शुक्रवार, 30 मई 2014

मदरसा-ए-हुनरी से राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट तक

Old Building at Kishanpol Bazar, Jaipur

विज्युअल आर्ट के क्षेत्र में नामी कलाकार देने वाली 
राजस्थान की सबसे पुरानी संस्था  
गौरवशाली इतिहास
सन् 1857 में मदरसा-ए-हुनरी के नाम से शुरू हुआ राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट का सफर कला शिक्षण की दुनिया में अनुभव, परिपक्वता, कला अभ्यास और काबिलियत को स्वयं में समेटे हुए है। देश की सबसे पुरानी कला शिक्षण संस्थाओं में से एक है, राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट। यहां शिक्षा प्राप्त विद्यार्थी स्वत: ही कला के गौरवशाली इतिहास का हिस्सा बन जाते हैं।
ग्रेजुएशन,पोस्ट ग्रेजुएशन
राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट में ग्रेजुएशन व पोस्ट ग्रेजुएशन तक विजुअल आर्ट की शिक्षा दी जाती है। कला के व्यावसायिक शिक्षण की स्नातक व स्नातकोत्तर डिग्री के लिए पेंटिंग, एप्लाइड आर्टस और मूर्तिशिल्प (स्क्लपचर) में से किसी को चुन सकते हैं। ग्रेजुएशन में 20 वर्ष से कम और पोस्ट गे्रजुएशन के लिए 26 वर्ष तक की आयु के विद्यार्थी एडमीशन ले सकते हैं।
अपेक्षाकृत कम शुल्क
कॉलेज में बैचलर डिग्री ऑफ  विजुअल आर्ट में पेंटिंग, एप्लाइड आर्टस व स्क्लपचर के लिए 24-24 सीटें व मास्टर डिग्री ऑफ  विजुअल आर्ट में पेंटिंग, एप्लाइड आर्टस व स्क्लपचर के लिए 12-12 सीटें उपलब्ध हैं। बीवीए की शिक्षण अवधि 4 वर्ष और एमवीए की शिक्षण अवधि 2 वर्ष (चार सैमिस्टर) में हैं। वार्षिक फीस संतुलित व अपेक्षाकृत कम है जो विद्यार्थियों के अभिभावकों पर ज्यादा आर्थिक भार नही डालती। एमवीए में सेल्फ फाइनेंस के रूप में भी एडमीशन लिया जा सकता है।
आधुनिक स्टूडियोज
कला शिक्षण के लिए नवीनतम व अति आधुनिक उपकरणों से सजे स्टूडियोज हैं, जहां  विद्यार्थियों को अभ्यास व शिक्षण में आसानी रहती है। एससी,एसटी व महिला विद्यार्थियों के लिए कॉलेज में विशेष सुविधाएं उपलब्ध हैं। कॉलेज का शैक्षिक वातावरण परिवारिक व सहज है।
अनुभवी शिक्षक
यहां पढ़ाने वाले शिक्षक कला क्षेत्र के वरिष्ठ और अनुभवी अध्यापक हैं। देशभर में उनकी पहचान शिक्षक के साथ-साथ बेहतर कलाकार के रूप में भी है। अनुभवी व परिपक्व शिक्षकों के संरक्षण में विद्यार्थी अपनी प्रतिभा को निखार कर कला की दुनिया में अपनी पहचान बना सकते हैं। देश-विदेश में स्थापित कलाकारों में से अनेक नाम यहां से शिक्षण प्राप्त कर निकले विद्यार्थियों के हैं।
सुसम्पन्न लायब्रेरी 
विषय के गहरे अध्ययन के लिए यहां की लायब्रेरी में बहुमूल्य पुस्तकों का भण्डार है। कला से सम्बन्धित लगभग 8000 पुस्तके कॉलेज की लायब्रेरी में हैं और नवीनतम पुस्तकों की भी नियमित रूप से खरीद होती रहती है।
अब नए भवन में 
इस सत्र से कॉलेज शिक्षा संकुल स्थित नए भवन में शिफ्ट हो रहा है, जो कला शिक्षण के आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित है। कॉलेज में एडमीशन के लिए बीएवी के 2 जून से और एमवीए के लिए14 जून से फार्म उपलब्ध होंगे। यह फार्म व प्रोस्पेक्टस  किशनपोल बाजार स्थित कॉलेज के पुराने भवन से प्राप्त किए जा सकते हैं। भरे हुए फार्म को बीएवी विद्यार्थी द्वारा 19 जून तक और एमवीए विद्यार्थी द्वारा 24 जून तक किशनपोल बाजार वाले पुराने भवन में जमा करवाया जा सकता है।
देखें: राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट 
New building at 'Shiksha Sankul' JLN Road, Jaipur

