मंगलवार, 26 दिसंबर 2017


मिनिएचर आर्ट के प्रति सरकारी रवैया उपेक्षापूर्ण
पारम्परिक कला के क्षेत्र में भारत सरकार से पद्मश्री सम्मान प्राप्त कलाकारों का कहना है कि मिनिएचर आर्ट के प्रति सरकार का रवैया उपेक्षा पूर्ण है। आर्ट फिएस्टा में चल रही कला चर्चा के दौरान पद्मश्री कलाकारों ने कला उत्थान पर विशेष रूप से चर्चा की।
अर्जुन प्रजापति 
सुप्रसिद्ध मूर्तिकार पद्मश्री अर्जुन प्रजापति ने जहां पारम्परिक कलाओं के प्रति सरकार की अवहेलना को साझा किया वहीं इन कलाओं को बढ़ावा दिये जाने का प्रस्ताव भी रखा। प्रजापति के अनुसार विशेषकर ललित कलाओं के लिए गठित अकादमी में ही मिनिएचर आर्ट के साथ सौतैला व्यवहार होता है तो अन्य विभागों की क्या बात की जाए।
विजय शर्मा
हिमाचल प्रदेश के पद्मश्री विजय शर्मा एक लम्बे अर्से से पहाड़ी शैली की पेंटिंग्स के उत्थान को लेकर सक्रिय हैं। अपनी बातचीत में उन्होंने अफसोस जताया कि मिनिएचर आर्ट को पढ़ाने-सिखाने के लिए कोई सरकारी संस्थान ही नही है। जबकि पड़ौसी मुल्क पाकिस्तान में मिनिएचर पेंटिंग शैक्षणिक कोर्स में शामिल है। उन्होंने कहा कि लगातार अनदेखी के चलते घरानेदार चित्रकारी की परम्परा लुप्त होने के कगार पर आ खड़ी हुई है।
एस. शाकिर अली
इधर पद्मश्री एस. शाकिर अली ने कहा कि जब तक सृष्टि है तब तक आर्ट जिन्दा रहेगा। उन्होंने कहा कि आज कोई भी कलाकार भूखा नहीं मर रहा है। हालात यह हैं कि अच्छे आर्टिस्ट्स की कमी है और अच्छे काम की मांग भी, फिर भले ही वो आर्टिस्ट मिनिएचर शैली में काम करने वाला हो या कंटेम्पररी में। अच्छे आर्टिस्ट की कमी के कई कारण हो सकते हैं। इसमें कलाकार की कला साधना में अभाव भी हो सकता है तो कई शैलियों के प्रति सरकारी उपेक्षा भी। 
तिलक गीताई
पद्मश्री तिलक गीताई ने चर्चा के दौरान मिनिएचर आर्ट के प्रति सरकारी अनदेखी पर नाराजगी व्यक्त की। उन्होनें कहा कि यह एक ऐसी कला है जिसमें दो रुपये के कागज पर लाखों रुपये कमाये जा सकते हैं। इतनी संभावनाओं वाली कला को उपेक्षित क्यों किया जा रहा है, यह बात समझ से परे है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में कॉलेज स्तर के स्कूल ऑफ आर्ट जैसी संस्था होने के बावजूद भी वहां पारम्परिक कलाओं की शिक्षा नहीं दी जाती है यह दुर्भाग्यपूर्ण है।


1 टिप्पणी:

iqbal hussain ने कहा…

इसका मुख्य कारण तो यही है कि आज परम्परागत कलाओ , जिसमे मिनियेचर आर्ट भी है को पढाने वाले शिक्षक ही नही है।
अभी कुछ बरसो पहले कॉलेज शिक्षा के सिलेबस में इसको जोड़ा जाने की बात हुई थी पर सभी ने हाथ खड़े कर दिए। जो व्यक्ति मिनिएचर करते है। वो अकादमिक स्तर पर खरे नही उतरते है।
सबसे बड़ी बात तो ये है कि ज्यादा तर तथाकथित कंटेम्परेरी, आधुनिक कलाकार,कला मर्मज्ञ, मिनियेचर आर्ट को क्राफ्ट मानते है कला नही । ये कुछ मुख्य कारण है की मिनियेचर कला की हमारी शानदार गौरव शाली परम्परा मृत प्रायः है।