बुधवार, 5 नवंबर 2014

Jaipur Art Summit 2014, Seminar.

सेमीनार शुल्क दो नहीं, एक हजार रुपए
मूमल नेटवर्क, जयपुर। जयपुर आर्ट समिट 2014 के तहत आयोजित दो दिवसीय सेमीनार में भाग लेने का शुल्क एक हजार रुपए ही है, पूर्व में यह दो हजार रुपए प्रचारित हुआ था।
समिट सूत्रों ने इसे स्पस्ट करते हुए बताया कि सेमीनार में शामिल होने के लिए पिछले वर्ष की तरह एक हजार रुपए शुल्क ही लिया जा रहा है। इस शुल्क में सेमीनार वाले दो दिनों के दौरान पढ़े जाने वाले पेपर्स का फोल्डर और इन दो दिनों का लंच शामिल हैं। इसके अलावा पिछले साल समिट के पहले संस्करण का कैटेलॉग लिए जाने पर 500 रुपए और इस साल के द्वितीय संस्करण का कैटेलॉग लिए जाने पर 500 रुपए और जमा कराने होंगे। यह नहीं लेने पर सेमीनार का शुल्क एक हजार रुपए ही होगा।
कला फिल्मों का प्रदर्शन
समिट के व्यस्त कार्यक्रम में दो दिन में कम से कम आठ कला फिल्मों के प्रदर्शन शामिल किए गए हैं। इनके लिए 17 और 18 नवम्बर के दिन तय किए गए हैं।
समिट टीम के सदस्य आर.बी. गौतम ने बताया कि इन फिल्मों के चयन में यह खास बात होगी कि सभी फिल्में स्वयं कलाकारों द्वारा बनाई गई है। इनमें पहले दिन 17 नवम्बर को दिखाई जाने वाली फिल्में वह होंगी जो कलाकारों द्वारा स्वयं की कला के बारे में सोच को स्पस्ट करती हैं। इनमें वरिष्ठ चित्रकार गोपी गजवानी, श्रीधर अय्यर, आर.एम. पाकिस्तान के नईम  और दोहा के आबू अलिंगा की फिल्में शामिल हैं।
दूसरे दिन 18 नवम्बर को कलाकारों द्वारा अन्य कलाकारों पर बनाई फिल्में शामिल की गई हैं। गोपी गजवानी द्वारा एस.एच. रजा और के. विक्रम सिंह द्वारा अमित्व दास पर बनाई फिल्मों के साथ धीरज चौधरी पर बनी फिल्म भी कला प्रेमी देख सकेंगे।

गुरुवार, 30 अक्टूबर 2014

Jaipur Art Summit; Seminar

जयपुर आर्ट समिट 2014; सेमीनार विवरण
जयपुर आर्ट समिट में इस बार सेमीनार के लिए दो दिन रखे गए हैं। यह 15 व 16 नवम्बर हैं। सेमीनार में प्रतिदिन दो सत्र होंगे। पहला सत्र प्रात: 11 बजे शुरू होगा जो दोपहर 1.30 बजे तक चलेगा। प्रतिदिन दूसरा सत्र दोपहर बाद 2.30 बजे शुरू होगा और शाम 5 बजे तक चलेगा। इस बीच आमंत्रित वक्ताओं के संबोधन और खुली चर्चा होगी। दो दिनों में होने वाले कुल चार सत्रों में केवल पहले दिन के दूसरे सत्र में हिन्दी में पत्र पढ़े जाएंगे। शेष सभी सत्र अंग्रेजी में होंगे।
15 नवम्बर 2014 शनिवार को सेमीनार के पहले दिन प्रथम सत्र में डा. सरयु वी. दोषी वक्ता होंगे। वे 'बॉम्बे स्कूल एंड इट्स इफेक्ट ऑन द आर्ट ऑफ द पीरियडÓ विषय पर अपना पेपर पढ़ेंगे। दूसरे पेपर के वक्ता जॉनी एम.एल. होंगे। वे 'डायनामिक्स ऑफ मार्केट फोर्सेस एंड चेंज सिनीरियो ऑफ कन्टेम्पररी आर्टÓ विषय पर अपना पेपर पढ़ेंगे।
दूसरे सत्र की शुरूआत शिव प्रसाद जोशी के पत्र से होगी। इनके पत्र का विषय 'समसामयिक कला सृजन का मनोविज्ञान तथा सम्प्रेषणÓ होगा। दूसरे पत्र के वक्ता डा. एम.के. भट्ट होंगे। वे 'समसामयिक कला में व्यवसायिक संगठनों का योगÓ विषय पर अपना पत्र पढ़ेंगे।
16 नवम्बर 2014 रविवार को सेमीनार के दूसरे दिन प्रथम सत्र में प्रो. दीपक कन्नाल वक्ता होंगे। वे 'प्रोस्पेक्ट्स ऑफ न्यू मीडिया इन कन्टेम्पररी टे्रंड ऑफ आर्ट्सÓ विषय पर अपना पेपर पढ़ेंगे। दूसरे पेपर के वक्ता प्रो. सुरेश जयराम होंगे। वे 'कन्टेम्पररी इंडियन आर्ट, वॉट इज न्यूÓ विषय पर अपना पेपर पढ़ेंगे।
दूसरे सत्र की शुरूआत चामिंडा गामगे के पेपर से होगी। इनके पेपर का विषय 'कन्टेम्पररी आर्ट सिनीरियो इन श्रीलंकाÓ होगा। दूसरे पेपर के वक्ता सुबोध केरकर होंगे। वे 'माय एक्सपेरिमेंट विद आर्टÓ विषय पर अपना पेपर पढ़ेंगे।
रजिस्ट्रेशन
आयोजकों की ओर से सेमीनार के लिए रजिस्ट्रेशन किया जा रहा है। इसके लिए जयपुर के जवाहर कला केंद्र और होटल क्लार्स आमेर में काउंटर प्रस्तावित हैं। इस साल सेमीनार के लिए रजिस्ट्रेशन फीस 2000 रुपए रखी गई है। सेमीनार के प्रतिभागियों के लिए दोनों दिन लंच की व्यवस्था होगी और सेमीनार में पढ़े जाने वाले पेपर्स की कॉपी उपलब्ध कराई जाएगी।
रजिस्ट्रेशन के संबंध में अधिक जानकारी और सहयोग के लिए 'मूमलÓ हमेशा की तरह तैयार है।
सम्पर्क सूत्र:
ई-मेल moomalnews@gmail.com
फोन 9928487677, 9460789743
Whatsaap also at 9928487677 

Jaipur Art Summit; PROGRAMME OVERVIEW

जयपुर आर्ट समिट के कार्यक्रम 


स्थान: होटल क्लाक्र्स आमेर और जवाहर कला केंद्र, जयपुर 
14 नवम्बर 2014 - (शुक्रवार)
होटल क्लाक्र्स आमेर में एशियन आर्टिस्ट कैंप का उद्घाटन
जवाहर कला केंद्र में ऑल इंडिया आर्ट एक्जिबिशन का उद्घाटन और स्टॉलेशन
15 नवम्बर 2014 - (शनिवार)
होटल क्लाक्र्स आमेर में एशियन आर्टिस्ट कैंप
जवाहर कला केंद्र में ऑल इंडिया आर्ट एक्जिबिशन
जवाहर कला केंद्र और होटल क्लाक्र्स आमेर में स्टॉलेशन
समकालीन कला संगोष्ठी एवं चर्चाएँ - होटल क्लाक्र्स आमेर में प्रथम और द्वितीय सत्र
जवाहर कला केन्द्र में पारंपरिक कला का प्रदर्शन
16 नवम्बर 2014 - (रविवार) 
होटल क्लाक्र्स आमेर में एशियन आर्टिस्ट कैंप
जवाहर कला केंद्र में ऑल इंडिया आर्ट एक्जिबिशन
जवाहर कला केंद्र और होटल क्लाक्र्स आमेर में स्थापना
समकालीन कला संगोष्ठी एवं चर्चाएँ - होटल क्लाक्र्स आमेर में सत्र तृतीय और चतुर्थ
जवाहर कला केन्द्र पर पारंपरिक कला का प्रदर्शन
17 नवम्बर 2014 - (सोमवार) 
होटल क्लाक्र्स आमेर में एशियन आर्टिस्ट कैंप
जवाहर कला केंद्र में ऑल इंडिया आर्ट एक्जिबिशन
जवाहर कला केंद्र और होटल क्लाक्र्स आमेर में स्थापना
जवाहर कला केंद्र में कला सिनेमा प्रदर्शन
जवाहर कला केंद्र में पारंपरिक कला प्रदर्शन
18 नवम्बर 2014 - (मंगलवार)
होटल क्लाक्र्स आमेर में एशियन आर्टिस्ट कैंप के चित्रों की प्रदर्शनी
होटल क्लाक्र्स आमेर और जवाहर कला केंद्र में समिट के सत्र समापन

रविवार, 19 अक्टूबर 2014

अधिक भव्य होगा जयपुर आर्ट समिट



संवारने में जोर-शोर से जुटी समिट की टीम 
देशभर से जुटेंगे जाने-माने वरिष्ठ चित्रकार
छह देशों के 15 विदेशी कलाकारों का आना तय

