किशनगढ़ ख्यातिलब्ध साहित्यकार महाराजा सावंतसिंह की पासवान “बनीठनी” उत्तम कोटि की कवयित्री और भक्त-हृदया नारी थी| अपने स्वामी नागरीदास की भांति ही बनीठनी की कविता भी अति मधुर, हृदय स्पर्शी और कृष्ण-भक्ति अनुराग के सरोवर है| वह अपना काव्य नाम “रसिक बिहारी” रखती थी| रसिक बिहारी का ब्रज, पंजाबी और राजस्थानी भाषाओँ पर सामान अधिकार था| रसीली आँखों के वर्णन का एक पद उदाहरणार्थ प्रस्तुत है- रतनारी हो थारी आँखड़ियाँ | प्रेम छकी रस बस अलसारणी, जाणी कमाल पांखड़ियाँ | सुन्दर रूप लुभाई गति मति हो गई ज्यूँ मधु मांखड़ियाँ| रसिक बिहारी वारी प्यारी कौन बसि निसि कांखड़ियाँ|| रसिक प्रिया ने श्रीकृष्ण और राधिका के जन्म, कुञ्ज बिहार, रास-क्रीड़ा, होली, साँझ, हिंडोला, पनघट आदि विविध लीला-प्रसंगों का अपने पदों में वर्णन किया है| कृष्ण राधा लीला वैविध की मार्मिक अभिव्यक्ति पदों में प्रस्फुटित हुई है| एक सांझी का पद इस प्रकार पाठ्य है- खेले सांझी साँझ प्यारी| गोप कुंवरि साथणी लियां सांचे चाव सों चतुर सिंगारी|| फूल भरी फिरें फूल लेण ज्यौ भूल री फुलवारी| रहया ठग्या लखि रूप लालची प्रियतम रसिक बिहारी|| प्रिय की अनुपस्थिति प्रिया के लिए कैसी कितनी पीड़ाप्रद और बैचेनी उत्पन्न करने वाली होती है, यह तथ्य एक पंजाबी भाषा के पद में प्रकट है- बहि सौंहना मोहन यार फूल है गुलाब दा| रंग रंगीला अरु चटकीला गुल होय न कोई जबाब दा| उस बिन भंवरे ज्यों भव दाहें यह दिल मुज बेताब| कोई मिलावै रसिक बिहारी नू है यह काम सबाब दा ||
“बनीठनी” पर एक लेख में राजस्थानी भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार श्री सौभाग्य सिंह जी ने उपरोक्त विवरण लिखा था| आपकी पत्रिका देख “बनीठनी” के बारे में ज्यादा जानने की उत्सुकता हुई इसलिए कृपया निम्न ईमेल पते पर पत्रिका ईमेल संस्करण भिजवाने की कृपा करें - shekhawatrs@ymail.com
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किशनगढ़ ख्यातिलब्ध साहित्यकार महाराजा सावंतसिंह की पासवान “बनीठनी” उत्तम कोटि की कवयित्री और भक्त-हृदया नारी थी| अपने स्वामी नागरीदास की भांति ही बनीठनी की कविता भी अति मधुर, हृदय स्पर्शी और कृष्ण-भक्ति अनुराग के सरोवर है| वह अपना काव्य नाम “रसिक बिहारी” रखती थी| रसिक बिहारी का ब्रज, पंजाबी और राजस्थानी भाषाओँ पर सामान अधिकार था| रसीली आँखों के वर्णन का एक पद उदाहरणार्थ प्रस्तुत है-
रतनारी हो थारी आँखड़ियाँ |
प्रेम छकी रस बस अलसारणी, जाणी कमाल पांखड़ियाँ |
सुन्दर रूप लुभाई गति मति हो गई ज्यूँ मधु मांखड़ियाँ|
रसिक बिहारी वारी प्यारी कौन बसि निसि कांखड़ियाँ||
रसिक प्रिया ने श्रीकृष्ण और राधिका के जन्म, कुञ्ज बिहार, रास-क्रीड़ा, होली, साँझ, हिंडोला, पनघट आदि विविध लीला-प्रसंगों का अपने पदों में वर्णन किया है| कृष्ण राधा लीला वैविध की मार्मिक अभिव्यक्ति पदों में प्रस्फुटित हुई है| एक सांझी का पद इस प्रकार पाठ्य है-
खेले सांझी साँझ प्यारी|
गोप कुंवरि साथणी लियां सांचे चाव सों चतुर सिंगारी||
फूल भरी फिरें फूल लेण ज्यौ भूल री फुलवारी| रहया ठग्या लखि रूप लालची प्रियतम रसिक बिहारी||
प्रिय की अनुपस्थिति प्रिया के लिए कैसी कितनी पीड़ाप्रद और बैचेनी उत्पन्न करने वाली होती है, यह तथ्य एक पंजाबी भाषा के पद में प्रकट है-
बहि सौंहना मोहन यार फूल है गुलाब दा| रंग रंगीला अरु चटकीला गुल होय न कोई जबाब दा|
उस बिन भंवरे ज्यों भव दाहें यह दिल मुज बेताब|
कोई मिलावै रसिक बिहारी नू है यह काम सबाब दा ||
“बनीठनी” पर एक लेख में राजस्थानी भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार श्री सौभाग्य सिंह जी ने उपरोक्त विवरण लिखा था|
आपकी पत्रिका देख “बनीठनी” के बारे में ज्यादा जानने की उत्सुकता हुई इसलिए कृपया निम्न ईमेल पते पर पत्रिका ईमेल संस्करण भिजवाने की कृपा करें -
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Gyan Darpan
digvijayjaldhari@gmail.com
mkvijay2003@yahoo.co.uk
sharma.deepaksharmajaipur.deep@gmail.com
kirtisinghal1@yahoo.co.in
pls send me pdf file of this "bani- thani".on my mail id.
aismjwa@yahoo.com
shridwarkanath@gmail.com
radhe radhe, pls send me pdf file of this "bani- thani".on my mail id
regards
sanjay sharma
please send me pdf of edition of the magazine having 'Bani Thani' description on meeranagarnagar@gmail.com
कृपया बणी ठणी वाले संस्करण ईमेल से उपलब्ध करा दें।
आपका धन्यवाद
herithart@email.com
sunilparihar906@gmail.com
Please send me
amankubth2021@gmail.com
Please send me as soon as possible 🙏
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