वाराणसी में ब्रज की 'सांझी' की अंतरराष्ट्रीय वर्कशाप 16 जून से
मूमल नेटवर्क, वाराणसी। ब्रज की विश्व प्रसिद्ध सांझी कला की तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन 16 से 18 जून तक होगा। इस कार्यशाला में पांच हजार साल पुरानी और विलुप्त हो रही इस कला परंपरा को देश-विदेश के कलाकार एक साथ मिलकर नया स्वरूप देने का प्रयास करेंगे। यह कार्यशाला ब्रज के सांझी कलाकार सुमित गोस्वामी के निर्देशन और क्रिएटिव फोरम के राजकुमार सिंह के संयुक्त प्रयासों से आयोजित की जा रही है।इस कार्यशाला के माध्यम से प्रतिभागी सांझी कला की बारीकियों और इतिहास से रूबरू हो सकेंगेे। क्रिएटिव फोरम के कलाकार राजकुमार सिंह ने कहा कि सांझी देखने में भले ही रंगोली जैसी लगती है, लेकिन इसका महत्व कहीं ज्यादा है। श्रीकृष्ण के प्रति श्री राधा के प्रेम का प्रतिबिंब है सांझी।
उन्होंने कहा कि, शाम के वक्त श्रीकृष्ण जब राधा से मिलने आया करते थे तो राधा उन्हें रिझाने के लिए फूलों से तरह-तरह की कलाकृतियां बनाया करती थीं। जब श्रीकृष्ण गोकुल छोड़कर चले गए, तब भी श्रीराधा उनके साथ बिताए गए पलों की याद में इस तरह की कलाकृतियां बनाया करती थीं जो सांझी कला के नाम से विख्यात हुई। यह कला अब लुप्त हो रही है और इसको बढ़ावा देने के लिए ही कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है।
ज्ञात हो कि, पहले तो यह कला मंदिरों तक सिमटी और अब आलम यह है कि ब्रज में भी श्री राधा रमण मंदिर ही ऐसा है, जहां पर सांझी बनाई जाती है। इस मंदिर के पुजारी वैष्णवाचार्य सुमित गोस्वामी एकमात्र ऐसे शख्स हैं, जो इस कला को बनाते हैं और इसे बचाने के लिए अपने स्तर पर कड़ी मेहनत कर रहे हैं। सुमित गोस्वामी कहते हैं कि सप्त देवालयों में से एक श्रीराधा रमण मंदिर में पिछले 300 सालों से लगातार यह कला बनाई जा रही है। गोस्वामी का कहना है कि मंदिरों में अब यह कला देखने को नहीं मिल रही। वह अपने स्तर पर भरपूर कोशिश कर रहे हैं कि यह पुरातन कला आने वाली पीढिय़ों तक बनी रहे।
ब्रज की इस प्राचीनतम लोककला को बनाए रखने के लिए हम नई पीढ़ी को ट्रेनिंग दे रहे हैं। पानी के ऊपर और तल पर सांझी बनाने के अलावा ऑइल पेंटिंग, लीफ पेंटिंग, मिनिएचर पेंटिंग से लेकर दूसरी पेंटिंग की विधाओं में भी काम कर रहे हैं, ताकि लोगों का ध्यान मूल सांझी कला की तरफ खींच सकें।
क्या है सांझी कला
सांझी का मतलब है सज्जा, शृंगार या सजावट। मिथकों के अनुसार इस कला की शुरुआत स्वयं श्रीराधा जी ने की थी। मान्यता यह भी है कि सांझी शब्द दरअसल सांझ से बना है, जिसका अर्थ है शाम।
ब्रज में सांझी भी शाम को बनाई जाती है। इस कला का ब्रज से बड़ा गहरा नाता है। साल में एक खास मौके पर ही सांझी बनाई जाती है। माना जाता है कि शुरू-शुरू में तो श्रीराधा अपनी सखियों के साथ दीवारों पर रंगों, रंगीन पत्थरों और धातु के टुकड़ों के साथ सांझी बनाया करती थीं।
सांझी के प्रकार
1. फूलों की सांझी
2. गोबर सांझी
3. सूखे रंगों की सांझी
4. पानी के नीचे सांझी
5. पानी के ऊपर सांझी
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