मूमल नेटवर्क, जयपुर।
मूमल नेटवर्क, जयपुर। गुलाबी नगरी को सतरंगी रंगों से सराबोर करने वाले जयपुर आर्ट समिट का दूसरा एडिशन पिछले साल की तुलना में और ज्यादा सज-संवर कर अधिक भव्य होने जा रहा है। आगामी 14 से 18 नवंबर तक होटल क्र्लाक आमेर और जवाहर कला केन्द्र में होने जा रहे आयोजन की तैयारियां जोर-शोर से चल रहीं है। चेयरपर्सन टिम्मी कुमार की अगुवाई में समिट की पूरी टीम इसे और अधिक कारगर बनाने में व्यस्त है। इस बार जवाहर कला केन्द्र की तमाम दीर्घाओं के साथ शिल्प ग्राम को भी बुक करवाया गया है। समिट का प्रमुख उद्देश्य जयपुर के सांस्कृतिक इतिहास के अनुसार आधुनिक कला को नए सिरे से परिभाषित करने के साथ प्रदेश के चितेरों को देश-विदेश के कलाकारों से रूबरू कराना है।
समिट टीम के सदस्य आर.बी. गौतम ने एक जानकारी में बताया कि समिट में पेंटिग्स के साथ-साथ विजुअल, डिजिटल, स्क्लपचर्स व इंस्टालेशन कलाओं का प्रदर्शन किया जाएगा। इसमें देश-विदेश के जाने-माने कलाकारों को काम करते हुए देखा जा सकेगा। क्रिएटिव फोटोग्राफी के क्षेत्र में हिमांशु और पेपर मेकिंग में ओमप्रकाश, वाटर कलर में बिजय बिस्सास, प्रिन्ट मेकिंग में शाहिद परवेज और सिनेमा बैनर्स के लिए हरिओम तंवर भी लाइव डेमो केरेंगे। समिट के पांचों दिन चलने वाले आर्ट कैंप में देश भर के वरिष्ठ व नामचीन कलाकारों को आमन्त्रित किया गया है। होटल क्लार्क में लगने वाले इस कैम्प के जरिए नव कलाकारों को वरिष्ठ जनों के काम के तरीके और कला के परिपक्व अंदाज सीखने व समझने का अवसर मिलेगा।
अंतरराष्ट्रीय सहभागिता
समिट में भारत के विभिन्न हिस्सों से आए कलाकारों के साथ बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका और नेपाल के कलाकार लाइव डेमो के जरिए अपनी कलाकृतियों का प्रदर्शन करेंगेे। दोहा, कतर और इजिप्ट से भी कलाकार आ रहे हैें। अब तक करीब 6 देशों के 15 कलाकारों के पहुंचने की स्वीकृति प्राप्त हो गई है और सिलसिला जारी है।
पौने दौ सौ कलाकारों के काम
समिट के तहत जेकेके की दीर्घाओं में अखिल भारतीय स्तर की कला प्रदर्शनी का आयोजन किया जाएगा। इस प्रदर्शनी में लगभग 175 कलाकारों की कृतियां प्रदर्शित होंगी। होटल क्र्लाक परिसर के अलावा जेकेके के खुले शिल्पग्राम में भी स्क्लपचर्स व इंस्टालेशन का बड़े पैमाने पर प्रदर्शन होगा।
सेमीनार
इसके साथ सेमिनार व आर्ट कैंप भी आयोजित होंगे। इस वर्ष सेमीनार केवल दो दिन 15 व 16 नवंबर को होगा। सेमीनार में डा. एम.के. भट्ट, शिव प्रसाद जोशी, सुबोध केलकर,  डॉ. सरयू दोषी, दीपक कनाल, जॉनी एम.एल, सुरेश जयराम और राजीव लोचन जैसे कलाविद अपने पेपर पढ़ेंगे। इसी के साथ आर्ट फिल्म शो के तहत नई जानकारियों और महान कलाकारों के काम का जायजा भी लिया जा सकेगा।

रविवार, 12 अक्टूबर 2014

Contacts of Artist (Late) Rameshwar Singh's family

रामेश्वर सिंह परिवार के सम्पर्क सूत्र
मूमल नेटवर्क, जयपुर। दिवंगत चित्रकार रामेश्चर सिंह के निधन के समाचार पर उनके साथियों, समकक्ष चित्रकारों, विद्यार्थियों और उनके प्रशंसकों की और से बहुत अधिक संख्या शोक संवेदना संदेश प्राप्त हुए हैं और हो रहे हैं। बहुत से मित्र उनके परिवार से सीधे सम्पर्क के लिए कान्टेक्ट नम्बर, डाक का पता और ई-मेल चाहते हैं। 
रामेश्चर सिंह 66 वर्ष के थे और पिछले कुछ अर्से से बीमार थे। उनके फेफड़ों में संक्रमण हो गया था। 9 अक्टूबर की शाम को उनका अंतिम सस्कार कर दिया गया। वे अपने पीछे पत्नी और चार विवाहित पुत्रियों सहित भरा-पुरा परिवार छोड़ गए।
आप अपने शोक और संवेदना संदेश नीचे दिए सम्पर्कों पर दे सकते हैं। 

Late Rameshwar Singh 
Flat No. 007, Block Narbada-05, Sector D-6, (New DDA Flats) 
Vasant Kunj, New Delhi-110070 
Mobile: +91-9958595515 
Email: rameshwar5@yahoo.co.in

Mrs. Bhawna Singh 
Flat No. 006, Block Yamuna-06 
Sector D-6, Vasant Kunj 
New Delhi-110070 
Mobile: (0) 9810507456 
Email: bhawna.studio@gmail.com

Mrs. Bhumika Takshak   
B-109,Ganapati Tower,Thakur Village
Kandivali (East), MUMBAI-400101
PH:09958063310
Email: bhumi_takshak@rediffmail.com

Nishanat Dange
B-109,Ganapati Tower,Thakur Village
Kandivali (East), MUMBAI-400101
PH:09819886720

शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2014

चित्रकार रामेश्चर सिंह की स्मृति मे शोक सभा


रामेश्वर सिंह को भरे मन से याद किया 
मूमल नेटवर्क, जयपुर। वरिष्ठ चित्रकार रामेश्चर सिंह की स्मृति में आयोजित शोक सभा में आज उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को उनके साथियों और युवा चित्रकारों ने भारी मन से याद किया। रामेश्चर सिंह का कल दिल्ली में निधन हो गया था। यह शोक सभा राजस्थान ललित कला अकादमी में शाम को आयोजित की गई।
गुरूवार को रामेश्चर सिंह के निधन का समाचार जानने के बाद प्रदेश के कला जगत में शोक की लहर दौड़ गई। रामेश्चर सिंह राजस्थान के देवगढ़ निवासी थे और लम्बे समय तक उदयपुर और जयपुर में सक्रीय रहे। अकादमी में शुक्रवार को आयोजित होने वाले नियमित फिल्म शो के बाद आयोजित शोक सभा में उनके काफी करीब रहे जयपुर के वरिष्ठ चित्रकारों ने उन्हें याद करते हुए कहा कि आज राजस्थान के सुप्रसिद्ध चित्रकार  रामेश्वर सिंह के देहावसान की खबर से देश के सभी कलाकार शोक मग्न है।
श्री रामेश्वर सिंह देश के उन चित्रकारों में से एक थे जिन्होंने देश की फड़ चित्रशैली  से प्रेरणा लेकर उसे समकालीन रूपको एवं मुहावरो में इस कदर संयोजित किया कि उनकी एक विशिष्ट पहचान बन गई। परम्परा के साथ आधुनिकता का मेल कैसे किया जाय, ये उन्हें अच्छी तरह आता था। वे यह ऐसे चित्रकार थे जिन्हें अपनी कलाकृतियां बेचने के लिए कभी कोई जोड़-तोड़ नहीं करनी पड़ी।  खरीददारों- के साथ-साथ पुरुस्कार भी उसका पीछा करते रहे। उन्होंने यह स्थापित किया कि काम में यदि दम हो तो किसी के सहारे की जरूरत नहीं रहती। वे बहुत ही फक्कड़ और सूफी मिज़ाज़ के कलाकार थे। रामेश्वर सिंह   जितने बड़े सृजनकार थे उतने ही सरल व सीधे इंसान भी थे। वे किसी से कोई शिकवा या शिकायत नहीं करते थे। इसीलिए सर्वप्रिय रहे। सभी का  लाडला चित्रकार हमारे बीच नहीं रहा,  इस बात की गहरी रंजिश  सभी के मन में है।
उनके काफी करीबी रहे वरिष्ठ चित्रकार विद्यासागर उपाध्याय ने उनकी खुद्दारी को याद किया तो डा. चिन्मय मेहता ने उनहें फक्कड़ और सूफी मिज़ाज़ वाले बेहतर इंसान के रूप में याद किया। दिलीप सिंह चौहान ने उन्हें समर्थ होते हुए भी गुटबाजी से परहेज करने वाला कुशल कलाकार बताया। समन्दर सिेंह खंगारोत 'सागर' ने उनके शुरूआती दिनों को याद किया। तेजी से उभर रहे युवा चित्रकार नवल सिंह चौहान ने बताया कि जब तक उन्हें इस चित्रकार की उम्र का पता नहीं था वे रामेश्वर सिंह की कृतियों को देखकर उनहें कोई युवा कलाकार ही समझते थे।
इस अवसर पर अकादमी सचिव नीतू राजेश्वर सहित चित्रकार नाथूलाल वर्मा, अशोक गौड़, मीनाक्षी कासलीवाल भारती, वीरबाला भावसार, मीनू श्रीवास्तव, कृष्णा महावर, आर.बी.गौतम, विनोद भारद्वाज, सुनित घिल्डियाल, जगमोहन माथोडिय़ा, अर्जुन प्रजापति, वीरबाला भावसार, कैलाशचन्द शर्मा, राजस्थान विश्वविद्यालय के कला विद्यार्थी, उदयमान कलाकारों में इरा टाक व शालिनी गुप्ता शामिल थे। कार्यक्रम का संचालन प्रदर्शनी अधिकारी विनय शर्मा ने किया।

गुरुवार, 9 अक्टूबर 2014

Artist Rameshwar Singh On More

वरिष्ठ चित्रकार रामेश्चर सिंह नहीं रहे
मूमल नेटवर्क, जयपुर। वरिष्ठ चित्रकार रामेश्चर सिंह का आज दिल्ली में निधन हो गया। वे 66 वर्ष के थे और पिछले कुछ अर्से से बीमार थे। आज शाम को उनका अंतिम सस्कार कर दिया गया। अपने पीछे पत्नी और चार विवाहित पुत्रियों सहित भरापुरा परिवार छोड़ गए। 
रामेश्वर सिंह अपनी कृतियों में परम्परागत और समसामयिक चित्रकला का कुशल मिश्रण के लिए जाने जाते थे। अपनी खास चित्रकला शैली के लिए वे जितने प्रसिद्ध थे उतने ही अपने रहन-सहन की खास स्टाइल के लिए भी वे चर्चा में बने रहते थे।

