पूर्वोत्तर चित्रकार शिविर का आज हुआ समापन
मूमल नेटवर्क, लखनऊ। ललित कला अकादमी के अलीगंज स्थित क्षेत्रीय केन्द्र में चल रहे पूर्वोत्तर चित्रकार शिविर का आज शाम 4 बजे समापन हुआ। समापन पर शिविर में रचित कृतियों को प्रदर्शित किया गया। शिविर में भाग ले रहे 10 कलाकारों ने अपने मनोभावों को कृतियों के रूप में जीवन्त किया है।मणिपुर के कलाकार अथोकपम कुबेर सिंह ने नेचर शीर्षक से कृति की रचना की है। अपनी कृति में उन्होंने ब्रह्यण्ड में प्रकृति के बीच निरंतर चलते द्वंद को दर्शाया है जिसे महसूस किए बिना मानव अपनी लालसा मे पड़कर प्रकृतिक सुंदरता को बेरहमी से नष्ट कर देता है।
गोवाहाटी असम की रिकूं चक्रबती ने ब्यूटी आफ असम नामक कलाकृति की रचना की है। रिंकू असम के प्राकृतिक सौन्दर्य से बहुत प्रभावित है इसलिए प्राकृतिक सुन्दरता को अपना विषय बनाया है ।
एच लक्ष्मी इस शिविर में हिससा लेने के लिए मणिपुर से आई हैं। इन्होंने अपनी अनटाईटिल्ड पेंटिंग में जीवन के दुख सुख को व्यक्त करने की कोशिश की है। लक्ष्मी का कहना है कि हर व्यक्ति के जीवन में सुख और दुख दोनो होते है पर जीवन को जीने के लिए हमें खुश रहना होता है और अपनी उदासीनता को ढकना होता है।
मणिपुरकी ही पूर्णिमा नानगॉव का मानना है कि बचपन से ही हम अपने माता पिता की विचारधाराओं पर जीवन व्यतीत करते है पर जब हम किशोरावस्था पर पहुँचते है तो जीवन को अपने नजरिए सेे व्यतीत करते है। इन्हीं विचारों का चित्रण उन्होंने अपनी पेंटिंग रिब्यूक में किया है ।
पूर्वोत्तर के दीपेन्दु बाउल ने फिलहाल मुम्बई को अपनी कर्मभूमि के रूप में चुना है। लखनऊ कलाकार के जेहन में बसता है। इस शहर के बारे में जो कुछ दीपेन्दु ने फिल्मों में देखा और सुना उन्हीं स्मृतियों को अपनी कृति मुजरा के जरिये चित्रित किया है।
वाश शैली में पारंगत उत्तर प्रदेश के चित्रकार राजेन्द्र प्रसाद ने इसी शैली में अपनी कृति आवाहन की रचना की है।
कर्नाटक से आए आर्टिस्ट शकंर वी कड़ाकुन्टला ने अपनी कलाकृृति में कर्नाटक की समाजिक परंपराओ और त्यौहारों का चित्रण किया है। अपनी कृति को उन्होने टाईगर नाम दिया है। कृति मेेंं कलाकार ने यह दर्शाया है कि कर्नाटक में मौहर्रम के अवसर पर हिन्दू धर्मावलम्बी जुलुस मे शिरकत करते है एवं अपने शरीर पर विभिन्न प्रकार के रंग लगाते है। इस परम्परा से हिन्दू मुस्लिम एकता के भाव जाहिर होते हैं जो कलाकार के अन्तरमन को प्रभावित करते हैं।
प्रमोद आर्या चंडीगढ़ से हंै। उन्होनें अपनी कलाकृति माइन्डस्केप में लखनऊ के सुहावने मौसम, गोमती तटबन्ध और यहाँ के जीवन व पुरातन इमारतो से प्रभावित होकर सफेद पत्थरो से निर्मित इमारतों की कल्पना करते हुए तत्कालीन सभ्यता को दर्शाया है
अर्चना यादव भोपाल से आई हैं। इन्होंने व्यक्ति की बौ़िद्धक स्वतंत्रता के असीमित होने एवं सीमाओं से परे होने का चित्रण अपनी अनटाईटिल्ड कृति में किया है।
बैलून गर्ल शीर्षक की कृति कर्नाटक के विठ्ठल रेड्डी चुलाकी ने की है।
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