मारीशस में प्रदर्शन के नाम पर लगाया कई कलाकारों को चूना
किसी ने पांच हजार लिए तो किसी ने ढाई हजार रु. वसूले
मूमल नेटवर्क, जयपुर। पिछले दिनों मारीशस में लगे एक ट्रेड फेयर में भारत से ले जाई गई कलाकृतियों के प्रदर्शन को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। प्रभावित कलाकारों को कहना है कि पैसे लेकर भी प्रदर्शनी में उनका काम प्रदर्शित नहीं किया गया जबकि प्रदर्शन का बीड़ा उठाने वाले कहते है कि हमने इस काम में काफी घाटा उठाया।
मूमल को दिल्ली सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इन दिनों राजधानी में कला प्रदर्शिनियों के दलालों की सक्रियता यकायक बढ़ गई है। खासकर विदेशों मे शो कराने के नाम पर कलाकारों से काफी पैसा वसूल किया जा रहा है। पिछले दिनों दिल्ली में सक्रीय दो मध्यस्थों ने मारिशस में आयोजित हुए एक ट्रेड फेयर में प्रदर्शित करने के लिए राजस्थान सहित देशभर के कलाकारों से काफी धन बटोरा। इनमें से एक ने 15 और एक अन्य ने 25 कलाकारों की कृतियां प्रदर्शन के लिए बुक की।
यूं हुआ घोटाला
मारीशस के एक ट्रेड फेयर में दिल्ली के दो मध्यस्थों, सामान्य बोलचाल की भाषा में कहे तो दलालों ने दस बाई दस की दो अलग-अलग स्टाल्स बुक कराई। उसके बाद उन्होंने कलाकारों से उनकी कलाकृतियां प्रदर्शित करने के लिए 5 हजार रुपए प्रति पेंर्टिग्स की दर से पेसा वसूला किसी भी कलाकार ने दो से अधिक काम नहीं दिए। पांच हजार रुपए वसूलने वाले दलाल को करीब 15 कलाकारों के 20 काम मिले और फिर काम ढीला पड़ गया। उधर दूसरे दलाल ने 5 हजार रुपए में दो पेंटिंग्स प्रदर्शित करने के नाम पर 25 कलाकारों के 50 काम ले लिए। निर्धारित तिथि पर दोनों ट्रेड फेयर में पहुंचे, कुछ पेंटिंग्स भी साथ ले गए। जब बुक की हुई स्टाल का पैसा चुकाने का समय आया तो कोई भी पूरी स्टॉल का किराया देने की स्थिति में नहीं था। एक ने अपने साथ चावल के दाने पर नाम लिखनेे वाले एक अन्य कलाकार को पार्टनर बनाया तो दूसरे ने किन्ही श्रीमती नियाजी के नाम से बुक स्टाल में आधी जगह पाने के लिए मोटी रकम चुकाई।
अब दोनों के पास ही अलग-अलग जगह आधी-आधी स्टॉल थी। ऐसे में दोनों ही किसी का कोई काम प्रदर्शित करने की स्थिति में नहीं थे, सेल की तो बात ही दूर रही। एक ने अपनी थोड़ी सी जगह में आगंतुकों के प्रोटेट बनाने शुरू किए और पैसा बनाया। जबकि दूसरा यह भी नहीं कर पाया क्यों कि वह कलाकार भी नहीं था।
यूं खुला मामला
ट्रेड फेयर के बाद जब कलाकारों को यह बताया गया कि उनकी कोई पेंटिंग नहीं बिकी, लेकिन काम लोगों ने पसंद किया है। भविष्य में उम्मीद है।
स्वभाव से सीधे कलाकारों ने उनकी बात सही मान कर संतोष कर लिया। उधर एक दूसरे के धंधे में टांग फंसाने से नाराज दलालों ने बदला लेने और आगामी आयोजनों से एक दूसरे का पत्ता काटने के विचार से कलाकारों के सम्मुख एक दूसरे की पोल खोलनी शुरू की। बस यहीं से कलाकार जागृत हुए और मूमल को दोनों ओर से जानकारियां मिलने लगी।
दलालों की सलाह पर प्रदर्शनी के प्रमाण में कलाकारों ने प्रदर्शनी में लगे उनके काम के फोटोग्राफ चाहे। ट्रेड फेयर में बुक स्टॉल के लिए किए गए भुगतान की रसीद दिखाने को कहा। अब दलाल बगले झांकने लगे। एक दूसरे के लिए खोदी खाई में गिरे दलालों में से एक ने बताया कि उसने तो अपनी स्टॉल के पैसे चुकाए और उसके पास रसीद भी है। उसने प्रतिदिन कुछ-कुछ कलाकारों का काम प्रदर्शित किया और फोटो भी खींचे। उसके बाद कैमरा खराब जाने के कारण वह फोटोग्राफ किसी को दिखा नहीं पाया। उसने दूसरे दलाल के लिए बताया कि उसे तो आयोजकों ने जैसे-तैसे एक मिसेज नियाजी के स्टॉल में आधी जगह दिलाई। उसने वहां एक दिन नियाजी मैडम के आने से पहले पूरे स्टॉल में अपने साथ लाई कुछ पेंटिंग्स को बारी-बारी से लगा कर फोटोग्राफी शुरू की, लेकिन इस बीच मैडम नियाजी आ गई तो झगड़ा भी हुआ। बाद में तो उसके पास पेंटिंग्स रखने का ठिकाना भी नहीं था और उसके लाई पेंटिंग्स मेरे स्टॉल में टेबिल के नीचे रख्री जाती थी।
इसकी पुष्टि किए जाने पर दूसरे दलाल ने सभी बातें बेबुनियाद और गलत बताते हुए पहले के लिए कहा कि उसने अपने स्टॉल में चावल पर नाम लिखने वाले को आधी जगह दे दी। आधी जगह में कितनी पेंङ्क्षटग्स लगने की गुजाइश थी? यह तो कोई भी जान सकता है। अब ऐसे में कैमरा खराब नहीं होता तो क्या होता?