स्टैनी मैमोरियल पी.जी. कॉलेज,एक बेहतर विकल्प

निजी क्षेत्र में बेहतर कला शिक्षा के लिए जयपुर के स्टैनी मैमोरियल पी.जी. कॉलेज का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। यहां व्यावसायिक शिक्षा के अन्तर्गत बैचलर्स ऑफ  विजुअल आर्ट तथा ड्राइंग एण्ड  पेंटिंग में बी.ए एवं एम.ए के कोर्स चलाए जाते हैं। इसके साथ ही संगीत में बी.ए व बैचलर ऑफ  म्यूजिक के कोर्स चलाए जाते हैंं।
यहां के फाइन आर्ट विभाग में ड्राइंग व पेंटिंग के विद्यार्थियों के लिए अच्छे स्टूडियो उपलब्ध हेँ, जहां विषय की आवश्यक्ता के अनुसार काम किया जा सकता है। कॉलेज में प्रिंटिंग की विभिन्न कलाओं का प्रयोगात्मक प्रशिक्षण देने के लिए उच्च कोटि का प्रिटिंग स्टूडियो भी बनाया गया है। यह स्टूडियो सभी आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित है। विद्यार्थी, कॉलेज द्वारा उपलब्ध उपकरणों के माध्यम से अपने विषय का अभ्यास कर सकते हैं। संगीत की कक्षाओं के लिए कालेज में सभी वाद्य यंत्रों की उपलब्धता है, जिस पर अपनी रुचि और विषय के अनुसार विद्यार्थी नियमित अभ्यास करते हैं।
सर्वांगीण विकास
विद्यार्थियों का कला क्षेत्र में सर्वांगीण विकास हो इसके लिए समय-समय पर सेमीनार, प्रदर्शनियों, कार्यशालाओं व वार्षिक प्रतियोगिताओं का नियमित रूप से आयोजन किया जाता है। इसके साथ ही यहां के विद्यार्थी पूरे आत्मविश्वास के साथ जेकेके में अपनी बनाई पेंटिंग्स की प्रदर्शनियां भी लगाते है। संगीत के विद्यार्थी भी गुरूजनों की संगत में अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं।
पारंगत शिक्षक
कला विभाग में अपने क्षेत्र के दक्ष और पारंगत शिक्षकों की नियुक्ति की गई है। इनके सानिध्य में विद्यार्थी पूरी तलीनता और तन्मयता के साथ अपनी कला को साधता है। कालेज प्रशासन द्वारा समय-समय पर वरिष्ठ कलाकारों को आमंत्रित किया जाता है, जो विद्यार्थियों के समक्ष अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं और उन्हें प्रशिक्षित करते हैं। छात्राओं के लिए यहां का वातावरण सहज व सुरक्षित है। इसे बनाए रखने के लिए शिक्षक व प्रशासन पूरी तरहा से प्रतिबद्ध व सजग हैं।
महिलाओं को छूट
कॉलेज की फीस में महिलाओं े लिए विशेष छूट का प्रावधान है। एडमीशन फार्म कालेज के मान सरोवर स्थित भवन में उपलब्ध हैं। इसके अलावा संस्थान की वेबसाइट से भी इसे प्राप्त किया जा सकता है।
See More for Stani Memorial P.G. College

मंगलवार, 27 मई 2014

विजुअल आर्ट अर्थात सफलता का कैनवास

रचनात्मकता प्रस्तुत करने के पारम्परिक व नवीन माध्यमों का कलात्मक मिश्रण, अर्थात अपने विचारों, भावों व संवेदनाओं कों विभिन्न प्रयोगों के द्वारा सरलता से आकर्षक बनाकर प्रस्तुत करना ही तो है, विजुअल आर्ट।  
कुछ वर्ष पहले तक कला संस्थानों में छात्रों का अभाव रहता था। किन्तु वर्तमान में खुले मीडिया व ग्लोबलाइजेशन के कारण आज स्थिति कुछ और ही है। आज अच्छे कला संस्थानों में अच्छे से अच्छे छात्र जो कि वाकई में कुछ रचनात्मक कार्य करना चाहते हैं, उनकी लाइन लगी हुई है। कुछ तो दो साल तक का इन्तजार भी करते हैं। विजुअल आर्ट के इस व्यापक क्षेत्र में विभिन्न शाखाओं के अपने विशेष गुण व उनकी अपनी गम्भीर नवीनतम व रचनात्मक उपयोगिता है।  
इसके अन्र्तगत प्रमुखत : पेटिंग, चित्रकला, ग्राफिक्स (प्रिन्टमेकिंग), म्यूरल, टेक्सटाइल कला. एप्लाइड आर्ट यानि व्यावहारिक कला/ कमर्शियल आर्ट, इलस्ट्रेशन, एनिमेशन, टाइपोग्राफी, फोटोग्राफी, छपाई कला, प्लास्टिक आर्ट, स्कल्पचर या मूर्तिकला, पॉटरी, इस विषय से संबंधित कला इतिहास व अन्य विषयों का अध्ययन किया जाता है। 
पाठ्यक्रम
सामान्यत: सभी संस्थानों में यह एक चार वर्षीय पाठ्यक्रम है। प्रथम वर्ष में उस संस्थान में विजुअल आट्र्स के सभी पाठ्यक्रम पढाए जाते हैं। उनका अध्ययन करना होता है। जिसे फाउण्डेशन कोर्स कहा जाता है। तत्पश्चात प्राप्तांक व मेरिट के आधार पर अपने विषय का तीन वर्षीय स्पेशलाइजशेन कोर्स करना होता है। इसे बी.एफ..ए. (बैचलर इन फाइन आट्र्स) या बी.वी. ए. (बैचलर इन विजुअल आटर््स) कहते हैं। तत्पश्चात यदि रुचि हो व आपको अपने अध्ययन व कला के क्षेत्र में और नवीन प्रयोगों को भी सीखना हो तो दो वर्षीय पोस्ट ग्रैजुएशन कोर्स जिसे एम.एफ..ए. (मास्टर इन फाइन आट्र्स) या एम.वी.ए. (मास्टर इन विजुअल आटर््स) कहते हैं। इसके अन्र्तगत, निर्देशन में सामान्यत: गाइड सिस्टम के तहत शिक्षण संस्थान में कार्यरत अध्यापकों के रजिस्ट्रेशन कराकर किसी एक या दो विषयों पर काफी गूढ़ व प्रयोगात्मक अध्ययन करना होता है। इसके उपरान्त आप चाहें तो इस विषय में पीएचडी भी कर सकते हैं।
रोजगार के अवसर
सामान्यत: सरकारी या प्राइवेट बी.एफ.ए/बी.वी.ए. करने के बाद आप स्कूली स्तर तक के अच्छे कला शिक्षक, सरकारी संस्थानों में कलाकार व फोटोग्राफर इत्यादि बन सकते हैं। एमएफए/एमवीए/पीएचडी करने के बाद सरकारी व प्राइवेट महाविद्यालय/ विश्वविद्यालयों में कला में शिक्षक भी बन सकते हैं जिसमें आप लेक्चरर/रीडर व प्रोफ़ेसर तक के पदों पर आसीन हो सकते हैं। लेकिन यह एक सामान्य पहलू है। इसका रचनात्मक पहलू स्वतंत्र कलाकार बनने में ज्यादा है। इसके अलावा विज्ञापन संस्थानों/आर्ट गैलेरीज/प्रकाशन के क्षेत्र व फिल्मों के क्षेत्र में/फोटोग्राफी/एनिमेशन फिल्मों इत्यादि में अपार रोजगार उपलब्ध है।
पेंटिंग- (चित्रकला) 

