सोमवार, 18 दिसंबर 2017

कमाल के आर्ट परफ़ॉर्मेन्स

कमाल के आर्ट परफ़ॉर्मेन्स
राजस्थान विश्वविद्यालय में अस्टिेंट प्रोफेसर पद पर कार्यरत, मुलत: कोटा निवासी कृष्णा महावर पांचाल की रुचि आर्ट परफोर्मेंस में विशेष रूप से है। कृष्णा के पास आर्ट परफोर्मेंस के बारे में अच्छा ज्ञान हैं। जयपुर आर्ट समिट में उन्हें यहां प्रस्तुत किये जाने वाले आर्ट परफोर्मेंस खींचकर लाते हैं। इस कला के प्रति अपने विचारों को साझा करते हुए कृष्णा महावार ने बताया कि,
परफ़ॉर्मेन्स आर्ट भारत के लिए नई है। आज इंस्टालेशन आर्ट से तो काफी लोग वाकिफ हो रहे हैं। कलाकार अन्तरसम्बन्धात्मक कार्यो मैं भी अभ्यास करने लगे है। परंतु परफ़ॉर्मेन्स आर्ट को लेकर कोतुहल बना हुआ है। परफ़ॉर्मेन्स आर्ट एक एसी नवीन कला शैली है जिसमे कलाकार अपने शरीर को ही अपनी अभिव्यक्ति का टूल बनाता है। यह पूर्णत: प्रत्ययवादी(कॉन्सेप्टुअल) होती हैं। इसमें पूरी स्वतंत्रता होती है । कलाकार के और दर्शको के बीच कोई दीवार नही होती। दर्शक भी इसमें एक हिस्सा बन जाता है। कलाकार इसे चाहे तो पब्लिक के बीच लाइव करे या रिकॉर्ड करके भी दिखा सकता है। कलाकार योजना बनाकर पूरी तैयारी के साथ या फिर केवल इम्प्रोवाइजेशन भी कर सकता है। कुछ मिनट के लिए या कुछ घंटो के लिए या महीनों के लिए भी परफ़ॉर्मेन्स हो सकती है।
हाँ, जैसे मरीना अब्रोमोविक को परफ़ॉर्मेन्स आर्ट की गॉड मदर" कहा जाता है उनका परफ़ॉर्मेन्स artist is present मोमा(म्यूसियम ऑफ मॉडर्न आर्ट) मे 750 दिन चल था। खैर इस विधा में कलाकार के पास कहने को बहुत कुछ होता है जिसे किसी अन्य पारंपरिक माध्यम चित्र या मूर्तिशिल्प द्वारा कहना संभव नही होता। इसमे राजनैतिक, सामाजिक, लिंग भेद जैसे और कई जरूरी मुद्दों को कलाकार अपना विषय बनाते हैं। तथा सशक्त रूप में परफ़ॉर्मेन्स द्वारा अभिव्यक्त करते हैं।

जयपुर आर्ट समिट मे आज हुई दो आर्ट परफ़ॉर्मेन्स अपने प्रदर्शनात्मक पहलू में बहुत ही रोमांचित कर देने वाली थी। पहली परफ़ॉर्मेन्स भारत के रघु वोदेयर की थी। इसमे उन्होंने एक कांच के वर्गाकार फिश एक्वेरियम के अंदर अपना चेहरा गर्दन तक छुपाया था। या यों कहे कि उस एक्वेरियम को मास्क की तरह पहना था। उसमें छोटे आकार की सजीव मछलियां भी तैर रही थी वे भीड़ के बीच एकदम से धीरे धीरे चलते हुए आते हैं और वंहा पहले से ही एक चमकीली पीली एक्रेलिक शीट उपलब्ध थी। और उसके दोनों और बाल्टी में गुंथी हुई मिट्टी के छोटे गोले भरे हुए थे। रघु वंहा पंहुच कर उन मिट्टी के गोलों को उस शीट पर चिपकना शुरू कर देते है और लोगो को भी एक एक करके आमंत्रित करते है वैसा ही करने को। लोग भी बढ़ चढ़ कर भागीदारी निभाते है, परंतु मिश्रित भाव लिए । लेकिन उस परफ़ॉर्मेन्स को सही मायनों में तो दर्शक ही आगे लेकर जाते है। और कही न कही यही प्रक्रिया उस परफ़ॉर्मेन्स की वास्तविक सफलता सिद्ध करती हैं।

दूसरी परफ़ॉर्मेन्स पोलेन्ड से आए आरती ग्रोबोव्स्की की five shoked of life थी वे नंगे बदन आते है और माइक पर पांच चरणों मे अजीब अजीब आवाजो के साथ पास रखी बाल्टियों को भी हाथ से बजाते है। हर बाल्टी के बाद वे थोड़ी दूर जाकर खड़े हो जाते है और एक अन्य आदमी उस बाल्टी मे भारी सामग्री को उनके बदन पर फेंकता है। इन सामग्रियों में क्रमश: पानी, सफेद चुना पाउडर, कोयला पाउडर, छोटे छोटे पत्थर के टुकड़े आदि शामिल हैं। एक खाली बाल्टी को वे अपने सर को ढक अजीब गर्मजोशी से बाल्टी को पीटते हुए ये दोहराते जाते है- I love you, I hate you. ऐसे ही कभी yes, no, I trust you, I faith on you....वगैरह वगैरह। अंत मे टेबल पर चढ़ एक बाल्टी को दर्शको की और उंडेल देते हैं , पहले की सारी प्रक्रिया को देख दर्शक भी डर से जाते है कि उसमें क्या होगा। अचंभित माहौल में एकदम से खुशी छा जाती है जब उसमे से रंग बिरंगे कागज के चमकदार टुकड़े चारो और गिरते हैं। अंत मे वे एक बड़े हथोड़े से वहां रखी पांचो बाल्टियों को पीट पीट कर तोड़ देते है और एक ओर फेंक देते है। वास्तव मे जीवन के इन पांच प्रकार के डर का ये शानदार परफ़ॉर्मेन्स प्रत्येक दर्शक को लुभा गया। वे भी सारे भावो से एक के बाद एक गुजरते रहे। मेरे पांच वर्षीय पुत्र ने भी प्रत्येक परफ़ॉर्मेन्स में भागीदारी दी और इन पलों का आनन्द उठाया।

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