रविवार, 7 जनवरी 2018

समय के साथ परिवर्तित होती है कला- प्रो. मंजुला




समय के साथ परिवर्तित होती है कला- प्रो. मंजुला
द ट्रीटमेंट ऑफ  सोशल एंड एन्वायरमेंट इश्यूज़ थू्र आर्ट 
पर दो दिवसीय कान्फ्रेंस का समापन
मूमल नेटवर्क, जयपुर। मानसरोवर स्थित द आई आई एस डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय के विज़ुअल आट्र्स विभाग की ओर से आयोजित दो दिवसीय नेशनल कान्फ्रेंस में कला विद्वानों ने अपने मत व विचार लोगों के सामने रखे। द ट्रीटमेंट ऑफ सोशल एंड एन्वायरमेंट इश्यूज़ थू्र आर्ट विषय पर आयोजित इस कान्ॅफ्रेंस का उद्घाटन मुख्य अतिथि राजस्थान ललित कला अकादमी के अध्यक्ष डॉ. अश्विन एम दलवी ने किया।
कॉन्फ्रेंस के पहले दिन की मुख्य वक्ता इंडिया हेबीटैट सेंटर, नई दिल्ली की वज़ुअल आर्ट गैलेरी की क्यूरेटर एवं आर्ट कन्सल्टेंट व आर्ट एडवाईजऱ प्रो अल्का पांडे थीं वहीं दूसरे दिन की मुख्य वक्ता के रूप में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से प्रो पारूल दवे मुखर्जी ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई।

कार्यक्रम के पहले दिन की शुरूआत आटर्स एंड सोशल साइंसेस विभाग के डीन प्रो एन के जैन के उद्बोधन से हुआ जिसमें उन्होंने इस कान्फ्रेंस की महत्ता बतलाते हुए लक्ष्य एवं उद्देश्यों पर प्रकाश डाला।
मुख्य अतिथि डॉ. दल्वी ने अपने भाषण की शुरूआत करते हुए कहा मुझे कला साधक से अधिक कला योगी शब्द से प्रेम है क्योंकि वो जब भी कोई रचना करता है तो वह उसमें लीन हो जाता है। इसलिए मैं कला की तुलना परमात्मा से करता हूं। दलवी ने कला को समाज से जोड़ते हुए कहा कि एक कलाविद् को अगर समाज एवं पर्यावरण सुधार में योगदान देना है तो उसे अपनी कला के साथ न्याय करना होगा और आत्मनिरीक्षण करना होगा कि उसके द्वारा बनाई गई कलाकृति किस तरह से समाज के लिए लाभदायक हो सकती है।
बतौर मुख्य वक्ता प्रो. अल्का पांडे ने देश की विभिन्न प्रख्यात कलाकृतियों का उदाहरण पेश करते हुए यह साबित करने की कोशिश की कि यह कलाकृतियां देश की किसी धरोहर से कम नहीं और इन कलाकृतियों में देश, समाज एवं पर्यावरण की झलक देखने को मिलती है। अपनी बात की पुष्टि के लिए प्रो. अल्का ने पाषाण युग से आज के युग की सभी कलाओं जैसे कि अजंता-अलोरा की गुफाएं, नटराज, वर्ली आर्ट, कलमकारी पेंटिंग्स आदि के उदाहरण दिए।

