रविवार, 30 दिसंबर 2012

Rajasthani कलाकारों को गुस्सा क्यों नहीं आता?

 हो सकता है यह सवाल किसी नॉनसेंस से भी बदतर हो लेकिन, लोग सवाल उठा रहे हैं कि
'राजस्थान के  कलाकारों को गुस्सा क्यों नहीं आता?'
ना समझ हैं वो लोग, जो यह सवाल उठा रहे हैं। उन्हें समझना चाहिए कि कलाकार एक संजीदा जीव होता है। बात-बात पर गुस्सा दिखाने पर इतनी मुश्किल से जुटाई गम्भीरता और संवेदनशीलता पर बुरा असर पड़ता है। अब दिल्ली में किसी बस में कुछ होता है तो जयपुर या उदयपुर के कलाकार क्या कर सकते हैं? ...और केवल गुस्सा करने से क्या हो जाएगा? अब कलाकार का अपराध और वह भी गैंगरेप जैसे अपराध से क्या लेना-देना? हमारी एक अलग दुनियां है, सुंदर रंगों और भावों वाली संवेदनशील और कोमल दुनियां। यह दुनियां समाज का हिस्सा थोड़े  ही ना है। वैसे तो हम समाज की हर बात , हर विषय को अपनी अभिव्यक्ति प्रदान करते ही हैं। हमारी कृतियों को ऐसे ही समाज का दर्पण तो नहीं कहा जाता ना?
और यह आप कैसे कह सकते हैं कि हम कलाकारों को गुस्सा नहीं आता। अरे बहुत आता है। जब कला शिक्षकों को नौकरी नहीं मिलती तो हमें खूब गुस्सा आता है, जब कला मेले में योग्यजन को पुरस्कार नहीं मिलता तो बहुत गुस्सा आता है। जब हमारी अश£ील पेंटिंग्स को प्रदर्शनी से हटा दिया जाता है तो हमें गुस्सा आता है। जब हमारे कद के अनुसार पद नहीं मिलता तो हम गुस्सा जाहिर करते हैं। अब हर बात पर कहीं भी कैंडल लेकर अपनी बात नहीं कही जा सकती। हम अपनी बात कलात्मक तरीके से कहते हैं, इसके लिए लिए आइडिया आने का इंतजार करना होता है। समय आने पर, वक्त देख कर हम अपनी अभिव्यक्ति व्यक्त करते हैं। अब यह कोई ऐसी बात भी नहीं लग रही कि अपने पे्रस वाले मित्रों को बुलाकर बयान ही जारी कर दें।
नारी तो वैसे भी हमारा सबसे हिट विषय है, नारी के सम्मान और अस्मिता पर भी हमारी कूंची चलती ही है। ऐसे में हमें पॉजिटिव सोच रखते हुए केवल उसके रूप और सौंदर्य को कैनवास पर उकेरना चाहिए। उसकी प्रगति और उन्नती को दर्शाना चाहिए। गैंगरेप के बाद उसकी अंधेरी जिन्दगी दर्शाना नेगिटिविटी है। आप यह क्यों कहते हैं कि हम समाज का हिस्सा नहीं हैं, हम कलाकार भी अपने ब्रश और कैनवास  एक तरफ रखकर साल में दो बार  बच्चियों की पूजा करते हैं, उनके पैर धोकर उनका आर्शीवाद लेते हैं। साल में दो बार बहनों को उनकी रक्षा का वचन देते हैं। अब किसी रास्ते या बस में दरिन्दों से जूझती हर लड़की हमारी बहन या बच्ची तो नहीं है ना? हम क्यों उस पर अपना वक्त और रंग बर्बांद करें?
हां इस विषय पर कोई ढग की पेंटिंग्स वर्कशॉप आयोजित की जाए , उचित मानदेय दिया जाए... फिर देखिए हमारी अभिव्यक्ति कितनी जल्दी व्यक्त होती है। हमारे मन में भी बहुत दर्द है, सच मानिए, ऐसी घटनाओं के बाद हमारा दिल रोता है, लेकिन इस रुलाई को फूटने में कुछ वक्त लगता है, सही वक्त और मौका तो आने दीजिए। हमारी भावनाओं और संवेदनाओं पर सवाल मत उठाइए, देखिए हम तो इतने संवेदनशील है कि बादल धिरने पर भी छाते रंग देते हैं। टोपियां रंग कर अपनी बात कहते हैं। इस जघन्य घटना पर भी हम चुप नहीं रहेंगे, अपनी बात जरूर कहेंगे पर मौका तो आने दो...।
मानते हैं कि पूरा देश गुस्से में है, देश का गुस्सा देखकर देश के राजनेता सन्न हैं। अब हम भी राजनीति में किसी से कम तो नही हैं ना? इसलिए अभी तेल और तेल की धार देख रहें हैं। एकाएक गुस्सा कैसे जाहिर कर दें?
एक अनुरोध 
कला जगत को कटघरे में लाकर सिर्फ हंगामा खड़ा करना 'मूमल' का मकसद नहीं।
हम वास्तव में बहुत शर्मिन्दा हैं कि हम इस काल में राजस्थानी कला जगत के कल्चर का वह हिस्सा हैं  जो ऐसे मौके पर भी आंखे मुंदे रहा। एक लडकी की मौत ने जहां सारे देश को हिला डाला, हमें नहीं हिला सका।
अब शेष देश की तरह कैंडल जलाने, पेन्टिंग बनाने, पोस्टर उठाने या नारे लगाने का वख्त गुजर चुका है फिर भी स्त्री के सम्मान प्रति इन दिनों कोई ईमानदार अहसास आपकी आंखो में नमी लेकर उबरा हो तो चुपके से एक दीप 'दामिनी' के नाम जला कर उसके लिए इंसाफ की लो जरूर जला देना।