चित्रकला अर्थात पेटिंग बनाने की कला के बारे में सामान्यत: इसे हम बचपन से ही सुनते व कुछ स्तर तक स्कूली स्तर पर सीखते आते हैं लेकिन इस विषय की गम्भीरता व रचनात्मकता की व्यापक जानकारी हमें ग्रेजुएशन/पोस्ट ग्रेजुएशन व रिसर्च के माध्यम से मिलती है। इनकी सहायता से हम इस विधा में पारंगत हो सकते हैं व एक सम्मानजनक उपयोगी रोजगारोन्मुख रचनात्मक जीविका चला सकते हैं। सामान्यत: ग्रेजुएशन के दौरान इसको सीखने के लिए नई सोच, नई तकनीक के साथ-साथ ड्राइंग करने के महत्वपूर्ण ज्ञान का होना जरूरी है। इसकी शुरुआत हमें स्केचिंग जैसी विधा से करनी होती है। इसके उपरान्त मानव शरीर/प्राकृतिक दृश्यों/स्टील लाइफ इत्यादि को चित्रित करने की सुन्दर प्रक्रिया सीखनी होती है। इन्हें हम विभिन्न धरातलों जैसे कई तरह के पेपर व कैनवास पर पारंम्परिक व नवीन माध्यमों जैसे वाटर कलर/तैल रंगों/पोस्टर कलर/चारकोल/पेंसिल इत्यादि की सहायता से चित्रित करने की अनवरत प्रक्रिया की ओर बढ़ते रहते हैं। चार वर्षीय डिग्री कोर्स से ग्रेजुएशन करने के उपरान्त दो वर्षीय पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्सों में चित्रकला के तहत विभिन्न पारम्परिक व नए माध्यमों जैसे कम्प्यूटर तक का उपयोग करके उस पर विस्तृत रूप से अपने विषय अनुसार मूर्त व आमूर्त कला का गम्भीर प्रयोगात्मक अध्ययन किया जाता है।
ग्राफिक्स कला (प्रिंटमेंकिंग) 
यह छपाई कला की प्राचीनतम विधि है, जिसे प्राचीन समय से लेकर आज तक उचित सम्मान मिला है। हम अपनी रचनात्मक कलाओं का प्रदर्शन पारम्परिक तरीके जैसे जिंक की प्लेट/लाइम स्टोन/वुड/कास्ट/लिनेन एवं सिल्क के साथ विभिन्न धरातलों पर उकेर कर मशीन तथा स्याही की सहायता से पेपरों पर प्रिन्ट द्वारा करते हैं। इससे लिए गये प्रिन्टों की संख्या सीमित होती है यह इसका सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। वर्तमान समय में कई नवीन कलाकारों ने इस विषय पर गैर पारम्परिक प्रयोगों के जरिए उच्च कोटि का कार्य करके इसकी प्रामाणिकता को और सिद्ध व जनोपयोगी बनाने का प्रयास किया हैं। इस कला को भी सीखने के लिए ड्राइंग के क्षेत्र में पारंगत होना अति आवश्यक है।
म्यूरल कला 
सामान्यत: इसे दीवारों पर बनाई गई पेटिंग के रूप में समझा जाता है। इस कला को भी सीखने में चित्रकला की तरह ही ड्राइंग के क्षेत्र में पारंगत होना व रंगों का उचित ज्ञान भी होना अति आवश्यक है। वर्तमान में म्यूरल की जरूरत समाज में एक नई पहचान बनाने के तौर पर उभरी है। पुरानी परम्परा यानी रंगों की सहायता से दीवारों पर पेंटिंग बनाने से हटकर सोचने व क्रियान्वित करने के ट्रेंड ने इसे बहुआयामी बना दिया है। अब टाइल्स/ टेराकोटा /सीमेन्ट/ बाल ू/ग्लास/ प्लास्टिक/ लोहे व स्टील इत्यादि माध्यमों से परमानेन्ट म्यूरल बनाए जाते हैं साथ ही फोटोग्राफी/डिजिटल तकनीक व विभिन्न प्रकाश माध्यमों की सहायता से अस्थायी म्यूरल भी बनाए जाते हैं। विदेशों में तो कई शहरों में लोग अपने घरों/या आफिसों के बाहरी हिस्सों को सम्पूर्ण म्यूरल कला के जरिए प्रदर्शित करवाते हैं।
टेक्सटाइल कला 
टेक्सटाइल कला अर्थात वस्त्र कला। इस कला के अन्र्तगत सामान्यत: ड्रांइग की गहन जानकारी के अलावा कपड़े पर अपनी कला को प्रस्तुत करने के तरीकों को सीखने की प्रक्रिया की ओर आगे बढ़ते रहते हैं। जैसे पहले पेपर पर ड्रांइग बनाना फिर परम्परागत व नई लूम मशीनों की सहायता से उनको कपड़े पर उतारना/धागों से कपड़े बनाने की प्रक्रिया/कपड़ों को रंगने इत्यादि कार्यों को प्रक्रिया को सीखते हैं। बंधनी कला अर्थात राजस्थानी शैली की साडिय़ां व दुपट्टे, बनारसी साडिय़ां इत्यादि इस कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं । स्कूलों, कालेजों व विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के अलावा टेक्सटाइल्स मिल्स/गारमैन्ट्स मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों व स्वतंत्र छपाईकला व स्क्रिन प्रिटिंग के जरिये इस विधा में अत्यन्त रोजगार के अवसर उपलब्ध हैं।
एप्लाइड आर्ट 
सामान्यत: पहले सभी कलाओं को व्यावहारिक कला का ही दर्जा प्राप्त था। लेकिन 19 वीं शताब्दी के प्रारम्भ व तकनीकों के लगातार विकास से यह कला विशेषत: विज्ञापन जगत की कला के तौर पर जानी जाने लगी। वर्तमान में इसे और संशोधित