प्रो. अल्का ने कला, पर्यावरण एवं पौराणिक कथा पर कहा कि मानवीय प्रतिमाएं हमारे देश की खूबसूरती हैं क्योंकि भगवान की कल्पना एक इंसान रूप में ही की गई है। अल्का ने विभिन्न कलाओं पर रौशनी डालते हुए यह स्पष्ट किया कि प्रत्येक कला सामाजिक परम्पराओं एवं विभिन्नताओं के साथ-साथ प्रकृति एवं पर्यावरण को दर्शाती है।
चार तकनीकी सत्रों में सम्पन्न होने वाली इस कान्ॅफ्रेंस का पहला तकनीकी सत्र नवाचार, रचनात्मकता एवं पर्यावरणीय कला पर आधारित था जिसकी अध्यक्षता की काशी विद्यापीठ से प्रो मंजुला चतुर्वेदी ने वहीं आमंत्रित वक्ता के तौर एम एस युनिवर्सिटी वडोदरा से प्रो जयराम पोडुवल उपस्थित थे।
दूसरा तकनीकी सत्र का विषय था कला के पारम्परिक, आधुनिक परिदृष्य जिसकी अध्यक्षता चेन्नई केे कला आलोचक एवं कला इतिहासकार प्रो अश्रफी एस भगत ने की। इस सत्र के आमंत्रित वक्ता जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली केे प्रो पारूल दवे मुखर्जी थे।
कान्फ्रेंस का दूसरा दिन
कार्यक्रम के दूसरे दिन का पहला तकनीकी सत्र सामाजिक एवं पर्यावरणीय जागरूकता में कला का योगदान विषय पर आधारित था जिसकी अध्यक्षता जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से प्रो पारूल दवे मुखर्जी ने की। प्रो. पारूल ने पर्यावरण सौंदर्यशास्त्र पर लोगों का ध्यान आकर्षित किया। इन्होंने अपनी प्रेज़ेंटेशन के ज़रिए गुजरात के विभिन्न कलाकारों का उदाहरण प्रस्तुत किया जहां उन्होंने एक वर्कशॉप के अंतर्गत निर्माण में काम आने वाले पुराने व बेकार सामानों जैसे कि कच्चा लोहा, पाईप्स, रबर, बजरी, स्टील प्लेट्स आदि का इस्तेमाल करते हुए विभिन्न कलाकृतियां बनाईं। इसी के साथ ही प्रो. पारूल ने यह संदेश दिया कि किसी भी वेस्ट पदार्थ का पुन:इस्तेमाल कर उसको नया बनाकर पर्यावरण को संरक्षित किया जा सकता है।

चौथे तकनीकी सत्र का विषय भारतीय कला की व्यापक अवधारणा था। इस सत्र की अध्यक्षता की प्रो मंजुला चतुर्वेदी ने की। प्रो मंजुला ने कलाकारों को सर्वजन सुखाय, बहुजन हिताय एवं वसुधैव कुटुम्बकम जैसे भारतीय मूल तत्वों एवं आदर्शों को कला में ढ़ालने का आग्रह किया। प्रो मंजुला का कहना था कि समय के साथ कला परिवर्तित होती रही है कभी कलेवर बदले हैं तो कभी प्रस्तुति। कला ने कभी-कभी सामाजिक प्रश्न भी उठाए हैं। भारतीय कला की विशिष्टताओं के कारण अंतराष्ट्रीय जगम में उसकी पहचान के साथ मांग भी बढ़ी पर कलाविदें को भारतीय संस्कार एवं मूल नहीं भूलने चाहिए और कला ही एक ऐसा माध्यम है जिसके ज़रिए आनन्द एवं शांति का समाज में प्रचार-प्रसार किया जा सकता है।
बांग्लादेश से शोधपत्र पढऩे के लिए अबु कलाम शमसुद्दिन ने बांग्लादेश के आर्ट पर चर्चा की और बताया कि उन्होंने किस तरह से कला के माध्यम से समाज एवं पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाने की कोशिश की।
कॉन्फ्रेंस में 138 प्रतिभागियों ने भाग लिया। कल शनीवार 6 जनवरी को  समापन समारोह में सभी प्रतिभागियों को सर्टिफिकेट वितरित किए एवं बेस्ट पेपर प्रेज़ेंटर अवॉड्र्स भी प्रदान किए गए। फैकल्टी कैटेगरी में पश्चिम बंगाल से आए प्रो. राज कुमार को प्रथम एवं बड़ौदा से डॉ अपर्णा राय को द्वितीय पुरस्कार दिया गया वहीं रिसर्च स्कॉलर कैटेगरी में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से अनुज कुमार सिंह को प्रथम एवं शिमला से रमेश को दूसरा स्थान प्राप्त हुआ। कॉन्फ्रेंस का संयोजन डॉ. अमिता राज गोयल ने किया।

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