कुल मिलाकर कलाकारों से उनकी कृतियों के प्रदर्शन और सेल के नाम पर पैसे लेने वाले दोनों दलालों ने एक दूसरे की पोल जमकर खोली। दोनों ने बताया कि उनके पास प्रदर्शित की जाने वाली कृतियों के लिए तैयार किया हुआ कैटेलॉग है। स्टॉल के भुगतान किए धन की रसीद और प्रदर्शनी के कुछ फोटोग्राफ हैं। मूमल से हुई बातचीत में दोनों ने ही इनकी प्रतिलिपियां ई-मेल पर भेजने की बात कही, लेकिन बार-बार याद दिलाए जाने के बावजूद समाचार लिखें जाने तक दोनों की ओर से कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं कराए गए।
अन्तत:
विदेशों में प्रदर्शन को लेकर उत्सुक और महत्वाकांक्षी कलाकार ही इस ठगी के शिकार हुए हैं। गांठ से रकम गंवाने के बाद भी ना तो उनकी कोई कृति बिकी और न ही प्रदर्शित ही हो पाई। और तो और अपनी प्रदर्शन उपलिब्धयों में जोडऩे के लिए एक कैटलाग या फोटोग्राफी तक नहीं जुट पाई। इन ठगे-ठगे से कलाकारों में दिल्ल्ी के वरिष्ठ कलाकारों के साथ यू.पी. और राजस्थान के कलाकार भी शामिल हैं।
किसी ने पांच हजार लिए तो किसी ने ढाई हजार रु. वसूले
मूमल नेटवर्क, जयपुर। पिछले दिनों मारीशस में लगे एक ट्रेड फेयर में भारत से ले जाई गई कलाकृतियों के प्रदर्शन को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। प्रभावित कलाकारों को कहना है कि पैसे लेकर भी प्रदर्शनी में उनका काम प्रदर्शित नहीं किया गया जबकि प्रदर्शन का बीड़ा उठाने वाले कहते है कि हमने इस काम में काफी घाटा उठाया।
मूमल को दिल्ली सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इन दिनों राजधानी में कला प्रदर्शिनियों के दलालों की सक्रियता यकायक बढ़ गई है। खासकर विदेशों मे शो कराने के नाम पर कलाकारों से काफी पैसा वसूल किया जा रहा है। पिछले दिनों दिल्ली में सक्रीय दो मध्यस्थों ने मारिशस में आयोजित हुए एक ट्रेड फेयर में प्रदर्शित करने के लिए राजस्थान सहित देशभर के कलाकारों से काफी धन बटोरा। इनमें से एक ने 15 और एक अन्य ने 25 कलाकारों की कृतियां प्रदर्शन के लिए बुक की।
यूं हुआ घोटाला
मारीशस के एक ट्रेड फेयर में दिल्ली के दो मध्यस्थों, सामान्य बोलचाल की भाषा में कहे तो दलालों ने दस बाई दस की दो अलग-अलग स्टाल्स बुक कराई। उसके बाद उन्होंने कलाकारों से उनकी कलाकृतियां प्रदर्शित करने के लिए 5 हजार रुपए प्रति पेंर्टिग्स की दर से पेसा वसूला किसी भी कलाकार ने दो से अधिक काम नहीं दिए। पांच हजार रुपए वसूलने वाले दलाल को करीब 15 कलाकारों के 20 काम मिले और फिर काम ढीला पड़ गया। उधर दूसरे दलाल ने 5 हजार रुपए में दो पेंटिंग्स प्रदर्शित करने के नाम पर 25 कलाकारों के 50 काम ले लिए। निर्धारित तिथि पर दोनों ट्रेड फेयर में पहुंचे, कुछ पेंटिंग्स भी साथ ले गए। जब बुक की हुई स्टाल का पैसा चुकाने का समय आया तो कोई भी पूरी स्टॉल का किराया देने की स्थिति में नहीं था। एक ने अपने साथ चावल के दाने पर नाम लिखनेे वाले एक अन्य कलाकार को पार्टनर बनाया तो दूसरे ने किन्ही श्रीमती नियाजी के नाम से बुक स्टाल में आधी जगह पाने के लिए मोटी रकम चुकाई।