गुरुवार, 18 सितंबर 2014

मूमल संपादकीय नितांत जरूरी है निरंतरता

संपादकीय
नितांत जरूरी है निरंतरता
कला जगत में स्तरीय आयोजनों को अभाव होता जा रहा है। जो आयोजन होते भी हैं उनका अंतराल अधिक है। छोटे कस्बो और शहरों की बात तो छोडि़ए राजधानी तक कला क्षेत्र के गिने चुने आयोजनों तक सिमटे हैं। जयपुर को ही लें तो कुछ समय पहले तक कला गतिविधियां पहले केवल रवीन्द मंच और उसके बाद जवाहर कला केंद्र तक केंद्रित हो कर रही। दो साल पहले जयपुर आर्ट फेस्टिवल के रूप में एक प्रयास किया गया साल दर साल उसमें परिपक्वता आ जाएगी यह उम्मीद छोड़ी नहीं जा सकती। अब पिछले साल से जयपुर आर्ट समिट ने ऐसे कला आयोजन के स्तर और अर्थ दोनों को बढ़ाया है। अब इस साल वह 14 से 18 नवम्बर तक होगा। उममीद की जानी चाहिए कि अब के बरस वह और निखरेगा।
किसी भी काल, देश व समाज की संवेदनशीलता को जीवित रखने के लिए कला गतिविधियों का निरंतर होते रहना बहुत आवश्यक है। मनुष्य के स्वभाव में यह शामिल है कि वह निरंतर जिस माहौल में रहता है, सुनता, देखता और समझता है उसे ही अपने जीवन में ग्रहण करता है। कला का स्पंदन मनुष्य के कोमल भावों में प्राण फूंकने का काम करता है। उसके भीतर की तेजाब सी हिंसा और विकृत भावनाओं का नाश करता है।
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि आए दिन कला के नाम पर हमारे आगे कुछ ऐसा परोस दिया जाता है जिसे कला की क्षेणी में गिनना ही कला का अपमान करना कहा जा सकता है, लेकिन इस कभी-कभार के वाकये के इतर हमें अक्सर ग्रहण करने योग्य कुछ अच्छा भी मिल  जाता है जिसे कला के रूप में देखा और समझा जा सकता है।
वैसे भी कला में मतभेद हमेशा से वक्त मांग रही है जो कभी मिट नहीं सकती। हर व्यक्ति के देखने, सोचने और समझने का दृष्टिकोण अलग-अलग होता है। एक कृति जो उसके रचियता के लिए कोई एक भाव रखती है वहीं दर्शक में कोई अलग उत्पन्न करती है।  और तो और उसी कृति का भाव हर देखने वाले की दृष्टि और समझ के अनुसार अलग-अलग हो जाता है। यह भी कह सकते हैं कि देखने वाले के मन की भावनाएं और दृष्टि का कोण केवल उस व्यक्ति के लिए कृति के महत्व को भिन्न कर देता है।
काल, खंड और समय के अनुरूप भी किसी कृति का गठन और सौन्दर्य प्रभावित होता रहता है 'दादावाद' इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। कला गठन की परम्पराओं को तोड़ते हुए कृति को अपनी समझ और उपलब्ध गैर पारंपरिक साधनों से निर्मित किया जाने लगा। कृति के विकृत रूपाकारों में भी सौदर्य खोजा गया और उसे कला की संज्ञा दी गई।
यहां हम समसामयिक कला की चर्चा कर सकते हैं। किसी कलाकार द्वारा सृजित कृति का सौन्दर्य और अर्थ प्रत्येक दर्शक के नजरिए और समझ के अनुसार बदल जाता है। कई बार तो कलाकार स्वयं अपने सृजन की व्याख्या सुन कर अचंभित हो जाता है।
कुल मिला कर यहां यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि कला मनुष्य को प्रभावित करती है। उसकी सोई हुई संवेदना को जगाने का काम करती है। इसी लिए कला की निरंतरता बने रहना अति आवश्यक है, चाहे वह सम्पूर्ण कला पर कसौटी पर खरी उतरे या नहीं। संवेदनाओं की दुनियां में एक छोटा सा कलात्मक प्रयास भी बड़ा महत्व रखता है।

शनिवार, 13 सितंबर 2014

राष्ट्रपति भवन में कलाकारों के लिए 'इन रेडिडेंटस' कार्यक्रम


 8 सितम्बर से 26 सितम्बर तक राष्ट्रपति भवन में रहेंगे
मूमल नेटवर्क, नई दिल्ली। राष्ट्रपति भवन में कलाकारों और साहित्यकारों के लिए 'इन रेडिडेंटस' कार्यक्रम शुरू किया गया है। पिछली 8 सितम्बर को शुरू हुए वर्ष 2014 के 'इन रेजिडेंस' कार्यक्रम में दो चित्रकार और दो लेखक शामिल किए गए हैं।
चेन्नई से चित्रकार राहुल सक्सेना और मुम्बई से प्रताप मोरे को राष्ट्रपति भवन में रहकर अपनी कला को निखारने का मौका मिला है। साहित्यकारों में गंगटोक से सुश्री यिशी डोमा भूटिया और कड़प्पा, आंध्र प्रदेश से डॉ. वेमपल्ली गंगाधर का चयन हुआ है। जानकारी के मुताबिक, ये सभी 8 सितम्बर से 26 सितम्बर तक राष्ट्रपति भवन में रहेंगे।
चित्रकार
Pratap More
राहुल सक्सेना अपने आप को 'बदलाव का कलाकार' कहलाना पसंद करते हैं, जो रोज़मर्रा की चीजों को खूबसूरत कलाकृतियों में बदल देते हैं। उनका मानना है कि बदलाव की यह ललक ही विविध संभावनाओं की आधारशिला है। सक्सेना कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के साथ 15 साल काम करने के बाद पूर्ण रूप से कलाकार बने।
प्रताप मोरे को उनकी कला के लिए कई पुरस्कार मिल चुके है तथा देश-विदेशों में उनकी कलाकृतियों की प्रदर्शनी हो चुकी है। मोरे की कलाकृतियां शरीर, शहरी जीवन तथा इनके आपसी संबंध का चित्रण करती हैं। अपनी कृतियों के माध्यम से वे पुनर्विकास, विस्थापन तथा शहरी जीवन के तेज विकास जैसे विषय उठाते हैं।


साहित्यकार
तेलुगू लेखक डॉ. वेमपल्ली गंगाधर को उनकी कृति 'मोलाकला पुन्नामी' के लिए 2011 में साहित्य अकादमी ने युवा पुरस्कार से सम्मानित किया था। उन्होंने किसानों, महिलाओं तथा रायलसीमा के सूखाग्रस्त क्षेत्रों आदि पर कई किताबें और लेख लिखे हैं। सिक्किम साहित्य सम्मान 2013 की विजेता सुश्री यिशी डोमा भूटिया एक पत्रकार-लेखिका हैं। वर्तमान में वह 'सिक्किम एक्सप्रेस' में कॉपी संपादक हैं। उन्होंने कई किताबें लिखी हैं, जिनमें से प्रमुख हैं: 'लीजेंडस ऑफ द लेप्चाज: फॉकटेल्स फ्रॉम सिक्किम', 'सिक्किम: द हिडन फ्रूटफुल वैली', 'सिक्किम: अ ट्रैवलर कंपेनियन' 'द लीगेसी मेकर: पवन चामलिंग आइडियाज़ दैट शेप्ड सिक्किम'।

आप कलाकार हैं तो बनिए राष्ट्रपति के मेहमान                                   
मूमल नेटवर्क, नई दिल्ली । अगर आप लेखक या चित्रकार हैं और आपको देश के प्रथम नागरिक के आवास में कुछ दिनों तक रहकर काम करने का मौका मिले तो कैसा रहे। अब यह मुमकिन है। राष्ट्रपति भवन में कलाकारों और साहित्यकारों के लिए 'इन रेजिडेंस' कार्यक्रम शुरू किया गया है।
इस कार्यक्रम के तहत देश के दो चित्रकारों और दो ही साहित्यकारों को चयन किया जाता है। चुने हुए कलाकारों को राष्ट्रपति भवन में रहकर अपनी कला को और अधिक निखारने का अवसर दिया जाता है।

प्रथम योजना
लेखकों और कलाकारों का राष्ट्रपति भवन में निवास 
योजना परिचय 
'रचनात्मकता और नवीनता मानव खुशी और विकास के लिए दोनों आवश्यक है।' यह सोच है भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की। उनका दृढ़ विश्वास है कि चिंतन का गुण; आत्मनिरीक्षण और प्रतिबिंब, शरीर और मन के स्वस्थ विकास के लिए जरूरी हैं । इसी सोच का अनुसरण करते हुए देश के लोगों की रचनात्मकता को आगे लानेविशेष रूप से युवाओं को प्रोत्साहित करने के लिए 'राष्ट्रपति भवन में निवास' कार्यक्रम शुरू किया गया है।
राष्ट्रपति का यह भी कहना है कि आज तक राष्ट्रपति भवन में राष्ट्र और बाहर के उच्च स्तर के लोगों के लिए ही कार्यक्रम आयोजित किए जाते रहे हैं। राष्ट्रपति भवन में आम आदमी की अधिक से अधिक हो और वो गतिविधियों में भाग ले सके, इसलिए 'राष्ट्रपति भवन में निवास' कार्यक्रम के रूप में यह कदम उठाया गया है। यह योजना रचनात्मक लोगों का स्वागत करते हुए 11 दिसंबर 2013 से शुरू की गई है। इसमें लेखक, कलाकार और युवा विद्वान राष्ट्रपति भवन में रहकर राष्ट्रपति भवन के जीवन का एक हिस्सा बनते हुए रचनात्मक कार्य करेगें।
राष्ट्रपति भवन के सुरम्य और शांत वातावरण में प्रकृति के करीब रहकर रचनात्मकता के लिए अवसरों का पता लगाने के लिए भारत के युवा और स्थापित लेखकों और कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए एक प्रयास है। इस प्रयास के तहत रचनात्मक सोच को प्रेरित करने तथा अच्छी कला और साहित्य के निर्माण के लिए कलात्मक वातावरण प्रदान किया जाएगा। इस कार्यक्रम की विभिन्न गतिविधियों के तहत रीडिंग सेशन, कला प्रदर्शनियां आदि शामिल है। यह अवसर केवल चयनित लेखकों / कलाकारों के लिए आयोजित किया जाएगा।
योजना का उद्देश्य 
1  रचनात्मकता को आकार देने के लिए राष्ट्रपति भवन में लेखकों और कलाकारों के लिए एक अनुकूल माहौल प्रदान करना।
2 युवा और स्थापित लेखकों और कलाकारों को अधिक से अधिक अवसर देना।
3 देश के युवा लेखकों और कलाकारों के लिए प्रेरणा का एक स्रोत देने के  रूप में।
4 विशेष रूप से देश के युवाओं के बीच, समाज में रचनात्मक और सकारात्मक सोच को बढ़ावा देना।
आवेदन कौन कर सकता हैैं?
कला और साहित्य के क्षेत्र में एक स्थापित ट्रैक रिकॉर्ड के साथ सभी भारतीय नागरिक।
चयन प्रक्रिया 
भारत के राष्ट्रपति की वेबसाइट के माध्यम से इच्छुक आवेदकों से आवेदन आमंत्रित किए जाते हैं: httpÑ//presidentofindia.nic.in  'राष्ट्रपति भवन में लेखक निवास' या 'राष्ट्रपति भवन में कलाकार निवास' के चयन के लिए आवेदन पत्र और शॉर्टलिस्ट नामों की स्क्रीनिंग एक समिति द्वारा की जाएगी। राष्ट्रीय / राज्य पुरस्कार जीत चुके लेखकों / कलाकारों को प्राथमिकता दी जाएगी। इस योजना के तहत राष्ट्रपति भवन में रहने की अवधि एक माह की होगी। लेकिन आवश्यक्ता पडऩे पर समिति इस एक माह की अवधि को बढ़ा सकती है। एक वर्ष में अधिकतम चार लेखकों / कलाकारों का चयन किया जाएगा। चयन से संबंधित सभी मामलों में समिति का निर्णय अंतिम होगा।


