बुधवार, 4 जुलाई 2018

Rajasthan-147 साहसी कलाकारों के खुले विचार व सुझाव

साहसी कलाकारों के खुले विचार व सुझाव
सुधि पाठकों की प्रतिक्रिया व समीक्षा संबंधी आलेख के दूसरे भाग में उन कलाकारों के विचार उनके नाम सहित प्रस्तुत किए जा रहे हैं, जिन्होंने अपनी हस्ती खुद बनाई है और उनका मानना है कि वे अकादमी की वैशाखियों के सहारे चलने के पक्षधर नहीं हैं। इसलिए किसी गुडबुक या बैडबुक की चिंता किए बिना उनके विचार के साथ उनका नाम बेखटके दिया जा सकता है। प्रस्तुत हैं कुछ प्रमुख प्रधिनिधि विचार व सुझावं...

प्रदेश के बाहर कार्यरत जाने-माने और व्यस्त कलाकार मोहन जांगीड़ ने समय निकाल कर मूमल को अपने दर्द से अवगत कराया। उन्होंने लिखा कि राजस्थान ललित कला अकादमी के युवा पदाधिकारियों को देखकर लगा था कि अब प्रदेश के कलाकारों का भला जरूर होगा। हालांकि मैं राजस्थान के बाहर काम कर रहा हूं और खुश हूं, लेकिन राजस्थान में पला-बढ़ा हूं, इसलिए वहां के आर्टवर्ड में इतनी अव्यवस्था के बारे में जानकर बहुत दुख हुआ। अकादमी का यह एक अच्छा कदम था, लेकिन चुनाव करते वक्त यह जरूर ध्यान दिया जाना चाहिए था कि जिस तरह भारत की बात करने पर हुसैन, सूजा या रजा का नाम सबसे पहले सामने आता है वैसे ही राजस्थान की बात करने पर कुछ नाम बिना किसी विवाद के सामने आते है। दुख की बात है कि वह नाम व उनके काम नजर नहीं आए। आपके मूमल न्यूज से जन्मभूमि की खबर मिलती रहती है, इसलिए अपना यह दर्द आपसे शेयर कर रहा हूं।

राजनीति की दलदल से ऊपर बेबाक बोलने वाले वरिष्ठ डॉ. रघुनाथ शर्मा ने कहा कि, अकादमियों में मनमानी की दो ठोस वजह नजर आती हैं । पहले अध्यक्ष, सचिव आदि की नियुक्ति मनमाने ढंग से होना, लंबा समय बीत जाने पर नियुक्ति करना। हुक्मरान ने अपना एक शासकीय अंदाज़ बना रखा है। वो अपने इस अंदाज से अप्रत्यक्ष रूप से यह भी संदेश दे देते हैं कि कला - वला हमारी प्राथमिकता में दूर दूर तक नहीं है। इन्हीं के द्वारा तय होने वाले बड़े लोग कुछ तो उस अंदाज को आगे बढाएंगे ही दूसरा, कलाकार स्वयं, जो गुटबाजी के साथ मनमानी करने में भी अब माहिर हो गए हैं, जिस तरह से क्रिएटिविटी में आजादी के पक्षधर है उसी तरह जजिंग करने में, अकादमी की कई अन्य गतिविधियां करवाने में अपने आप को आजाद मानते हैं । न कोई नीति नियम, न वरिष्ठता का खयाल, न किसी की क्रियाशीलता का लिहाज......जैसे डंके की चोट पर कह रहे हो कि क्या कर लोगे हमारा? कुछ वरिष्ठ व पारंगत कलाकारों को चयन करके, भर लो अपने मनचाहे  लोग ।.....आप कुछ कहो तो सैकड़ों तर्क-कुतर्क व बहाने इनकी जुबान पर रहते हैं ।....और  वैसे हर जगह पर स्वयं को संवेदनशील कहलाना पसंद करते हैं ।

कला जगत में अपनी अलग पहचान बना चुके कलाकार नवल सिंह चौहान ने सभी चयनित कलाकारों को हार्दिक बधाई देते हुए कहा है कि कलाकार होने के नाते कुछ बातें जहन में आ ही जाती हैं। जहाँगीर कला दीर्घा में चयनित कलाकारों की सूची थोड़ी और बड़ी हो सकती थी। सूची देखने पर लगा कि कुछ युवा व वरिष्ठ कलाकारों की अनदेखी की गई है। पक्षपात करना ठीक नही है।

