रविवार, 30 दिसंबर 2012

Rajasthani कलाकारों को गुस्सा क्यों नहीं आता?

 हो सकता है यह सवाल किसी नॉनसेंस से भी बदतर हो लेकिन, लोग सवाल उठा रहे हैं कि
'राजस्थान के  कलाकारों को गुस्सा क्यों नहीं आता?'
ना समझ हैं वो लोग, जो यह सवाल उठा रहे हैं। उन्हें समझना चाहिए कि कलाकार एक संजीदा जीव होता है। बात-बात पर गुस्सा दिखाने पर इतनी मुश्किल से जुटाई गम्भीरता और संवेदनशीलता पर बुरा असर पड़ता है। अब दिल्ली में किसी बस में कुछ होता है तो जयपुर या उदयपुर के कलाकार क्या कर सकते हैं? ...और केवल गुस्सा करने से क्या हो जाएगा? अब कलाकार का अपराध और वह भी गैंगरेप जैसे अपराध से क्या लेना-देना? हमारी एक अलग दुनियां है, सुंदर रंगों और भावों वाली संवेदनशील और कोमल दुनियां। यह दुनियां समाज का हिस्सा थोड़े  ही ना है। वैसे तो हम समाज की हर बात , हर विषय को अपनी अभिव्यक्ति प्रदान करते ही हैं। हमारी कृतियों को ऐसे ही समाज का दर्पण तो नहीं कहा जाता ना?
और यह आप कैसे कह सकते हैं कि हम कलाकारों को गुस्सा नहीं आता। अरे बहुत आता है। जब कला शिक्षकों को नौकरी नहीं मिलती तो हमें खूब गुस्सा आता है, जब कला मेले में योग्यजन को पुरस्कार नहीं मिलता तो बहुत गुस्सा आता है। जब हमारी अश£ील पेंटिंग्स को प्रदर्शनी से हटा दिया जाता है तो हमें गुस्सा आता है। जब हमारे कद के अनुसार पद नहीं मिलता तो हम गुस्सा जाहिर करते हैं। अब हर बात पर कहीं भी कैंडल लेकर अपनी बात नहीं कही जा सकती। हम अपनी बात कलात्मक तरीके से कहते हैं, इसके लिए लिए आइडिया आने का इंतजार करना होता है। समय आने पर, वक्त देख कर हम अपनी अभिव्यक्ति व्यक्त करते हैं। अब यह कोई ऐसी बात भी नहीं लग रही कि अपने पे्रस वाले मित्रों को बुलाकर बयान ही जारी कर दें।
नारी तो वैसे भी हमारा सबसे हिट विषय है, नारी के सम्मान और अस्मिता पर भी हमारी कूंची चलती ही है। ऐसे में हमें पॉजिटिव सोच रखते हुए केवल उसके रूप और सौंदर्य को कैनवास पर उकेरना चाहिए। उसकी प्रगति और उन्नती को दर्शाना चाहिए। गैंगरेप के बाद उसकी अंधेरी जिन्दगी दर्शाना नेगिटिविटी है। आप यह क्यों कहते हैं कि हम समाज का हिस्सा नहीं हैं, हम कलाकार भी अपने ब्रश और कैनवास  एक तरफ रखकर साल में दो बार  बच्चियों की पूजा करते हैं, उनके पैर धोकर उनका आर्शीवाद लेते हैं। साल में दो बार बहनों को उनकी रक्षा का वचन देते हैं। अब किसी रास्ते या बस में दरिन्दों से जूझती हर लड़की हमारी बहन या बच्ची तो नहीं है ना? हम क्यों उस पर अपना वक्त और रंग बर्बांद करें?
हां इस विषय पर कोई ढग की पेंटिंग्स वर्कशॉप आयोजित की जाए , उचित मानदेय दिया जाए... फिर देखिए हमारी अभिव्यक्ति कितनी जल्दी व्यक्त होती है। हमारे मन में भी बहुत दर्द है, सच मानिए, ऐसी घटनाओं के बाद हमारा दिल रोता है, लेकिन इस रुलाई को फूटने में कुछ वक्त लगता है, सही वक्त और मौका तो आने दीजिए। हमारी भावनाओं और संवेदनाओं पर सवाल मत उठाइए, देखिए हम तो इतने संवेदनशील है कि बादल धिरने पर भी छाते रंग देते हैं। टोपियां रंग कर अपनी बात कहते हैं। इस जघन्य घटना पर भी हम चुप नहीं रहेंगे, अपनी बात जरूर कहेंगे पर मौका तो आने दो...।
मानते हैं कि पूरा देश गुस्से में है, देश का गुस्सा देखकर देश के राजनेता सन्न हैं। अब हम भी राजनीति में किसी से कम तो नही हैं ना? इसलिए अभी तेल और तेल की धार देख रहें हैं। एकाएक गुस्सा कैसे जाहिर कर दें?
एक अनुरोध 
कला जगत को कटघरे में लाकर सिर्फ हंगामा खड़ा करना 'मूमल' का मकसद नहीं।
हम वास्तव में बहुत शर्मिन्दा हैं कि हम इस काल में राजस्थानी कला जगत के कल्चर का वह हिस्सा हैं  जो ऐसे मौके पर भी आंखे मुंदे रहा। एक लडकी की मौत ने जहां सारे देश को हिला डाला, हमें नहीं हिला सका।
अब शेष देश की तरह कैंडल जलाने, पेन्टिंग बनाने, पोस्टर उठाने या नारे लगाने का वख्त गुजर चुका है फिर भी स्त्री के सम्मान प्रति इन दिनों कोई ईमानदार अहसास आपकी आंखो में नमी लेकर उबरा हो तो चुपके से एक दीप 'दामिनी' के नाम जला कर उसके लिए इंसाफ की लो जरूर जला देना।

गुरुवार, 13 दिसंबर 2012

Arist Albert Ashok की आधा दर्जन पेंटिंग्स प्रदर्शनी से हटाई

मूमल नेटवर्क, जयपुर। नारी देह के गठन को गहनता से उकेरने वाले कोलकाता के वरिष्ठ कलाकार अल्बर्ट अशोक की आधा दर्जन पेंटिंग्स जयपुर में आयोजित एक प्रदर्शनी से हटा दी गई। यह एक ग्रुप शो था, जो गुलाबी नगर जयपुर के जवाहर कला केंद्र की सुरेख कला दीर्घा में 7 दिसम्बर को शुरू हुआ था। अल्बर्ट अशोक ने बताया कि 7 दिसम्बर को प्रदर्शनी के उद्धाटन के बाद चार दिन तक उनकी पेंटिंग्स अनेक कला प्रेमियों ने देखी और सभी ने उनकी सोच और कुशलता की सराहना की। अचानक 11 दिसम्बर को इन्हें हटा दिया गया।
चक्कर खा गए कलाकार
जब गैलेरी खुली तो उनकी 6 पेंटिँग्स वहां नहीं मिली। जेकेके प्रशासन से बात की गई तो उन्हें केवल यह बताया गया कि वह पेंटिंग्स अश£ील हैं इसलिए उन्हें प्रदर्शित नहीं किया जा सकता। प्रदर्शनी के अंतिम दिन तक वे अश£ीलता के अर्थ और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मायने जानने के लिए अधिकारियों के चक्कर लगाते रहे, लेकिन उन्हें कोई अधिकारी अपनी सीट पर नहीं मिला। अधिनस्थ कर्मचारियों ने न तो किसी अधिकारी से उनकी बात कराई और न ही अधिकारियों के फोन नम्बर भी उन्हें उपलब्ध नहीं कराए। उन्हें केवल यह बताया गया कि जब  प्रदर्शनी का समय पूरा हो जाए तो आप अपनी पेंर्टिस स्टोर से प्राप्त कर लें।
कलाकारों का विरोध
जयपुर के कुछ कलाकारों ने जेकेके प्रशासन की इस कार्रवाई का विरोध किया है। मूर्तिकार हंसराज कुमावत, फोटोग्राफर सुरेश मीणा व कलाक्षेत्र से जुड़े नरेश नाथ और बहादुर हेमराणा इनमें शामिल हैं। इनका कहना है कि यह कार्रवाई एक कलाकार की अभिव्यक्ति पर रोक लगाने जैसी कार्रवाई है। उन्होंने बताया कि इससे पहले वरिष्ठ कलाकार जतिन दास की ऐसी ही अभिव्यक्ति वाली पेंटिंग्स को यहां लम्बे समय तक प्रदर्शित किया गया था और उन्हें उन्हें राज्य सरकार ने स्टेट गेस्ट का सम्मान दिया गया था। उनके द्वारा प्रदर्शित पेंर्टिग्स की जानकारी मिलने पर स्टेट गेस्ट होने के बावजूद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रदर्शनी का उद्धाटन करना टाल दिया था। बाद में कला और संस्कृति मंंत्री वीना काक ने यह रस्म पूरी की थी। इसके अलावा भी कलाकारों ने अनेक ऐसे अवसरों का उल्लेख किया जब अश£ील की श्रेणी में चर्चित हुई पेंटिंग्स का प्रदर्शन होता रहा है।
भाव केंद्र में प्रेम  व लगाव
 'परिचय' नाम से हुई इस प्रदर्शनी में कोलकाता के अल्बर्ट अशोक सहित झारखंड के अनूप कुमार सिन्हा, विप्लव रॉय, कार्तिक कुमार प्रसाद, शुभेंदु विश्वास और मुक्ता गुप्ता, कोच्चि के सीए वामन शेनॉय वी व  नई दिल्ली के स्वतंत्र की कलाकृतियां प्रदर्शित की गई। सात चित्रकारों और एक मूर्तिकार की कृतियां यहां दर्शकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी रही।  इस प्रदर्शनी में प्रेम और लगाव के भाव केंद्र में थे, वहीं बनारस के घाटों का सौंदर्य उड़ीसा के तटीय इलाकों की हलचल को भी कलाकारों ने अपने सृजन का माध्यम बनाया। झारखंड के वरिष्ठ चित्रकार विप्लव रॉय की कृति में उड़ीसा के तटीय इलाकों की हलचल का चित्रांकन और बनारस के घाटों का सौंदर्य देखने योग्य है। झारखंड की लोक संस्कृति के लैंडस्केप भी विप्लव रॉय के बेहतरीन सृजन में से एक था। विंटेज कार विशेषज्ञ नील बहादुर सिंह कार्की ने इसका उद्घाटन किया। प्रदर्शनी 13 दिसंबर तक चली।
(खुद कलाकार ने इस संबंध में कला जगत के लोगों को एक अपील की है जो नीचे दी जा रही है.)

Dear sir,
This is to inform you that the authority of Jawaharlal Kala Kendra, Jaipur, Rajasthan has removed my six paintings from my ongoing group exhibition on the third day, 11th Dec 2012. He has not given me any written letter nor asked me to remove. He verbally said that some pressure from upper official level he is receiving and his boss an I A S officer had ordered him to remove. Please I request you to ask him what actually happened that he removed my six paintings from the ongoing show. I cant have any document once our exhibition date expires, that is on 13 th dec. (the exhibition started on 7th Dec and will close on 13th dec)

I protest this incident. I protest against the action that the govt gallery has done to me. I feel my rights of expression has been violated.I feel unsafe here.
 
The local Paper and Tv media had broadcasted and published about our exhibition but they don’t know about the incident that the authority has removed my all paintings violating my human rights—freedom of expression, I want to inform all of you about the incident.

Please , take action. Thank you

Albert Ashok
H 63, B P Township, Kolkata- 94
Mobile – (91) 98314 45765

आपके लिए
हालांकि मूमल इन पेंटिंग्स के अश£ील होने या नहीं होने के विवाद में नहीं है, इसलिए उन्हें इस समाचार के साथ प्रकाशित नहीं किया जा रहा, लेकिन जो सुधि पाठक इन्हें देख कर अपनी राय बनना चाहें उनके चाहने पर यह उपलब्ध कराई जा सकती है। इसके लिए लिखें Pls. send me Albert Ashok's pentings और कृपया यहां मेल करें। moomalnews@gmail.com

सोमवार, 26 नवंबर 2012

Indian Monalisa अर्थात किशनगढ़ की 'बणी-ठणी'

इंडियन 'मोनालिसा' कहलाने वाली राजस्थान कि किशनगढ़ रियासत की लोकप्रिय मिनियेचर पेंटिंग 'बणी-ठणी' के बारे में विस्तृत विवरण और अध्ययन यहां प्रस्तुत है। इसके लिए सीधे मूमल दर्शना पर आपका स्वागत है। विषय विशेष के सम्बन्ध में अधिक जानने के लिए शीर्षक को क्लिक करें। 
. एक था राजा... और एक 'बणी-ठणी'

. ऐसे बनी 'बणी-ठणी'

. आखिर किसने बनाई 'बणी-ठणी'

. 'बणी-ठणी' की देहभाषा

. 'बणी-ठणी' का एक समग्र दर्शन

. चित्रगीतिका में 'बणी-ठणी'

शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

Bani Thani बणी-ठणी: दर्शन व विवेचन

राजस्थान की 'मोनालिसा' कहाने वाली किशनगढ़ की कृति 'बणी-ठणी' के बारे में विस्तार जानिए...
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बुधवार, 7 नवंबर 2012

अब छोड़ो भी यह केंकड़ापन...

.इस बार सामने आई ज्यादातर खबरों से बात प्रमुखता से उभर कर सामने आई कि कला जगत के ज्यादातर प्राणी केंकड़ों सा व्यवहार कर रहे हैं। बात चाहे कलाकारों की करें या कलाकारों के काम को प्रदर्शित करने वाले व्यापारियों की, नवांकुरों को दिशा देने वाले वटवृक्षों की करें या कला शिक्षकों की सभी क्षेत्रों में एक-दूसरे की टांग खींच कर उसे नीचे लाने पर ज्यादा जोर लगाया जा रहा है न कि स्वयं आगे बढऩे पर।

एक मामले में कलाकारों को मारीशस में प्रदर्शन के नाम पर जो खेल खेला गया वह फेयर नहीं था। यहां भी दो लोगों ने कलाकारों के साथ जो किया वह किसी ठगी से कम नहीं रहा। यहां केकड़ों वाली बात तब सामने आई जब दोनों ने एक-दूसरे की टांग खींचते हुए अपनी कारगुजारियां उजागर की। एक अन्य खबर में यह है कि जयपुर में गीत-संगीत के क्षेत्र में सक्रीय एक पुराने संस्थान ने एक अन्य स्कूल के साथ मिलकर पेंटिंग ओर मूर्तिकला के क्षेत्र में कदम बढ़ाया, लेकिन यहां भी फैकल्टीज ने एक-दूसरे की टांग खींची और संस्थान के शुरूआती कदम ही लडख़ड़ा गए। अब शिक्षक अपने-अपने विद्यार्थियों को लेकर अलग-अलग हो गए और हालात यह हो गए कि दही जमा भी नहीं रायता पहले ही फैलने लगा। ऐसी ही केकड़ेपन कि मिसाल जेकेके में पिछलें दिनों हुए दो व्यापारिक प्रदर्शनियों में सामने आई नतीजा यह रहा कि एक में मात्र 20 से 22 प्रतिशत सेल में व्यापार सिमट गया और दूसरी में उतना भी नहीं रहा। विवाद खड़े हो रहे हैं वह अलग।

यह तो अभी ताजा उदाहरण हैं, अगर पुराने और गड़े मुर्दे उखाड़े जाएं तो शायद यहां उल्लेख के लिए स्थान काफी कम लगने लगे। पुराने केंकड़ों की कारगुजारियां आज भी पहले की तरह जारी हैं, इसके लिए ज्यादा कुछ लिखने की आवश्यकता नहीं है, बहुत कुछ आपके जहन में खुद ही आ रहा होगा। एक से बढ़कर एक केंकड़े आपकी नजरों के सामने घूम रहे होंगे।

कुल मिलाकर हमारे कला जगत को तो ऐसी केंकड़ा प्रवृति से बचना चाहिए। देखिए, जब बड़े-बड़े राजनीतिक दलों ने केंकड़ापन छोड़कर 'नूरा-कुश्तीÓ की शैली अपना ली है। करामाती केजरीवाल की बात सही माने तो इसी शैली से वे देश पर बारी-बारी से राज कर रहे हैं। ऐसे में क्या हम एक-दूसरे की टांग न खींच कर अपना छोटा से कला संसार को नहीं चलने दे सकते? 
-संपादक

मंगलवार, 6 नवंबर 2012

उदयपुर के 6 चितेरे जहांगीर आर्ट गैलेरी में

मूमल नेटवर्क। उदयपुर के चितेरों की एक कला प्रदर्शनी मुंबई की जहांगीर आर्ट गैलेरी में इन दिनों कला प्रेमियों को लुभा रही है।
'लुकिंग इज नॉट सीइंग' नामक इस प्रदर्शनी में उदयपुर के 6 कलाकारों ने अपनी पेंटिंग्स और स्कल्पचर के जरिए अपनी सोच जाहिर की है। इनमें राकेश कुमार सिंह, सचिन दाधीच, हार्दिक उपाध्याय, जसवंत सिंह राजपुरोहित, भारत लाल पाटीदार व ललित गर्ग की कृतियां शामिल हैं। 12 नवम्बर को शुरू हुई यह प्रदर्शनी 18 नवम्बर तक चलेगी।
यह प्रदर्शनी उदयपुर की संस्था 'टखमण-28' द्वारा युवा कलाकारों के प्रोत्साहन के लिए आयोजित कराई गई है। उल्लेखनीय है कि बिना किसी सरकारी सहायता के वर्ष में दो-तीन बार युवा कलाकारों को प्रदर्शनी के लिए ऐसे महत्वपूर्ण प्लेटफार्म उपलब्ध कराती है।
उदयपुर से मोहन लाल जाट की खबर

शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

शिल्प और कला जगत की गतिविधियों से लबरेज इस अंक में जानिए...
केंकड़ों की कलाकारी.. पेज-1
भारतीय कला बाजार के सुनहरे दिन..  पेज-2
प्रदेश में सक्रीय कला प्रदर्शनों के दलाल.. पेज-3
जेकेके में सम्पन्न दो व्यावसायिक शो.. पेज-5
जेब की साइज में कलानेरी की कोशिश.. पेज-5
बंगभूमि की विभिन्न चित्रांकन शैलियां.. पेज-9
दर्शक संस्था की दर्शना में दस्तक.. बैक कवर

...और भी बहुत कुछ जिसकी मूमल से उम्मीद की जा सकती है।
अगर आप मूमल पत्रिका के नियमित सदस्य हैं तो यह इसकी प्रति (हार्ड कॉपी) आपके पते पर डाक से भी भेजी गई है।
सोलह पेज का पूरा प्रकाशन पाने के लिए नीचे टिप्पणी के स्थान पर अपना ई-मेल हमें भेजें। ताकि हम पेपर की पीडीएफ कॉपी भेज सकें। आप अपना ई-मेल हमारे ई-मेल (moomalnews@gmail.com) पर भी छोड़ सकते हैं।
आपका स्वागत हैं।
आपकी मूमल

गुरुवार, 1 नवंबर 2012

प्रदेश में सक्रीय कला प्रदर्शिनियों के मध्यस्त

मारीशस में प्रदर्शन के नाम पर लगाया कई कलाकारों को चूना
किसी ने पांच हजार लिए तो किसी ने ढाई हजार रु. वसूले
मूमल नेटवर्क, जयपुर। पिछले दिनों मारीशस में लगे एक ट्रेड फेयर में भारत से ले जाई गई कलाकृतियों के प्रदर्शन को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। प्रभावित कलाकारों को कहना है कि पैसे लेकर भी प्रदर्शनी में उनका काम प्रदर्शित नहीं किया गया जबकि प्रदर्शन का बीड़ा उठाने वाले कहते है कि हमने इस काम में काफी घाटा उठाया।
मूमल को दिल्ली सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इन दिनों राजधानी में कला प्रदर्शिनियों के दलालों की सक्रियता यकायक बढ़ गई है। खासकर विदेशों मे शो कराने के नाम पर कलाकारों से काफी पैसा वसूल किया जा रहा है।  पिछले दिनों दिल्ली में सक्रीय दो मध्यस्थों ने मारिशस में आयोजित हुए एक ट्रेड फेयर में प्रदर्शित करने के लिए राजस्थान सहित देशभर के कलाकारों से काफी धन बटोरा। इनमें से एक ने 15 और एक अन्य ने 25 कलाकारों की कृतियां प्रदर्शन के लिए बुक की।
यूं हुआ घोटाला
मारीशस के एक ट्रेड फेयर में दिल्ली के दो मध्यस्थों, सामान्य बोलचाल की भाषा में कहे तो  दलालों ने दस बाई दस की दो अलग-अलग स्टाल्स बुक कराई। उसके बाद उन्होंने कलाकारों से उनकी कलाकृतियां प्रदर्शित करने के लिए 5 हजार रुपए प्रति पेंर्टिग्स की दर से पेसा वसूला किसी भी कलाकार ने दो से अधिक काम नहीं दिए। पांच हजार रुपए वसूलने वाले दलाल को करीब 15 कलाकारों के 20 काम मिले और फिर काम ढीला पड़ गया। उधर दूसरे दलाल ने 5 हजार रुपए में दो पेंटिंग्स प्रदर्शित करने के नाम पर 25 कलाकारों के 50 काम ले लिए। निर्धारित तिथि पर दोनों ट्रेड फेयर में पहुंचे, कुछ पेंटिंग्स भी साथ ले गए। जब बुक की हुई स्टाल का पैसा चुकाने का समय आया तो कोई भी पूरी स्टॉल का किराया देने की स्थिति में नहीं था। एक ने अपने साथ चावल के दाने पर नाम लिखनेे वाले एक अन्य कलाकार को पार्टनर बनाया तो दूसरे ने किन्ही श्रीमती नियाजी के नाम से बुक स्टाल में आधी जगह पाने के लिए मोटी रकम चुकाई।
अब दोनों के पास ही अलग-अलग जगह आधी-आधी स्टॉल थी। ऐसे में दोनों ही किसी का कोई काम प्रदर्शित करने की स्थिति में नहीं थे, सेल की तो बात ही दूर रही। एक ने  अपनी थोड़ी सी जगह में आगंतुकों के प्रोटेट बनाने शुरू किए और पैसा बनाया। जबकि दूसरा यह भी नहीं कर पाया क्यों कि वह कलाकार भी नहीं था।
यूं खुला मामला
ट्रेड फेयर के बाद जब कलाकारों को यह बताया गया कि उनकी कोई पेंटिंग नहीं बिकी, लेकिन काम लोगों ने पसंद किया है। भविष्य में उम्मीद है।
स्वभाव से सीधे कलाकारों ने उनकी बात सही मान कर संतोष कर लिया। उधर एक दूसरे के धंधे में टांग फंसाने से नाराज दलालों ने बदला लेने और आगामी आयोजनों से एक दूसरे का पत्ता काटने के विचार से कलाकारों के सम्मुख एक दूसरे की पोल खोलनी शुरू की। बस यहीं से कलाकार जागृत हुए और मूमल को दोनों ओर से जानकारियां मिलने लगी।