द्वितिय योजना 
इनोवेशन स्कॉलर्स इन-रेजीडेंस
योजना  परिचय 
राष्ट्रपति भवन नवसृजन की भावना को बढ़ावा देने के लिए मुगल गार्डन के उद्घाटन के अवसर पर जमीनी स्तर पर नवसृजन की एक प्रदर्शनी आयोजित करता है। इस मौके पर राष्ट्रपति द्वारा नवसृतकों को पुरस्कार भी प्रदान किया जाता है।  देश में जमीनी स्तर पर नवसृजनआंदोलन को आगे प्रोत्साहन देने के लिए, राष्ट्रपति भवन में इनोवेशन स्कालर्स के लिए 'इन-रेजीडेंस' योजना शुरू की जा रही है।
योजना का उद्देश्य 
1 जमीनी स्तर पर नवीन आविष्कारों के लिए एक वातावरण प्रदान करने के लिए राष्ट्रपति भवन में  ऐसे इनोवेशन स्कालर्स को  'इन-रेजीडेंस' योजना में आमंत्रित करना जो किसी परियोजना पर काम कर रहे हैं ताकि उनके नवीन विचारों को आगे बढ़ाया जा सके।
2 कुछ नया करने के लिए अपनी क्षमता को मजबूत करने हेतु चयनित स्कालर्स को तकनीकी संस्थानों के साथ सम्पर्क करवाया जाएगा।
3 स्कालर्स को नवसृजन के लिए सलाह और सहायता प्रदान करना ताकि समाज की प्रगति और कल्याण के लिए उनके विचारों का इस्तेमाल किया जा सके।
आवेदन कौन कर सकता हैैं?
सभी भारतीय नागरिक जो नवसृजन में जुटे स्कालर्स व एक ट्रैक रिकॉर्ड है।
चयन प्रक्रिया 
भारत के राष्ट्रपति की वेबसाइट के माध्यम से इच्छुक आवेदकों से आवेदन आमंत्रित किए जा रहे हैं:  www.presidentofindia.nic.in. एक समिति द्वारा 'इनोवेशन स्कॉलर्स इन-रेजीडेंस' के लिए प्राप्त आवेदन पत्रों की शॉर्टलिस्ट व नामों की स्क्रीनिंग की जाएगी। इस योजना के तहत राष्ट्रपति भवन में रहने की अवधि एक माह की होगी। लेकिन आवश्यक्ता पडऩे पर समिति इस एक माह की अवधि को बढ़ा सकती है। चार इनोवेशन स्कालर्स का हर वर्ष इस योजना के तहत चयन किया जाएगा। चयन से संबंधित सभी मामलों में समिति का निर्णय अंतिम होगा।

उपरोक्त दोनो योजनाओं के अन्य विवरण 
समर्थन 
लेखकों, कलाकारों और इनोवेशन स्कालर्स जिनका राष्ट्रपति भवन में 'इन रेजिडेंस' कार्यक्रम के लिए चयन हुआ है को  निकटतम रेलवे स्टेशन / हवाई अड्डे से दिल्ली के लिए  एसी 2 टियर रेलवे टिकट या इकोनोमिक हवाई टिकटों की प्रतिपूर्ति की व्यवस्था की जाएगी। उनको आवास, भोजन और उनके रहने की अवधि के दौरान (संबंधित कार्यक्रम के प्रासंगिक उद्देश्यों के लिए) स्थानीय ट्रैवल की सुविधा उपलब्ध करवाई जाएगी।
फॉलोअप प्रोग्राम
कार्यक्रम में शामिल कलाकारों के राष्ट्रपति भवन से लौटने के बाद नेशनल इनोवेेशन फांऊडेशन उनके सम्पर्क में रहेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि  स्कालर्स इस कार्यक्रम के सम्पर्क में रहें और उनके विकसित विचारों का लाभ अन्य को भी मिलता रहे।
आवेदन का तरीका 
इच्छुक व्यक्ति राष्ट्रपति भवन में 'इन रेजीडेंस' कार्यक्रम के लिए भारत के राष्ट्रपति की वेबसाइट पर उपलब्ध निर्धारित प्रारूप में आवेदन कर सकते हैं।www.presidentofindia.nic.in. पर अनुलग्नकों और एक तस्वीर के साथ भरा आवेदन भारत के राष्ट्रपति की वेबसाइट के माध्यम से ऑनलाइन भेजा जा सकता है। या ईमेल के द्वारा writer-artist@rb.nic.in (लेखक / कलाकार के लिए) तथा innovation-scholar@rb.nic.in  ( इनोवेशन स्कालर्स के लिए ) भी भेजा जा सकता है। इन दो विकल्पों के अलावा आवेदक, श्री सौरभ विजय, निदेशक, राष्ट्रपति सचिवालय, राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली- 110004 को डाक द्वारा भी आवेदन भेज सकते हैं। लिफाफे के ऊपर  (लेखक / कलाकार या इनोवेशन स्कालर्स इन रेजीडेंस) लिखा रहना चाहिए।
संदर्भ वेबसाइट:  httpÑ//www.presidentofindia.nic.in/ino_art_writ.html 

रविवार, 24 अगस्त 2014

जयपुर: सिटी पैलेस में लगी आग से भारी नुकसान

मूमल नेटवर्क जयपुर। राजस्थान की गुलाबी नगरी जयपुर के ऐतिहासिक सिटी पैलेस में आज सुबह आग लगने से म्यूजियम एवं प्रशासनिक भवन की दो मंजिलें पूरी तरह से जलकर खाक हो गई। इस आग से म्यूजियम में रखी प्राचीन कला कृतियां, हस्तकला का सामान सहित कई पुराने दस्तावेज जल गए लेकिन कोई जनहानि नहीं हुई है। आग लगने के स्पष्ट कारणों का पता नहीं चला है लेकिन प्रथम दृष्टया आग लगने का कारण शॉर्ट सर्किट को माना जा रहा है।
अग्निशमन अधीक्षक फूलचंद के अनुसार सुबह 8 बजे सिटी पैलेस में आग लगने की सूचना मिली और दमकल की एक दर्जन गाड़ियों ने बड़ी मशक्कत से ढाई घंटे में आग पर काबू पाया। पुलिस ने पर्यटकों को महल में आने से पहले ही बाहर रोक दिया जिससे आग पर काबू पाने में कोई दिक्कत ना हो सके। पुलिस उपायुक्त अशोक कुमार ने बताया कि आग से कितना नुकसान हुआ अभी तक इसकी जानकारी नहीं है।

जयपुर के सिटी पैलेस में आग से सैकड़ों पेंटिंग्स और दस्तावेज जलकर खाक देंखे चित्रावली 











शुक्रवार, 1 अगस्त 2014

MOOMAL August-1st 2014 Issue

आपके सम्मुख यह मूमल के अगस्त प्रथम अंक 2014 की छाया प्रति है. 
यह इमेज खुलने में थोड़ा समय लग सकता है..... धैर्य रखें।  








मंगलवार, 1 जुलाई 2014

ललित कला अकादमी में नियमित फिल्म शो

मूमल नेटवर्क, जयपुर। राजस्थान ललित कला अकादमी की ओर से कला और कलाकारों से संबंधित फिल्म शो का सिलसिला शुरू किया जा रहा है। प्राप्त जानकारी के अनुसार माह में कम से कम दो बार फिल्म शो किए जाने की योजना है।
कार्यक्रम के तहत इस सिलसिले की शुरुआत 4 जुलाई को होगी। भविष्य में इसे माह के प्रत्येक पहले और तीसरे शुक्रवार को किए जाने की योजना है। फिल्म शो के साथ ही संबंधित विषय पर जानकारों की उपस्थिति में चर्चा भी होगी।
पहली कड़ी में पद्मश्री से सम्मानित कृपाल सिंह शेखावत और राम गोपाल विजयवर्गीय से संबंधित शो होगा।

सोमवार, 16 जून 2014

MOOMAL June-2

सुधि पाठक,
आपके सन्मुख यह 'मूमल' का June-2 (2014) अंक की छाया प्रति है।
यह इमेज खुलने में थोड़ा समय लग सकता है..धर्य रखें
यह आलेख पूरा और स्पस्ट पढ़ने के लिए कुछ समय बाद मूमल दर्शना देखें
इसका लिंक दाहिनी ओर 'जानिए कहाँ क्या है ' बॉक्स में है.  
यदि आप मूमल पत्रिका की मुद्रित प्रति (हार्ड कॉपी) के भी नियमित सदस्य हैं तो 
आपके दिए पते पर 19  June 2014 कों यह डाक से भी भेजी जाएगी ।
Context For Hard Copy E-Mail moomalnews@gmail.com

गुरुवार, 12 जून 2014

केशव मलिक का निधन...एक खामोश अवसान

कला समीक्षक केशव मलिक का निधन


मूमल नेटवर्क, नई दिल्ली। वरिष्ठ कला समीक्षक, संपादक व कवि पद्मश्री केशव मलिक अब हमारे बीच नहीं रहे। उन्होंने 10 जून, 2014 को देर रात दिल्ली में अंतिम सांस ली, वे 90 वर्ष के थे।रात को उन्हें दिल का दौरा पडऩे के बाद उनके परिजन उन्हें गंगाराम अस्पताल में ले गए, जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। 11 जून की शाम लोधी रोड स्थित श्मशान घाट में उनका अंतिम संस्कार हुआ।
अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत में 5 नवंबर 1924 को जन्में केशव मलिक की प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली और कलकत्ता में हुई। अमर सिंह कॉलेज श्रीनगर, कश्मीर से 1945 में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद 1947-48 में उन्हें जवाहर नेहरू के निजी सचिव के तौर पर काम करने का अवसर मिला। बाद के वर्षों में उच्च शिक्षा के लिए 1950-58 तक लगातार यूरोप और अमरीका की यात्राएं की। भारत लौटने के बाद साल 1960 से लगातार कलासमीक्षक के तौर पर अखबारों एवं पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेखन व संपादन से जुड़े रहे।
एक खामोश अवसान
केशव मलिक नहीं रहे यह सुन कर झटका लगा। हालांकि पिछले काफी समय से वे अस्वस्थ चल रहे थे फिर भी जब कोई उन्हें प्रदर्शनी उद्घाटन के लिये बुलाता था, वे आ जाते थे। हर कला आयोजन में उनकी उपस्थिति चाहने वालों से लेकर अपने केटेलॉग में उनके विचार की दो लाइनें शामिल कराने को महीनों उनकी खुशामद करने वालों की भीड़ में इस व्यक्तित्व का एक खामोश अवसान चौकाने वाला रहा।
इसमें कोई शक नहीं कि उनके जैसे कला आलोचक कम ही होते हैं। वे एक कवि भी थे, यह बात तो लगभग सभी जानते हैं परन्तु वे चित्रकार भी थे, यह बात कम ही लोगों को पता होगी। पत्रकारों के लिए उनसे बातचीत करना हमेशा सुखद रहता था। चाहे वह प्रदर्शनी में हो या उनके घर पर। उनसे कला की दुनिया और कला आलोचना की स्थिति को लेकर उनके पास एक लम्बा अनुभव था। वे कला आलोचना की स्थिति को लेकर बहुत खुश नहीं थे, क्योंकि समाचार पत्रों ने अपने यहां कला समीक्षा के लिये जगह खत्म कर दी। एक आलोचक के रूप में कैसे किसी कृति को देखा जाए इसको लेकर 'मूमल' ने एक स्तम्भ भी आरंभ किया। उस समय उन्होंने एक बात कही थी जो अब भी याद है। उन्होंने कहा था कि कला पर लिखने के लिये सिर्फ  कला को देखना ही काफी नहीं है बल्कि उसे जीना भी जरूरी है। उनकी याद हमेशा बनी रहेगी।