पहली बात... चयन का कोई आधार होना चाहिए, नाम के बजाय काम देखकर चयन होना चाहिए। आवाज उठाना हमारा काम है क्योंकि सरकारी संस्थाओं में इस तरह नही चलेगा। कितने कलाकार आज नियमित रेखांकन करते हैं, जो कि सबसे ज्यादा जरूरी है। एक कलाकार को व्यंग्य चित्रण, व्यक्तिचित्रण, रियलस्टिक आर्ट, मॉडर्न आर्ट, सृजनात्मक होना ही चाहिए। चयनित कलाकार स्वयं को परखे, एक ही घिसी-पिटी शैली में बरसों से रंगों का अपमान किए जा रहे हैं।

दूसरी बात... अधिकांश चयनित वे हैं जिन्हें प्रदेश के ज्वलंत कला मुद्दों की पूरी जानकारी तक नहीं है। आपने राजस्थान में नन्हे कला विद्यार्थियों के लिए चल रहे कला आंदोलन को कितना समर्थन व सहयोग दिया? चयनित कलाकारों में से कुछ कलाकार ही इन बातों पर खरे उतर पाएँगे...

अकादमी सरकारी संस्था है। ऐसी मनमानी नहीं चल सकती, सरकार से शिकायत की जा सकती है। ललित कला अकादमी को इस तरह के चयन में पारदर्शिता रखनी होगी। कलाकारों के काम के चयन में उनकी सक्रियता के साथ ही काम का लेवल भी देखा जाना आवश्यक है। दु:ख तब होता है जब वर्षों कला क्षेत्र में काम करने वाले कलाकारों को अनदेखा कर दिया जाता हैं। उम्मीद है भविष्य में सब अच्छा होगा?

जाने-माने शिल्पी हंसराज कुमावत का कहना है कि अकादमी में चाहे कितना ही दूध का धुला इंसान बैठा हो, वो उसी को शामिल करेगा जो उसके खास शिष्य- शिष्याएं और मित्र, रिश्तेदार हो। यह तो बड़े शर्म की बात है कि सेलेक्शन कमेटी के वरिष्ठ सदस्यों ने ने अपना नाम सबसे पहले चुनते हुए उन कलाकारों को दरकिनार रखा जो एक सच्चे साधु की भाँति अपनी कला साधना में लीन हैं। और तो और 100 कलाकारों के सेलेक्शन के बाद 47 ऐसे नाम कहा से प्रकट हो गये जिनका इंडियन कंटेम्परेरी आर्ट में ना कोई खास रेकॉर्ड है और ना ही प्रदेश के कला जगत में उनका कोई योगदान रहा।

ऐसे में यह भी ज्ञात होना चाहिए कि कई ऐसे कलाकार भी हैं जिनको प्रदर्शनी के लिए न्यौता देकर वर्क मंगवाने के बाद भी अकादमी ने उन्हें वापस लौटा दिया। ऐसी शर्मनाक परिस्थितियों के चलते कुछ अनुभवी कलाकारों ने तो अकादमी द्वारा काम मांगे जाने पर साफ  इंकार ही कर दिया, कई कलाकार ऐसे जंजाल से दूर ही अपनी कला साधना में व्यस्त है। राजस्थान ललित कला अकादमी में सटीक रणनीति, पारदर्शिता और एक्सपीरिएंस का अभाव साफ नजर आ रहा है। कलामेल से अब तक घूम फिर के एक ही चहेते चेहरे और कुछ एक ही नाम नजर आ रहे है।

राजस्थान ललित कला अकादमी ने कुछ नया करने के नाम पर कई क्राफ्टमैन और हॉबी कलाकारों को जगह दी। यह अकादमी कलाकारों की है, किसी की बपौती नहीं है। अगर अब भी कलाकारों के प्रति पारदर्शिता नहीं रहीं तो आर टी आई लगाकर जानकारियां लेनी होंगी। शुक्रिया मूमल आपके अखबार में कलाजगत की गतिविधियोंं का सटीक निचोड़ पढऩे को मिलता है, इसमें हमेशा से ही कलाकारों के हित में आवाज उठाई है। जिससे आर्ट पॉलिटिशिएंस और अकादमी सिस्टम कंट्रोल में रहता है।

युवा कलाकार मयंक शर्मा का कहना है कि इस प्रदशनी के लिए कलाकारों को चुनने का कोई आधार नही था। जहाँ एक ओर कलाविद जैसे कलाकार हैं वही ऐसे भी कलाकार चुने गए है जिनको शौकिया कलाकार कह सकते हे जिनको कभी स्टूडेंट अवार्ड भी नही मिला। कलाकारों का चयन ऐसी कमीटी ने किया जिनको कला के बारे में कुछ नही पता पर वो अधिकारी होने के नाते ये हक़ रखते है।