करके कमर्शियल आर्ट अर्थात व्यापारिक कला के तौर पर मान्यता मिल रही है। जब से पृथ्वी पर व्यापार या समान खरीदने-बेचने की प्रक्रिया आरम्भ हुई, तभी से इस कला का चलन माना जा सकता हैं। इस कला में भी ड्राइंग की अहम जानकारी के साथ-साथ हमें ग्राफिक/कम्पोजिशन/ अक्षरों की पहचान/पोस्टर कला/विज्ञापन कला - समाचार पत्र/पत्रिकाओं में रोजाना छपने वाले विज्ञापन/दुकानों में दिखाई देने वाले पोस्टर/ग्लोसाइन बोड्र्स/डैगलडर्स/उत्पादों की पैकेजिंग व प्रस्तुतीकरण/टीवी पर रोजाना आने वाले विज्ञापन विभिन्न चैनलों का ग्राफिक प्रस्तुतीकरण इत्यादि के बारे में सतही स्तर से लेकर उच्च स्तर तक की शिक्षा ग्रहण करनी होती है। व्यावहारिक कला को सीखने के कई तर्क हैं। सर्वप्रथम किसी भी वस्तु का प्रचार करने के लिए उसका प्रस्तुतीकरण अत्यन्त आवश्यक है। इस प्रक्रिया को विजुएलाइजेशन कहते हैं। जो निरन्तर सीखने की प्रक्रिया से पारंगत होता है। इस कला की पढ़ाई पूरी करने के बाद छात्र के पास कला क्षेत्र के सर्वाधिक रोजगार उपलब्ध रहते हैं। जैसे विज्ञापन संस्थानों में ग्राफिक डिजाइनर/विजुयेलैजर/आर्ट डायरेक्टर, प्रकाशन संस्थानों में ले आउट डिजाइनर/विजुयेलैजर/आर्ट डायरेक्टर/टीवी विज्ञापन जगत में आर्ट डायरेक्टर/सेट डायरेक्टर एनिमेशन, स्वयं की विज्ञापन संस्था इत्यादि तरीके के रोजगार उपलब्ध रहते हैं।
इलस्ट्रेशन कला
 इलस्ट्रेशन कला अर्थात रेखाचित्र, जो कि किसी कहानी, लेख या विचार की सजीवता प्रस्तुत करते हैं। सामान्यत: इस कला को सीखकर छात्र बच्चों की किताबों/कॉमिक्स बुक्स/पत्रिकाओं इत्यादि के साथ-साथ वर्तमान समय के सबसे रुचिपूर्ण शब्द एनिमेशन कला की ओर बढ़ते हैं। वास्तविक रूप में यह काफी धैर्य व समय के उपयोग की कला है, जिससे एनिमेशन फिल्मों इत्यादि में रोजगार की संभावनाएं बढ़ सकती हैं जिसे हम द्विआयामी रेखाचित्रों का त्रिआयामी चित्रों व फिल्मों के जरिए प्रस्तुत करते हैं। इसमें इलेस्टे्रशन के साथ-साथ कम्प्यूटर पर उपलब्ध एनिमेशन साफ्टवेयरों के उपयोग पर खास ध्यान देना होता है। इसी के अन्तर्गत कार्टूनिंग कला भी आती है। इन्हें हम सामान्यत:/समाचार पत्र व पत्रिकाओं में देखते हैं।
फोटोग्राफी कला
विजुअल आर्ट में फोटोग्राफी कला का भी एक अहम पहलू है। इसमें हम वस्तु को सामान्य नजरिये से हटाकर एक विशेष नजरिए से नई तकनीक के साथ प्रस्तुत करते हैं। इसका सर्वाधिक उपयोग विज्ञापनकला के अन्र्तगत ही आता है। कई बार तो सिर्फ  फोटोग्राफ  ही बिना कुछ लिखे कई बातें व कहानियों के साथ-साथ उत्पादों की विशेषता बता देते हैं। वर्तमान में डिजिटल फोटोग्राफी तकनीक आने से यह कला कम खर्चीले व समय की काफी बचत व तुरन्त रिजल्ट देने वाली कला के रूप में भी प्रचलित हो रही है। इस कला को सीखने के बाद छात्र स्वयं का रोजगार जैसे फोटोग्राफी स्टूडियो/समाचार पत्र, पत्रिकाओं में प्रेस फोटोग्राफर, फिल्मों में स्टिल फोटोग्राफर, फैशन फोटोग्राफर,आर्किटेक्चरल फोटोग्राफर, इंडस्ट्रियल फोटोग्राफर या स्वतंत्र फोटोग्राफर के रूप में अपनी जीविका सम्मानपूर्वक तरीके से चला सकते हैं।
टाइपोग्राफी कला 
टाइपोग्राफी अर्थात लेखन की कला। इस कला के अन्तर्गत अक्षरों की बारीकियां जैसे उनकी बनावट, उनकी विशिष्टता व शैली इत्यादि की खोज पर ध्यान दिया जाता है। इसके अन्र्तगत कुछ समय पहले तक धातु की ढलाई करके बने हुए अक्षरों से लेटर प्रेस मशीन द्वारा छपाई होती थी। कम्प्यूटर तकनीक के आ जाने व अक्षरों की उपलब्धता व सुगमता के कारण अक्षर कला अर्थात टाइपोग्राफी का महत्व काफी बढ़ गया है। इस विधि के अन्तर्गत छात्र अपनी विशिष्ट लिखावट शैली व नई फॉण्ट इजाद कर सकते हैं। इसी के अन्तर्गत कैलीग्राफी कला भी आती है।
जिसकी सहायता से ब्रश/क्रोकिल/विभिन्न तरीके व स्ट्रोक के फाउण्टेन पेन व निब की सहायता से एक विशिष्ट शैली की स्वयं की लिखाई की डिजाइन प्रक्रिया को सीखा व अपनाया जाता हैं। यह आपकी रचनात्मकता को और सुगम बनाता है।
छपाई कला  