अब दोनों के पास ही अलग-अलग जगह आधी-आधी स्टॉल थी। ऐसे में दोनों ही किसी का कोई काम प्रदर्शित करने की स्थिति में नहीं थे, सेल की तो बात ही दूर रही। एक ने अपनी थोड़ी सी जगह में आगंतुकों के प्रोटेट बनाने शुरू किए और पैसा बनाया। जबकि दूसरा यह भी नहीं कर पाया क्यों कि वह कलाकार भी नहीं था।
यूं खुला मामला
ट्रेड फेयर के बाद जब कलाकारों को यह बताया गया कि उनकी कोई पेंटिंग नहीं बिकी, लेकिन काम लोगों ने पसंद किया है। भविष्य में उम्मीद है।
स्वभाव से सीधे कलाकारों ने उनकी बात सही मान कर संतोष कर लिया। उधर एक दूसरे के धंधे में टांग फंसाने से नाराज दलालों ने बदला लेने और आगामी आयोजनों से एक दूसरे का पत्ता काटने के विचार से कलाकारों के सम्मुख एक दूसरे की पोल खोलनी शुरू की। बस यहीं से कलाकार जागृत हुए और मूमल को दोनों ओर से जानकारियां मिलने लगी।
दलालों की सलाह पर प्रदर्शनी के प्रमाण में कलाकारों ने प्रदर्शनी में लगे उनके काम के फोटोग्राफ चाहे। ट्रेड फेयर में बुक स्टॉल के लिए किए गए भुगतान की रसीद दिखाने को कहा। अब दलाल बगले झांकने लगे। एक दूसरे के लिए खोदी खाई में गिरे दलालों में से एक ने बताया कि उसने तो अपनी स्टॉल के पैसे चुकाए और उसके पास रसीद भी है। उसने प्रतिदिन कुछ-कुछ कलाकारों का काम प्रदर्शित किया और फोटो भी खींचे। उसके बाद कैमरा खराब जाने के कारण वह फोटोग्राफ किसी को दिखा नहीं पाया। उसने दूसरे दलाल के लिए बताया कि उसे तो आयोजकों ने जैसे-तैसे एक मिसेज नियाजी के स्टॉल में आधी जगह दिलाई। उसने वहां एक दिन नियाजी मैडम के आने से पहले पूरे स्टॉल में अपने साथ लाई कुछ पेंटिंग्स को बारी-बारी से लगा कर फोटोग्राफी शुरू की, लेकिन इस बीच मैडम नियाजी आ गई तो झगड़ा भी हुआ। बाद में तो उसके पास पेंटिंग्स रखने का ठिकाना भी नहीं था और उसके लाई पेंटिंग्स मेरे स्टॉल में टेबिल के नीचे रख्री जाती थी।
इसकी पुष्टि किए जाने पर दूसरे दलाल ने सभी बातें बेबुनियाद और गलत बताते हुए पहले के लिए कहा कि उसने अपने स्टॉल में चावल पर नाम लिखने वाले को आधी जगह दे दी। आधी जगह में कितनी पेंङ्क्षटग्स लगने की गुजाइश थी? यह तो कोई भी जान सकता है। अब ऐसे में कैमरा खराब नहीं होता तो क्या होता?
कुल मिलाकर कलाकारों से उनकी कृतियों के प्रदर्शन और सेल के नाम पर पैसे लेने वाले दोनों दलालों ने एक दूसरे की पोल जमकर खोली। दोनों ने बताया कि उनके पास प्रदर्शित की जाने वाली कृतियों के लिए तैयार किया हुआ कैटेलॉग है। स्टॉल के भुगतान किए धन की रसीद और प्रदर्शनी के कुछ फोटोग्राफ हैं। मूमल से हुई बातचीत में दोनों ने ही इनकी प्रतिलिपियां ई-मेल पर भेजने की बात कही, लेकिन बार-बार याद दिलाए जाने के बावजूद समाचार लिखें जाने तक दोनों की ओर से कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं कराए गए।
अन्तत:
विदेशों में प्रदर्शन को लेकर उत्सुक और महत्वाकांक्षी कलाकार ही इस ठगी के शिकार हुए हैं। गांठ से रकम गंवाने के बाद भी ना तो उनकी कोई कृति बिकी और न ही प्रदर्शित ही हो पाई। और तो और अपनी प्रदर्शन उपलिब्धयों में जोडऩे के लिए एक कैटलाग या फोटोग्राफी तक नहीं जुट पाई। इन ठगे-ठगे से कलाकारों में दिल्ल्ी के वरिष्ठ कलाकारों के साथ यू.पी. और राजस्थान के कलाकार भी शामिल हैं।
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