दलालों की सलाह पर प्रदर्शनी के प्रमाण में कलाकारों ने प्रदर्शनी में लगे उनके काम के फोटोग्राफ चाहे। ट्रेड फेयर में बुक स्टॉल के लिए किए गए भुगतान की रसीद दिखाने को कहा। अब दलाल बगले झांकने लगे। एक दूसरे के लिए खोदी खाई में गिरे दलालों में से एक ने बताया कि उसने तो अपनी स्टॉल के पैसे चुकाए और उसके पास रसीद भी है। उसने प्रतिदिन कुछ-कुछ कलाकारों का काम प्रदर्शित किया और फोटो भी खींचे। उसके बाद कैमरा खराब जाने के कारण वह फोटोग्राफ किसी को दिखा नहीं पाया। उसने दूसरे दलाल के लिए बताया कि उसे तो आयोजकों ने जैसे-तैसे एक  मिसेज नियाजी के स्टॉल में आधी जगह दिलाई। उसने वहां एक दिन नियाजी मैडम के आने से पहले पूरे स्टॉल में अपने साथ लाई कुछ पेंटिंग्स को बारी-बारी से लगा कर फोटोग्राफी शुरू की, लेकिन इस बीच मैडम नियाजी आ गई तो झगड़ा भी हुआ। बाद में तो उसके पास पेंटिंग्स रखने का ठिकाना भी नहीं था और उसके लाई पेंटिंग्स मेरे स्टॉल में टेबिल के नीचे रख्री जाती थी।

इसकी पुष्टि किए जाने पर दूसरे दलाल ने सभी बातें बेबुनियाद और गलत बताते हुए पहले के लिए कहा कि उसने अपने स्टॉल में चावल पर नाम लिखने वाले को आधी जगह दे दी। आधी जगह में कितनी पेंङ्क्षटग्स लगने की गुजाइश थी? यह तो कोई भी जान सकता है। अब ऐसे में कैमरा खराब नहीं होता तो क्या होता?

कुल मिलाकर कलाकारों से उनकी कृतियों के प्रदर्शन और सेल के नाम पर पैसे लेने वाले दोनों दलालों ने एक दूसरे की पोल जमकर खोली। दोनों ने बताया कि उनके पास प्रदर्शित की जाने वाली कृतियों के लिए तैयार किया हुआ कैटेलॉग है। स्टॉल के भुगतान किए धन की रसीद और प्रदर्शनी के कुछ फोटोग्राफ हैं। मूमल से हुई बातचीत में दोनों ने ही इनकी प्रतिलिपियां ई-मेल पर भेजने की बात कही, लेकिन बार-बार याद दिलाए जाने के बावजूद समाचार लिखें जाने तक दोनों की ओर से कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं कराए गए।
अन्तत:
विदेशों में प्रदर्शन को लेकर उत्सुक और महत्वाकांक्षी कलाकार ही इस ठगी के शिकार हुए हैं। गांठ से रकम गंवाने के बाद भी ना तो उनकी कोई कृति बिकी और न ही प्रदर्शित ही हो पाई। और तो और अपनी प्रदर्शन उपलिब्धयों में जोडऩे के लिए एक कैटलाग या फोटोग्राफी तक नहीं जुट पाई। इन ठगे-ठगे से कलाकारों में दिल्ल्ी के वरिष्ठ कलाकारों के साथ यू.पी. और राजस्थान के कलाकार भी शामिल हैं।

रविवार, 14 अक्टूबर 2012

आखिरकार साखलकर को प्रतिष्ठित 'प्रज्ञा' पुरस्कार की घोषणा

मूमल का फरवरी दिव्तीय अंक
जयपुर, मूमल नेटवर्क। आखिरकार राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अजमेर के वयोवृद्घ (94 वर्षीय) चित्रकार, लेखक व साहित्यकार रत्नाकर विनायक साखलकर को प्रतिष्ठित लेखक के रूप में 'प्रज्ञा' पुरस्कार देने की घोषणा की है। यह सम्मान हिन्दी ग्रंथ अकादमी की ओर से दिया जाता है। इन दिनों अत्यधिक आयु, शारीरिक दुर्बलता और कम सुनने के कारण साखलकर दादा शैया पर है। 
आज (14 अक्टूबर 2012) को सुबह वे सर्दी व कफ से परेशान थे, डाक्टर ने उन्हें दवा का इन्जेक्शन दिया। उसके बाद से वे अधोर अचेत से सो रहे हैं। उन्हें इस बात का कोई ज्ञान नहीं है कि उन्हें सम्मानित किया जा रहा है। 94 वर्षीय साखलकर को शनिवार प्रात: उनके आदर्शनगर स्थिति निवास स्थान पर उनकी पुत्री श्रुति व पुत्र सचिन साखलकर के माध्यम से इस पुरस्कार के बारे में बताने का प्रयास किया गया। मूमल को मिली जानकारी के अनुसार पुरस्कार की घोषणा के बाद उन्हें सूचना देने गए जिला प्रशासन के अधिकारियों ने उनकी स्थिति की जानकारी अकादमी और अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दी है। इसके बाद आनन-फानन में उन्हें कल 15 अक्टूबर को उनकी शैया तक जाकर सम्मानित करने का कार्यक्रम निधारित किया गया।
सर्वाधिक लोकप्रिय पुस्तक
मुख्यमंत्री ने हिन्दी ग्रंथ अकादमी की ओर से प्रकाशित साखलकर की लोकप्रिय पुस्तक 'आधुनिक चित्रकला का इतिहास' के लिए अकादमी की ओर से यह पुरस्कार देने की घोषणा की है। पुरस्कार के रूप में साखलकर को 51 हजार रुपये की नकद राशि तथा स्मृति चिन्ह प्रदान किया जायेगा।
मुख्यमंत्री निवास से वयोवृद्घ लेखक को पुरस्कृत करने की जानकारी जिला कलक्टर वैभव गालरिया को 13 अक्टूबर 2012 को दी गई। इसके बाद अतिरिक्त कलक्टर शहर जे.के.पुरोहित व सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के सहायक निदेशक प्यारे मोहन त्रिपाठी ने साखलकर के आदर्शनगर स्थित निवास स्थान पर पहुंच कर परिवारजनों को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा उन्हें सम्मानित करने की घोषणा के बारे में जानकारी दी।
सर्वाधिक प्रतिष्ठित पुरस्कार
राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी के अध्यक्ष आर.डी.सैनी ने बताया कि 'प्रज्ञा' पुरस्कार अकादमी का सर्वाधिक प्रतिष्ठित पुरस्कार है, जो प्रतिष्ठित लेखक को उनकी पुस्तिक के 15 संस्करण प्रकाशित हो जाने पर प्रदान किया जाता है। रत्नाकर विनायक साखलकर ऐसे ही सर्वाधिक प्रतिष्ठित लेखक हैं, जिनकी पुस्तक ''आधुनिक चित्रकला का इतिहास'' के 15 संस्करण अकादमी द्वारा प्रकाशित किये गये हंै।
सैनी ने बताया कि साखलकर एक मात्र ऐसे लेखक हैं, जिन्होंने चित्रकला विषय पर शुद्घ हिन्दी में रोचक तरीके से पुस्तकें लिखीं और उनकी पुस्तक ''आधुनिक चित्रकला का इतिहास'' अकादमी द्वारा प्रकाशित पुस्तकों में सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली पुस्तक है। साखलकर की चित्रकला पर लिखी गई पुस्तकों के प्रकाशन के बाद ही ललित कला के क्षेत्र में पुस्तकें पढ़ी जाने लगी है। अकादमी द्वारा साखलकर की चार पुस्तकों का प्रकाशन किया गया है।
रत्नाकर विनायक साखलकर 1954 में अजमेर आये तथा डी.ए.वी. कॉलेज में चित्रकला के विभागाध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला। चित्रकला के एम.ए. के पाठ्यक्रम के निर्धारण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। उन्होंने पूना के सर जे.जे. स्कूल ऑफ आटर््स से स्नातक तथा स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की।
मूमल इंम्पेक्ट
मूमल ने इसी साल फरवरी द्वितीय अंक को साखलकर दादा को समर्पित करते हुए उनके बारे में विस्तार से जानकारी प्रकाशित की थी। उसी में प्रमुखता से यह उल्लेख भी किया था कि पिछले साल इनकी पुस्तक की सर्वाधिक लोकप्रियता को देखते हुए राजस्थान ग्रन्थ अकादमी के नियमानुसार साखलकर जी को सम्मानित किए जाने का प्रस्ताव बना था। पुरस्कार और सम्मानों से दूर रहने के अपने स्वभाव के अनुसार पहले साखलकर दादा यह सम्मान भी लेने को तैयार नहीं थे। बाद में अकादमी के अधिकारियों ने इनके परिजनों से सम्पर्क कर बात बनाई तो दादा ने अपने स्वभाव के विपरीत इसके लिए स्वीकृति दे दी।
लेकिन, इसके बाद वह हुआ जिससे वयोवृद्ध कलाविद और उनके परिजन दोनों बुरी तरह आहत हुए। सम्मान का कार्यक्रम कहीं फाइलों में ऐसा अटका कि सन् 2011 में पहले जुलाई फिर अगस्त और उसके बाद हर महीने अगले महिने पर बात टलती रही। आखिर साखलकर दादा के परिजनों ने आस छोड़ दी। आखिर फरवरी के अंक में मूमल ने इस मुद्दे को फिर उठाया और यह आशंका भी व्यक्त की कि सरकार अगर समय रहते सम्मान नहीं कर सकी तो हो सकता है बाद में काफी देर हो जाए। इसके बावजूद अकादमी के अधिकारियों को सम्मान किए जाने के कार्यक्रम को क्रियांवित करने में आठ महीने का वक्त और लग गया।

रविवार, 7 अक्टूबर 2012

यदि तोर डाक शुने केऊ न आसे...

तोबे एकला चोलो रे ........

कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर, एक व्यक्ति का नहीं एक युग और एक संस्था का नाम है। कविगुरु का ये गीत केवल एक गीत ही नहीं बल्कि जीवन दर्शन है। गाँधी जी इसी दर्शन के सहारे साम्प्रदायिकता के खिलाफ अकेले खड़े हो गए थे। इस गीत में सार्थक आत्मविश्वास से भरे जीवन का दर्शन होता है। ...और इस जीवन दर्शन से प्रेरणा प्राप्त होती है...। एकला चलो रे ...अंतत: कामयाबी और मानसिक संतुष्टि का दूसरा नाम है।
इसका अनुपालन हमें हर स्थिति में करना चाहिए। हमें हमेशा सबकेसाथ की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। हम न तो सभी को प्रसन्न रख पाएंगे और न ही सभी को अपने साथ चलने के लिए प्रेरित कर पाएंगे। इस आस में हम आगे बढऩे के बजाए रुके रहें तो यह जीवन की सार्थकता की आहुति देने के समान होगा। यह हमारी मानसिक निर्बलता का परिचायक ही होगा।
इस गीत का यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि हम सबका विरोध करें। न ही यह हमें प्रेरित करता है कि हम सबके विपरीत चलें। इसका अर्थ तो सिफऱ्  यह है कि हम अपनी अंतरात्मा की आवाज़ का अनुपालन करें - चाहे इसमें हमारा कोई साथ दे या ना दे। मैंने अक्सर महसूस किया है कि लोग हालात में सुधार तो चाहते हैं पर इसके लिए कोई साथ नहीं देता। तो क्या हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना उचित है? इससे तो अच्छा है कि हम अपने निर्धारित मार्ग पर अकेले चलते रहें। इतिहास गवाह है कि ऐसे लोग ही मानवता के पथ-प्रदर्शक होते हैं जो एकला चलने में विश्वास रखते हैं।
आज एक लक्ष्य को लेकर अकेले चलते व्यक्ति को भले ही कई गुटों का साथ न मिले, भले ही उसका अनादर हो, भले ही भ्रटाचार में लिप्त लोग उसे महत्वहीन बता कर अपना बचाव करने में सफल होते हों, भले ही उसके विचारों और लेखन को गढ़ी हुई कहानियां बता कर बचने का प्रयत्न हो, भले ही अकेले चलते व्यक्ति को हंसी-मजाक का पात्र बनाकर लोग अपने चरित्र पर पर्दा डालने का जतन करते रहें, लेकिन क्या ऐसा लम्बे समय तक चल पाएगा? एक दिन समय भी बदलेगा और समाज भी.... एक दिन कोई अकेली युवा कूंची सब पुराने और कृत्रिम रंग मिटा कर कला जगत के नए कैनवास पर सच्चे रंग बिखेर देगी...और तब चल पड़ेंगे कोटि पग उसी ओर...।

एकला चलो रे...    (मूल बांग्ला गीत)
- रवीन्द्रनाथ ठाकुर

यदि तोर डाक शुने केऊ न आसे
तबे एकला चलो रे।
तबे एकला चलो, एकला चलो, एकला चलो रे!

यदि केऊ कथा ना कोय, ओरे, ओरे, ओ अभागा,
यदि सबाई थाके मुख फिराय, सबाई करे भय-
तबे परान खुले
ओ, तुई मुख फुटे तोर मनेर कथा एकला बोलो रे!

यदि सबाई फिरे जाय, ओरे, ओरे, ओ अभागा,
यदि गहन पथे जाबार काले केऊ फिरे न पाय-
तबे पथेर काँटा
ओ, तुई रक्तमाला चरन तले एकला दोलो रे!

यदि आलो ना घरे, ओरे, ओरे, ओ अभागा-
यदि झोड़ बादले आधार राते दुयार देय धरे-
तबे वज्रानले
आपुन बुकेर पांजर जालिये निये एकला जलो रे!

 एकला चलो रे.....(हिंदी अनुवाद)
तेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो फिर चल अकेला रे
फिर चल अकेला, चल अकेला, चल अकेला रे
   
यदि कोई भी ना बोले ओरे ओ रे ओ अभागे
यदि सभी मुख मोड़ रहे... सब डरा करें
तब प्राण प्रण से
मन की बात बोल अकेला रे

तेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो ओ रे ओ अभागे
गहन पथ पर चलते हुए सब लौटते जाएं
तब पथ के कांटे
लहू लोहित पद दलित कर चल अकेला रे

यदि दिया ना जले ओरे ओ रे ओ अभागे
यदि बदरी आंधी रात में सब द्वार बंद करें
तब शिखा वज्र से
ओ तू हृदय पंजर जला और जल अकेला रे
तेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो फिर चल अकेला रे
फिर चल अकेला, चल अकेला, चल अकेला रे...

शुक्रवार, 5 अक्टूबर 2012

राजस्थान ललित कला अकादमी अध्यक्ष का एक वर्ष

'मूमल' सर्वेक्षण (06/12)
राजस्थान ललित कला अकादमी
अध्यक्ष प्रो. भवानी शंकर शर्मा के कार्यकाल का एक वर्ष
राजस्थान ललित कला अकादमी का अध्यक्ष पद संभालने के बाद प्रो. भवानी शंकर शर्मा को अगले महीने एक वर्ष पूरा होने जा रहा है। इस अवसर पर मूमल अकादमी के काम-काज की एक रिपोर्ट प्रकाशित करने जा रहा है। रिपोर्ट निष्पक्ष हो, इसके लिए हमें आपका सहयोग चाहिए। कृपया निम्न तथ्यों को पढ़ कर अपनी राय दें।
अध्यक्ष पद ग्रहण करने के बाद प्रो. भवानी शंकर शर्मा ने जो कुछ कहा था उसके अनुसार... अकादमी द्वारा संपादित किए जाने वाले नियमित कार्यों का और बेहतर संचालन होना था। अकादमी की बंद पड़ी गतिविधियों को चालू कराना था तथा अनेक नए कार्य शुरू होने थे।
ये खास बातें कही गई थीं...
- अकादमी का फंड कम है, उसे बढ़ाने का उपाय करेंगे।
- अकादमी में स्टाफ की बेहद कमी है। हालात सुधारेंगे।
- अकादमी का काम-काज सुस्त है, उसे गति दी जाएगी।
- अकादमी की गतिविधियां नियमित व समयबद्ध करेंगे।
- छात्रों के कार्य का प्रदर्शन कायदे से कराएंगे।
- अन्य अकादमियों व संस्थाओं से तालमेल बढ़ाएंगे।
- जरूरतमंद कलाकारों की मदद के प्रयास बढ़ाएंगे।
- जयपुर से बाहर भी कार्यक्रम आयोजित करेंगे।
- अकादमी के दफतरी काम-काज में जरूरी बदलाव लाएंगे।
- युवा वर्ग की गलतफहमियां दूर करेंगे।
- कला क्षेत्र में वरिष्ठ और कनिष्ठ के बीच की दूरी कम करेंगे।
- राज्य से बाहर प्रदर्शन के लिए कलाकारों की सहायता राशि को बढ़ाएगें। 
- युवा वर्ग को जोडऩे के लिए अकादमी कॉलेजों में जाएगी।
- अकादमी का डिजीटल विकास करेंगे।
- वेबसाइट से नए-पुराने सभी कलाकारों को जोड़ेगे।
- आर्ट फिल्में बनाएंगे।
- डाक्युमेंटेशन करेंगे।
- कलाकारों का विवरण एक स्थान पर उपलब्ध हो ऐसी व्यवस्था करेंगे।
- नई मोबाइल वैन की व्यवस्था की जाएगी।
- 'आकृतिÓ पत्रिका को अब और बेहतर तरीके से प्रकाशित करेंगे।
अब आप मूल्यांकन करें और बताएं कि किस क्षेत्र में कितने अंक दिए जाने चाहिए?         

  प्रत्येक प्रश्र का  पूर्णांक: 10

प्रश्र- 1 क्या अकादमी अध्यक्ष द्वारा किए गए वादे पूरे हुए?        प्राप्तांक.......

प्रश्र- 2 क्या अकादमी के कार्यों का संचालन और बेहतर हुआ?        प्राप्तांक.......

प्रश्र- 3 क्या अकादमी की बंद पड़ी गतिविधियां चालू हुईं?        प्राप्तांक.......

प्रश्र- 4 क्या अकादमी में कोई नया कार्य शुरू हुआ?            प्राप्तांक.......

प्रश्र- 5 कुल मिलाकर अध्यक्ष अब तक कितने सफल हैं?        प्राप्तांक.......

अपनी राय के लिए आप केवल प्रश्र संख्या और उसके लिए आपके द्वारा दिए गए नम्बर (marks) लिख कर भी  हमें भेज सकते हैं।
इसके लिए आप मूमल के ई-मेल का उपयोग कर सकते हैं।  moomalnews.gmail.com
फेसबुक पर आकर अपनी राय आसानी से बता सकते हैं।
 http://facebook.com/moomalnews
मूमल के फोन पर एसएमएस कर सकते हैं।
 99284 87677
यहीं मूमल के इस ब्लाग पर खुली टिप्पणी लिख सकते हैं।
राज. ललित कला अकादमी के बारे में आप चाहें तो अपनी राय विस्तार से भी व्यक्त कर सकते हैं... बस लिख डालिए और डाल दीजिए हमारी ई-मेल पर।
धन्यवाद
आपकी
मूमल  
    




शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

जयपुर में आर्ट व पेंटिंग शो

19 से 21 अक्टूबर तक

 जयपुर के जवाहर कला केन्द्र में भीलवाड़ा (राजस्थान ) की आर्टो फिल आर्ट गैलेरी द्वारा आर्ट व पेंटिंग शो का आयोजन किया जा रहा है। 19 से 21 अक्टूबर तक चलने वाले इस तीन दिवसीय शो में पारम्परिक व आधुनिक कलाकृतियों का प्रदर्शन किया जाएगा।
संस्था की डायरेक्टर व चित्रकार वंदना दरक ने बताया कि इस शो में भीलवाड़ा के साथ उदयपुर, जयपुर, जोधपुर, भोपाल, अहमदाबाद व रायपुर के कई जाने-माने आर्टिस्ट भाग लेंगे। जयपुर के बाद यह शो दिल्ली और फिर अहमदाबाद में भी आयोजित किया जाएगा। आयोजकों के अनुसार अभी शो की प्रविष्ठियां जारी हैं, कोई आर्टिस्ट इसमें भाग लेना चाहे तो उसे संस्था के फोन नम्बर: 9414011175 पर सम्पर्क करना चाहिए।

गुरुवार, 27 सितंबर 2012

कला शिक्षा के लिए अनोखा धरना

  पहली अक्तूबर से जयपुर में होगा 

मूमल नेटवर्क जयपुर। कला शिक्षकों की भर्ती के लिए चल रही जद्दोजहद के चलते अब कलाकारों ने अपनी बात जग जाहिर करने के लिए अनोखा तरीका अपनाया है। इस क्रम में कलाकारों ने जयपुर स्थित शिक्षा संकुल के बाहर बड़े स्तर पर धरने व प्रदर्शन का आयोजन रखा है। इसमें खास बात यह है कि पहली अक्टूबर 2012 से शुरू होने वाले इस आंदोलन के दौरान कलाकार अपनी कला का सार्वजनिक प्रदर्शन भी करते रहेंगे। यह सब 15 अक्टूबर तक चलने की संभावना है।
राजस्थान बेरोजगार चित्रकला अभ्यर्थी संगठन सचिव महेश कुमार गुर्जर ने बताया कि शिक्षा विभाग में कला शिक्षकों की भर्ती पिछले 20 सालों से बंद पड़ी है। इसे फिर से शुरू कराने के लिए पूरे प्रदेश के कला अभ्यर्थी इस आंदोलन में शामिल हो रहे हैं। इनमें चित्रकला, मूर्तिकला और संगीत क्षेत्र के अभ्यर्थी एक साथ अपनी बात शिक्षा विभाग और आमजन के सामने रखेंगे। गुर्जर के अनुसार प्रदेशभर में उनके सम्पर्क लगातार बने हुए हैं और ताजा स्थिति के आधार पर यह कहा जा सकता है कि एक पखवाड़े तक चलने वाले आंदोलन में लगभग 500 अभ्यर्थियों की सक्रीय भागीदारी होगी।
संगठन के उपाध्यक्ष झाबरमल वर्मा के अनुसार राजस्थान में पिछले 20 सालों से सरकारी विद्यालयों में कला शिक्षा पाठ्यक्रम के साथ भेदभावपूर्ण नीति अपनाई जा रही है। इस विषय के लाखों बच्चों के साथ खिलवाड़ हो रहा है। उन्हे इस विषय की शिक्षा वे शिक्षक दे रहे हैं जिनके पास चित्रकला की कोई डिग्री नहीं है।
कोटा से मूमल प्रतिनिधि विजेन्द्र कुमार वर्मा ने बताया कि कला शिक्षकों की भर्ती की मांग को लेकर एक प्रतिनिधि मंडल ने कोटा, बूंदी, बारां ओर झालावाड़ के जिला कलक्टर्स को ज्ञापन दिए हैं। जयपुर में होने वाले आंदोलन में भाग लेने के लिए कोटा से अभ्यर्थी कलाकारों का एक दल आ रहा है।
उदयपुर से मूमल संवाददाता के अनुसार वहां इस आंदोलन से जुड़े लोग फिलहाल सुस्त हैं। जयपुर से अभ्यर्थी संगठन के पदाधिकारियों ने उदयपुर के लिए कला अभ्यर्थी शरद भारद्वाज को जिम्मेदारी सौपी थी , लेकिन अब वहां व्यक्ति बदला जा रहा है।

