मूमल का फरवरी दिव्तीय अंक |
आज (14 अक्टूबर 2012) को सुबह वे सर्दी व कफ से परेशान थे, डाक्टर ने उन्हें दवा का इन्जेक्शन दिया। उसके बाद से वे अधोर अचेत से सो रहे हैं। उन्हें इस बात का कोई ज्ञान नहीं है कि उन्हें सम्मानित किया जा रहा है। 94 वर्षीय साखलकर को शनिवार प्रात: उनके आदर्शनगर स्थिति निवास स्थान पर उनकी पुत्री श्रुति व पुत्र सचिन साखलकर के माध्यम से इस पुरस्कार के बारे में बताने का प्रयास किया गया। मूमल को मिली जानकारी के अनुसार पुरस्कार की घोषणा के बाद उन्हें सूचना देने गए जिला प्रशासन के अधिकारियों ने उनकी स्थिति की जानकारी अकादमी और अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दी है। इसके बाद आनन-फानन में उन्हें कल 15 अक्टूबर को उनकी शैया तक जाकर सम्मानित करने का कार्यक्रम निधारित किया गया।
सर्वाधिक लोकप्रिय पुस्तक
मुख्यमंत्री ने हिन्दी ग्रंथ अकादमी की ओर से प्रकाशित साखलकर की लोकप्रिय पुस्तक 'आधुनिक चित्रकला का इतिहास' के लिए अकादमी की ओर से यह पुरस्कार देने की घोषणा की है। पुरस्कार के रूप में साखलकर को 51 हजार रुपये की नकद राशि तथा स्मृति चिन्ह प्रदान किया जायेगा।
मुख्यमंत्री निवास से वयोवृद्घ लेखक को पुरस्कृत करने की जानकारी जिला कलक्टर वैभव गालरिया को 13 अक्टूबर 2012 को दी गई। इसके बाद अतिरिक्त कलक्टर शहर जे.के.पुरोहित व सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के सहायक निदेशक प्यारे मोहन त्रिपाठी ने साखलकर के आदर्शनगर स्थित निवास स्थान पर पहुंच कर परिवारजनों को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा उन्हें सम्मानित करने की घोषणा के बारे में जानकारी दी।
सर्वाधिक प्रतिष्ठित पुरस्कार
राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी के अध्यक्ष आर.डी.सैनी ने बताया कि 'प्रज्ञा' पुरस्कार अकादमी का सर्वाधिक प्रतिष्ठित पुरस्कार है, जो प्रतिष्ठित लेखक को उनकी पुस्तिक के 15 संस्करण प्रकाशित हो जाने पर प्रदान किया जाता है। रत्नाकर विनायक साखलकर ऐसे ही सर्वाधिक प्रतिष्ठित लेखक हैं, जिनकी पुस्तक ''आधुनिक चित्रकला का इतिहास'' के 15 संस्करण अकादमी द्वारा प्रकाशित किये गये हंै।
सैनी ने बताया कि साखलकर एक मात्र ऐसे लेखक हैं, जिन्होंने चित्रकला विषय पर शुद्घ हिन्दी में रोचक तरीके से पुस्तकें लिखीं और उनकी पुस्तक ''आधुनिक चित्रकला का इतिहास'' अकादमी द्वारा प्रकाशित पुस्तकों में सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली पुस्तक है। साखलकर की चित्रकला पर लिखी गई पुस्तकों के प्रकाशन के बाद ही ललित कला के क्षेत्र में पुस्तकें पढ़ी जाने लगी है। अकादमी द्वारा साखलकर की चार पुस्तकों का प्रकाशन किया गया है।
रत्नाकर विनायक साखलकर 1954 में अजमेर आये तथा डी.ए.वी. कॉलेज में चित्रकला के विभागाध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला। चित्रकला के एम.ए. के पाठ्यक्रम के निर्धारण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। उन्होंने पूना के सर जे.जे. स्कूल ऑफ आटर््स से स्नातक तथा स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की।
मूमल इंम्पेक्ट