केशव मलिक कहते थे कि कलाकार को संवेदनशील होना चाहिए। कला को संवेदना से अलग नहीं किया जा सकता कलाकार की आत्मशुद्धी एक अनिवार्य प्रक्रिया है। कला आपको अध्यात्म की ओर ले जाती है। अत: कलाकार को अपनी संवेदनाओं को आध्यात्म की ओर ले जाना चाहिए। इससे मनुष्य जन्म की सार्थकता प्राप्त होगी। हर समय नया या ओरीजिनल निर्माण करना, या करने की सोचना यह मात्र एक भ्रम होता है। अत: कार्य एवं प्रक्रिया पर ही कलाकार ने ध्यान देना चाहिए। इस प्रक्रिया को आत्मशुद्धि की प्रक्रिया बनाना चाहिए। अध्यात्म के सिवाय कला एक कारीगरी हो सकती है। उससे कलाकार कारीगर बन सकता है कलाकार नहीं। 

मंगलवार, 3 जून 2014

Art Market आर्ट मार्केट में भी बिजनेस स्टंट


आर्ट वल्र्ड में एक बार फिर बूम है। रिसेशन के बाद आर्ट मार्केट ने उबरने में बेशक समय लिया, लेकिन सिचुएशन ज्यादा अच्छी हो गई। गैलरीज़ में भीड़ जुट रही है और इसीलिये, रिसेशन में कदम पीछे खींचने वाले आर्टिस्ट अपना काम निकाल रहे हैं। भरपूर काम है उनके पास, पैसा भी खूब मिल रहा है। पैसा ही इस दुनिया में सक्सेस का पैमाना है। प्रोफेशनल होकर बात की जाए तो करोड़ का आंकड़ा छूने वाले आर्टिस्ट यहां सबसे सक्सेसफुल है। लाख और हजार में अपनी कला की कीमत पाने वाले सेकेंड और थर्ड। 
कई तरह के एडवांस टूल 
ऊपर से बेहद छोटी सी दिखने वाली कला की दुनिया असल में बहुत बड़ी है और इतना ही बड़ा है आर्ट मार्केट। करोड़ों डॉलर्स का है इसका आकार और यह पूरी दुनिया में फैला है। बहुत कम लोग जानते होंगे कि अन्य बाजारों की तरह आर्ट मार्केट में भी बिजनेस स्टंट अपनाए जाते हैं। अन्य बाजारों की तरह यहां भी इंटरनेट जैसे एडवांस टूल यूज होते हैं। गैलरीज में आर्ट एग्जीबिशन से भी कमाई होती है। आर्टिस्ट भी अन्य बिजनेसमैन्स की तरह मार्केट पर नजर रखते हैं और स्टेटजी अपनाते हैं। सीधे खरीदने वाले बायर्स के अलावा उन तक आर्ट पहुंचाने वाले मीडिएटर्स भी होते हैं जो सेल में कुछ हिस्सा लेते हैं।
कीमत से तय होता है कद
ऐसे में यह सवाल उठता है कि कला का मूल उद्देश्य क्या पैसा है? बिल्कुल नहीं, लेकिन आर्टिस्ट को भी तो जीना है। खास बात यह है कि आर्टिस्ट का कद उसकी कला की कीमत से होता है। हालांकि आज भी कई आर्टिस्ट पैसा कमाने के लिए नहीं बल्कि सैटिस्फैक्शन पाने को कला सृजन करते हैं पर मोस्टली इस विचार पर चलते हैं कि जीना है तो पैसा कमाना है और समझदारी से ज्यादा कमाई हो जाए तो इसमें हर्ज क्या है? फिर पेंटिंग की कॉस्ट से ही कद मापा जा रहा है तो यह सब मजबूरी भी हो
जाता है।
रजा सबसे बड़े आर्टिस्ट
पेंटिंग्स की कीमत से हिसाब से एसएच रजा भारत के सबसे बड़े आर्टिस्ट हैं क्योंकि उनकी सौराष्ट्र टाइटिल वाली पेंटिंग 16 करोड़ 53 लाख में बिकी। एफएन सूजा सेकेंड और तैयब मेहता थर्ड हैं जिनकी पेंटिंग्स 11 करोड़ 25 लाख और आठ करोड़ 20 लाख में बिकी हैं। वूमैन आर्टिस्ट आफ द सेंचुरी अमृता शेरगिल की विलेज सीन 6 करोड़ 90 लाख में खरीदी गई। इंडियन पिकासो कहे जाने वाले मकबूल फि़दा हुसैन का स्थान सातवां है। हुसैन की पेंटिंग बैटल बिटवीन गंगा एंड यमुना: महाभारत की कीमत 6 करोड़ 50 लाख मिली है। इसी नजर से भारती खेर, वीएस गायतोंडे, सुबोध गुप्ता और जहांगीर सबावाला भी बड़े कलाकार हैं। यह सब टॉप टेन में हैं। सबावाला की एक पेंटिंग जून 2010 में एक करोड़ 17 लाख में बिकी है, रजा की सौराष्ट्र को भी पिछले ही दिनों 16 करोड़ 73 लाख में बेचा गया। दोबारा बिक्री में 20 लाख अधिक मिले, इसलिये लोगों के लिए आर्ट आइटम्स खरीदना इन्वेस्टमेंट और बिजनेस भी है। कीमत के हिसाब से इंडिया के टॉप 25 आर्ट आइटम्स इन्हीं कलाकारों के हैं।
इंटरनेट का जमाना है 
कला की दुनिया में भी इंटरनेट का जमाना है इसलिये ही तो सूजा और सबावाला की आर्ट को करोड़ों की कीमत आनलाइन सेल से मिली है। इसी का रिजल्ट है कि एक आनलाइन सेल में चार करोड़ 20 लाख के आफर तो सिर्फ ब्लैकबेरी और आईफोन्स के जरिए मिले। रिसेशन के झटके से उबरने के बाद आर्ट वल्र्ड में रौनक लौट चुकी है। गैलरीज फिर आर्ट वर्क से सज रही हैं। नहीं तो, मुंबई की फेमस जहांगीर आर्ट गैलरी में भी भीड़ छंट गई थी। लंबे इंतजार के बाद एग्जीबिशन का मौका मिलने के बाद भी तमाम कलाकार वहां नहीं पहुंचे थे। जो पहुंचे, वो खाली हाथ लौट आए। यह समय उनके डंप हुए आर्ट वर्क के बिकने का है।


रविवार, 1 जून 2014

इतिहास हुई ऐतिहासिक इमारत


राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट का नया भवन अब 'शिक्षा संकुल' में
राजस्थान का सबसे पुराना कला संस्थान राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट अब नए भवन में शिफ्ट होने जा रहा है। विद्यार्थी व शिक्षक अब 2014-15 के नए सत्र के साथ अपना शिक्षण प्रशिक्षण शिक्षा संकुल स्थित कॉलेज की नई बिल्डिंग में करेंगे।
जयपुर दरबार महाराजा सवाई रामसिंह द्वितीय के संरक्षण में 1857 में आरम्भ हुए संस्थान का यह भवन आज विश्व भर में राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट के नाम से अपनी पहचान बना चुका है।
कॉलेज के नए भवन को कला शिक्षण के आधुनिक उपकरणें से सजाने का काम कॉलेज के वरिष्ठ व अनुभवी सदस्यों को सौंपा गया है। बेसमेंट को मिलाकर कॉलेज की बिल्डिंग का पांच मंजिला निमार्ण में कक्षाओं के साथ पेंटिंग्स, स्क्लपचर व आर्ट स्टोर, आर्ट गैलेरीज, कम्प्यूटर लैब, लायब्रेरी व कॉन्फै्रन्स रूम के साथ ग्राफिक, स्क्लपचर व पेंटिंग स्टूडियोज का निमार्ण किया गया है। यह सभी स्टूडियोज व लैब कला के आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित रहेगे। इसके साथ ही मूर्तिशिल्प का अभ्यास करने के लिए कॉलेज से सटा खुला मैदान भी विद्यार्थियों को आकर्षित करेगा। खुले व शोर शराबे रहित वातावरण में कला अभ्यास के प्रति विद्यार्थी अपना ध्यान केन्द्रित कर पाएंगे।
कलाकारी, कारोबारियों की?   
एक इतिहास का हाथ से यूं फिसल जाना बहुत दुखद है। इससे भी ज्यादा दुख की बात यह है कि भवन खाली होने की चर्चा के साथ ही ऐसे मौकों की तलाश में लगे रहने वाले कई व्यावसायिक लोगों की नजरें इस हवेली पर हैं। इनमें कला के वे बड़े कारोबारी भी शामिल हैं जो मौकों की तलाश नहीं करते, बल्कि ऐसे मौकों की रचना करते और कराते हैं। उल्लेखनीय है कि कुछ वर्ष पहले आमेर की कई कलात्मक, ऐतिहासिक और बहुमूल्य हवेलियां, यहां तक कि महल के हिस्से तक निजी कारोबारियों के हाथों में सौंप दिए गए।
बात कहां से उठी?
अब राजस्थान स्कूल आफ  आर्ट का इस अनमोल भवन के भी किसी  निजी स्वामित्व में जाने के कयास लगाए जा रहे हैं। सरकार तो आर्ट स्कूल को भवन के बदले भवन देकर अपना दायित्व पूरा कर चुकी है। सब जुगाड़ हो रहा है। लेकिन, कोई यह बताने को तैयार नहीं है कि यह बात कहां से उठी या उठवाई गई कि राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट को नए भवन की जरूरत है...।  इस भवन का वास्तविक मूल्यांकन करवाने की बात भी अभी तक किसी ने भी नहीं की है। एक तरफ जेडीए व पीडब्ल्यूडी भवन पर अपने स्वामित्व के दावे कर रहें हैं, वही दूसरी ओर प.ं शिवदीन का परिवार भवन को पाने की कोशिशों में लगा है। इसे पाने की लाइन में लगे कारोबारियों की लॉबिंग शुरू हो गई है। हालांकि अभी तक कोई खुलकर कोई सामने नहीं आया है। अब देखना यह है कि यह प्राचीन धरोहर किस के नाम होती है?
भवन खुद एक कलाकृति
सबसे बड़ी बात कि तब और अब के पर्यावरण के अनुकूल बना यह भवन छूट जाएगा। जयपुर दरबार के खास दरबारियों में शामिल पं. शिवदीन की यह हवेली जालीदार कलात्मक झरोखों व महराबों से सुसज्जित है। इसमें आज तक इस पुराने भवन में 46-47 डिग्री सेल्सियस की भीषण गर्मी में भी किसी एसी या कूलर की जरूरत नहीं पड़ी। प्रिंसिपल रूम तक में कभी एसी या कृलर नहीं लगा। यहां के कलात्मक झरोखे ठंडी प्राकृतिक हवा के साथ भवन को ठंडा रखने का काम करते रहे। यह बात अलहदा है कि इनके वास्तु या निर्माण तकनीक को समझने की जरूरत किसी ने नहीं महसूस नहीं की।
यही धरी रह जाएगी धरोहर
सरकार द्वारा प्रदत्त नए भवन में जाने के बाद राजस्थान स्कूल ऑफ  आर्ट को अपने ऐतिहासिक भवन के साथ इससे जुड़े अनेक दुर्लभ भित्ति चित्रों से हाथ धोना पड़ेगा। प्राचीन कलात्मक निमार्ण के साथ इस भवन की दीवारों पर कई महान कलाकारों की कृतियां और हस्ताक्षर अंकित हैं। पदमश्री रामगोपाल विजयवर्गीय, स्व. श्री पी.एन.चोयल द्वारा बनाए गए भित्ति चित्रों के साथ तब मोलेला व गुजरात से आए विख्यात कलाकार के बनाए म्युरल से कला क्षेत्र की धरोहर का वह हिस्सा हो गई दीवारें अब यहीं रह जाएंगी। इन्हें चाह कर भी राजस्थान स्कूल ऑफ  आर्ट का प्रशासन नए भवन में साथ नहीं ले जा पाएगा।
उत्साह भी है उदासी भी 
यहां की कलाकृतियों, कला उपकरणों व अन्य सामान को नए भवन तक पहुंचाने के लिए 70 से अधिक ट्रकों की बात कही जा रही है, लेकिन इससे अधिक सौ ट्रक तक सामान हो सकता है। इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि जाने-अनजाने कई चीजें छूट जाएंगी या छोडऩी पड़ेंगी। नए भवन में जाने के लिए कॉलज स्टॉफ और स्टूडेंट्स के मन में उत्साह है, वहीं इस कॉलेज की पहचान बन चुकी पुरानी एतिहासिक इमारत को छोडऩे की मायूसी भी है। कहते हैं कि एक युग की समाप्ति के बाद भी अवशेषों में बीते युग की प्रतिध्वनियां अनन्तकाल तक गूंजती है। जब-जब राजस्थान स्कूल ऑफ  आर्ट का नाम लिया जाएगा तब-तब आर्ट कॉलेज को समर्पित पं. शिवदीन की यह हवेली हर किसी के जहन में कौंधेगी।