फेसबुक पर व्यापक चर्चा
कलाकार नवलसिंह चौहान ने इस आंदोलन के लिए 'फेसबुकÓ पर अभियान छेड़ रखा है। उनके अभियान को कला जगत में बेहतर समर्थन मिल रहा है। चौहान के प्रयासों से जो सबसे महत्वपूर्ण पक्ष उभरा है वह यह कि आम और खास सभी कलाकारों के साथ आमजन को भी यह स्पस्ट हो रहा है कि राजस्थान के शिक्षा विभाग  में कितनी धांधली चल रही है? विभाग के सभी विद्यालयों में जो बच्चों को जो शिक्षक चित्रकला विषय को ज्ञान दे रहे हैं उनके पास चित्रकला विषय की कोई उपाधि नहीं है। दूसरी और जिनके पास चित्रकला विषय में स्नातक उपाधियां है वे स्लेट, नेट, में प्रयास कर रहे हैं। बहुत से पी.एच.डी. कर के टाइमपास कर रहे हैं। बहुत से मामलों में कला अभ्यर्थी केवीएस, एनवीएस और डीएसएसएसबी में जॉब तलाश रहे हैं।
फेसबुक में इस विषय पर अनेक रोचक टिप्पणियां भी सामने आ रही हैं।
एक कलाकार ने लिखा है ' वैसे तो ये कला अभ्यर्थी विभिन्न शहरों में आयोजित होने वाले कला मेलों मेंं भाग लेने के लिए अपने खर्चे पर जाते रहते हैं और रोजगार दिलाने के होने वाले इस आंदोलन में आने के लिए अगर-मगर कर रहें हैं।
एक अन्य टिप्पणी में लिखा है कि 'अभी तो इसे कोई तव्वजों नहीं दे रहे हैं, लेकिन जब कला के कॉलेज व्याख्याता और स्कूली व्याख्याता के लिए सैकेंड ग्रेड की भर्ती खुलेगी तो सबसे पहले वही कला अभ्यर्थी फार्म भरने के लिए दौड़ेंगे जो अभी साथ नहीं दे रहे हैं।
विधानसभा सत्र से भी उम्मीद
आदोलन के आयोजकों को 10 अक्टूबर से शुरू होने वाले विधानसभा सत्र से भी काफी उम्मीद हैं। विधायक राजेन्द्र सिंह राठौड़ ने उन्हें विश्वास दिलाया है कि वे विधानसभा में बेरोजगार चित्रकला अभ्यर्थियों का सवाल प्रमुखता से उठाएगें।

सोमवार, 24 सितंबर 2012

LALIT KALA AKADAMI

राजधानी की ललित कला अकादमी में इनदिनों धमासान मचा हुआ है। अकादमी से जुड़े पदाधिकारी और सदस्य कला के प्रति अपने निर्धारित कार्य और उद्देश्यों को भूलकर आपसी छीछालेदर और फजीती में लगे हैं। सभी एक-दूसरे के खिलाफ अपने अधिकारों का जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसे में बात जांच समितियों और अदालती मामलों तक पहुंची हुई है। चिंता का विषय यह भी है कि राजधानी से निकल कर यह वायरस राज्यों की अकादमियों तक भी पहुंच रहे हैं फिलहाल आपके सामने पेश है राजधानी की ललित कला अकादमी में चल रही काजगुजारियों की एक बानगी।  (सं.)

ललित कला अकादमी में धमासान

मूमल नेटवर्क, नई दिल्ली। राजधानी की ललित कला अकादमी में अभी दो प्रमुख गुट सक्रीय हैं। एक गुट उपाध्यक्ष के. आर. सुब्बन्ना और सचिव सुधाकर शर्मा का बताया जा रहा है, जबकि दूसरा अध्यक्ष अशोक वाजपेयी के साथ खड़े लोगों का बन गया है। अपने-अपने दाव लगने पर दोनों एक दूसरे को ऐसी पटखनी दे रहे हैं कि अकादमी में दर्शक बने लोग माहौल के मुताबिक आह या वाह करते हैं।
आरोनों से धिरे सचिव
राजधानी के सूत्रों की बात सही मानी जाए तो वर्तमान में विभिन्न शिकायतों के बाद आरोनों से धिरे सचिव सुधाकर शर्मा अनियमितताओं के दोषी पाये गये है। उपाध्यक्ष के. आर. सुब्बन्ना के द्वारा किये गए आचरण संहिता के उलन्घन पर अनुशासनिक समिति गठित है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के ओ. एस. डी. देवरतन शर्मा को पूर्व अध्यक्ष ने सदस्यता से वंचित कर दिया थाए बावजूद इसके ये अकादमी में पूरी तरह सक्रीय है। सूत्रों के अनुसार ये लोग आज अकादमी के तथा कलाकारों के भाग्यविधाता बने हुए हैं। अकादमी में अनियमितता करने वालों का बोलबाला हो गया है। ये सभी अकादमी के कार्यकारिणी समिति के सदस्य हैं। इनकी अनियमितताओं के खिलाफ जिसने भी आवाज बुलंद की उन पर अकादमी की गरिमा को धूमिल करने का ठप्पा लगता जा रहा है। अभी उनमें श्रीकांत पाण्डेय, अशोक वाजपेयी, बालान नाम्बिआर, के. के. चक्रवर्ती इत्यादि।
पाण्डेय की मुहिम
छीछालेदर तब उजगार हुई जब एक सदस्य श्रीकांत पाण्डेय ने सचिव सुधाकर शर्मा के खिलाफ तानाशाही और अनियमितताओं के आरोप लगाते हुए मामले को अदालत में घसीटा। बताते हैं आज सुधाकर शर्मा पर अनेकों मुकदमें अदालत में लंबित हैं। श्रीकांत पाण्डेय द्वारा दायर मुकदमे के बाद अनुशासनिक समिति का गठन हुआ, इस समिति का अध्यक्ष के. के. चक्रवर्ती को बनाया गया, के. के. चक्रवर्ती ने सुधाकर शर्मा को दोषी पाया। इसके बाद से सुधाकर शर्मा की नजरों में श्रीकांत पाण्डेय और के. के. चक्रवर्ती दोनों अकादमी की गरिमा को धूमिल करने वाले प्रमुख व्यक्ति हो गए। सुधाकर शर्मा के खिलाफ कारवाई कराने में कामयाबी के बाद उत्साहित श्रीकांत पाण्डेय ने पूर्व सदस्यों द्वारा किये गए भ्रष्टाचार को उजागर करने की मुहिम छेड़ दी। अब सुना जा रहा है कि कुछ शिकायतकर्ताओं को अकादमी की काली सूचि में डालने की तैयारी चल रही है।
पूर्व में अध्यक्ष अशोक वाजपेयी ने सुधाकर शर्मा की अनियमितताओं के कारण सचिव के पद से हटा दिया था। इसलिए अशोक वाजपेयी ललित कला अकादमी के दुश्मन बताए जाने लगे। बालान नाम्बिआर ने भी अन्य लोगों की तरह अकादमी में हो रहे भ्रष्टाचार को उजागर करने की कोशिश की जिस कारण इन्हें कथित भ्रष्टाचारियों के कोप का भजन बनना पड़ा। सचिव सुधाकर शर्मा ने बालान नाम्बिआर को प्रताडि़त करने के लिए अनेक   उपाय किये। बालान नाम्बिआर का कहना है की जबतक सुधाकर शर्मा अकादमी में रहेंगे, वे अकादमी के अन्दर कदम नहीं रखेंगे।
अब स्थिति ये है कि अकादमी के सदस्य श्रीकांत पाण्डेय का आरोप हैं कि भ्रष्टाचारियों ने अकादमी का अपहरण कर लिया है। ऐसे लोग अकादमी का मनमाने तरीके से दुरूपयोग कर रहे हैं। अकादमी में सुधार के लिए किए जा रहे उनके प्रयासों के चलते मनमानी करने वालों कि गतिविधियों पर अंकुश लगा है। ऐसे में अब सचिव सुधाकर शर्मा और उनके सिपहसालार श्रीकांत पाण्डेय को परेशान करने का हर हथकंड़ा आजमाने में लगे हैँ, इसके तहत पाण्डेय को काली सूचि में डालकर किनारे लगाना शामिल है। इसी के साथ उन्हें कारण बताओ नोटिस दिए जाने की भी चर्चा हैं। उधर श्रीकांत पाण्डेय कहते हैं कि उन्होंने भी कमर कस ली है और ईट का जबाब पत्थर से देने के लिए तैयार बैठे हैं। अगर अधिकारियों ने मनमानी करने की कोशिश की तो वे इन सभी को अदालत में घसीटने से परहेज नहीं करेंगे।

शनिवार, 8 सितंबर 2012

कलाकृतियों की सरकारी खरीद की तैयारी

कलाकृतियों की सरकारी खरीद की तैयारी 

मूमल नेटवर्क, जयपुर। राजस्थान के वरिष्ठ कलाकारों के एक समूह ने अपनी पेंटिग्स की सरकारी खरीद के लिए 26 साल पुराने बोतल में बंद एक नियम को फिर से बाहर निकालने की जद्दोजहद शुरू की है। इस नियम के तहत यह व्यवस्था थी कि किसी भी नवनिर्मित सरकारी इमारत की सजावट में उसके निर्माण के कुल बजट का एक निश्चित भाग कलाकृतियों की खरीद पर व्यय किया जाता था।
बाद में वक्त की धूल में यह नियम दब गया और सरकारी भवनों में पर्यटन निगम के पोस्टर आदि दीवारों पर लगाए जाते रहे। अब राजस्थान ललित कला अकादमी में उसी समूह के एक कलाकार के अध्यक्ष मनोनीत होने के बाद इस पुराने नियम के आधार पर नए भवनों के लिए कलाकृतियों की खरीद के प्रस्ताव बनाए जा रहे हैं। फिलहाल केवल अकादमी से जुड़े राजस्थान के चित्रकारों की कलाकृतियों की खरीद का प्रस्ताव ही बन रहा है। इसी के साथ यह बात उठने लगी है कि नए भवनों की सजावट के लिए केवल चित्र ही क्यों? स्कल्पचर या शिल्प भी क्यों नहीं? बात तो यह भी उठ रही है कि केवल राजस्थान के या अकादमी से जुड़े कलाकारों की कृतियां ही क्यों? सुंदरता या सजावट के लिए प्रांतों की सीमाएं तोड़कर उस प्रत्येक कलाकृति को स्थान क्यों नहीं दिया जा सकता जो सुंदर हों और भविष्य में अपनी बढ़ती कीमत के अनुसार सरकार के खजाने का मूल्य भी बढ़ाएं।