इसके अन्र्तगत प्रिंटिंग तकनीकों के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की जाती हैं व वर्तमान समय में आ रहे आधुनिक बदलावों को भी सिखाया जाता है। इस तकनीक के अन्तर्गत लेटर प्रेस/ ऑफसेट प्रिंटिंग/डिजिटल ऑफफसेट प्रिंटिंग/डिजिटल प्रिटिंग/साल्वेन्ट प्रिंटिग (फ्लैक्स/विनायल/वन वे विजन छपाई) स्क्रीन प्रिंटिंग आदि छपाई कला से जुड़ी तकनीकों को सिखाया जाता है। इन तकनीकों के माध्यम से किताबों/ समाचार पत्रों/ पत्रिकाओं/ पोस्टर/विज्ञापन सम्बन्धित अन्य छपाई के कार्यों इत्यादि के बारे में गहन जानकरी मिलती हैं। चूँकि एप्लाइड आर्ट से सम्बन्धित सभी कार्यों का नतीजा छपाई विधि द्वारा आना ही सम्भव है इसलिए डिजाइन बनाते समय छपाई सम्बन्धित तकनीकी जानकारियों जैसे पेपर साइज पेपर क्वालिटी/छपाई के तरीके। इत्यादि के बारे में जानकारी होना आवश्यक है।
प्लास्टिक आर्ट
 प्लास्टिक आर्ट या स्कल्पचर या मूर्तिकला-वर्तमान में नवीन माध्यमों के उपयोग के कारण सामान्यत: अब इसे प्लास्टिक आर्ट के नाम से जाना जाने लगा है। इस कला के लिए भी हमें सर्वप्रथम ड्राइंग की अहम शिक्षा का होना अत्यन्त जरूरी है। इसके बाद सर्वप्रथम मिट्टी के साथ अपने विचारों व भावों को एक मूर्त रूप या अमूर्त रुप देने की प्रक्रिया शुरू होती हैं। तत्पश्चात विभिन्न तरीकों के पत्थर जैसे सैण्ड स्टोन/रेडस्टोन/मार्बल्स इत्यादि पर हम अपने भावों को उपयुक्त औजारों व तकनीक की सहायता से प्रस्तुत करते हैं, तत्पश्चात लकड़ी-विभिन्न प्रकार की। अन्य नवीन माध्यमों जैसे प्लास्टर आफ पेरिस/ प्लास्टिक /लोहा/ स्टील/ एल्युमीनियम, वैक्स इत्यादि से अपनी विषय वस्तु को सजीव बनाने की प्रक्रिया व नवीन रचनात्मकता की ओर बढ़ते हैं। वर्तमान में इसमें किसी भी माध्यम व तकनीक को प्रस्तुतीकरण के साथ अत्यन्त आकर्षक माना जाता है। इसी के अन्र्तगत कई माध्यमों की एक साथ प्रस्तुत करने की नई कला इन्स्टालेशन आर्ट का भी उदय हो चुका है। जिसे आज एक विश्वव्यापी कला के रूप में भी  समर्थन मिल रहा है। इन्स्टालेशन आर्ट अर्थात परम्परागत तरीके सिर्फ  मिट्टी/लकड़ी या पत्थर के साथ-साथ एक ही कार्य में नवीन माध्यमों जैसे प्लास्टिक/स्टील/ब्रोन्ज इत्यादि का उपयोग करके उसे नई रचनात्मकता के साथ प्रस्तुत करना (फिल्म व संगीत को मिलाकर) भी सम्मिलित हैं। इस कला को सीखने के बाद छात्र अपनी प्रदर्शनियां लगाकर खुद व दूसरों के लिए भी रोजगार का अवसर उत्पन्न करते हैं।
पॉटरी 
सामान्यत: यह शब्द सुनते ही हमें चीनी मिट्टी के बने बर्तनों की याद तरोताजा हो जाती है। लेकिन वास्तविक रूप में यह एक विश्वव्यापी कला है एवं इसका एक वृहद् बाजार है। इसके अन्र्तगत रोजाना उपयोग में आने वाले घरेलू बर्तनों जैसे कप/प्लेट इत्यादि के साथ-साथ घर व ऑफिस के सजावटी फ्लावर पॉट इत्यादि की परम्परागत कुम्हारी तकनीक के साथ-साथ नवीनतम तकनीकों के मिश्रण से प्रत्येक वस्तु पर एक नई कलात्मक डिजाइन के रेखांकन द्वारा इसे बनाने की प्रक्रिया शुरू होती है। तत्पश्चात अपनी कृति के अनुसार रंगों का मिश्रण कर भट्टी में पकाने की क्रिया के साथ यह कार्य सम्पन्न होता है। इसमें हमेशा नवीनतम प्रयोगों की गुंजाइश रहती है। इसकी एक खास विशेषता यह है कि इसमें बनी किसी भी वस्तु की डिजाइन को तकनीकी रूप से दुबारा नहीं बनाया जा सकता है। इसलिए यह सामान्य कप/प्लेट बनाने की कला न होकर एक रचनात्मक पॉटरी कला के रूप में प्रसिद्ध है। इसमें सामान्यत: मिट्टी/सिरॉमिक इत्यादि वस्तुओं का उपयोग होता है इन कलाओं को सीखने के बाद छात्र अपने व अन्यों के लिए भी रोजगार के साधन जुटाने में प्रयत्नशील हो जाता है।
कला इतिहास 
सबसे अंतिम लेकिन सबसे महत्वपूर्ण विषय है-कला की शिक्षा। सही मायने में यह एक गंभीर विषय है। क्योंकि इसी विषय के पढऩे के बाद छात्रों को इतिहास को साथ-साथ नवीन व परम्परागत प्रयोगों की जानकारी मिलती है। साथ ही इसका समाज पर दिनों दिन पडऩे वाले प्रभाव की भी जानकारी मिलती है। सम्पूर्ण विश्व कला इतिहास के उदाहरणों व कला की परम्परागत व नवीनतम तकनीकों/रंगों के प्रयोग/पदार्थों के प्रयोग/विषयों के प्रयोग आदि के उदाहरणों से भरा पड़ा है। यह विषय प्रत्येक छात्र के लिए उतना ही गम्भीर है जितना कि अन्य सभी रुचिपूर्ण विषय गम्भीर हैं। इस विषय में पारंगत होने के बाद हम कला इतिहास शिक्षक के रूप में सम्मानित जीविका चला सकते हैं।   -गायत्री

