शुक्रवार, 1 जून 2018

स्मृति शेष: धीरज चौधरी

स्मृति शेष: धीरज चौधरी
गुलाबी नगरी से भी समीपता
'मेरी कला एक खुशी यात्रा नहीं है। यह स्वतंत्रता के लिए मेरे 50 साल के संघर्ष का युद्धक्षेत्र है, जो अभी भी चल रहा है।' अपनी कला यात्रा के बारे में भारत के सुप्रसिद्ध कलाकार धीरज चौधरी के हमेशा से ऐसे विचार रहे। उन्होंने कभी भी खूबसूरत भ्रम के साथ जीना स्वीकार नहीं किया।  उन्होंनें हमेशा यह कहा कि, मेरे लिए कला सौंदर्यशास्त्र या तकनीकी विशेषज्ञता में केवल एक अभ्यास नहीं है। जिस महान कलाकार ने कभी भी कला को आगे बढ़ाने के लिए कला की आवश्यक्ता महसूस नहीं की। कला जो उनकी जीवन शैली का एक अभिन्न अंग बन कर रही, वो धीरज चौधरी आज हमारे बीच नहीं हैं। कल 1 जून की सुबह करीबन साढे आठ बजे उन्होंने अपने जीवन संघर्ष को विराम देते हुए अनन्त की यात्रा आरम्भ की।
नई दिल्ली के कला महाविद्यालय में पढ़ाते हुए पूरे 35 बरस यानि 1961 से 1996 तक कला शिक्षक के रूप में उन्होंने कई कलाकार तैयार किये। राजस्थान के कला विद्यार्थियों को इस गुरु का सानिध्य तब मिला जब जयपुर आर्ट समिट के पहले संस्करण 2013 में वो जयपुर आये। उन्होंने यहां की नई कला पौध को भी जीवन की बारीक रेखाओं के साथ कला की बुनावट को एकाकार करना सिखाया। समिट में उन्हों जो कृति तैयार की वो आज भी जयपुर आर्ट समिट के पास एक धरोहर के रूप में सुरक्षित है। जयपुर प्रवास के दौरान ही मूमल को भी उनके अनुभव भरे सानिध्य की प्रप्ति हुई। कला लेखन और कला पत्रकारिता के बारे में उनका उत्साह देखते ही बनता था। कला के साथ जीवन मूल्यों को अपनी लेखनी में शामिल करने के मूमल मंत्र की इस महान कलाकार ने भरपूर सराहना की।
धीरज चौधरी का जन्म तत्कालीन अविभाजित बंगाल के ब्राह्मणबरिआ जिले में 1 अप्रैल1936 में हुआ था। उस समय बांग्लादेश की स्थापना नहीं हुई थी। स्वतन्त्रता का संघर्ष उके मानस में हमेशा के लिए स्थापित हो गया। बंगाल विभाजन के कई वर्ष बीत जाने के बाद भी वो उस समय किये गए राजनीतिक वादों के पूरे होने का इंतजार करते रहे, जो कि कभी भी पूरे नहीं हो पाएंगे। यही प्रतीक्षा उनके जीवन मूल्यों में ढ़ल गई और वह मानने लगे कि, हर रोज एक कलाकार के लिए अपनी कम स्थिति से ऊपर उठना एक संघर्ष ही तो है।
दार्जलिंग के कॉलेज में शिक्षा प्राप्त करते हुए प्रिंसिपल डॉ के. डी. घोष ने उन्हें कलाकार बनने व अपने सपने पूरे करनेे के लिए प्रोत्साहित किया। वह 'कलकत्ता पेंटर्स' से जुड़े थे। वह सोसाइटी ऑफ  समकालीन कलाकार, कलकत्ता से जुड़े थे। 1982 वह भारतीय मामलों के दर्शनशास्त्र अनुसंधान, शिक्षा मंत्रालय, युवा मामलों और खेल विभाग, सरकार के सलाहकार थे। 1985 के गणतंत्र दिवस परेड के लिए खेल विभाग की ओर से एक झांकी भी तैयार की।। वह संस्कृति विभाग, आधुनिक कला की राष्ट्रीय गैलरी, नई दिल्ली में कला सलाहकार थे। वह भारत के स्वैच्छिक स्वास्थ्य संगठन से जुड़े थे। वह हुडको के आर्ट एडवाइजर थे। अपने विद्यार्थियों के लिए उन्होंने 'स्केच क्लब' शुरू किया। 'महिला पेंटर्स समूह' का आयोजन किया। ड्राइंग के लिए समर्पित समूह 'लाइन' को व्यवस्थित किया। 'क्वार्टेट कलाकार' की स्थापना की। 'कलाकार फोरम' की स्थापना की। धीरज चौधरी का कहना था कि मैं जो चित्रित नहीं कर सकता वह मेरे प्यार की अभिव्यक्ति है क्योंकि मेरे लिए दु़निया की स्थिति और मानवता वास्तविक और बड़ी चिन्ता का विषय है।
कला के लिए कला जगत व दुनिया को बहुत कुछ देने की चाह ने धीरज चौधरी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा का पात्र बनाया। भारत में लगाई गई अनगिनित प्रदर्शनियों के साथ उनके चित्रों की सोलह अन्र्तराष्ट्रीय प्रदर्शनियां भी लगीं। राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर कई-कई सम्मान व पुरस्कार से नवाजे गए इस कलाकार की जीवन शैली हमशा सादगी भरी रही। इसी वर्ष की शुरुआत के साथ पटना के एक कला समारोह में उन्होंने किसी खास व बड़ी कला योजना की चर्चा की जो अब कभी भी पूर्ण नहीं हो पाएगी। मानवता और जीवन के साथ कला को निकटता से जोड़े रखने की भावना रखने वाले ऐसे कलाकार कभी भी नहीं मरते हैं। कला जगत के हर शख्स के ह्रदय में जीवित इस महान कलाकार धीरज चौधरी को मूमल का शत-शत नमन। -राहुल सेन

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