आप कलाकारों की सूचि देखेंगे तो शायद आपको भी आश्चर्य होगा। उदयपुर के एक वरिष्ठ कलाकार का नाम तो दूसरे कलाकारों को बताना पड़ा की ये तो वरिष्ठ कलाकारों में से हे तब उनका चयन किया गया।

जिस प्रकार प्रदर्शनी के कलाकारों की सूचि जारी नही की, उसे आखरी क्षण तक छपाए रखा वैसे ही अकादमी कई कैंप का आयोजन भी करवाती है पर किसी को कानोकान खबर नही होती। जिससे इनके द्वारा चयनित कलाकार जो लगभग सभी कैंप में सामान होते है उनका पता दुसरो को न चले और न कोई विरोध हो। निष्कर्ष यह निकलता है कि, अकादमी अपना काम निर्विरोध कर रही है क्योंकि Óयादातर काम वो गुप्त रूप से करती है।

हितेन्द्र सिंह भाटी ने मूमल को लिखा कि राजस्थान ललित कला अकादमी हम जैसे कलाकारों के साथ हमेशा सौतेला  व्यवहार करती हैं... बारह सोलो शो, जिनमें जहाँगीर आर्ट गैलरी में दो सोलो शामिल हैं... पिछले बीस साल से कला जगत में 'निरंतर कार्यरत हूँ...आइफेक्स  और कैमलिन जैसे अवॉड्र्स पाएं है... देश के नामी कला संग्रहको के पास मेरी पेंटिंग्स है... माना कि ये सब कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है, लेकिन जहाँगीर आर्ट गैलरी मे अकादमी की तरफ  से प्रदर्शित होने वाले इन 147 कलाकारों की लिस्ट में मुझे लगता है मेरा नाम भी होना चाहिए था। आखिर क्यों नहीं है?, जब इस लिस्ट में 20 शौकिया कलाकार हैं और 10 ऐसे, जिनका ब्रश बरसों से सूखा पड़ा है...

माना कि आर्टिस्ट को खुद अपने लिए ऐसे नहीं कहना चाहिए... लेकिन क्यों नहीं कहें... मैं सिर्फ  अपनी बात नहीं कर रहा, राजस्थान से ऐसे कई आर्टिस्ट है, जो इन 147 मे शामिल अनेक कलाकारों से कहीं अधिक बेहतर और निरंतर काम कर रहे हैं। जब अकादमी पूरे राजस्थान की कला को रिप्रजेंट करने जा रही हो तो जिम्मेदारी और बड़ी हो जाती है... सेलेक्शन संवेदनशील होना चाहिए... फेयर होना चाहिए... पारदर्शी होना चाहिए...। यह कोई आत्मश्लाघा नहीं है... ना ही कोई क्षोभ है... सिफऱ्  एक कलाकार की विडंबना है... पीड़ा है...। उल्लेखनीय भाटी ने बाद में अपनी यही बात खुले पत्र के रूप में कला जगत के समक्ष भी रखी।

वीरेन्द्र दायमा ने तेल और तेल की धार देखते के बावजूद साहसपूर्वक कहा कि जो बोलेगा उसे ब्लैक लिस्ट कर दिया जावेगा, इसी कारण से कोई बोलता नही है। जिसका चयन हुआ वो बोलेगा नही जिसका नहीं हुआ वो इन उम्मीद में नहीं बोलेगा की कहीं ब्लैक लिस्ट नहीं हो जांउ। पेंटिग के पीछे नाम देखकर,सगे संबंधी और अपने गुट के कलाकार का चयन करने की परम्परा बनाये रखने में हम ही जिम्मेदार है । कुछ कु-कलाकार अपनी पहुंच का इस्तेमाल कर उच्च पद पर विराजित है और अंतरराष्ट्रीय ख्याती प्राप्त कलाकार उनके पीछे-पीछे चल रहे हैं। कुछ सम्मानित कलाकारों को छोड़कर सभी चयनित कलाकार और चयन करने वाले समय के साथ पाला बदलने वाले और चाटुकारिता की हदें को पार करने वाले है। कई वर्षों से कला क्षेत्र में यही चलता आ रहा है और शायद यही चलेगा।

