जीवन के सरल व जटिल रचना चित्र
(ललित कला अकादमी नई दिल्ली के कला वीथिका 5 में चित्रकार संजय शर्मा और छायाकार कुमार जिगीषु के चित्रों की प्रदर्शनी लगाई गई है यह प्रदर्शनी 25 अप्रैल से आरम्भ हुई है और 1 मई 2018 तक रहेंगी। प्रदर्शनी में प्रदर्शित चित्रों व चित्रकारों पर भूपेंद्र कुमार अस्थाना के विचार इस लेख द्वारा प्रस्तुत हैं।- सं.)समय-समय पर कला की तमाम विधाओं पर निरंतर नए प्रयोग होते रहे है। जिसके कारण कला के विभिन्न रूप हमारे सामने आते रहे है। कलाकार समाज, जीवन, विचारधारा, सभ्यता और संस्कृति से प्रभावित हो कर ही कला के माध्यम से स्वयं को अभिव्यक्त करता है।
यहां मैं ऐसे ही दो कलाकारों की चर्चा कर रहा हूं जिनकी कला दृष्टि उनकी कृतियों को अर्थ प्रदान करती है।
चित्रकार संजय शर्मा ने अपनी कलायात्रा की शुरुआत औद्योगिक नगर से छोटे स्तर से की और समकालीन चित्रकला की दुनियां मे खुद को स्थापित किया। संजय की कलाकृतियां तत्काल परिवेश से जुड़ी हुई हैं। जिसकी प्रतिक्रिया इनके चित्रों में है। जिसे इन्होंने तैल और ऐक्रेलिक माध्यम में कैनवास पर उकेरा है। चित्रों में वर्तमान समाज, भौतिक भाषा, परंपरा और आधुनिकता की परत है। इनके चित्रों में वर्तमान सामाज पर राजनीति का एक गहरा असर दिखलाई पड़ता है। कहीं कहीं सामाजिक बंटवारे का विरोध तथा वर्तमान परिस्थिति में परिवर्तन की मांग भी नजऱ आ रही है। अपने मनोभावों के चित्रण का माध्यम इन्होंने भोंपू को बनाया है।
संजय के लिए चित्रित सतह बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह न केवल समाज, ख़ुद और इतिहास की अभिव्यक्ति है बल्कि विभिन्न माध्यमों में उकेरे गए रूपों में और प्रयोगों की संभावनाएंं भी है। विशेष रूप से परतों और सतह निर्माण के संदर्भ में। चित्रों में एक प्रतिरोध भी है। शायद यह परंपरा और आधुनिकता की परतों को दर्शाता है। संजय ने अपने आस पास की दुनियां को अपने कला का माध्यम बनाया है। उन्हें एक अर्थ में पिरोने की कोशिश की है।
छायाकार कुमार जिगीषु ने कला का लम्बा सफर तय किया है। माध्यम कुछ भी हो सृजनशील व्यक्ति अपनी रचनाओँ से समाज मे अपना महत्वपूर्ण योगदान देता रहता है। ऐसे ही कुमार जिगीषू ने भी अपने विचारों और ग्राफिक माध्यम के साथ सुंदर प्रयोग किये हैं। अपने प्रयोगों के बारे में कुमार कहते है कि, मैं डिजिटल में कुछ बुनियादी तत्वों के साथ कार्य करता हूँ क्योंकि वह मुझे आकर्षित करते है और मुझपर गहरा प्रभाव डालते है। जिसमें मेरी खोज निरन्तर जारी रहती है। डिजिटल प्रयोग एक बहुत ही सरल तरीके से किया गया कार्य है जो जटिल काम का असर देता है।
कुमार इस सरल और जटिल प्रक्रिया को अपने जीवन यात्रा के साथ जोड़ते है। जो छोटे शहर से शुरू हो कर आधुनिकता से लेस बड़े बड़े महानगरों में जटिलताओं के बीच जीवन को सरल और सफल बनाने के तरीकों की खोज कर रहे हैं। इस खोज में जीवन के सभी महत्वपूर्ण तत्व साथ साथ चल रहे हैं और जो पीछे छूट गए थे उनकी तलाश भी जारी है। कुमार के लिए सबसे महत्वपूर्ण तत्व अंतराल, संरचना और संतुलन है। कभी कभी स्थान परिवर्तन तथा वास्तविकता को समझने के, मन के तरंगों को दूर दूर भटकने के बाद वापस और एक निश्चित प्रकार की बेचैनी के बाद एक चेतना एक ऊर्जा उत्पन्न होती है। इनकीे कला का उद्देश्य जीवन मे गायब बिंदुओं को ढूंढना और उन्हें प्रतीकों के रूप में स्थापित करना है। जो इनके चित्रों में देखा जा सकता है। चित्रों में कहीं छितिज का गायब हो जाना। दीवारों के बीच क़ैद, बुनियादी जरूरतों के बीच उलझन के बाद भावनाओं का शून्यकाल में खो जाना।
इन्हें डिजिटल ग्राफिक्स इफ़ेक्ट्स के जरिये बनाया गया है। कुमार बताते है कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है । यहाँ कुछ भी स्थिर नही है। कहीं आकर, कहीं रंग, रूप निरंतर परिवर्तन होते रहते है। कहीं को स्थान खाली होता फिर कभी भरा होता। कुछ समाप्त होता तो कहीं जन्म होता। यही प्रकृति है। जो ब्रह्मांड के बड़े सतह पर निरंतर परिवर्तन होते रहते उसी ब्रह्मांड में तलाश जारी है। जो मेरे चित्र बोल रहे हैं। कुमार ने अपने चित्रों को किसी शीर्षक में नही बांधते उन्हें स्वतंत्र रखते है। इनका मानना है कि शीर्षक के माध्यम से दर्शकों के विचारों को प्रतिबंधित नही करना चाहिए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें