मूमल मीमांसा-1 (प्रसंगवश: राजस्थान 147)
वैसे तो कलाकारों को एकाएक गुस्सा नहीं आता, लेकिन जब आता है तो बहुत आता है। जंहागीर के शो की खबरों को लेकर शुरूआती सन्नाटे के बाद अब अनेक कलकारों में साहस का संचार हुआ है और वे खुलकर अकादमी पदाधिकारियों की मनमानी के खिलाफ अपनी बात कह रहे हैं। कला जगत के सोशल मीडिया पर भी राजस्थान 147 के नाम पर हुई धांधलियों को लेकर कलाकार अपना आक्रोश व्यक्त कर रहे हैं।
हालांकि अनेक सयाने कलाकार स्वयं के नफे-नुक्सान का हिसाब लगाते हुए आयोजन के सकारात्मक पहलू की बात पर खुद को तटस्थ दर्शाने की भरसक कोशिश कर रहे हैं, लेकिन कुछ नया करने के नाम पर अपनों को रेवडिय़ां बांटे जाने की कलई खुलने के बाद क्रोधित कलाकारों का पारा सातवें आसमान पर है।
अपने बूते पर अपनी अलग पहचान बनाने वाले नवलसिंह चौहान सबसे पहले सबसे दमदार तरीके से सामने आए उसके बाद प्रतिष्ठित कलाकार हितेन्द्र सिंह भाटी ने आवाज बुलंद की, फिर डा. रीता प्रताप और रघुनाथ जी जैसे गंभीर कलाकारों ने अपनी बात खुलकर कही। मयंक शर्मा, मोहन जांगीड़, हंसराज कुमावत और ऐसे अनेकानेक कलाकारों ने अपने गंभीर विचार सामने रखे। इसके बाद उन मजबूत कलाकारों ने चौंकाया जो 147 के लिए होने के बावजूद असंतुष्ट कलाकारों के समर्थन में खड़े हो गए। सभी ने बहुत अहम बातें सामने रखी, इनकी बातों को यहां चलते रास्ते लिख देना पाठकों के प्रति अन्याय होगा। इसलिए अगले लेख में शीघ्र ही आप इन जैसे बहुत से बिंदास कलाकारों के विचारों से रूबरू होंगे।
कला जगत में मूमल की निर्भीक रिपोर्टिंग के चलते सबसे पहले यह बात सामने आई कि चयन सूची बहुत गोपनीय तरीके सें तैयार हो रही है। उसमें चल रही जोड़-तोड़ के चलते उसे अंतिम रूप दिए जाने में देर हो रही है। रेवडिय़ां बाटने में जुटे अकादमी के कर्ताधर्ताओं को इस बात का पूरा अंदेशा था कि सूची अगर जयपुर में ही आउट हो गई तो कला जगत के असंतोष को संभालना कठिन हो जाएगा। ऐसे में पूर्व नियोजित देरी को कारण बताते हुए यहां होने वाले शो के प्रिव्यू को रद्द कर दिया गया।
अधिकारियों के मुंबई रवाना होने से पूर्व कैटलॉग छपकर आ गए, लेकिन उसे यह कहकर दबाए रखा गया कि शो से पहले कैटलॉग जारी नहीं किए जा सकते। हालांकि अकादमी अधिकारियों की ओर से संभावित हरी झंड़ी दिखाए जाने के बाद चयनित कलाकार हरकत में आ गए थे। यह कलाकार स्थानीय अखबारों में स्वयं के चयनित होने की खबरें प्रकाशित कराने लगे थे। इन कलाकारों और अन्य सूत्रों से जानकारियां एकत्र करने का कठिन कार्य पूरा करके मूमल ने अपने न्यूज पोर्टल पर सबसे पहले सूची प्रकाशित कर दी। समय की कमी के चलते मूमल ने सूची की समीक्षा का काम अपने सुधि पाठकों के सुपुर्द कर दिया।
कुछ ही समय बाद कलाकारों में असंतोष उभरने लगा और राजस्थान 147 के आयोजन की स्क्रिप्ट लिखने वाले डिजायनर कलाकारों के हाथ-पांव फूलने लगे। यह बताने की कोशिश होने लगी कि सब कुछ ठीक-ठाक है। लेकिन, ऐसा था नहीं। अकादमी के अधिकारियों ने कहा कि 147 में सभी का सिलेक्शन तो संभव है नहीं। चयन का आधार पूछे जाने पर बताया गया कि यह सब चयन समिति के अधिकार क्षेत्र की बात है। सवाल बहुत से थे, लेकिन सभी के जवाब गोलमोल थे।
हालात को देखते हुए आयोजन के स्क्रिप्ट रायटर और दरबारी कलाकारों ने कर्ता-धर्ताओं को सुझाव दिया कि जयपुर के स्थानीय अखबारों के अपने पत्रकारों से अपने अनुरूप खबरे छपवा लो। फाइलों में तो केवल उन्हें ही लगाना है। इसका परिणाम जल्द ही सामने आने लगा। मजे की बात यह रही कि खबरों में दिए जाने वाले कलाकारों के चुनिंदा नाम भी वह थे जो मठाधीशों के सबसे करीब हैं। इनमें वे भी शामिल हैं जिनकी प्रभावशाली कला के चलते यह करीबियां पिछले कला मेले के बाद से ही देखी जा रही हैं।
अनेक कलाकारों ने अकादमी अधिकारियों की निरंकुशता और मनमानी को लेकर संबंधित उच्चाधिकारियों, संस्कृति मंत्री और मुख्यमंत्री कार्यालय तक जानकारी पहुंचाने का विचार व्यक्त किया है। हो सकता है कि आपको यह पता नहीं हो कि सरकार केवल स्थानीय अखबारों के समाचारों को सहेज कर ही संतुष्ट नहीं हो जाती। अपनी विश्वस्तनीयता के चलते मूमल अपने न्यूज पोर्टल के जरिए प्रदेश के अनेक उच्चाधिकारियों, मंत्रियों और मुख्यमंत्री के कार्यालय व आवास तक पहुंचता है और संबंधित लोगों द्वारा ध्यान से देखा और पढ़ा जाता है। मूमल के पुराने पाठक इसके प्रभाव से परिचित भी हैं। पर यहां सवाल शिकायत का नहीं व्यवस्था को सुधारने का है। प्रथम चरण में उसी पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए।
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