रेणु बरिवाल ने लिखा, मैने राजस्थान ललित कला अकादमी से किसी भी तरह की आशा छोड़ दी है। मैं अपना काम कर रही हूं क्योंकि यह मेरे लिए जुनून है। मुझे अकादमियों से कुछ भी उम्मीद नहीं है, क्योंकि एक संगठन एक समय में सभी को संतुष्ट नहीं कर सकता है। मुझे पता है कि राजनीति ऐसे संगठनों का हिस्सा है, लेकिन हां यह भी सच है कि वे एक बदलाव ला सकते हैं ... लेकिन कौन परवाह करता है। यही कारण है कि आज भी न केवल राजस्थान बल्कि राष्ट्रीय अकादमी कलाकारों के लिए कुछ भी नहीं कर रही है। तो दोस्तों ... कोई उम्मीद मत करो ...।

निर्मल यादव के अनुसार सब का साथ .....और आपका माध्य्म, हमें साहसी बनाता है और अब भी साहस नहीं करेंगे तो कब करेंगे? आने वाले युवा कलाकर इसी लकीर के फ़क़ीर होते चले जाएंगे। यह कला में भृष्टाचार ही तो है। कहाँ तो यह आनंद देने वाला, भाव विभोर करने वाला अपनी कल्पनाओं को आकर देने वाला माध्यम कला अब बाजारू, और अकादमी अब बंदरबांट का अड्डा हो गयी है। यह देखने वाली बात है, राजस्थान राज्य जो अपनी पौराणिक शैली (मिनीचर आर्ट) के लिए विश्व विख्यात है उसे इतना ज्यादा महत्व नहीं दिया गया उदयपुर से राजाराम जी की की कृति को को ही लगाया गया। एक ही नाम होने से थोड़ी मिस्टेक हो गई। कुल मिला के उदयपुर में कोई भी मिनिचर आर्टिस्ट भी नहीं दिखा अकादमी को। सभी कलाकारों को बहुत बहुत बधाई।

गीतांजलि वर्मा ने राजस्थान 147 का कैटलॉग शेयर करने के लिए मूमल को धन्यवाद देते हुए कहा कि पूरा कैटलॉग देखने पर बउ़ी खुशी हुई कि, कुछ कलाकारों के काम राजस्थान को बहुत अच्छे से रिप्रेजेंट कर रहे हैं। जिनके नाम सलेक्ट किए जाने पर किसी को कोई संशय नहीं होगा। क्योंकि यह राजस्थान के प्रथम श्रेणी के कलाकार रहे हैं। किन्तु कुछ कलाकार जिन्हें अब तक कला की पहचान भी नहीं हुई है। जिन्होंने एकेडमिक वर्क की परिभाषा ही बदल दी। जो दूसरे कलाकारों के वर्क की कॉपी करके ही तारीफ  पाते रहे हैं, उनको भी राजस्थान के प्रमुख कलाकारों में शामिल कर लिया गया। इस बात से बड़ा अफसोस हुआ। ...और इससे भी दुखद बात यह है कि राजस्थान के वो कलाकार जो कलाविद् हैं, और जो कलाकार वाकई कला के मर्म को समझते हैं, उनके काम को ऐसे कलाकारों के काम के साथ प्रदर्शित किया।

क्या ललित कला अकादमी इसके लिए जिम्मेदार नहीं कि जब राजस्थान को रिप्रजेंट करना था तो क्यों नहीं ईमानदारी से श्रेष्ठ कलाकारों को चयनित किया गया? क्या इस कला प्रदर्शनी का उद्देश्य मात्र भीड़ इक्कठी करना था या कि राजस्थान का नाम बढ़ाना? क्या चयन समिति इतनी अनजान और गैरजिम्मेदार थी कि उन्हें यह भी ज्ञात नहीं रहा कि यह प्रदर्शनी राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर राजस्थान की क्या छवि बनाएगी? जिन कलाकारों का इस एग्जीबिशन के लिए चयन नहीं हुआ, उनके काम की समीक्षा तो वो करते हैं, किन्तु क्या कभी राजस्थान ललित कला अकादमी अपने कार्यों की समीक्षा करके संतुष्ट हो पाती है, या उसकी कोई जवाबदेही भी बनती है?

