शनिवार, 26 मई 2018

प्रकृति की गोद में सजती हैं जिनकी कृतियां



नवल सिंह चौहान
प्रकृति की गोद में सजती हैं जिनकी कृतियां
दुनिया में कुछ हटकर, कुछ रुचिकर और मन को भाने वाले कार्य करने के लिए बहुत कुछ है। कुछ लोग परम्परा को दोहराते हैं तो कुछ लीक से अलग हटकर कुछ नया कर दिखाते हैं। राजस्थान के आर्टिस्ट नवल सिंह चौहान का नाम भी कुछ नया स्थापित करने वालों में शामिल होने जा रहा है।
भागती-दौड़ती सामाजिक व्यवस्था में जहां एक ओर कलाकार बड़ी और महंगी गैलेरीज में अपनी कृतियों का शो करने के लिए उत्सुक रहते हैं, वही नवल सिंह अपनी कृतियों के प्रदर्शन के लिए प्रकृति की गोद चुनतेे हैं।
प्रसिद्ध होने ओर बिकने की चाह से खुद को अलग करके नवल सिंह जंगल, नदी और शिलाओं को कला दीर्घा बनाने का साहसिक कदम उठाते हैं। जाहिर सी बात है कि उन्हें इस प्रदर्शन से आर्थिक लाभ की प्राप्ति नहीं होती होगी, लेकिन उनके भीतर का ईमानदार कलाकार और अधिक धनी होता चला जाता है।

नवल की अनोखी प्रदर्शनी पहली बार 14 जून 2015 को राजसमंद जिले के भीम क्षेत्र में जस्साखेड़ा गांव में एक स्कृल के बगीचे में लगी जहां बच्चों के साथ अध्यापकों और गिने-चुने ग्रामीणों ने चित्रों का आनन्द लिया। यह बताना नहीं होगा कि इनमें अधिकांश दर्शक वास्तविक थे, कॉन्टेक्ट्स बनाए रखने के लिए रस्मी मौजूदगी दिखने वाले नहीं।
दूसरी प्रदर्शनी उन्होंने 14 जून 2016 के दिन राजस्थान के पाली स्थित कोट किराना पंचायत के अपने गांव भेऊ कासियां में खेजड़ी के पेड़ों पर लगाई। ग्रामीणों के लिए यह अनुभव सुखद और नित्य के कार्यों में रंग भरने वाला साबित हुआ। गांव के सभी लोग नवल की कृतियों के दर्शक बने।
अपनी तीसरी प्रदर्शनी के लिए नवल ने पानी को चुना और एक नदी के बहाव में अपनी पेंटिंग्स को बहने के लिए मुक्त छोड़ दिया। जाहिर सी बात है नवल को अधिकांश कृतियां वापस तो नहीं मिली होंगी, लेकिन कुछ जल के बहाव में एकाकार हुई; तो कुछ बहाव के साथ कला पारखियों के हाथों में लग सुरक्षित हो गईं। इस प्रदर्शनी में नवल के जज्बे का मान एक समाजसेवी परमेश्वर सीरमा ने रखा और नवल की एक पेंटिंग खरीदी। नवल की यह प्रदर्शनी 14 जून 2017 के दिन 24 मील, नेशनल हाईवे नं.-8 पर राजस्थान के जस्साखेड़ा के पास बने एनीकेट में लगी थी।
नवल ने चौथी प्रदर्शनी अभी हाल ही ब्यावर के पास सेन्दड़ा की शिलाओं पर लगाई। राजस्थान में व्यावर से पाली जाते हुए सेन्दड़ा नामक स्थान पर यत्र-तत्र बिखरी छोटी-बड़ी चट्टानें सभी का ध्यान अपनी ओर खींचती हैं, लेकिन बहुत कम लोग होंगे जिन्होंने रुक कर इन्हेें करीब से देखा हो। नवल सिंह ने इस बार इन शिलाओं को अपने चित्रों के प्रदर्शन का माध्यम बनाकर सबको चौंका दिया। नवल के इस प्रदर्शन का एक खास उद्देश्य और भी था, इस प्राकृतिक रॉक गार्डन को समाज व प्रशासन द्वारा संरक्षित किये जाने की अपील करना। बीस मई को आयोजित इस कला प्रदर्शनी में जयपुर, अजमेर, राजसमंद, पाली, भीलवाड़ा जिलों के निमंत्रित कला व प्रकृतिप्रेमियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवा नवल के प्रयत्न को सराहा।
प्राकृतिक रॉक गार्डन में कला प्रदर्शनी का उद्घाटन प्रकृति व कलाप्रेमियों ने विभिन्न आकार की चट्टानों को साफे बांधकर किया गया। उपस्थित लोगों का उत्साह इतना था कि कड़ी धूप की परवाह किए बिना वे चित्रों को लेकर ऊँची चट्टानों पर पहुंचे। वहाँ विभिन्न आकार वाली चट्टानों को अपने साथ लाए साफे बांधे और चट्टानों व पेंटिंग्स के साथ फोटो भी खिंचवाए और सोशल मीडिया पर शेयर कर सराहना पाई। इस प्रदर्शनी के दौरान ड्रोन कैमरे से विशाल चट्टानों पर प्रदर्शित चित्रों के विहुगम दृश्यों को भी सहेजा गया।

मूमल को प्रदर्शनी बारे में जानकारी देते हुए नवल सिंह ने कहा कि, 2016 में एक अखबार में छपे फोटो से जाना कि सेन्दड़ा में प्रकृति के द्वारा निर्मित विभिन्न सौन्दर्यमयी आकार लिए चट्टानें हैं। तब सोचा कि यहाँ कला प्रदर्शनी लगाई जानी चाहिए... क्योंकि मेरी कला प्रदर्शनयां प्रकृति के बीच.. प्रकृति के साथ प्रतिवर्ष आयोजित की जाती रही हैं... ताकि हम सभी प्रकृति से प्रेम करना सीखें... इसी बहाने कला से भी हम रूबरू हो सके...।
धन और यश के पीछे भागती भीड़ के बीच खड़े प्रकृति और कला के स्वरूप को धारण किए इस निश्छल कलाकार को मूमल का निष्पक्ष सलाम।
                                                                                                                      -राहुल सेन

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