गुरुवार, 13 दिसंबर 2012

Arist Albert Ashok की आधा दर्जन पेंटिंग्स प्रदर्शनी से हटाई

मूमल नेटवर्क, जयपुर। नारी देह के गठन को गहनता से उकेरने वाले कोलकाता के वरिष्ठ कलाकार अल्बर्ट अशोक की आधा दर्जन पेंटिंग्स जयपुर में आयोजित एक प्रदर्शनी से हटा दी गई। यह एक ग्रुप शो था, जो गुलाबी नगर जयपुर के जवाहर कला केंद्र की सुरेख कला दीर्घा में 7 दिसम्बर को शुरू हुआ था। अल्बर्ट अशोक ने बताया कि 7 दिसम्बर को प्रदर्शनी के उद्धाटन के बाद चार दिन तक उनकी पेंटिंग्स अनेक कला प्रेमियों ने देखी और सभी ने उनकी सोच और कुशलता की सराहना की। अचानक 11 दिसम्बर को इन्हें हटा दिया गया।
चक्कर खा गए कलाकार
जब गैलेरी खुली तो उनकी 6 पेंटिँग्स वहां नहीं मिली। जेकेके प्रशासन से बात की गई तो उन्हें केवल यह बताया गया कि वह पेंटिंग्स अश£ील हैं इसलिए उन्हें प्रदर्शित नहीं किया जा सकता। प्रदर्शनी के अंतिम दिन तक वे अश£ीलता के अर्थ और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मायने जानने के लिए अधिकारियों के चक्कर लगाते रहे, लेकिन उन्हें कोई अधिकारी अपनी सीट पर नहीं मिला। अधिनस्थ कर्मचारियों ने न तो किसी अधिकारी से उनकी बात कराई और न ही अधिकारियों के फोन नम्बर भी उन्हें उपलब्ध नहीं कराए। उन्हें केवल यह बताया गया कि जब  प्रदर्शनी का समय पूरा हो जाए तो आप अपनी पेंर्टिस स्टोर से प्राप्त कर लें।
कलाकारों का विरोध
जयपुर के कुछ कलाकारों ने जेकेके प्रशासन की इस कार्रवाई का विरोध किया है। मूर्तिकार हंसराज कुमावत, फोटोग्राफर सुरेश मीणा व कलाक्षेत्र से जुड़े नरेश नाथ और बहादुर हेमराणा इनमें शामिल हैं। इनका कहना है कि यह कार्रवाई एक कलाकार की अभिव्यक्ति पर रोक लगाने जैसी कार्रवाई है। उन्होंने बताया कि इससे पहले वरिष्ठ कलाकार जतिन दास की ऐसी ही अभिव्यक्ति वाली पेंटिंग्स को यहां लम्बे समय तक प्रदर्शित किया गया था और उन्हें उन्हें राज्य सरकार ने स्टेट गेस्ट का सम्मान दिया गया था। उनके द्वारा प्रदर्शित पेंर्टिग्स की जानकारी मिलने पर स्टेट गेस्ट होने के बावजूद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रदर्शनी का उद्धाटन करना टाल दिया था। बाद में कला और संस्कृति मंंत्री वीना काक ने यह रस्म पूरी की थी। इसके अलावा भी कलाकारों ने अनेक ऐसे अवसरों का उल्लेख किया जब अश£ील की श्रेणी में चर्चित हुई पेंटिंग्स का प्रदर्शन होता रहा है।
भाव केंद्र में प्रेम  व लगाव
