अर्से बाद दिखे परम्परा के रंग
दर्शकों की रुचि रही कम
मूमल नेटवर्क जयपुर। जवाहर कला केन्द्र के शिल्पग्राम में जयपुर आर्ट फिएस्टा की 22 तारीख की शाम से शुरुआत हो गयी है। लगातार मॉडर्न व कन्टेम्पररी रंगों के आयोजनों के बीच भारत के पारम्परिक रंगों को एक स्थान पर एकत्रित देखना जयपुर के कला प्रेमियों के लिये खासा सुखद हो सकता था। लेकिन आयोजन के आवश्यक प्रचार-प्रसार में कमी के चलते यहां लोगों की आवाजाही उम्मीद से काफी कम नजर आ रही है। खरीददार भी नदारद हैं। ऐसे में दूरदराज से आए हुए कलाकारों में निराशा छाई हुई है। अब 25 दिसम्बर को क्रिस्मस अवकाश के चलते उम्मीद की आखरी किरण शेष है। दूसरी ओर लगातार आयोजनों के चलते फिएस्टा में स्थानीय कला प्रेमियों की रुचि पनप नहीं पा रही है। फिएस्टा के उद्घाटन अवसर पर राजस्थान के पद्मश्री सम्मानित कलाकारों व कैबिनेट मंत्री प्रभुलाल सैनी द्वारा वयोवृद्ध पारम्परिक रंगों के चितेरे पद्मश्री श्रीलाल जोशी को लाईफ टाईम अचीवमेंट अवार्ड से नवाजा गया। इसके बाद छिड़ी बेबाक चर्चा में पद्मश्री अर्जुन प्रजापति ने जहां पारम्परिक कलाओं के प्रति सरकार की अवहेलना को साझा किया वहीं इन कलाओं को बढ़ावा दिये जाने का प्रस्ताव भी रखा।
कल 23 दिसम्बर को पद्मश्री एस. शाकिर अली व पद्मश्री तिलक गीताई ने जहां कैनवास पर रंग भर कर कन्टेम्पररी आर्ट कैम्प की शुरुआत की वहीं इस कैम्प में कोलकत्ता के संजय चक्रवर्ती ने अपनी कला का जीवन्त प्रदर्शन कर दर्शकों को ठिठकने के लिए मजबूर कर दिया।
इधर डूंगरपुर हट का मंच पद्मश्री विजय शर्मा और नीलान्द्री पॉल की कला चर्चा का साक्षी बना। रंगकर्मी सालेहा गाजी से हुई बातचीत के दौरान विजय शर्मा ने अफसोस जताया कि मिनिएचर आर्ट को पढ़ाने-सिखाने के लिए कोई सरकारी संस्थान ही नही है। उन्होने कहा कि लगातार अनदेखी के चलते घरानेदार चित्रकारी की परम्परा लुप्त होने के कगार पर आ खड़ी हुई है। नीलान्द्री पॉल ने भारत की बुनियादी आर्ट के रूप में पारम्परिक कला को देश ही नहीं विदेशों में भी इस कला के विस्तार की बात कही।
जयपुर आर्ट फिएस्टा का पांच दिवसीय आयोजन दिल्ली की ट्रेडीशनल आर्ट प्रमोशनल सोसायटी की तरफ से किया गया है। फिएस्टा का समापन 26 दिसम्बर को होगा।
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