व्यक्तिगत मार्गदर्शन के लिए ई -मेल करें moomalnews@gmail.com 

गुरुवार, 15 मई 2014

चुनावी मुद्दों में लापता कला संस्कृति

चुनावी महासमर के बाद अब इसके परिणाम भी सामने हैं। राजनीतिक बयानबाजी से हमेशा दूर रहने वाली 'मूमल' ने चुनावी शोर के दौरान ममता बनर्जी की एक पेंटिंस पर हुई पॉलिटिक्स पर एक समाचार से अपने कलाकार पाठकों को जरूर अवगत कराया और कोई ऐसी चर्चा नहीं की जिससे किसी राजनीतिक दल की ओर उसका रुझान दिखे। अब यह विचार जगजाहिर किया जा सकता है कि लोकसभा के भीषण चुनावी महाप्रचार में होना तो ये चाहिए था कि मुद्दे भी उतने ही अर्थपूर्ण, सरोकारी और सुदूर भारत तक के होते, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। सत्ता की ऐसी झपटमारी रही कि राजनैतिक गर्जनाएं तो खूब सुनी गई, लेकिन कला या सांस्कृतिक गूंज कतई नहीं। एक पेंटिंग को लेकर बवाल जरूर हुआ वह भी खालिस राजनीतिक। वह भी मनी लाड्रिंग का ऐसा मुद्दा जिस पर मूमल में एक साल पहले व्यापक चर्चा हो चुकी थी।
संस्कृति-विहीन चुनाव
आपने इसे आसानी से राजनैतिक दलों के चुनाव प्रचारों में देखा होगा। वहां लोगों की सांस्कृतिक जरूरतें अभिव्यक्त नहीं हो रही थी। क्या कला और संस्कृति और मनुष्य की कुल जमा बेहतरी के बारे में वहां कोई जगह आप देख पाए? कार्यकर्ता और समर्थक के तौर पर तो आपको कुछ बुराई नजर नहीं आएगी, लेकिन आम नागरिक की निगाह से देखें तो चुनाव 2014 एक संस्कृति-विहीन चुनाव दिखता रहा। जहां राजनैतिक बौखलाहटों, ताकत की इतराहटों और अट्टहासों के बीच गरिमा, नैतिकता और अन्य मानवीय मूल्यों की आपराधिक अनदेखी की जाती रही, वहां कला-संस्कृति की बात करना ही बेमानी था।
बस इतनी ही संस्कृति रही
...और सांस्कृतिक जरूरतों के नाम पर हम क्या देखते हैं? हम पाते हैं कि धर्म और आस्था के वही रटे-रटाए और न जाने कब से दोहराए जाते रहे प्रतीकों को ही हमारे लोगों अर्थात कलाकारों के आगे कर दिया गया। बस इतनी ही संस्कृति रही। मिसाल के लिए बनारस को ही लें। बनारस का ऐसा घाटकरण कर दिया गया, मानो उसके आगे और अंदर कोई बनारस ही न हो. सारी बहसें सारा मीडिया घाटों और नकली अध्यात्म के हवाले से चुनावी गणित में अपने तीर-तुक्के चलाता रहा।  वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने अपने अनूठे रोड़ शो में ठीक ही कहा कि बनारस सिर्फ  घाट नहीं, वो उस बनारस को समझने के लिए निकले जो भारतीय भूगोल का एक अनजाना अदेखा और अस्पृश्य हिस्सा है। उन दलित उपेक्षित समाजों की कलात्मक और सांस्कृतिक जरूरत क्या बनारस का रंगारंग बनाया जा रहा चुनाव पूरी कर पाया? महापर्व बताए जा रहे चुनाव में इस बेहाली को शामिल क्यों नहीं किया जा सका? क्या ये नादानी रही या ये  एक सोचा-समझा गणित।
 काश! कोई तसल्ली मिलती
 इन चुनावों ने सबसे ज्यादा अगर आशंकित किया है तो सांस्कृतिक लिहाज से ही किया है। उग्र राष्ट्रवादी विचारधारा संस्कृति, कला और समाज के प्रति क्या नजरिया रखती हैं, ये कोई रहस्य नहीं। इसीलिए चिंताएं तो होगी ही। काश!  अगर राजनैतिक दलों के प्रचार अभियानों में हमें इन चिंताओं और आशंकाओं का जवाब मिल पाता। कोई तसल्ली मिलती, कोई पक्का ठोस नैतिक आश्वासन। कला अकादमियों पर कोई ऐक्शन प्लान।
एक बेढंगे राष्ट्र के निर्माण की दिशा
ऐसा लगता है कि देश के कला या सांस्कृतिक ढांचे की सुरक्षा की बात आते ही राजनैतिक दलों और उनके अंधभक्तों को नींद आ जाती है। चुनाव संस्कृति का इससे बड़ा अभिशाप और क्या हो सकता है कि मनुष्य जीवन की कलात्मक कोमलताओं, संवेदनाओं, अनुभूतियों और नैतिकताओं के निर्माण की कार्रवाइयों और प्रयासों से वो बिलकुल खाली हो। जो समाज अपनी कला और अपने लोक-मूल्यों की हिफाजत में नाकाम रहता है वो कितनी भी तरक्की कर ले, बढ़ता तो वो एक बेढंगे राष्ट्र के निर्माण की दिशा में ही है। इतिहास में इसकी कई मिसालें हैं।
सबसे जरूरी सांस्कृतिक जरूरत
एक चुनाव में एक मतदाता की सबसे मानवीय और सबसे जरूरी सांस्कृतिक जरूरत क्या हो सकती है? वो हो सकती है उसकी संवेदना और उसकी निजी खुशियों की सुरक्षा। उसके सांस्कृतिक भूगोल की रक्षा। अपनी मिट्टी, अपनी अभिव्यक्ति, अपनी भाषा और अपनी परंपरा से बेदखली से सुरक्षा। क्या आज का चुनाव और आज के राजनैतिक दल ये आश्वासन और ये भरोसा दिला पाने की स्थिति में हैं? क्या वे दिल पर हाथ रखकर कह सकते हैं कि उनके घोषणापत्रों में आम भारतीय जन की व्यथा-कथाओं और उनकी सांस्कृतिक अपेक्षाओं को समझने का कोई ईमानदार अध्याय है?
चलते...चलते मूमल अलर्ट
राजस्थान प्रदेश के परिपेक्ष में देखें तो यहां कला और संस्कृति के संरक्षण और कला गतिविधियों के नाम पर जो कुछ हुआ और हो रहा है वह किसी से छुपा नहीं है। 
आने वाले दिनों में गुलाबी नगर की कला और संस्कृति का केंद्र रही एक और विरासत का आमेर की हवेलियों वाला हश्र होने लगे तो हमें आश्चर्य नहीं होगा। लोग इसे आसानी से पचा लेगें..., लेकिन इन सांस्कृतिक चुप्पियों का क्या अर्थ है?  
हम एक एकांगी और खास आर्थिक सोच से निर्धारित सत्ता संरचनाओं की ओर बढ़ रहे हैं। हमारी बहुलतावादी संस्कृति और सांस्कृतिक सामाजिक वैविध्य इसकी इजाजत तो नहीं देते. उसकी खिड़कियों और दरवाजों ने अभी इतनी जंग नहीं खाई है कि कोई उन्हें उखाड़ कर वहां दीवार ही लगा दे।