 'परिचय' नाम से हुई इस प्रदर्शनी में कोलकाता के अल्बर्ट अशोक सहित झारखंड के अनूप कुमार सिन्हा, विप्लव रॉय, कार्तिक कुमार प्रसाद, शुभेंदु विश्वास और मुक्ता गुप्ता, कोच्चि के सीए वामन शेनॉय वी व  नई दिल्ली के स्वतंत्र की कलाकृतियां प्रदर्शित की गई। सात चित्रकारों और एक मूर्तिकार की कृतियां यहां दर्शकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी रही।  इस प्रदर्शनी में प्रेम और लगाव के भाव केंद्र में थे, वहीं बनारस के घाटों का सौंदर्य उड़ीसा के तटीय इलाकों की हलचल को भी कलाकारों ने अपने सृजन का माध्यम बनाया। झारखंड के वरिष्ठ चित्रकार विप्लव रॉय की कृति में उड़ीसा के तटीय इलाकों की हलचल का चित्रांकन और बनारस के घाटों का सौंदर्य देखने योग्य है। झारखंड की लोक संस्कृति के लैंडस्केप भी विप्लव रॉय के बेहतरीन सृजन में से एक था। विंटेज कार विशेषज्ञ नील बहादुर सिंह कार्की ने इसका उद्घाटन किया। प्रदर्शनी 13 दिसंबर तक चली।
(खुद कलाकार ने इस संबंध में कला जगत के लोगों को एक अपील की है जो नीचे दी जा रही है.)

Dear sir,
This is to inform you that the authority of Jawaharlal Kala Kendra, Jaipur, Rajasthan has removed my six paintings from my ongoing group exhibition on the third day, 11th Dec 2012. He has not given me any written letter nor asked me to remove. He verbally said that some pressure from upper official level he is receiving and his boss an I A S officer had ordered him to remove. Please I request you to ask him what actually happened that he removed my six paintings from the ongoing show. I cant have any document once our exhibition date expires, that is on 13 th dec. (the exhibition started on 7th Dec and will close on 13th dec)

I protest this incident. I protest against the action that the govt gallery has done to me. I feel my rights of expression has been violated.I feel unsafe here.
 
The local Paper and Tv media had broadcasted and published about our exhibition but they don’t know about the incident that the authority has removed my all paintings violating my human rights—freedom of expression, I want to inform all of you about the incident.

Please , take action. Thank you

Albert Ashok
H 63, B P Township, Kolkata- 94
Mobile – (91) 98314 45765

आपके लिए
हालांकि मूमल इन पेंटिंग्स के अश£ील होने या नहीं होने के विवाद में नहीं है, इसलिए उन्हें इस समाचार के साथ प्रकाशित नहीं किया जा रहा, लेकिन जो सुधि पाठक इन्हें देख कर अपनी राय बनना चाहें उनके चाहने पर यह उपलब्ध कराई जा सकती है। इसके लिए लिखें Pls. send me Albert Ashok's pentings और कृपया यहां मेल करें। moomalnews@gmail.com