1986 में हुई थी अंतिम खरीद

अकादमी से सरकारी स्तर पर अंतिम खरीद वर्ष 1986 में हुई थी। इसके बाद अकादमी द्वारा कई बार प्रयास करने के बावजूद सरकार ने ध्यान नहीं दिया। इसी का परिणाम रहा कि शहर के मॉडर्न आर्ट और मिनिएचर कला बाजार की ग्रोथ रेट बेहद धीमी रही।

एक इमारत में लाखों की खरीद

एक अनुमान के अनुसार महज एक सरकारी इमारत की लागत में खर्च होने वाले कुल बजट का केवल दो प्रतिशत बजट भी कला बाजार पर खर्च किया जाए, तो यह आकड़ा लाखों रूपए में पहुंचता है। इस कारण न सिर्फ  कला बाजार का टर्न ऑवर मूव करेगा, बल्कि कलाकारों को क्लाइंट के रूप में सरकारी मदद भी मिलेगी।
 (इस संबंध में और विस्तार से जानकारी एकत्र की जा रही है जो इसी साइट पर उपलब्ध होगी)

रविवार, 2 सितंबर 2012

कलाकारों को मिला पुरस्कार

अकादमी की बुकलेट पर नेमाराम की कृति कंट्रोल ऑफ़ नेचर 
मूमल नेटवर्क, जयपुर। जवाहर कला केंद्र की चतुर्दिक आर्ट गैलरी में बुधवार 29 अगस्त की शाम राजस्थान ललित कला अकादमी की 53 वीं वार्षिक कला प्रदर्शनी आरम्भ हुई। इसमें प्रदेश के 81 युवा कलाकारों की 90 कलाकृतियों की प्रदर्शित किया गया।
प्रदर्शनी में रंगों और रूपाकारों के खूबसूरत संयोजन से सजी पेंटिंग्स के अलावा मूर्तिशिल्प भी था। अकादमी ने इस प्रदर्शनी के लिए एक सौ अस्सी कलाकारों की पांच सौ चालीस कृतियों का पंजीकरण किया। उसके बाद प्रतिभा दाकोजी, डॉ. एम.के. शर्मा सुमहेंद्र और दत्तात्रेय आप्टे की ज्यूरी ने इसमें से 84 चित्रों और 8 मूर्तिशिल्पों को प्रदर्शनी के लिए तथा दस कलाकारों की कृतियों को अकादमी के बीस-बीस हजार रुपए के स्टेट अवॉर्ड के लिए चुना।
उद्घाटन के मौके पर अवार्डी कलाकारों को राजस्थान यूनिवर्सिटी के कुलपति बी.एल. शर्मा, महर्षि दयानंद सरस्वती यूनिवर्सिटी, अजमेर के कुलपति रूप सिंह बारेठ, अकादमी के चेयरमैन डॉ. भवानी शंकर शर्मा, चित्रकार विद्यासागर उपाध्याय और राधा बल्लभ गौतम ने पुरस्कृत किया।

इनको मिला पुरस्कार :

राकेश सिंह कोटा, कमल कुमार वर्मा सांभरलेक, गोपाल शर्मा जयपुर, तरुण जोशी डूंगरपुर, मनोज टेलर वनस्थली, द्वारका प्रसाद चौधरी जयपुर, नवीन सिंह जयपुर, नेमा राम सुमेरपुर,रतन सिंह जयपुर और पवन कुमार शर्मा जयपुर।

इनकी कृतियां हुई प्रदर्शित:

जयपुर से
अजीत कुमार, अदिति अग्रवाल, किशन मीणा, खुशनारायण जांगिड़, गोपाल शर्मा, गौरीशंकर जांगिड़, जितेन्द्र सैनी, द्वारका प्रसाद चौधरी, नवीन सिंह, निधि पालीवाल, निष्ठा जैन, नीतू जांगिड़, नीलू कनवरिया, पवन कुमार शर्मा, प्रतिभा यादव, प्रहलाद जांगिड़, प्रिया शर्मा, प्रेमपालसिंह तंवर, प्रेरणा खण्डेलवाल, ब्रिजेश अग्रवाल, डॉ. मगिा भारतीय, मनीषा कंवर राठौड़, डॉ. मोनिका चौधरी, मोनिका टेलर, डॉ. मोहम्मद सलीम, डॉ. रीटा प्रताप, लोकेन्द्र सिंह, लोकेश कुमावत, विनय त्रिवेदी, विनोद भारद्वाज, विष्एाु कुमार सैनी, शिखा राजौरिया, शीतल चितलांगिया, श्याम गोठवाल, रूवेत गोयल, संगीता राज, दीपिका शर्मा, रतन सिंहऔर रेणु बाला।
सांभरलेक से
कमल कुमार वर्मा और किशनलाल खटीक।
कोटा से
कमल बक्षी, कृष्णा महावर पंचाल और डॉ. राकेश सिंह।
वनस्थली से
डॉ. किरन सरना, मनोज टेलर इन्दू सिंह।
भीलवाड़ा से
कैलाश चन्द्र पालिया, गोपाल आचार्य, जयराजसिंह चौहान, ज्योति पारीक, नन्दकिशोर शर्मा, भावना सोनी, सौरभ भट्ट, हितहरिदास वैष्णव और लोकेश जोशी।
उदयपुर से
चिमन डांगी, नीलम शर्मा, डॉ. भावना श्रीमाली, रमा कुमावत, राजेश कुमार, वीरांगना सोनी,डॉ. शंकर शर्मा, श्याम गोठवाल, सुनील निमावत और सुरेन्द्र सिंह चूण्डावत।
डूंगरपुर से
तरूण जोशी, घर्मेन्द्र भट्ट और भरतलाल।
जोधपुर से
नम्रता स्वर्णकार, नीरज पटेल और प्रदीप्ता किशोर दास।
बांसवाड़ा से
परमेश्वर गोस्वामी और मनीष कुमार भट्ट।
अजमेर से
डॉ. बी.सी. गहलोत, योगेश वर्मा, कपिल खन्ना और निरंजन कुमार।
चितौडग़ढ़ से
मुकेश कुमार शर्मा।
दौसा से
रामप्रसाद सैनी और संजय कुमार मीणा।
बींदासर से
शिवकुमासर सोनी।
राजसमंद से 
हतेन्द्र सिंह भाटी।
सुमेरपुर से
नेमाराम।

शनिवार, 1 सितंबर 2012

Sr. Artist P.N. Coyal NO MORE.

Well none Sr. Artist 

P.N. Choyal NO MORE. 

Funeral at Ashok Nagar Syamshan Vishram Sthal UDAYPUR (Rajasthan) 1.30 PM date: 01. 09. 2012
 

About his works

He was told
'' I have been involved in painting seriously since 1948. Thereafter I passed through various phases due to the changes in my vision. After getting education from Jaipur School of Arts, where I have been in close contact with my teachers like Shailendra Nath De and Ramgopal Vijayvargiya, I started painting in wash and tempera techniques. My education from JJ School of Arts, Bombay, gave me an incentive to paint in oil. For a couple of years, I was trying to analyze human forms and nature around.

In 1961-62 I studied in Slade College of Art, London, which gave me a new vision of exploring the surface value and relationship of form and space. I tried to look inside to find new values. My technique also changed. I tried to use oil like water color. At once canvas started giving me new values of creation. I was trying to synthesize the external world with internal vision.

In 1974 my vision was again changed due to long illness. Everything appeared to me more thrilling. My lines were broken in tune with the throbbing of my heart. I started spreading them on the canvas at random that created new values of design and surface. My colors became somber.
After recovering from my long illness I diverted towards the sufferings of life. Women around me in Rajasthan were the great symbol of pathos for me, when I saw them being tortured, being brutally treated, beaten, raped and what not. At that time I started painting in series of walls, women and dissolving past etc. These subjects became more captivating for me.

Slowly and gradually I started realizing that subjects are meaningless. They are only for motivation. Actual realization comes with the fusion of inner and external world, when they become one with the artist himself.

To me art is a sort of meditation or yoga.''

PN Choyal

Education
· Fine Art Diploma (1948) and D.T.T. from School of Arts & Crafts, Jaipur (1946).
· Government Diploma (Painting) – Sir J.J. School of Arts, Mumbai, 1953.
· Attended Slade College of Arts, University College, London, 1961-62.
· M.A. Hindi (Lit.) 1955.
· Attended All India Art Teachers Sequential Camp, Mumbai in the year 1970 and 1971.
· Attended Fresco and Mural Camp, Banasthali Vidyapeeth – 1967.
· Attended innumerable seminars and workshops at various Universities.

Art Camps
· SARC Festival-1986
· Painters’ camp at Mandav, M.P.-1986.
· Painters’ camp Karnataka Akademy-1986.
· Aaj-1995, Udaipur
· ABC Art Gallery,Varanasi, Jawahar Kala Kendra’s, Painters’ camp held at WZCC, Udaipur & Art camp at Agra, in1996.
· Rajasthan Lalit Kala Akademy and Lalit Kala Akademy, New Delhi between 1970 and 1990.
· All India artists’ camp of fellows of Rajasthan Lalit Kala Akademy between 1996 – 1998
· Veteran Artists’ camp – Rajasthan Lalit Kala Akademy & West Zone Culture Centre – 1998
· 50 years Celebration camp - West Zone Culture Centre & North Zone Culture Centre – 1998
· Artist camp at Hyderabad, organized by WWF 2003
· Artist camp at Kurukshetra University 2003
· Artist camp at Bhuvnashwar, organized by Reflection of Another Day 2003
· Artist camp at Bikaner sponsored by AIFACS New Delhi 2004
· Artist Camp at Amritsar -2004.
· Art camp- come seminar Dayal Bagh University Agra 2007.

Awards
· Rajasthan Lalit Kala Akademy - 1960, 1961,1963,1964,1965 and 1968.
· Indian Academy of Fine Arts, Amritsar-1978-79.
· All India Fine Arts & Crafts Society, New Delhi-1983, 1986 & 1990.
· National Award by Lalit Kala Akademy, New Delhi-1988.

Honours
· Elected the ‘FELLOW’ by Rajasthan Lalit Kala Akademy.
· Veteran Artist’s honour by A.I.F.A.C.S. New Delhi - 1984.
· ‘Kala Ratna’ award – 2007 by Lalit Kala Akademi, New Delhi.

One Man & Group Exhibitions
· Kota, Udaipur, Jaipur, Alwar, Delhi, Mumbai, Madras, Chandigarh, Banglore and Calcutta, Japan, Moscow, Brazil, Algeria etc.
· Participated in all major Art Exhibitions held in India which include All India Fine Arts & Crafts Society, New Delhi; Akademy of Fine Arts, Amritsar; Oriental Society and Birla Academy of Art and Culture, Calcutta; U.P. Akademy; Bombay Art Society; Drawing exhibitions organised by Govt Museums and Art Gallery, Chandigarh; Rajasthan Lalit Kala Akademy and Central Lalit Kala Akademy, New Delhi.