कुलदीप भार्गव कहते हैं, राज्य के कई एक से बढ़कर एक कलाकार वंचित रह गए। यही तो इस देश की खूबी है हर जगह भाई भतीजावाद चल रहा है। प्रतिभाओं की कोई कद्र नहीं है। भले ही काम के नाम पर कुछ भी न हो, फिर भी भाईबंदों का चयन पक्का होता है। एक बात कहना चाहूँगा, जब गुरु ही द्रोणाचार्य हों तो अर्जुन ही आगे बढ़ेगा एकलव्य तो गुमनामियों में ही खोकर रहना है।

दिलीप कुमार डामोर का मानना है कि अकादमी को चयन का क्राइट एरिया भी रखना चाहिए था। उसी से कई अयोग्य लोग लिस्ट से बाहर हो जाते। वैसे राजनीति ने कला, संस्कृति, कलाकार, राजस्थान, समृद्ध भारत व विश्व को खोखला करने मे कोई कसर नहीं छोड़ रखी हैं और सदियों से भी यही किया है... अकादमी में भी दमदार व लायक कलाकारों  नजरअंदाज कर दिया है...। अब भी समय रहते सुधारने की जरूरत है...।

दुर्गेश अटल कहते हैं, अब ललित कला अकादमी से कभी कोई उम्मीद नहीं रही। बाकी किस आधार पर सलेक्शन हुआ है सबको पता है ? कलाकार की मेहनत और उसकी कला ही उसको पहचान दिलाती है । ललित कला अकादमी के अधिकारी कितना भी करें वह ऐसे किसी को कलाकार नहीं बना सकते।

हर्षित वैष्णव ने लिखा, मुझे तो समझ नहीं आया किस आधार पर कलाकारों का चयन किया गया है? उनकी कृति के आधार पर या उन की उपलब्धियों के आधार पर। दोनों स्थिति में कई गलतियां हुई हैं। कई कलाकार थे, जिनका नाम होना चाहिए, जिनके उत्कृष्ट कार्य भी हैं और उपलब्धियां भी। जबकि, जिनका कोई रिकॉर्ड नहीं फिर भी वे इस प्रदर्शनी का हिस्सा बने।

कमल बक्क्षी कहते हैं वर्षों से कला के लिए समर्पित वरिष्ठ कलाकारों की अनदेखी की गई है। जिन लोगों का कला से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं रहा उनका चयन किस आधार पर किया गया? यह शर्मनाक है।

कब्बू राठौड़ का विचार है कि जब संगीत क्षेत्र के लोग ही ललित कला के बॉस बन गए तो उम्मीद क्या करें? इसका मुझे व अन्य वरिष्ठ चित्रकारों को खेद है। ललित कला अकादमी को अपनी छवि सुधारनी होगी।

मनोज कुमार यादव के मुताबिक यदि आपका गॉड फ़ादर नहीं है तो आप न तो पारम्परिक न आधुनिक... आप अव्वल कलाकार हो ही नहीं। किसी कोने में बैठकर कूँची चलाते रहिये कोई नहीं पूछेगा ।

डॉ. रीता प्रताप का कहना है कि, अकादमी में आज भी मनमानी चल रही है। ....पेंटिंग इंटरनेशनल, नेशनल, स्टेट सभी में सलेक्शन हुआ है। पर एक्जीबिशन में इंवायट नहीं किया गया।

त्रिलोक श्रीमाली का मानना है कि अकादमी स्तर का प्रदर्शन नहीं हो पाया एवं चयन प्रक्रिया में भी वही पुरानी लिस्ट। कुछ हटकर चयन एवं प्रदर्शन की आवश्यकता है।

रवि माइकल ने कला मेला पुरस्कार विवाद के बाद अकादमी के आयोजन को ले कर एक और विवाद पर अपनी चिंता व्यक्त की।

परमेश्वर आर्टिस्ट ने कहा, हर जगह कला के नाम पर खेल खेला जा रहा है।

अक्षय मुदगल ने कहा, न्यू टैलेंट को ज्यादा से ज्यादा मौका देना चाहिए। एक बार से ज्यादा किसी का वर्क सलेक्ट नहीं होना चाहिए। और चयनित काम का कैटलॉग सोशल साइट पर अपलोड होना चाहिए।

लाखन सिंह जाट का मानना है कि भाई भतीजावाद और यारी दोस्ती के आधार पर चयन हुआ है।

देवराज बैरवा का मानना है कि वैसे तो पब्लिक सब जानती है..... पर मैं नहीं जानता कि पेंटिंग सिलेक्ट करवाने के लिए किसके पास जाएं...... ओह आर्ट पॉलिटिक्स।

डीके आजाद ने बस इतना ही कहा कि राजनीतिक रूप से प्रेरित ऐसी कला प्रदर्शनी भाड़ में जाए।

1 टिप्पणी:

Ashok kumawat ने कहा…

एक कलाकार को कला का विरोद्ध नहीं करना चाहिये। बहुत सारे कलाकार ऐसे हैं जिनको अवॉर्ड नही मिला लेकिन वो अपना जीवन कला के लिए समर्पित रहते हैं