इस संस्थान ने देश व दुनिया को कई नामचीन आर्टिस्ट दिए हैं। ना केवल विद्यार्थियों ने बल्कि यहां के शिक्षकों ने भी शीर्ष कलाकारों के रूप में विश्व स्तर पर देश का प्रतिनिधित्व किया है।
कॉलेज के पुराने विद्यार्थी
पदमश्री रामगोपाल विजयवर्गीय, देवकीनन्दन शर्मा, रूपचन्द जैन, पी.एन. चोयल, सुरेश चन्द राजौरिया, रघुनन्दन शर्मा, आनन्द शर्मा, हरिशंकर गुप्ता और विजय जोशी।
युवा कलाकार
विनय शर्मा, रामकिशन अडिग, श्वेत गोयल, रवीन्द्र शर्मा माइकल, मुकेश शर्मा, लालचन्द मारोठिया, धर्मेन्द्र राठौड़, मनीष शर्मा, गौरीशंकर शर्मा और दीपक खण्डेलवाल।
यहीं के विद्यार्थी अब यहीं के शिक्षक
हरशिव शर्मा, विनोद मैनी, जगमोहन माथोडिय़ा, नरेन्द्र सिंह यादव और देवीलाल वर्मा।
-राहुल सेन

शुक्रवार, 30 मई 2014

मदरसा-ए-हुनरी से राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट तक

Old Building at Kishanpol Bazar, Jaipur

विज्युअल आर्ट के क्षेत्र में नामी कलाकार देने वाली 
राजस्थान की सबसे पुरानी संस्था  
गौरवशाली इतिहास
सन् 1857 में मदरसा-ए-हुनरी के नाम से शुरू हुआ राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट का सफर कला शिक्षण की दुनिया में अनुभव, परिपक्वता, कला अभ्यास और काबिलियत को स्वयं में समेटे हुए है। देश की सबसे पुरानी कला शिक्षण संस्थाओं में से एक है, राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट। यहां शिक्षा प्राप्त विद्यार्थी स्वत: ही कला के गौरवशाली इतिहास का हिस्सा बन जाते हैं।
ग्रेजुएशन,पोस्ट ग्रेजुएशन
राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट में ग्रेजुएशन व पोस्ट ग्रेजुएशन तक विजुअल आर्ट की शिक्षा दी जाती है। कला के व्यावसायिक शिक्षण की स्नातक व स्नातकोत्तर डिग्री के लिए पेंटिंग, एप्लाइड आर्टस और मूर्तिशिल्प (स्क्लपचर) में से किसी को चुन सकते हैं। ग्रेजुएशन में 20 वर्ष से कम और पोस्ट गे्रजुएशन के लिए 26 वर्ष तक की आयु के विद्यार्थी एडमीशन ले सकते हैं।
अपेक्षाकृत कम शुल्क
कॉलेज में बैचलर डिग्री ऑफ  विजुअल आर्ट में पेंटिंग, एप्लाइड आर्टस व स्क्लपचर के लिए 24-24 सीटें व मास्टर डिग्री ऑफ  विजुअल आर्ट में पेंटिंग, एप्लाइड आर्टस व स्क्लपचर के लिए 12-12 सीटें उपलब्ध हैं। बीवीए की शिक्षण अवधि 4 वर्ष और एमवीए की शिक्षण अवधि 2 वर्ष (चार सैमिस्टर) में हैं। वार्षिक फीस संतुलित व अपेक्षाकृत कम है जो विद्यार्थियों के अभिभावकों पर ज्यादा आर्थिक भार नही डालती। एमवीए में सेल्फ फाइनेंस के रूप में भी एडमीशन लिया जा सकता है।
आधुनिक स्टूडियोज
कला शिक्षण के लिए नवीनतम व अति आधुनिक उपकरणों से सजे स्टूडियोज हैं, जहां  विद्यार्थियों को अभ्यास व शिक्षण में आसानी रहती है। एससी,एसटी व महिला विद्यार्थियों के लिए कॉलेज में विशेष सुविधाएं उपलब्ध हैं। कॉलेज का शैक्षिक वातावरण परिवारिक व सहज है।
अनुभवी शिक्षक
यहां पढ़ाने वाले शिक्षक कला क्षेत्र के वरिष्ठ और अनुभवी अध्यापक हैं। देशभर में उनकी पहचान शिक्षक के साथ-साथ बेहतर कलाकार के रूप में भी है। अनुभवी व परिपक्व शिक्षकों के संरक्षण में विद्यार्थी अपनी प्रतिभा को निखार कर कला की दुनिया में अपनी पहचान बना सकते हैं। देश-विदेश में स्थापित कलाकारों में से अनेक नाम यहां से शिक्षण प्राप्त कर निकले विद्यार्थियों के हैं।
सुसम्पन्न लायब्रेरी 
विषय के गहरे अध्ययन के लिए यहां की लायब्रेरी में बहुमूल्य पुस्तकों का भण्डार है। कला से सम्बन्धित लगभग 8000 पुस्तके कॉलेज की लायब्रेरी में हैं और नवीनतम पुस्तकों की भी नियमित रूप से खरीद होती रहती है।
अब नए भवन में 
इस सत्र से कॉलेज शिक्षा संकुल स्थित नए भवन में शिफ्ट हो रहा है, जो कला शिक्षण के आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित है। कॉलेज में एडमीशन के लिए बीएवी के 2 जून से और एमवीए के लिए14 जून से फार्म उपलब्ध होंगे। यह फार्म व प्रोस्पेक्टस  किशनपोल बाजार स्थित कॉलेज के पुराने भवन से प्राप्त किए जा सकते हैं। भरे हुए फार्म को बीएवी विद्यार्थी द्वारा 19 जून तक और एमवीए विद्यार्थी द्वारा 24 जून तक किशनपोल बाजार वाले पुराने भवन में जमा करवाया जा सकता है।
देखें: राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट 
New building at 'Shiksha Sankul' JLN Road, Jaipur

स्टैनी मैमोरियल पी.जी. कॉलेज,एक बेहतर विकल्प

निजी क्षेत्र में बेहतर कला शिक्षा के लिए जयपुर के स्टैनी मैमोरियल पी.जी. कॉलेज का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। यहां व्यावसायिक शिक्षा के अन्तर्गत बैचलर्स ऑफ  विजुअल आर्ट तथा ड्राइंग एण्ड  पेंटिंग में बी.ए एवं एम.ए के कोर्स चलाए जाते हैं। इसके साथ ही संगीत में बी.ए व बैचलर ऑफ  म्यूजिक के कोर्स चलाए जाते हैंं।
यहां के फाइन आर्ट विभाग में ड्राइंग व पेंटिंग के विद्यार्थियों के लिए अच्छे स्टूडियो उपलब्ध हेँ, जहां विषय की आवश्यक्ता के अनुसार काम किया जा सकता है। कॉलेज में प्रिंटिंग की विभिन्न कलाओं का प्रयोगात्मक प्रशिक्षण देने के लिए उच्च कोटि का प्रिटिंग स्टूडियो भी बनाया गया है। यह स्टूडियो सभी आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित है। विद्यार्थी, कॉलेज द्वारा उपलब्ध उपकरणों के माध्यम से अपने विषय का अभ्यास कर सकते हैं। संगीत की कक्षाओं के लिए कालेज में सभी वाद्य यंत्रों की उपलब्धता है, जिस पर अपनी रुचि और विषय के अनुसार विद्यार्थी नियमित अभ्यास करते हैं।
सर्वांगीण विकास
विद्यार्थियों का कला क्षेत्र में सर्वांगीण विकास हो इसके लिए समय-समय पर सेमीनार, प्रदर्शनियों, कार्यशालाओं व वार्षिक प्रतियोगिताओं का नियमित रूप से आयोजन किया जाता है। इसके साथ ही यहां के विद्यार्थी पूरे आत्मविश्वास के साथ जेकेके में अपनी बनाई पेंटिंग्स की प्रदर्शनियां भी लगाते है। संगीत के विद्यार्थी भी गुरूजनों की संगत में अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं।
पारंगत शिक्षक
कला विभाग में अपने क्षेत्र के दक्ष और पारंगत शिक्षकों की नियुक्ति की गई है। इनके सानिध्य में विद्यार्थी पूरी तलीनता और तन्मयता के साथ अपनी कला को साधता है। कालेज प्रशासन द्वारा समय-समय पर वरिष्ठ कलाकारों को आमंत्रित किया जाता है, जो विद्यार्थियों के समक्ष अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं और उन्हें प्रशिक्षित करते हैं। छात्राओं के लिए यहां का वातावरण सहज व सुरक्षित है। इसे बनाए रखने के लिए शिक्षक व प्रशासन पूरी तरहा से प्रतिबद्ध व सजग हैं।
महिलाओं को छूट
कॉलेज की फीस में महिलाओं े लिए विशेष छूट का प्रावधान है। एडमीशन फार्म कालेज के मान सरोवर स्थित भवन में उपलब्ध हैं। इसके अलावा संस्थान की वेबसाइट से भी इसे प्राप्त किया जा सकता है।
See More for Stani Memorial P.G. College

