संस्कृति के महान स्तम्भ-गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर
जन्म दिवस विशेष
-राहुल सेनप्रेम में प्राण में गान में गंध में
आलोक और पुलक में हो रह प्लावित
निखिल द्युलोक और भूलोक में
तुम्हारा अमल निर्मल अमृत बरस रहा झर-झर।
दिक-दिगंत के टूट गए आज सारे बंध
मूर्तिमान हो उठा, जाग्रत आनंद
जीवन हुआ प्राणवान, अमृत में छक कर।
कल्याण रस सरवर में चेतना मेरी
शतदल सम खिल उठी परम हर्ष से
सारा मधु अपना उसके चरण?ं में रख कर।
नीरव आलोक में, जागा हृदयांगन में,
उदारमना उषा की उदित अरुण कांति में,
अलस पड़े कोंपल का आँचल ढला, सरक कर।
इन पंक्तियों के रचियता गुरुदेव के बारे में जब हम बचपन में पढ़ते और सुनते थे कि वो बहुत बड़े कवि हैं। राष्ट्रगान जन गण मन की रचना के लिए जाने जाते हैं। बड़े होने के साथ पता चला कि, ये वो शख्सियत है जिसमें ना जाने कितनी प्रतिभाएं सम्माहित हैं। कवि होने के साथ-साथ वो कहानीकार, गीतकार, संगीतकार, नाटककार, निबंधकार और चित्रकार भी थे। अकेले राष्ट्रगान की ही बात करें तो भारत के साथ बांग्ला देश के राष्ट्रगान के रचियता भी कविगुरु ही हैं। उनके काव्य ग्रंथ 'गीतांजलिÓ पर मिले नोबेल पुरस्कार के बारे में तो सारा जग जानता ही है। केवल कवि ही क्यों भारतीय संस्कृति की अनेकों धाराओं के प्रवाह ठाकुर रबीन्द्र नाथ टैगोर से जुड़े हुए हैं।
गुरूदेव रविंद्र नाथ टैगोर का जन्मदिन 7 मई 1861 को कोलकाता के जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी में हुआ था। उनके पिता का नाम देवेन्द्रनाथ टैगोर और माता का नाम शारदा देवी था। रबीन्द्र्र नाथ टैगोर बैरिस्टर बनना चाहते थे इसलिए वो लन्दन विश्वविद्यालय में कानून पढऩे गये थे लेकिन 1880 में बिना डिग्री हासिल किए ही स्वदेश वापस आ गए थे। गुरुदेव की पत्नी का नाम मृणालिनी देवी था। गुरुदेव ने अपनी पहली कविता मात्र आठ साल की उम्र में लिखी थी। 1877 में केवल सोलह साल की उम्र में उनकी लघुकथा प्रकाशित हुई थी। गुरुदेव ने करीब 2,230 गीतों की रचना की। वे एकमात्र ऐसे कवि हैं जिनकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं। पहली भारत का राष्ट्र-गान जन गण मन तथा दूसरी बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान आमार सोनार। उनकी काव्यरचना गीतांजलि के लिये उन्हे सन् 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला था। गुरुदेव एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। गुरुदेव ने जीवन के अंतिम दिनों में चित्र बनाना शुरू किया था। संस्कृति और कला के सतत् ज्ञान की शिक्षा देने के लिए गुरुदेव द्वारा स्थापित शान्तिनिकेतन आज विश्व भर में प्रसिद्ध है। गुरुदेव द्वारा रचित भारत के राष्ट्रगान की कालजयी रचना में कुल पांच पद हैं, जिसका पहला पद राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार किया गया। इसे सबसे पहले कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया था। इसकी रचना संस्कृत और बांग्ला मिश्रित भाषा में की गई है।
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