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शुक्रवार, 2 मई 2014

मनी लांड्रिंग की पेंटिंग्स बनी मुद्दा

अब पेंटिंग पर भी पॉलिटिक्स 
मनी लांड्रिंग की पेंटिंग्स बनी मुद्दा
पहला निशाना ममता बनर्जी पर
मूमल नेटवर्क, जयपुर। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की कला और उनकी कलाकृतियों की अप्रत्याशित कीमत का रहस्य अब पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को भी परेशान करने लगा है। कॉरपोरेट जगत में भीतर की जानकारियां लेने के बाद अब मोदी ने कला बाजार की कारगुजारियों को जानने का प्रयास भी किया है। इसे देखकर तो यही लगता है कि 'अबकी बार मोदी सरकार' वाकई सत्ता में आई तो इंडियन आर्ट मार्केट की असलियत को अलग से खंगाला जाएगा।
दिल्ली की कुर्सी के लिए चुनावी संग्राम के चलते ममता बनर्जी की पेंटिग्स की कीमतों को अब मुद्दा बनाकर भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने भले ही अब पेंटिंग्स पर पॉलिटिक्स शुरू की है, लेकिन कला जगत में यह मुद्दा पुराना है। कला बाजार की आड़ में चलने वाले मनी लांडिं्रग के खेल को लेकर मोदी ने ममता बनर्जी पर तीखे हमले करते हुए उनकी पेंटिंग्स की कीमतों पर ही सवाल उठा दिए। उन्होंने कहा कि दीदी की पेंटिंग्स शुरू में ही आठ से दस लाख रूपए में बिकती थी। उसके बाद अब वह पेंटिंग्स एक करोड़ 80 लाख में कैसे बिकने लगी। इसे किसने खरीदा? उन्होंने ये बातें ममता बनर्जी को उनके घर में घेरने के लिए श्रीरामपुर में एक रैली में कहीं। हालांकि इस पर तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता डेरेक ओ ब्रायन ने पलटवार करते हुए कहा कि मोदी के पास अगर पेंटिंग्स की ब्रिकी को लेकर किए गए दावों से संबंधित सबूत हैं तो इसे सिद्ध करें, नहीं तो वह मानहानि के मुकदमे के लिए तैयार रहें।

मूमल ने उठाया था यह मुद्दा
कला बाजार पर नजर रखने वाली मूमल डेस्क सेलीब्रिट्री कलाकारों की कलाकृतियों की कीमतों और उनके खरीदारों पर खास नजर रखती रखती रही है। इनमें बॉलीवुड के अभिनेताओ से लेकर बड़े बिजनेसमैन और कुछ नेता भी शामिल हैंं। इन्हीं में एक ममता बनर्जी भी रही हैं। इनकी कृतियों, प्रदर्शनियों और बिक्री के विवरण मूमल समय-समय पर प्रकाशित करती रही है। पिछले बरसों में बिकी उनकी पेंटिंग की अधिकतक कीमत 80 हजार रुपए थी। पिछले साल इन्हीं दिनों कोलकाता की एक चिट फंड कंपनी शारदा ग्रुप के साथ ममता बनर्जी और उनकी पार्टी के गहरे रिश्तों की परतें खुलने के साथ ही यह अंदाजा भी लगने लगा था कि पेंटिंग्स के जरिए मनी लांड्रिंग का कारोबार कितनी तेजी से पनप रहा है। राजनेता ममता बनर्जी की कलाकृतियों की मंहगी कीमत और धड़ाधड़ बिक्री के राज भी कला बाजार को अचंभे में डाल रहे थे।
इससे पहले तक एक के बाद एक हो रही अपनी कला प्रदर्शनियों में कलाकार ममता बनर्जी यही कहती रही हैं कि  'उगाही के माध्यम से धन इक_ा करने के बजाए अगर हम इस तरह के रचनात्मक कार्यों के माध्यम से धन इक_ा कर सकें तो हमें ऐसा करना चाहिए।Ó वे यह भी बताती रही हैं कि रॉयटर्स बिल्डिंग में पार्टी के काम-काज के दौरान कड़ी मेहनत के बाद जब उनका सिर भारी हो जाता है तो वह दस से पंद्रह मिनट तक पेंटिंग करती हैं। ममता हर बार जोर देकर कहती है कि यह उनकी रुचि है, पेशा नहीं।
यह सवाल भी उठने लगे थे कि हर बार मात्र दस से पंद्रह मिनट तक पेंटिंग करने के बाद भी वे इतना काम कर लेती हैं कि आए दिन उनकी पेंटिंग्स की प्रदर्शनियों के समाचार आते रहते हैं और उनमें यह सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात होती है कि सभी प्रदर्शित पेंटिंग्स बिक जाती हैं। वह भी लाखों और करोड़ों में।
उन्हीं दिनों कोलकाता के टाउन हॉल में अपनी 250 पेंटिंग्स की प्रदर्शनी का उद्घाटन करते हुए टीएमसी अध्यक्ष ममता बनर्जी ने अपनी पार्टी के लोगों को कड़ा संदेश देते हुए कहा कि वह उगाही के खिलाफ  हैं और अपनी पेंटिंग बेचकर पंचायत चुनावों के लिए धन इक_ा करेंगी। बनर्जी ने कहा था कि इस काम से उन्हें काफी राहत मिलती है। उन्हीं दिनों एक प्रदर्शनी में उनके 55 काम प्रदर्शित किए गए, जाहिर है सभी काम पहले ही दिन बिक भी गए। इनमें सबसे छोटा और कम कीमत का काम 80 लाख का था।

