सोमवार, 2 जुलाई 2018

छह महीने में बदहाल हुआ रवीन्द्र मंच, गाड़ी पटरी से उतरी

छह महीने में बदहाल हुआ रवीन्द्र मंच, गाड़ी पटरी से उतरी
फिर पटरी पर लाने के लिए युवा कलाकारों ने उठाया बीड़ा

मूमल नेटवर्क, जयपुर। पिछले छह महीने में अव्यवस्था के चलते रवीन्द्र मंच की गाड़ी इस कदर पटरी से उतरी है कि उसे फिर से पटरी पर लाकर चलाने के लिए इतना ही वक्त और लग सकता है। रवीन्द्र मंच से जुड़े अधिकांश कलाकारों और कर्मचारियों का यही विचार हैं।
कलाकार कहते हैं कि रवीन्द्र मंच में फुल टाइम मैनेजर के रूप में जब तक अधिकारियों नेे काम किया तब तक थोड़े-बहुत हिचकोले खाते हुए भी गाड़ी सही चल रही थी। तत्कालीन प्रबंधक सोविला माथुर के मेटरनिटी लीव पर जाने के बाद मंच प्रबंधन का अतिरिक्त प्रभार आरएएस दीप्ति कछावा को सौंपा गया था। उसी के बाद से मंच बदहाल होने लगा। दीप्ति कछावा के अव्यवहारिक निर्णयों से मंच निराशा व अव्यवस्था के गर्त में जा गिरा।
मंच की बुकिंग लगभग बंद कर दी गई। ना तो बुकिंग दी जा रही थी और ना ही बुकिंग के लिए जमा करवाई गई अमानत राशि लौटाने की व्यवस्था सुचारु रही। पहले मंच की आय बढ़ाने के लिए पार्किंग को ठेके पर दिया गया था, ठेकेदार को हटा दिया गया। नए टेंडर मंगवाए गए, लेकिन उन्हें खोलकर देखने तक की जहमत नहीं की गइ्र्र। मंच को सुचारू रूप से चलाने के लिए फण्ड की स्थिति शून्य हो गई है। सरकार से प्राप्त बजट खर्च किया जा चुका है। हालात यह हैं कि कर्मचारियों के वेतन भुगतान तक के लाले पड़ गए है।
जो सबसे बुरा हुआ 
इन सब के दौरान जो सबसे बुरा हुआ वह ये कि मंच के अधिकांश अनुभवी कर्मचारियों को दरकिनार करते हुए एक महिला कर्मचारी की स्थिति और अधिकारों में अचानक इजाफा हो गया। यहां तक की उसकी सीट मैनेजर के कक्ष में लगवा दी गई। कुछ समय बाद ही महिला कर्मचारी ने एक-एक कर अनेक कर्मचारियों पर चारित्रिक दोषारोपण करने शुरू कर दिए। यहां तक की ललित कला अकादमी के प्रदर्शनी अधिकारी तक इसकी जद में आ गए।
महिला कर्मचारी की शिकायत के आधार पर अतिरिक्त प्रभाव वाली अधिकारी ने मंच से जुड़े सभी आरोपित कर्मचारियों को निलंबित कर दिया। निलंबन के दौरान किसी को ऊर्दू, किसी को संस्कृत तो किसी को साहित्य अकादमी उदयपुर में उपस्थिति देने को कहा गया। ऐसे में मंच की लाइट, साउण्ड व मेंन्टिनेंस की महत्वपूर्ण व्यवस्थाएं चरमराकर ढह गई। इन कर्मचारियों के स्थान पर पर्यटन विभाग से कर्मचारी बुलवाए गए, जिन्हें मंच के कार्य का कोई अनुभव नहीं है। मंच के सुरक्षा कर्मियों को हटाकर अधिक वेतन वाले होमगार्डस को लगा दिया गया। ऐसे में थिएटर के कलाकारों के लिए मंच पर काम करना कठिन हो गया। यहां तक की जगह-जगह भरे पानी से बदबू व मच्छरों के कारण हालात खराब होने लगे।
जीती-जागती मिसाल 
किसी नियमित अधिकारी के अवकाश पर जाने से अतिरिक्त प्रभार ग्रहण करने वाले अधिकारी की अनदेखी और कुशासन के चलते कैसे एक जीवन्त संस्था बदहाल होकर पटरी से उतर सकती है, रवीन्द्र मंच इसकी जीती-जागती मिसाल बन गया है। अब ताजा हालात के अनुसार अवकाश से लौटने के बाद राजस्थान प्रशासनिक सेवा की अधिकारी सोविला माथुर ने पुन: प्रबंधक के रूप में कार्य संभाला है। कलाकारों द्वारा अधिकारी का बहुत ही जोश के साथ स्वागत किया गया। 'ताज' जैसी युवा कलाकारों की संस्था ने निराशा के इस आलम में नए सिरे से काम करते हुए आशा की लौ जलाई है।
चुनौतियां आसान नहीं
पिछले दिनों में मंच परिसर में पानी को निकालने की व्यवस्था कर दी गई है। कलाकारों की जमानत राशि शीघ्र वापिस लौटाए जाने के आदेश जारी कर दिए गए हैं। प्रबंधक के सामने फिलहाल दो बड़ी चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं। पहली सस्पेंड किए गए स्टॉफ  को वापिस लाकर मंच के कार्य को गति देना और दूसरा मंच की आय के लिए नए सिरे से प्रबंध करना। यह चुनौतियां आसान नहीं है, लेकिन प्रबंधन की कार्य कुशलता व रंगकर्मियों के उत्साही सहयोग पर कला जगत की नजरें टिकी हुई हैं। ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि मंच की गाड़ी शीध्र ही फिर पटरी पर आएगी।

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