शुक्रवार, 6 मई 2011

वो जो अपना केनवास खुद गढ़ता है: विनय शर्मा












पृथ्वी की धूरी पर गोल-गोल घूमने का अहसास देते चित्र जो आपको अपने साथ बहाते हुए बचपन की गलियों के साथ इतिहास की सैर करवाने लगे तो निश्चित मानिए वह कृति जयपुर के चित्रकार विनय शर्मा की खूबसूरत सोच और कुशल तुलिका से उभरी अभिव्यक्ति है। पिछले एक अर्से से राजस्थान कला अकादमी के सचिव का कार्य संभाल रहे विनय ने अपने कार्यालय, घर और सामाजिक दायित्वों को निभाते हुए भी अपनी अभिव्यक्ति और रचनाकर्म के लिए बड़ी खूबी से समय निकाला है। हां उन्हीं चौबीस घंटो में से जो उन्हें, आपको, हमें और सबको मिले हैं।विनय के चित्रों में समय के साथ का जो जुड़ाव और लगाव दिखता है वही उनके चित्रों की वास्तविकता भी है और खासीयत भी। विनय की कृतियों की सहजता के बारे में उन्हीं से जानने का मन किया तो इस विचार से धूल छंटी कि किसी भी चित्र के निर्माण के समय उनका पूरा मन उनके बचपन के विभिन्न पहलुओं को छू रहा होता है। राजस्थान कि लालसोट स्थित ददिहाल और सवांसा गांव के ननिहाल के ग्रामीण परिवेश ने बचपन के कच्ची मिट्टी से मस्तिष्क पर कुछ स्थाई छाप छोड़ी हैं, वही परिवेश उनकी कृतियों में सहजता और निर्मलता का कारण बनता है।यदि कभी विनय के चित्रों को करीब से निहारने का अवसर मिले तो आप पाएंगे कि अलग-अलग प्रकार के हस्तनिर्मित कागज पर उनके चित्रों में चक्र और गोलाकार चित्रण के साथ किसी रस्सी के छोर, पुरानी बहियों और पोथियों की उपस्थिति, सुन्दर केलीग्राफी का समावेश जरूर मिलेगा। वे अपनी इस खासियतों के बारे में चर्चा के दौरान बताते हैं कि गांव के कच्चे-पक्के रास्तों पर चलती साइकिल का गोल घूमता पहिया हो या गोल कूए की जगत पर पानी खींचती गांव की महिलाओं के हाथों में आती-जाती रस्सी का छोर, सब आज भी उनके मन-मस्तिष्क पर अंकित है जो उनके चित्रों से झांकता हैं। यही सब हर बार नए-नए अंदाज से सामने आता है और कृतियों में अंकित होता रहता है। वैसे भी कला के बारे में विनय की स्पष्ट राय है कि 'मन के भावों की सहज अभिव्यक्ति और निर्मलता ही तो कला है।Óएबस्टे्रक्स, इंस्टालेशन, चित्रकारी, मूर्तिकला या फिर फोटोग्राफी जैसी हर विधा में प्रवीण विनय की हर रचना से उनका बचपन निकल कर बाहर आ रहा है। दिवंगत दादा आत्माराम सरस्वती द्वारा जजमानों की जन्म पत्रियों पर अंकित चित्रों व सुंदर लेखन की नकल से शुरू हुई विनय की कलायात्रा नित नए आयामों को छूते हुए देश-विदेश तक पहुंच कर अपनी धाक जमा चुकी है। देश-विदेश में हुए उनके कला प्रदर्शन की लम्बी सूचि दर्शाने का कोई प्रयोजन यहां उचित भी नहीं।एक और खास बात यह कि विनय के अधिकांश चित्रों में केनवास के स्थान पर या उसके साथ हैंडमेड पेपर ही काम में लिया जाता है। विभिन्न रंगों की विशेष बुनावट वाले अपने चित्रण की इस सतह को भी वे स्वयं अपनें हाथों से तैयार करते हैं बल्कि अपनी कृतियों के लिए कागज बनाते समय नए-नए प्रयोग भी करते रहते हैं। अपने बचपन में झांकते हुए वे बतातेे हैं कि नानाजी गणित के विद्वान थे। विभिन्न गणनाओं के समय एनके द्वारा स्लेट पर बाती से लिखे जा रहे अंकों और इस दौरान एक खास लय से उत्पन्न हो रही ध्वनि... बस लगता मन कहीं इतिहास को खुली आंखों से देख रहा है, इतने और इतने पुराने इतिहास को, जब शायद पृथ्वी की निर्माण प्रक्रिया चल रही होगी।सहज और निर्मल कला में स्वार्थ या व्यवसाय के स्थान के बारे में बात चलने पर विनय कुछ देर सोच में डूब जाते हैं फिर खामोशी तोड़ते हुए गंभीरता से कहते है कि 'हां, एक हद तक... कला में स्वार्थ का होना सही है, जब तक 'मैंÓ के लिए कुछ नहीं किया जा सकता तब तक दूसरों के लिए कुछ करने योग्य सामथ्र्य कैसे हो सकती है। वैसे भी हर व्यक्ति की अपनी हकीकत होती है और उसे उसके साथ ही रहना और जीना होता है।Ó मनुष्यता के बारे में विनय का मानना है कि व्यक्ति रचनाशील हो, जो हो चुका उसके पीछे नहीं दौड़े, दूसरों की खुशियों में अपनी खुशी तलाश सके और त्याग की भावना से काम करे तो अधिक बेहतर हो। अपने कला धर्म को बयां करते हुुए वे कहते हैं कि जिस सामाजिक परिवेश में हम रहते हैं उसका सम्मान करते हुए ऐसे मूर्त या अमूर्त चित्रण होना चाहिए जो देखने वाले को आकृषित करे वही चित्र की सार्थकता व कला की एकाग्रता है।






(विनय शर्मा से गायत्री की हुई बातचीत के अनुसार)