मंगलवार, 27 मई 2014

विजुअल आर्ट अर्थात सफलता का कैनवास

रचनात्मकता प्रस्तुत करने के पारम्परिक व नवीन माध्यमों का कलात्मक मिश्रण, अर्थात अपने विचारों, भावों व संवेदनाओं कों विभिन्न प्रयोगों के द्वारा सरलता से आकर्षक बनाकर प्रस्तुत करना ही तो है, विजुअल आर्ट।  
कुछ वर्ष पहले तक कला संस्थानों में छात्रों का अभाव रहता था। किन्तु वर्तमान में खुले मीडिया व ग्लोबलाइजेशन के कारण आज स्थिति कुछ और ही है। आज अच्छे कला संस्थानों में अच्छे से अच्छे छात्र जो कि वाकई में कुछ रचनात्मक कार्य करना चाहते हैं, उनकी लाइन लगी हुई है। कुछ तो दो साल तक का इन्तजार भी करते हैं। विजुअल आर्ट के इस व्यापक क्षेत्र में विभिन्न शाखाओं के अपने विशेष गुण व उनकी अपनी गम्भीर नवीनतम व रचनात्मक उपयोगिता है।  
इसके अन्र्तगत प्रमुखत : पेटिंग, चित्रकला, ग्राफिक्स (प्रिन्टमेकिंग), म्यूरल, टेक्सटाइल कला. एप्लाइड आर्ट यानि व्यावहारिक कला/ कमर्शियल आर्ट, इलस्ट्रेशन, एनिमेशन, टाइपोग्राफी, फोटोग्राफी, छपाई कला, प्लास्टिक आर्ट, स्कल्पचर या मूर्तिकला, पॉटरी, इस विषय से संबंधित कला इतिहास व अन्य विषयों का अध्ययन किया जाता है। 
पाठ्यक्रम
सामान्यत: सभी संस्थानों में यह एक चार वर्षीय पाठ्यक्रम है। प्रथम वर्ष में उस संस्थान में विजुअल आट्र्स के सभी पाठ्यक्रम पढाए जाते हैं। उनका अध्ययन करना होता है। जिसे फाउण्डेशन कोर्स कहा जाता है। तत्पश्चात प्राप्तांक व मेरिट के आधार पर अपने विषय का तीन वर्षीय स्पेशलाइजशेन कोर्स करना होता है। इसे बी.एफ..ए. (बैचलर इन फाइन आट्र्स) या बी.वी. ए. (बैचलर इन विजुअल आटर््स) कहते हैं। तत्पश्चात यदि रुचि हो व आपको अपने अध्ययन व कला के क्षेत्र में और नवीन प्रयोगों को भी सीखना हो तो दो वर्षीय पोस्ट ग्रैजुएशन कोर्स जिसे एम.एफ..ए. (मास्टर इन फाइन आट्र्स) या एम.वी.ए. (मास्टर इन विजुअल आटर््स) कहते हैं। इसके अन्र्तगत, निर्देशन में सामान्यत: गाइड सिस्टम के तहत शिक्षण संस्थान में कार्यरत अध्यापकों के रजिस्ट्रेशन कराकर किसी एक या दो विषयों पर काफी गूढ़ व प्रयोगात्मक अध्ययन करना होता है। इसके उपरान्त आप चाहें तो इस विषय में पीएचडी भी कर सकते हैं।
रोजगार के अवसर
सामान्यत: सरकारी या प्राइवेट बी.एफ.ए/बी.वी.ए. करने के बाद आप स्कूली स्तर तक के अच्छे कला शिक्षक, सरकारी संस्थानों में कलाकार व फोटोग्राफर इत्यादि बन सकते हैं। एमएफए/एमवीए/पीएचडी करने के बाद सरकारी व प्राइवेट महाविद्यालय/ विश्वविद्यालयों में कला में शिक्षक भी बन सकते हैं जिसमें आप लेक्चरर/रीडर व प्रोफ़ेसर तक के पदों पर आसीन हो सकते हैं। लेकिन यह एक सामान्य पहलू है। इसका रचनात्मक पहलू स्वतंत्र कलाकार बनने में ज्यादा है। इसके अलावा विज्ञापन संस्थानों/आर्ट गैलेरीज/प्रकाशन के क्षेत्र व फिल्मों के क्षेत्र में/फोटोग्राफी/एनिमेशन फिल्मों इत्यादि में अपार रोजगार उपलब्ध है।
पेंटिंग- (चित्रकला) 