खरीददारों में राजस्थानी भी
ममता बनर्जी कि कलाकृतियों के खरीदारों में ज्यादातर वही उद्योगपति हैं जिनका कारोबार पश्चिम बंगाल में हैं। चिट फंड कंपनी शारदा ग्रुप के सुदिप्तो सेन उन खरीदारों की सूचि में हैं जो ममता की कोई भी कलाकृति एक करोड़ से कम में नहीं खरीदते। हर्ष नेयोतिया और संजय बोस के नाम भी प्रमुख खरीदारों में शामिल हैं। ममता बनर्जी की कलाकृतियों के कद्रदानों में प्रवासी राजस्थानियों की संख्या भी काफी है। ममता की कलाकृतियों के राजस्थानी खरीदारों में नए नाम संजीव गोयनका और ऋषि अग्रवाल के शामिल हुए हैं।
कंपनी के चेयरमैन सुदीप्तो सेन को गिरफ्तार कर मनी लांड्रिंग की इस तकनीक का पूरा गणित खोले जाने की कवायद की गई थी, लेकिन वक्त के साथ यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया। -राहुल सेन

मूमल मीमांसा 
जैसे-जैसे कला को एक निवेश के रूप में विश्व समाज द्वारा स्वीकृति मिलने लगी है, वैसे-वैसे इस निवेश की आड़ में कई गोरखधंधे भी पनपने लगे हैं। नेता हों या अभिनेता अचानक कलाकार के रूप में सामने आने लगे हैं। पेंटिंग्स में वो क्या कलाकारी करते हैं, यह तो पता नहीं लेकिन काले धन को सफेद करने की उनकी यह कला जरूर समझ में आ रही है। इन सब के पीछे उनका सेलिब्रीटी होना भी काम का सिद्ध हो रहा है।
चूंकि, अभी तक कला के मूल्यांकन की कोई ठोस व स्थायी नीति नहीं बन पाई है, अत:एव ये सेलिब्रिटीज लोग जो बना रहे होते हैं, उनका तैयार किया गया खरीददार काफी बड़ी रकम देकर उसे खरीद लेता है। बहुत ही कलात्मक और योजनाबद्ध तरीके से ये खरीददारियां काले धन को सफेद में बदली कर देती हैं।
चूंकि कलाकार बनने के लिए किसी ऐकेडेमिक प्रोफाइल की जरूरत नहीं रहती, इसलिए ये लोग बहुत ही आसानी से कलाकार के भेस में आकर अपना मतलब सिद्ध कर जाते हैं। ऐसे कलाकारों में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का नाम  प्रमुखता से उभर कर सामने आया है।
अभी आस-पास के दिनों की बात करें तो बालिवुड के सलमान खान से लेकर श्रीदेवी तक के नाम भी कलाकार के रूप में पत्र-पत्रिकाओं में प्रसिद्धि पा चुके हैं। थोड़ा सा पीछे चलें, कुछ महीने पहले तो आपको याद आएगा, कई प्रशासनिक अधिकारी या उनके परिजन न केवल कलाकार के रूप में सामने आए बल्कि उनकी बनाई कृतियां महंगे दामों में खरीदी भी गई। मूमल ने तब भी इस बात की गंभीरता के प्रति अपने कलाकार व कलाप्रेमी पाठकों को इस ओर चेताया था। आज स्थिति और गंभीर होती जा रही है। ऐसे लोग जो सीधे-सीधे जनता के खून-पसीने की कमाई को हड़प रहें हैं और उसी को कला के नाम पर अपनी उजली कमाई के रूप में शो कर रहे हैं। समाज का सशक्त वर्ग अपनी जरूरत और मतलब के चलते उन पर मेहरबान रहता है और संरक्षण दे रहा है।
भारत के भ्रष्टाचारी और कई असामाजिक तत्व जो अपने कारनामों के चलते विश्व भर में पहचान बनाते जा रहे हैं, अब कला जैसे पवित्र और संवेदनशील क्षेत्र को अपना हथियार बना रहे हैँ। इस गंभीर मसले के प्रति चेतना होगा। क्या वास्तविक कलाकार अपनी सृजन की दुनिया में इन तथाकथितों को घुसपैठ करने देना चाहेंगे। सोच का विषय है। इस मसले के प्रति गंभीरतापूर्वक सोच कर कठोर कदम उठाने से ही हम कला की दुनियां की सादगी व वास्तविकता को बनाए रख सकेगें।