Invitations
· Moscow-Veteran Artists of India-1986.
· VIth Triennale-1986.
· Sao-Paulo-International Biennal-1987.
· Havana-International Biennal-1989.(Deputed Commissioner for Indian Section),
· Bharat Bhavan Biennal-1992.
· Birla Academy of Fine Arts, Calcutta, Silver Jubilee Exhibition-1992.
· Global Forum , Shimane Artists Conference, Japan , 1992.
· One man Show at KYOTO (Japan)organised by Shimin Gaiko Association Sept-1992.
· Cultural Dept. Japan & Shimin Giako Assoc. Joint Exhibition at Kobe (JAPAN)-1993.

Collections
National Gallery of Modern Art, Lalit Kala Akademy, Rajasthan Lalit Kala Akademy, Modern Art Gallery, Chandigarh Museum, Govt. Museum Jaipur, Maharani Gayatri Devi, Governer’s house Jaipur, Maharao Bhim Singh Kota, H.H. Jawahar, Kamani Bros., Bajaj Enterprises, Taj group, Larson and Turbo, Union Carbide, Steel Authority of India, Air India, CRY, Jawahar Kala Kendra - Jaipur and Several other private collections in India and abroad. YAMASO BIJITSU Art Gallery, Kyoto, Japan.

चित्रकार पी.एन.चोयल नहीं रहे

चित्रकार पी.एन.चोयल नहीं रहे

जाने-माने वरिष्ठ चित्रकार पी.एन. चोयल का आज उदयपुर (राजस्थान) में निधन हो गया। वे 78 वर्ष के थे।
उदयपुर से हमारे सहयोगी मोहन लाल जाट ने अभी बताया कि पिछली रात उन्हें सांस लेने में तकलीफ हुई और रात डेढ़ बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। आज याने पहली सितम्बर को दोपहर बाद उदयपुर के अशोक नगर स्थित शमशान घाट में उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। इस प्रकार पिछले छह दशक से रंगों से खेलती कलाकार की देह पंचतत्वों के रंगों में विलीन हो गई।
शोक संवेदना के लिए उनके परिजनों से इन टेलीफोन नम्बरों पर सम्पर्क किया जा सकता है।
91-294-2813960 mob: 91-9414168094
 अधिक जानकारी के लिए 

गुरुवार, 16 अगस्त 2012

हस्तशिल्प के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार

हस्तशिल्प के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार  

 प्रदेश से चौदह कृतियों का चयन   

पहली बार जड़ाई के लिए भी नायाब कृति शामिल  

 मूमल नेटवर्क, जयपुर। भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय की ओर हस्तशिल्प विकास आयुक्त कार्यालय द्वारा श्रेष्ठ शिल्पियों को प्रतिवर्ष दिए जाने वाले राष्ट्रीय पुरस्कारों की चयन प्रक्रिया का पहला चरण पूूरा हो गया है।
इसके तहत प्रत्येक राज्य व जोन स्तर पर गठित समितियों ने अपने स्तर पर पुरस्कार योग्य शिल्पों का चुनाव कर लिया है।
राजस्थान से चुने वाले शिल्पों के लिए पिछली 13 अगस्त को भरी बरसात में राजधानी जयपुर स्थित उद्योग भवन में आठ सदस्यीय एक दल ने अगले चरण के लिए भेजे जाने योग्य शिल्पों का चुनाव किया। 'मूमलÓ को प्राप्त जानकारियों के अनुसार राजस्थान प्रदेश से पुरस्कार के लिए कुल 63 प्रविष्ठियां प्राप्त हुई थीं। इनमें से राज्य स्तरीय समिति ने कुल 14 शिल्पों को पुरस्कार की दौड़ में शामिल रहने लायक माना।  शेष 49 शिल्पों को नहीं चुना जा सका। अब चयनित शिल्पों के लिए विधिवत आवेदन लेकर शिल्पियों से शपथपत्र भरवाएं जाएंगे। इसके बाद प्रदेश से संबंधित मुख्यालय के लिए प्रदेश स्तरीय चयन समिति की सिफारिश के साथ चयनित प्रविष्ठियों को दिल्ली भेजा जाएगा।

कौन-कौन था प्रदेश चयन समिति में

प्रदेश चयन समिति के लिए निर्धारित 4 सरकारी अधिकारियों के साथ आयुक्त (हस्तशिल्प) द्वारा नामित जिन 4 वरिष्ठ जानकारों को शामिल किया गया था उनमें फड़ पेंटिग्स के शिल्प गुरू प्रदीप मुखर्जी, मिनिएचर पेंन्टिग्स के शिल्प गुरू तिलक गीताई, चर्म पात्रों पर कार्विंग के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सममानित लालसिंह भाटी तथा कला मर्मज्ञ मानी जाने वाली श्रीमती चन्द्रमणि सिंह थे।

चयनित प्रविष्ठियां

शिल्पी                       वर्ग
कमल मीनाकार        सोने पर मीनाकारी
धर्मेंद्रसिंह भल्ला        सोने पर जड़ाई
कमलेश जांगिड़        वुड कार्विंग
जाकिर हुसैन         बोन कार्विंग
सूरज नारायण        दाबू प्रिंट
मोहनलाल गूर्जर        चमड़े की जूती
कल्याणमल साहू      पिछवाई
हेमन्त रामदेव        मिनिएचर पेंटिंग
नंद किशोर जोशी    फड़ पेंटिंग
गोपाल जोशी        फड़ पेंटिंग
त्रिलोक सोनी        पिछवाई
  रेवाशंकर          मिनिएचर पेंटिंग 

  आगे क्या होगा

हालांकि चयन प्रक्रिया अपने निर्धारित कार्यक्रम से देरी से शुरू हुई फिर भी अगर आगे की कार्रवाई समयानुसार चले तो चयनित प्रविष्ठियों को अगले सप्ताह तक दिल्ली भेजा जाएगा। उसके बाद दूसरे चरण में मुख्यालय स्तर पर चयन समिति द्वारा 7 सितम्बर 2012 को देशभर से आई प्रविष्ठियों में से पुरस्कार योग्य शिल्पों का चयन होगा। उसके बाद अंतिम चरण में केन्द्रीय स्तरीय चयन समिति द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कारों के लिए 20 व राष्ट्रीय प्रमाण पत्रों के लिए भी 20 श्रेष्ठ शिल्पकृतियों का चयन किया जाएगा। अगर सब कार्य समय से हों तो यह समिति अपना कार्य 21 नवम्बर 2012 को पूरा करेगी।
हालांकि ऐसा कभी नहीं हुआ है, फिर भी अगर तय कार्यक्रम के अनुसार चयनित शिल्पकृतियों के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार और वर्ष 2011 के लिए शिल्पगुरू सम्मान इसी वर्ष दिसम्बर के महीने में हस्तशिल्प सप्ताह के दौरान वितरित किए जाएंगे।


समितियों की संरचना


मुख्यालय स्तरीय समिति
1. डीसी के अध्यक्ष
2. एडीसी संयोजक
3. एडीसी (हथकरघा)
4. 3 हस्तशिल्प से गैर सरकारी विषय विशेषज्ञ

केन्द्रीय स्तरीय चयन समिति
1. सचिव के अध्यक्ष (कपड़ा)
2. विकास आयुक्त (हस्तशिल्प)
3. विकास आयुक्त (हथकरघा)
4. अध्यक्ष / प्रबंध निदेशक
5. अध्यक्ष / प्रबंध निदेशक, एचएचईसी सदस्य
6. कार्यकारी निदेशक, सदस्य / निफ्ट प्रवर्तन निदेशालय
7.  4 अन्य विषय विशेषज्ञ

सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

अल इखलास में इंडो इस्लामिक आर्ट फेस्टिवल

मूमल नेटवर्क, अजमेर। अजमेर शहर की पहली निजी कला दीर्घा के रूप में सामने आई 'अल इखलास गैलेरी' में पिछले दिनों इंडो इस्लामिक आर्ट फेस्टिवल सम्पन्न हुआ। इस समारोह में मुख्य रूप से कला के सूफी रूप और मुगल मिनिएचर पेटिग्स के साथ सके्रड आर्ट के पीस प्रदर्शित किए गए। फॅाय सागर रोड पर स्थित इस गैलेरी का यह पहला आयोजन था। चार दिन चले इस आयोजन को शहर के कला प्रेमियों के साथ विभिन्न स्कूल और कॉलेजों के कला विद्यार्थियों ने भी देखा।


गैलेरी में अजमेर के कलाकार मदन सिंह राठौर के मिक्स मीडियम में किए गए फ्यूजन वर्क व विजय सिंह चौहान की मिनिएचर पेंटिग्स प्रदर्शित की गई। इन्हीं के साथ डिजिटल आर्ट के कुछ काम भी प्रदर्शित किए गए जो एम. टेम्पलिन के हैं। इसी के साथ 'सके्रड आर्ट' के रूप में गैलेरी की ऑनर गुलशा बेगम की कलाकृतियां भी देखने को मिलीं। गुलशा बेगम कला और मानवता के प्रति समर्पित एक फैशन डिजाइनर उद्यमी हैं। वे आध्यात्मिक संगठन 'डिवाइन एबोड' की संस्थापक और अध्यक्ष भी हैं जो सभी धर्मावलंबियों को एकजुट करके शांति और सद्भाव का सच्चा संदेश देने के उद्देश्य से स्थापित किया गया है। वे बताती हैं कि यह संगठन महिलाओं और बच्चों के उत्थान के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन भी करता है।
क्या है सक्रेड आर्ट? :सके्रड आर्ट को कला की रहस्यवादी दुनियां का एक अतिरिक्त हिस्सा है। जब कलाकार का मन भाव के उच्चतम स्तर पर होता है तो रंगों के उत्सव में उसकी तुलिका या कला सृजन के माध्यम पवित्र नृत्य करने लगते है। इसी जादू के बाद जो कुछ साकार होता है वही सके्रड आर्ट है। यह एक प्रकार से कला समाधि की स्थिति में उपजे आकारों और रंगों का परिणाम है। यह एक पवित्र रूहानी अहसास सा है जिसे केवल महसूस किया जा सकता है, इसे एक्सप्लेन करना आसान नहीं है।




एक साथ...सोलह कैनवास!: गुलशा बेगम जब सके्रड आर्ट को कैनवास पर उतारने लगती हैं तो उनके कलाकार मन से उभरने वाले भाव इतने तीव्र होते हैं कि एक-दो या पांच-सात कैनवास उन्हें समेट नहीं पाते। ऐसे में वे कैनवासों की संख्या बढ़ाती जाती हैं। पिछली बार उन्होंने अपनी भावनाएं समेटने के लिए स्टूडियों में एक वक्त पर सोलह कैनवास लगाने पड़े थे।




''हम यहाँ कला को सभी प्रकार के प्रोत्साहन देने के लिए हैं। हम मानते हैं कि कला से जुड़ा हर पक्ष दिव्य है। हम यहाँ किसी एक धर्म या समुदाय आधारित कला को बढ़ावा देने के लिए काम नहीं कर रहे हैं। गैलरी में विभिन्न धर्मों से जुड़े कई कलाकारों के काम प्रदर्शित हैं। मेरे लिए आध्यात्मिकता सार्वभौमिक है। इसे कोई विशेष नाम नहीं दिया जा सकता। हम कला की दुनियां में सभी प्रकार के कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। अल इखलास गैलरी किसी समुदाय विशेष के लिए नहीं है, यह हमारे डिवाइन एबोड नामक संगठन का एक हिस्सा है जो पूरी तरह से एक आध्यात्मिक संगठन है । यह आध्यात्मिकता का सार्वभौमिक रूप है, जो सभी धर्मों में विश्वास करता हैं।" -गुलशा बेगम, संस्थापक अध्यक्ष, डिवाइन एबोड

शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

आभार...उदयपुर, आभार।



पिछले दिनों उदयपुर के कला जगत में कुछ समय बिताने का मौका मिला। दरअसल मैं वहां मूमल के लिए छोटे से नए सेंटर की तलाश में गई थी। सच कहूं तो मैं बहुत डरते-डरते गई। जयपुर से उदयपुर तक के नौ घंटे की यात्रा में अधिकांश समय यही सोचते बीता कि पता नहीं मेरा प्रस्ताव जानकर लोग क्या-क्या कहेंगे? शायद यही ज्यादा सुनने को मिलेगा कि- 'मूमल' को तो कोई जानता नहीं या हमने तो कभी इसका नाम नहीं सुना। लेकिन, उदयपुर के कला-जगत में पहुंच कर एक के बाद एक अनेक सुखद अहसास हुए।


झीलों की नगरी में न केवल अनेकों नियमित पाठकों से मुलाकात हुई बल्कि वार्षिक शुल्क देकर मूमल मंगाने वाले कलाकारों और विद्यार्थियों से रूबरू होने का मौका भी मिला। प्रदेश में कलाकारों की सबसे पुरानी और धीर-गंभीर संस्था 'टखमण' के प्रांगण में अनेक वरिष्ठ कलाकारों को 'मूमल' की प्रतीक्षा करते पाकर मैं हैरान रह गई। दरअसल कला दीर्घाओं के दौरे में खोने के कारण मैं यहां देर से पहुंची थी।मन ही मन अपनी अक्षम्य भूल के लिए लज्जित होते हुए मैं उनके बीच पहुंची। यहां देरी के लिए क्षमा या सॉरी जैसे शब्द पर्याप्त नहीं थे। एक चुप-सी लग गई। बात संपादक राहुलजी ने शुरू की।


कुछ देर में साफ हो गया कि बड़े कलाकारों का बड़प्पन क्या और कैसा होता है? यह भी जाना कि कोई कलाकार केवल बेहतर काम से ही बड़ा या वरिष्ठ नहीं हो जाता। इसके लिए बड़ा दिल और बड़ी सोच की भूमिका कितनी अहम होती है। देशभर में पहचान बनाने वाले उदयपुर के बड़े-बड़े कलाकारों ने बड़े भाईयों सी आत्मीयता से वातावरण को इतनी कुशलता से सामान्य बना दिया कि मैं सारी झिझक भूलकर छोटी बहन सी इठलाने लगी। 'मूमल' के लिए उनके सामने फरमाइशों के ढेर लगा दिए... और सब की सब पूरी हुईं। कोई किंतु-परंतु भी नहीं, झोली भर के मिली बड़े भाईयों की सी तथास्तु ही तथास्तु।


इससे पहले कमोबेश यही भाव उदयपुर की कला दीर्घाओं में देखने को मिला। ऊंची अरावली की गोद में छुपी किसी नीची सी दुकान में छुपी नन्हीं सी गैलेरी हो या गहरी झील के किनारे आच्छादित किसी बड़ी-सी बेल के बूटे-बूटे पर बिखरे मंहगे कामों वाली दमदार दीर्घा। कला के कद्रदानों की मिजाजपूर्सी के सभी सामानों से सजी नई शताब्दी की सोच वाली बहुमंजिली गैलेरी हो या जमीन से जुड़ कर कारागार में कैद कला को मुक्ताकाश में पंख फैलाने का अवसर देता कोई स्टूडियो। पेंटिग्स के विविध आयामों को आर्थिक रूप से संवारने में लगी कोई गैलेरी हो या केवल मूर्तिकला को नई जमीन मुहैया करता कोई स्कल्पचर कोर्ट। सभी एक से बढ़ कर एक।


लब्बो-लुआब ये कि झीलों की नगरी में बड़ी गैलेरीज के संचालकों की सच्ची सौम्यता उन्हें गुलाबी नगर की कुछ गैलेरीज के मनमौजी मालिकों से एक अलग पहचान देती है। आने वाले दिनों में अन्य प्रमुख गैलेरीज की तरह उदयपुर की आर्ट गैलेरीज से भी 'मूमल' का जुड़ाव होगा। कुल मिलाकर उदयपुर में मूमल को पहले से मिली हुई पहचान और ताजा रेस्पोंस से मैं उत्साहित हूं। वहां भी मूमल को जयपुर जैसा ही प्यार और दुलार मिले यही कामना है।


आभार...उदयपुर, आभार।

गुरुवार, 19 जनवरी 2012

अखबार बाजार से संचालित हो या पाठक से?

'मूमल' का संचालन बाजार के हाथ में हो या पाठक के?
'मूमल' के लिए उसका प्रत्येक पाठक एक विचार है, बाजार नहीं। हमारी यह धारणा आज के उस दौर में भी बनी हुई है, जब अखबार पाठकों के लिए नहीं बाजार के लिए हो चले हैं। कुछ बरसों पहले तक पत्रकारिता एक मिशन के तौर पर की जाती थी। तब इस काम को शिक्षित वर्ग में आजिविका से ज्यादा समाजसेवा के तौर पर किया जाता था और अखबार जनता तक सही जानकारी पहुंचाने का एक मात्र भरोसेमंद माध्यम था। आज समाचार पत्र प्रकाशन एक उद्योग के रूप में स्थापित हो चुका है। इनमें बड़े-छोटे सभी हैं। कुछ छोटे समाचार पत्र-पत्रिकाओं का वर्ग ऐसा भी है जो अभी तक अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहा है। कुछ इस स्थिति से उभर चुके 'मूमल' जैसे मझोले पत्र हैं, जो बाजार के प्रभाव में होते हुए भी अपने पाठकों को बाजार से अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं।
संपादक हुए प्रबंधक
पिछले एक अर्से में सम्पादक नाम का जीव प्रबंधक बनकर रह गया है। आज तेजी से बढ़ते अखबार अपने संपादकों को सिखा रहें हैं कि वे अपने पाठकों को पहचानें। उनकी नजर में उन पाठकों का कोई महत्व नहीं है जिनके पास बड़े बाजारों में खर्च करने को अतिरिक्त पैसा नहीं है। संपादकों को सिखाया जा रहा है कि वे केवल उन्हीं पाठकों को लक्ष्य करें जो बाजार में बेहतर खरीदारी करने में सक्षम हैं। हर बार पाठक सर्वे की रिपोर्ट में सबसे पहले यही देखा जाता है कि किस अखबार में 'हैसियतÓ वाले पाठकों की संख्या कितनी है।

डाक्टर बोला क्या?
इतना सब होते हुए भी सब कुछ खत्म नहीं हो गया है अखबार में सामाजिक सरोकारों की पैरवी करने वालों और उन सरोकारों को अभिव्यक्ति देने वाले प्रकाशकों और संपादकों की कमी नहीं है। ऐसे में आज मैने कलम तो चलाई है, लेकिन बहुत सोच-विचार कर। प्रकाशक गायत्री जी ने हिदायत दे रखी है कि इस विषय पर सभी आक्षेपों का पूर्वाानुमान करके आलेख तैयार करुं। मूमल के अब तक के अनुभव से जुड़े हर बिंदु को इस प्रकार समेटूं, जिससे पाठकों के समक्ष यह तस्वीर साफ हो सके कि शिल्प व कला जैसे विषय विशेष पर अखबार निकालना किस प्रकार तलवार की धार पर चलने के समान है। प्रकाशक की यह चिंता है कि हमारे ईमानदार प्रयासों के बावजूद कहीं कोई यह न कह दे - 'क्या आपको डॉक्टर ने कहा कि केवल कला और शिल्प पर ही अखबार निकालो?Ó इसी चिंता को ध्यान में रखते हुए पत्रकारिता पेशे की परेशानियां परोस रहा हूं।
पत्रकार हुए मीडियाकर्मी
कुछ समय पहले तक की प्रेस अब मीडिया बन गई है। इसी के साथ पत्रकार मीडियाकर्मी होते जा रहे हैं। जब तक पत्रकारिता थी तब तक प्रेस थी, अखबार थे, छपे हुए शब्द थे। भले ही अखबार छोटे थे परन्तु अनके संपादक बहुत बड़े होते थे। यह सब बीते कल की बातें हो गई। अब अखबार से पिं्रट मीडिया बन गए समाचार पत्र पढऩे के साथ देखने वाला उत्पाद बन गए। ऐसे में इनके पाठक कम और दर्शक अधिक हो गए। पत्रकारिता जब बाजार का उत्पाद बन जाए तो पाठक या दर्शक केवल ग्राहक होकर रह जाते हैं। किसी अखबार का संचालन जब बाजार का काकस करने लगे, तब अभिव्यक्ति की आजादी, लोकतांत्रिक सिद्धंात, मानव अधिकारों की रक्षा और एक खुले और स्वतंत्र समाचार माध्यम की बातें करना बेमानी हो जाता है।निर्णय आपकाकुल मिलाकर आपको यह निर्णय करना है कि आप बाजार की ताकतों से संचालित होने वाला एक और अखबार चाहते हैं या कम से कम एक ऐसा अखबार चाहेंगे जो वास्तव में पाठकों द्वारा संचालित होता हो। पाठकों की भागीदारी या दबाव किसी अखबार को सही रास्ते पर चलने को मजबूर कर सकता है। मगर उसके लिए पाठक को भी अपनी भूमिका के बारे में सोचना होगा। क्या वह एक अच्छे अखबार को उसका वाजिब दाम देकर खरीदने को तैयार है? यदि वह मुफ्त में या नाम मात्र के दाम पर अखबार चाहता है, तो उसे वही मिलगा जो बाजार चाहेगा, क्योकि लागत और बिक्री मूल्य के बीच का अंतर वही भर रहा है। -राहुल सेन
चलते-चलते ये भी
नापाठक तो पाखंडी!
नापाठकों के जानकार उनके बारे में कहते हैं-'रीडर इज अ नाइस हिप्पोक्रेटÓ क्यों कि मुक्त बाजार जो दिशा देता है अखबार उसी पर चलते हुए जो सामग्री परोसता है वह कई बार खूब रस लेकर पढ़ी जाती है। पाठक एक तरफ तो ऐसी सामग्री मजे लेकर पढ़ता है और वहीं बाद में यह आलोचना भी करता है कि अखबार में गंभीरता नहीं रही... यह चलताऊ हो गया है।
संपादक पर भारी प्रबंधक
इन दिनों अखबारों के कंटेंट (विषय वस्तु) संपादक नहीं प्रबंधक तय करते हैं। वे पत्रकारिता और मनोरंजन के बीच की सीमा रेखा को मिटा रहे हैं। प्रबंधक अखबारों का कलेवर तय करते हुए बताते हैं कि नए अंक में पाठक अखबार में क्या देखना चाहते हैं। वे संपादक से यह अपेक्षा भी रखते हैं कि पढऩे के लिए अखबार में कम से कम एक ऐसी चटपटी खबर जरूर हो, जिसे लेकर चर्चा होती रहे। उसमें ज्यादा तेज नहीं भी तो कुछ मसाला जरूर हो। भले ही ऐसी खबरों से संपादक की गंभीरता और संजीदगी की छवि प्रभावित होती हो।