मूमल ने इसी साल फरवरी द्वितीय अंक को साखलकर दादा को समर्पित करते हुए उनके बारे में विस्तार से जानकारी प्रकाशित की थी। उसी में प्रमुखता से यह उल्लेख भी किया था कि पिछले साल इनकी पुस्तक की सर्वाधिक लोकप्रियता को देखते हुए राजस्थान ग्रन्थ अकादमी के नियमानुसार साखलकर जी को सम्मानित किए जाने का प्रस्ताव बना था। पुरस्कार और सम्मानों से दूर रहने के अपने स्वभाव के अनुसार पहले साखलकर दादा यह सम्मान भी लेने को तैयार नहीं थे। बाद में अकादमी के अधिकारियों ने इनके परिजनों से सम्पर्क कर बात बनाई तो दादा ने अपने स्वभाव के विपरीत इसके लिए स्वीकृति दे दी।
लेकिन, इसके बाद वह हुआ जिससे वयोवृद्ध कलाविद और उनके परिजन दोनों बुरी तरह आहत हुए। सम्मान का कार्यक्रम कहीं फाइलों में ऐसा अटका कि सन् 2011 में पहले जुलाई फिर अगस्त और उसके बाद हर महीने अगले महिने पर बात टलती रही। आखिर साखलकर दादा के परिजनों ने आस छोड़ दी। आखिर फरवरी के अंक में मूमल ने इस मुद्दे को फिर उठाया और यह आशंका भी व्यक्त की कि सरकार अगर समय रहते सम्मान नहीं कर सकी तो हो सकता है बाद में काफी देर हो जाए। इसके बावजूद अकादमी के अधिकारियों को सम्मान किए जाने के कार्यक्रम को क्रियांवित करने में आठ महीने का वक्त और लग गया।
सैनी ने बताया कि साखलकर एक मात्र ऐसे लेखक हैं, जिन्होंने चित्रकला विषय पर शुद्घ हिन्दी में रोचक तरीके से पुस्तकें लिखीं और उनकी पुस्तक ''आधुनिक चित्रकला का इतिहास'' अकादमी द्वारा प्रकाशित पुस्तकों में सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली पुस्तक है। साखलकर की चित्रकला पर लिखी गई पुस्तकों के प्रकाशन के बाद ही ललित कला के क्षेत्र में पुस्तकें पढ़ी जाने लगी है। अकादमी द्वारा साखलकर की चार पुस्तकों का प्रकाशन किया गया है।
रत्नाकर विनायक साखलकर 1954 में अजमेर आये तथा डी.ए.वी. कॉलेज में चित्रकला के विभागाध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला। चित्रकला के एम.ए. के पाठ्यक्रम के निर्धारण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। उन्होंने पूना के सर जे.जे. स्कूल ऑफ आटर््स से स्नातक तथा स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की।
मूमल इंम्पेक्ट
मूमल ने इसी साल फरवरी द्वितीय अंक को साखलकर दादा को समर्पित करते हुए उनके बारे में विस्तार से जानकारी प्रकाशित की थी। उसी में प्रमुखता से यह उल्लेख भी किया था कि पिछले साल इनकी पुस्तक की सर्वाधिक लोकप्रियता को देखते हुए राजस्थान ग्रन्थ अकादमी के नियमानुसार साखलकर जी को सम्मानित किए जाने का प्रस्ताव बना था। पुरस्कार और सम्मानों से दूर रहने के अपने स्वभाव के अनुसार पहले साखलकर दादा यह सम्मान भी लेने को तैयार नहीं थे। बाद में अकादमी के अधिकारियों ने इनके परिजनों से सम्पर्क कर बात बनाई तो दादा ने अपने स्वभाव के विपरीत इसके लिए स्वीकृति दे दी।
लेकिन, इसके बाद वह हुआ जिससे वयोवृद्ध कलाविद और उनके परिजन दोनों बुरी तरह आहत हुए। सम्मान का कार्यक्रम कहीं फाइलों में ऐसा अटका कि सन् 2011 में पहले जुलाई फिर अगस्त और उसके बाद हर महीने अगले महिने पर बात टलती रही। आखिर साखलकर दादा के परिजनों ने आस छोड़ दी। आखिर फरवरी के अंक में मूमल ने इस मुद्दे को फिर उठाया और यह आशंका भी व्यक्त की कि सरकार अगर समय रहते सम्मान नहीं कर सकी तो हो सकता है बाद में काफी देर हो जाए। इसके बावजूद अकादमी के अधिकारियों को सम्मान किए जाने के कार्यक्रम को क्रियांवित करने में आठ महीने का वक्त और लग गया।
2 टिप्पणियां:
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