधवार, 7 नवंबर 2012

अब छोड़ो भी यह केंकड़ापन...

.इस बार सामने आई ज्यादातर खबरों से बात प्रमुखता से उभर कर सामने आई कि कला जगत के ज्यादातर प्राणी केंकड़ों सा व्यवहार कर रहे हैं। बात चाहे कलाकारों की करें या कलाकारों के काम को प्रदर्शित करने वाले व्यापारियों की, नवांकुरों को दिशा देने वाले वटवृक्षों की करें या कला शिक्षकों की सभी क्षेत्रों में एक-दूसरे की टांग खींच कर उसे नीचे लाने पर ज्यादा जोर लगाया जा रहा है न कि स्वयं आगे बढऩे पर।

एक मामले में कलाकारों को मारीशस में प्रदर्शन के नाम पर जो खेल खेला गया वह फेयर नहीं था। यहां भी दो लोगों ने कलाकारों के साथ जो किया वह किसी ठगी से कम नहीं रहा। यहां केकड़ों वाली बात तब सामने आई जब दोनों ने एक-दूसरे की टांग खींचते हुए अपनी कारगुजारियां उजागर की। एक अन्य खबर में यह है कि जयपुर में गीत-संगीत के क्षेत्र में सक्रीय एक पुराने संस्थान ने एक अन्य स्कूल के साथ मिलकर पेंटिंग ओर मूर्तिकला के क्षेत्र में कदम बढ़ाया, लेकिन यहां भी फैकल्टीज ने एक-दूसरे की टांग खींची और संस्थान के शुरूआती कदम ही लडख़ड़ा गए। अब शिक्षक अपने-अपने विद्यार्थियों को लेकर अलग-अलग हो गए और हालात यह हो गए कि दही जमा भी नहीं रायता पहले ही फैलने लगा। ऐसी ही केकड़ेपन कि मिसाल जेकेके में पिछलें दिनों हुए दो व्यापारिक प्रदर्शनियों में सामने आई नतीजा यह रहा कि एक में मात्र 20 से 22 प्रतिशत सेल में व्यापार सिमट गया और दूसरी में उतना भी नहीं रहा। विवाद खड़े हो रहे हैं वह अलग।

यह तो अभी ताजा उदाहरण हैं, अगर पुराने और गड़े मुर्दे उखाड़े जाएं तो शायद यहां उल्लेख के लिए स्थान काफी कम लगने लगे। पुराने केंकड़ों की कारगुजारियां आज भी पहले की तरह जारी हैं, इसके लिए ज्यादा कुछ लिखने की आवश्यकता नहीं है, बहुत कुछ आपके जहन में खुद ही आ रहा होगा। एक से बढ़कर एक केंकड़े आपकी नजरों के सामने घूम रहे होंगे।

कुल मिलाकर हमारे कला जगत को तो ऐसी केंकड़ा प्रवृति से बचना चाहिए। देखिए, जब बड़े-बड़े राजनीतिक दलों ने केंकड़ापन छोड़कर 'नूरा-कुश्तीÓ की शैली अपना ली है। करामाती केजरीवाल की बात सही माने तो इसी शैली से वे देश पर बारी-बारी से राज कर रहे हैं। ऐसे में क्या हम एक-दूसरे की टांग न खींच कर अपना छोटा से कला संसार को नहीं चलने दे सकते? 
-संपादक

मंगलवार, 6 नवंबर 2012

उदयपुर के 6 चितेरे जहांगीर आर्ट गैलेरी में

मूमल नेटवर्क। उदयपुर के चितेरों की एक कला प्रदर्शनी मुंबई की जहांगीर आर्ट गैलेरी में इन दिनों कला प्रेमियों को लुभा रही है।
'लुकिंग इज नॉट सीइंग' नामक इस प्रदर्शनी में उदयपुर के 6 कलाकारों ने अपनी पेंटिंग्स और स्कल्पचर के जरिए अपनी सोच जाहिर की है। इनमें राकेश कुमार सिंह, सचिन दाधीच, हार्दिक उपाध्याय, जसवंत सिंह राजपुरोहित, भारत लाल पाटीदार व ललित गर्ग की कृतियां शामिल हैं। 12 नवम्बर को शुरू हुई यह प्रदर्शनी 18 नवम्बर तक चलेगी।
यह प्रदर्शनी उदयपुर की संस्था 'टखमण-28' द्वारा युवा कलाकारों के प्रोत्साहन के लिए आयोजित कराई गई है। उल्लेखनीय है कि बिना किसी सरकारी सहायता के वर्ष में दो-तीन बार युवा कलाकारों को प्रदर्शनी के लिए ऐसे महत्वपूर्ण प्लेटफार्म उपलब्ध कराती है।
उदयपुर से मोहन लाल जाट की खबर

शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

शिल्प और कला जगत की गतिविधियों से लबरेज इस अंक में जानिए...
केंकड़ों की कलाकारी.. पेज-1
भारतीय कला बाजार के सुनहरे दिन..  पेज-2
प्रदेश में सक्रीय कला प्रदर्शनों के दलाल.. पेज-3
जेकेके में सम्पन्न दो व्यावसायिक शो.. पेज-5
जेब की साइज में कलानेरी की कोशिश.. पेज-5
बंगभूमि की विभिन्न चित्रांकन शैलियां.. पेज-9
दर्शक संस्था की दर्शना में दस्तक.. बैक कवर

...और भी बहुत कुछ जिसकी मूमल से उम्मीद की जा सकती है।
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गुरुवार, 1 नवंबर 2012

प्रदेश में सक्रीय कला प्रदर्शिनियों के मध्यस्त

मारीशस में प्रदर्शन के नाम पर लगाया कई कलाकारों को चूना
किसी ने पांच हजार लिए तो किसी ने ढाई हजार रु. वसूले
मूमल नेटवर्क, जयपुर। पिछले दिनों मारीशस में लगे एक ट्रेड फेयर में भारत से ले जाई गई कलाकृतियों के प्रदर्शन को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। प्रभावित कलाकारों को कहना है कि पैसे लेकर भी प्रदर्शनी में उनका काम प्रदर्शित नहीं किया गया जबकि प्रदर्शन का बीड़ा उठाने वाले कहते है कि हमने इस काम में काफी घाटा उठाया।
मूमल को दिल्ली सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इन दिनों राजधानी में कला प्रदर्शिनियों के दलालों की सक्रियता यकायक बढ़ गई है। खासकर विदेशों मे शो कराने के नाम पर कलाकारों से काफी पैसा वसूल किया जा रहा है।  पिछले दिनों दिल्ली में सक्रीय दो मध्यस्थों ने मारिशस में आयोजित हुए एक ट्रेड फेयर में प्रदर्शित करने के लिए राजस्थान सहित देशभर के कलाकारों से काफी धन बटोरा। इनमें से एक ने 15 और एक अन्य ने 25 कलाकारों की कृतियां प्रदर्शन के लिए बुक की।
यूं हुआ घोटाला
मारीशस के एक ट्रेड फेयर में दिल्ली के दो मध्यस्थों, सामान्य बोलचाल की भाषा में कहे तो  दलालों ने दस बाई दस की दो अलग-अलग स्टाल्स बुक कराई। उसके बाद उन्होंने कलाकारों से उनकी कलाकृतियां प्रदर्शित करने के लिए 5 हजार रुपए प्रति पेंर्टिग्स की दर से पेसा वसूला किसी भी कलाकार ने दो से अधिक काम नहीं दिए। पांच हजार रुपए वसूलने वाले दलाल को करीब 15 कलाकारों के 20 काम मिले और फिर काम ढीला पड़ गया। उधर दूसरे दलाल ने 5 हजार रुपए में दो पेंटिंग्स प्रदर्शित करने के नाम पर 25 कलाकारों के 50 काम ले लिए। निर्धारित तिथि पर दोनों ट्रेड फेयर में पहुंचे, कुछ पेंटिंग्स भी साथ ले गए। जब बुक की हुई स्टाल का पैसा चुकाने का समय आया तो कोई भी पूरी स्टॉल का किराया देने की स्थिति में नहीं था। एक ने अपने साथ चावल के दाने पर नाम लिखनेे वाले एक अन्य कलाकार को पार्टनर बनाया तो दूसरे ने किन्ही श्रीमती नियाजी के नाम से बुक स्टाल में आधी जगह पाने के लिए मोटी रकम चुकाई।
अब दोनों के पास ही अलग-अलग जगह आधी-आधी स्टॉल थी। ऐसे में दोनों ही किसी का कोई काम प्रदर्शित करने की स्थिति में नहीं थे, सेल की तो बात ही दूर रही। एक ने  अपनी थोड़ी सी जगह में आगंतुकों के प्रोटेट बनाने शुरू किए और पैसा बनाया। जबकि दूसरा यह भी नहीं कर पाया क्यों कि वह कलाकार भी नहीं था।
यूं खुला मामला
ट्रेड फेयर के बाद जब कलाकारों को यह बताया गया कि उनकी कोई पेंटिंग नहीं बिकी, लेकिन काम लोगों ने पसंद किया है। भविष्य में उम्मीद है।
स्वभाव से सीधे कलाकारों ने उनकी बात सही मान कर संतोष कर लिया। उधर एक दूसरे के धंधे में टांग फंसाने से नाराज दलालों ने बदला लेने और आगामी आयोजनों से एक दूसरे का पत्ता काटने के विचार से कलाकारों के सम्मुख एक दूसरे की पोल खोलनी शुरू की। बस यहीं से कलाकार जागृत हुए और मूमल को दोनों ओर से जानकारियां मिलने लगी।