चित्रकला अर्थात पेटिंग बनाने की कला के बारे में सामान्यत: इसे हम बचपन से ही सुनते व कुछ स्तर तक स्कूली स्तर पर सीखते आते हैं लेकिन इस विषय की गम्भीरता व रचनात्मकता की व्यापक जानकारी हमें ग्रेजुएशन/पोस्ट ग्रेजुएशन व रिसर्च के माध्यम से मिलती है। इनकी सहायता से हम इस विधा में पारंगत हो सकते हैं व एक सम्मानजनक उपयोगी रोजगारोन्मुख रचनात्मक जीविका चला सकते हैं। सामान्यत: ग्रेजुएशन के दौरान इसको सीखने के लिए नई सोच, नई तकनीक के साथ-साथ ड्राइंग करने के महत्वपूर्ण ज्ञान का होना जरूरी है। इसकी शुरुआत हमें स्केचिंग जैसी विधा से करनी होती है। इसके उपरान्त मानव शरीर/प्राकृतिक दृश्यों/स्टील लाइफ इत्यादि को चित्रित करने की सुन्दर प्रक्रिया सीखनी होती है। इन्हें हम विभिन्न धरातलों जैसे कई तरह के पेपर व कैनवास पर पारंम्परिक व नवीन माध्यमों जैसे वाटर कलर/तैल रंगों/पोस्टर कलर/चारकोल/पेंसिल इत्यादि की सहायता से चित्रित करने की अनवरत प्रक्रिया की ओर बढ़ते रहते हैं। चार वर्षीय डिग्री कोर्स से ग्रेजुएशन करने के उपरान्त दो वर्षीय पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्सों में चित्रकला के तहत विभिन्न पारम्परिक व नए माध्यमों जैसे कम्प्यूटर तक का उपयोग करके उस पर विस्तृत रूप से अपने विषय अनुसार मूर्त व आमूर्त कला का गम्भीर प्रयोगात्मक अध्ययन किया जाता है।
ग्राफिक्स कला (प्रिंटमेंकिंग) 
यह छपाई कला की प्राचीनतम विधि है, जिसे प्राचीन समय से लेकर आज तक उचित सम्मान मिला है। हम अपनी रचनात्मक कलाओं का प्रदर्शन पारम्परिक तरीके जैसे जिंक की प्लेट/लाइम स्टोन/वुड/कास्ट/लिनेन एवं सिल्क के साथ विभिन्न धरातलों पर उकेर कर मशीन तथा स्याही की सहायता से पेपरों पर प्रिन्ट द्वारा करते हैं। इससे लिए गये प्रिन्टों की संख्या सीमित होती है यह इसका सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। वर्तमान समय में कई नवीन कलाकारों ने इस विषय पर गैर पारम्परिक प्रयोगों के जरिए उच्च कोटि का कार्य करके इसकी प्रामाणिकता को और सिद्ध व जनोपयोगी बनाने का प्रयास किया हैं। इस कला को भी सीखने के लिए ड्राइंग के क्षेत्र में पारंगत होना अति आवश्यक है।
म्यूरल कला 
सामान्यत: इसे दीवारों पर बनाई गई पेटिंग के रूप में समझा जाता है। इस कला को भी सीखने में चित्रकला की तरह ही ड्राइंग के क्षेत्र में पारंगत होना व रंगों का उचित ज्ञान भी होना अति आवश्यक है। वर्तमान में म्यूरल की जरूरत समाज में एक नई पहचान बनाने के तौर पर उभरी है। पुरानी परम्परा यानी रंगों की सहायता से दीवारों पर पेंटिंग बनाने से हटकर सोचने व क्रियान्वित करने के ट्रेंड ने इसे बहुआयामी बना दिया है। अब टाइल्स/ टेराकोटा /सीमेन्ट/ बाल ू/ग्लास/ प्लास्टिक/ लोहे व स्टील इत्यादि माध्यमों से परमानेन्ट म्यूरल बनाए जाते हैं साथ ही फोटोग्राफी/डिजिटल तकनीक व विभिन्न प्रकाश माध्यमों की सहायता से अस्थायी म्यूरल भी बनाए जाते हैं। विदेशों में तो कई शहरों में लोग अपने घरों/या आफिसों के बाहरी हिस्सों को सम्पूर्ण म्यूरल कला के जरिए प्रदर्शित करवाते हैं।
टेक्सटाइल कला 
टेक्सटाइल कला अर्थात वस्त्र कला। इस कला के अन्र्तगत सामान्यत: ड्रांइग की गहन जानकारी के अलावा कपड़े पर अपनी कला को प्रस्तुत करने के तरीकों को सीखने की प्रक्रिया की ओर आगे बढ़ते रहते हैं। जैसे पहले पेपर पर ड्रांइग बनाना फिर परम्परागत व नई लूम मशीनों की सहायता से उनको कपड़े पर उतारना/धागों से कपड़े बनाने की प्रक्रिया/कपड़ों को रंगने इत्यादि कार्यों को प्रक्रिया को सीखते हैं। बंधनी कला अर्थात राजस्थानी शैली की साडिय़ां व दुपट्टे, बनारसी साडिय़ां इत्यादि इस कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं । स्कूलों, कालेजों व विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के अलावा टेक्सटाइल्स मिल्स/गारमैन्ट्स मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों व स्वतंत्र छपाईकला व स्क्रिन प्रिटिंग के जरिये इस विधा में अत्यन्त रोजगार के अवसर उपलब्ध हैं।
एप्लाइड आर्ट 
सामान्यत: पहले सभी कलाओं को व्यावहारिक कला का ही दर्जा प्राप्त था। लेकिन 19 वीं शताब्दी के प्रारम्भ व तकनीकों के लगातार विकास से यह कला विशेषत: विज्ञापन जगत की कला के तौर पर जानी जाने लगी। वर्तमान में इसे और संशोधित
करके कमर्शियल आर्ट अर्थात व्यापारिक कला के तौर पर मान्यता मिल रही है। जब से पृथ्वी पर व्यापार या समान खरीदने-बेचने की प्रक्रिया आरम्भ हुई, तभी से इस कला का चलन माना जा सकता हैं। इस कला में भी ड्राइंग की अहम जानकारी के साथ-साथ हमें ग्राफिक/कम्पोजिशन/ अक्षरों की पहचान/पोस्टर कला/विज्ञापन कला - समाचार पत्र/पत्रिकाओं में रोजाना छपने वाले विज्ञापन/दुकानों में दिखाई देने वाले पोस्टर/ग्लोसाइन बोड्र्स/डैगलडर्स/उत्पादों की पैकेजिंग व प्रस्तुतीकरण/टीवी पर रोजाना आने वाले विज्ञापन विभिन्न चैनलों का ग्राफिक प्रस्तुतीकरण इत्यादि के बारे में सतही स्तर से लेकर उच्च स्तर तक की शिक्षा ग्रहण करनी होती है। व्यावहारिक कला को सीखने के कई तर्क हैं। सर्वप्रथम किसी भी वस्तु का प्रचार करने के लिए उसका प्रस्तुतीकरण अत्यन्त आवश्यक है। इस प्रक्रिया को विजुएलाइजेशन कहते हैं। जो निरन्तर सीखने की प्रक्रिया से पारंगत होता है। इस कला की पढ़ाई पूरी करने के बाद छात्र के पास कला क्षेत्र के सर्वाधिक रोजगार उपलब्ध रहते हैं। जैसे विज्ञापन संस्थानों में ग्राफिक डिजाइनर/विजुयेलैजर/आर्ट डायरेक्टर, प्रकाशन संस्थानों में ले आउट डिजाइनर/विजुयेलैजर/आर्ट डायरेक्टर/टीवी विज्ञापन जगत में आर्ट डायरेक्टर/सेट डायरेक्टर एनिमेशन, स्वयं की विज्ञापन संस्था इत्यादि तरीके के रोजगार उपलब्ध रहते हैं।
इलस्ट्रेशन कला
 इलस्ट्रेशन कला अर्थात रेखाचित्र, जो कि किसी कहानी, लेख या विचार की सजीवता प्रस्तुत करते हैं। सामान्यत: इस कला को सीखकर छात्र बच्चों की किताबों/कॉमिक्स बुक्स/पत्रिकाओं इत्यादि के साथ-साथ वर्तमान समय के सबसे रुचिपूर्ण शब्द एनिमेशन कला की ओर बढ़ते हैं। वास्तविक रूप में यह काफी धैर्य व समय के उपयोग की कला है, जिससे एनिमेशन फिल्मों इत्यादि में रोजगार की संभावनाएं बढ़ सकती हैं जिसे हम द्विआयामी रेखाचित्रों का त्रिआयामी चित्रों व फिल्मों के जरिए प्रस्तुत करते हैं। इसमें इलेस्टे्रशन के साथ-साथ कम्प्यूटर पर उपलब्ध एनिमेशन साफ्टवेयरों के उपयोग पर खास ध्यान देना होता है। इसी के अन्तर्गत कार्टूनिंग कला भी आती है। इन्हें हम सामान्यत:/समाचार पत्र व पत्रिकाओं में देखते हैं।
फोटोग्राफी कला
विजुअल आर्ट में फोटोग्राफी कला का भी एक अहम पहलू है। इसमें हम वस्तु को सामान्य नजरिये से हटाकर एक विशेष नजरिए से नई तकनीक के साथ प्रस्तुत करते हैं। इसका सर्वाधिक उपयोग विज्ञापनकला के अन्र्तगत ही आता है। कई बार तो सिर्फ  फोटोग्राफ  ही बिना कुछ लिखे कई बातें व कहानियों के साथ-साथ उत्पादों की विशेषता बता देते हैं। वर्तमान में डिजिटल फोटोग्राफी तकनीक आने से यह कला कम खर्चीले व समय की काफी बचत व तुरन्त रिजल्ट देने वाली कला के रूप में भी प्रचलित हो रही है। इस कला को सीखने के बाद छात्र स्वयं का रोजगार जैसे फोटोग्राफी स्टूडियो/समाचार पत्र, पत्रिकाओं में प्रेस फोटोग्राफर, फिल्मों में स्टिल फोटोग्राफर, फैशन फोटोग्राफर,आर्किटेक्चरल फोटोग्राफर, इंडस्ट्रियल फोटोग्राफर या स्वतंत्र फोटोग्राफर के रूप में अपनी जीविका सम्मानपूर्वक तरीके से चला सकते हैं।
टाइपोग्राफी कला 
टाइपोग्राफी अर्थात लेखन की कला। इस कला के अन्तर्गत अक्षरों की बारीकियां जैसे उनकी बनावट, उनकी विशिष्टता व शैली इत्यादि की खोज पर ध्यान दिया जाता है। इसके अन्र्तगत कुछ समय पहले तक धातु की ढलाई करके बने हुए अक्षरों से लेटर प्रेस मशीन द्वारा छपाई होती थी। कम्प्यूटर तकनीक के आ जाने व अक्षरों की उपलब्धता व सुगमता के कारण अक्षर कला अर्थात टाइपोग्राफी का महत्व काफी बढ़ गया है। इस विधि के अन्तर्गत छात्र अपनी विशिष्ट लिखावट शैली व नई फॉण्ट इजाद कर सकते हैं। इसी के अन्तर्गत कैलीग्राफी कला भी आती है।
जिसकी सहायता से ब्रश/क्रोकिल/विभिन्न तरीके व स्ट्रोक के फाउण्टेन पेन व निब की सहायता से एक विशिष्ट शैली की स्वयं की लिखाई की डिजाइन प्रक्रिया को सीखा व अपनाया जाता हैं। यह आपकी रचनात्मकता को और सुगम बनाता है।
छपाई कला  
इसके अन्र्तगत प्रिंटिंग तकनीकों के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की जाती हैं व वर्तमान समय में आ रहे आधुनिक बदलावों को भी सिखाया जाता है। इस तकनीक के अन्तर्गत लेटर प्रेस/ ऑफसेट प्रिंटिंग/डिजिटल ऑफफसेट प्रिंटिंग/डिजिटल प्रिटिंग/साल्वेन्ट प्रिंटिग (फ्लैक्स/विनायल/वन वे विजन छपाई) स्क्रीन प्रिंटिंग आदि छपाई कला से जुड़ी तकनीकों को सिखाया जाता है। इन तकनीकों के माध्यम से किताबों/ समाचार पत्रों/ पत्रिकाओं/ पोस्टर/विज्ञापन सम्बन्धित अन्य छपाई के कार्यों इत्यादि के बारे में गहन जानकरी मिलती हैं। चूँकि एप्लाइड आर्ट से सम्बन्धित सभी कार्यों का नतीजा छपाई विधि द्वारा आना ही सम्भव है इसलिए डिजाइन बनाते समय छपाई सम्बन्धित तकनीकी जानकारियों जैसे पेपर साइज पेपर क्वालिटी/छपाई के तरीके। इत्यादि के बारे में जानकारी होना आवश्यक है।
प्लास्टिक आर्ट
 प्लास्टिक आर्ट या स्कल्पचर या मूर्तिकला-वर्तमान में नवीन माध्यमों के उपयोग के कारण सामान्यत: अब इसे प्लास्टिक आर्ट के नाम से जाना जाने लगा है। इस कला के लिए भी हमें सर्वप्रथम ड्राइंग की अहम शिक्षा का होना अत्यन्त जरूरी है। इसके बाद सर्वप्रथम मिट्टी के साथ अपने विचारों व भावों को एक मूर्त रूप या अमूर्त रुप देने की प्रक्रिया शुरू होती हैं। तत्पश्चात विभिन्न तरीकों के पत्थर जैसे सैण्ड स्टोन/रेडस्टोन/मार्बल्स इत्यादि पर हम अपने भावों को उपयुक्त औजारों व तकनीक की सहायता से प्रस्तुत करते हैं, तत्पश्चात लकड़ी-विभिन्न प्रकार की। अन्य नवीन माध्यमों जैसे प्लास्टर आफ पेरिस/ प्लास्टिक /लोहा/ स्टील/ एल्युमीनियम, वैक्स इत्यादि से अपनी विषय वस्तु को सजीव बनाने की प्रक्रिया व नवीन रचनात्मकता की ओर बढ़ते हैं। वर्तमान में इसमें किसी भी माध्यम व तकनीक को प्रस्तुतीकरण के साथ अत्यन्त आकर्षक माना जाता है। इसी के अन्र्तगत कई माध्यमों की एक साथ प्रस्तुत करने की नई कला इन्स्टालेशन आर्ट का भी उदय हो चुका है। जिसे आज एक विश्वव्यापी कला के रूप में भी  समर्थन मिल रहा है। इन्स्टालेशन आर्ट अर्थात परम्परागत तरीके सिर्फ  मिट्टी/लकड़ी या पत्थर के साथ-साथ एक ही कार्य में नवीन माध्यमों जैसे प्लास्टिक/स्टील/ब्रोन्ज इत्यादि का उपयोग करके उसे नई रचनात्मकता के साथ प्रस्तुत करना (फिल्म व संगीत को मिलाकर) भी सम्मिलित हैं। इस कला को सीखने के बाद छात्र अपनी प्रदर्शनियां लगाकर खुद व दूसरों के लिए भी रोजगार का अवसर उत्पन्न करते हैं।
पॉटरी 
सामान्यत: यह शब्द सुनते ही हमें चीनी मिट्टी के बने बर्तनों की याद तरोताजा हो जाती है। लेकिन वास्तविक रूप में यह एक विश्वव्यापी कला है एवं इसका एक वृहद् बाजार है। इसके अन्र्तगत रोजाना उपयोग में आने वाले घरेलू बर्तनों जैसे कप/प्लेट इत्यादि के साथ-साथ घर व ऑफिस के सजावटी फ्लावर पॉट इत्यादि की परम्परागत कुम्हारी तकनीक के साथ-साथ नवीनतम तकनीकों के मिश्रण से प्रत्येक वस्तु पर एक नई कलात्मक डिजाइन के रेखांकन द्वारा इसे बनाने की प्रक्रिया शुरू होती है। तत्पश्चात अपनी कृति के अनुसार रंगों का मिश्रण कर भट्टी में पकाने की क्रिया के साथ यह कार्य सम्पन्न होता है। इसमें हमेशा नवीनतम प्रयोगों की गुंजाइश रहती है। इसकी एक खास विशेषता यह है कि इसमें बनी किसी भी वस्तु की डिजाइन को तकनीकी रूप से दुबारा नहीं बनाया जा सकता है। इसलिए यह सामान्य कप/प्लेट बनाने की कला न होकर एक रचनात्मक पॉटरी कला के रूप में प्रसिद्ध है। इसमें सामान्यत: मिट्टी/सिरॉमिक इत्यादि वस्तुओं का उपयोग होता है इन कलाओं को सीखने के बाद छात्र अपने व अन्यों के लिए भी रोजगार के साधन जुटाने में प्रयत्नशील हो जाता है।
कला इतिहास 
सबसे अंतिम लेकिन सबसे महत्वपूर्ण विषय है-कला की शिक्षा। सही मायने में यह एक गंभीर विषय है। क्योंकि इसी विषय के पढऩे के बाद छात्रों को इतिहास को साथ-साथ नवीन व परम्परागत प्रयोगों की जानकारी मिलती है। साथ ही इसका समाज पर दिनों दिन पडऩे वाले प्रभाव की भी जानकारी मिलती है। सम्पूर्ण विश्व कला इतिहास के उदाहरणों व कला की परम्परागत व नवीनतम तकनीकों/रंगों के प्रयोग/पदार्थों के प्रयोग/विषयों के प्रयोग आदि के उदाहरणों से भरा पड़ा है। यह विषय प्रत्येक छात्र के लिए उतना ही गम्भीर है जितना कि अन्य सभी रुचिपूर्ण विषय गम्भीर हैं। इस विषय में पारंगत होने के बाद हम कला इतिहास शिक्षक के रूप में सम्मानित जीविका चला सकते हैं।   -गायत्री

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