दलालों की सलाह पर प्रदर्शनी के प्रमाण में कलाकारों ने प्रदर्शनी में लगे उनके काम के फोटोग्राफ चाहे। ट्रेड फेयर में बुक स्टॉल के लिए किए गए भुगतान की रसीद दिखाने को कहा। अब दलाल बगले झांकने लगे। एक दूसरे के लिए खोदी खाई में गिरे दलालों में से एक ने बताया कि उसने तो अपनी स्टॉल के पैसे चुकाए और उसके पास रसीद भी है। उसने प्रतिदिन कुछ-कुछ कलाकारों का काम प्रदर्शित किया और फोटो भी खींचे। उसके बाद कैमरा खराब जाने के कारण वह फोटोग्राफ किसी को दिखा नहीं पाया। उसने दूसरे दलाल के लिए बताया कि उसे तो आयोजकों ने जैसे-तैसे एक  मिसेज नियाजी के स्टॉल में आधी जगह दिलाई। उसने वहां एक दिन नियाजी मैडम के आने से पहले पूरे स्टॉल में अपने साथ लाई कुछ पेंटिंग्स को बारी-बारी से लगा कर फोटोग्राफी शुरू की, लेकिन इस बीच मैडम नियाजी आ गई तो झगड़ा भी हुआ। बाद में तो उसके पास पेंटिंग्स रखने का ठिकाना भी नहीं था और उसके लाई पेंटिंग्स मेरे स्टॉल में टेबिल के नीचे रख्री जाती थी।

इसकी पुष्टि किए जाने पर दूसरे दलाल ने सभी बातें बेबुनियाद और गलत बताते हुए पहले के लिए कहा कि उसने अपने स्टॉल में चावल पर नाम लिखने वाले को आधी जगह दे दी। आधी जगह में कितनी पेंङ्क्षटग्स लगने की गुजाइश थी? यह तो कोई भी जान सकता है। अब ऐसे में कैमरा खराब नहीं होता तो क्या होता?

कुल मिलाकर कलाकारों से उनकी कृतियों के प्रदर्शन और सेल के नाम पर पैसे लेने वाले दोनों दलालों ने एक दूसरे की पोल जमकर खोली। दोनों ने बताया कि उनके पास प्रदर्शित की जाने वाली कृतियों के लिए तैयार किया हुआ कैटेलॉग है। स्टॉल के भुगतान किए धन की रसीद और प्रदर्शनी के कुछ फोटोग्राफ हैं। मूमल से हुई बातचीत में दोनों ने ही इनकी प्रतिलिपियां ई-मेल पर भेजने की बात कही, लेकिन बार-बार याद दिलाए जाने के बावजूद समाचार लिखें जाने तक दोनों की ओर से कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं कराए गए।
अन्तत:
विदेशों में प्रदर्शन को लेकर उत्सुक और महत्वाकांक्षी कलाकार ही इस ठगी के शिकार हुए हैं। गांठ से रकम गंवाने के बाद भी ना तो उनकी कोई कृति बिकी और न ही प्रदर्शित ही हो पाई। और तो और अपनी प्रदर्शन उपलिब्धयों में जोडऩे के लिए एक कैटलाग या फोटोग्राफी तक नहीं जुट पाई। इन ठगे-ठगे से कलाकारों में दिल्ल्ी के वरिष्ठ कलाकारों के साथ यू.पी. और राजस्थान के कलाकार भी शामिल हैं।