मंगलवार, 27 मई 2014

विजुअल आर्ट अर्थात सफलता का कैनवास

रचनात्मकता प्रस्तुत करने के पारम्परिक व नवीन माध्यमों का कलात्मक मिश्रण, अर्थात अपने विचारों, भावों व संवेदनाओं कों विभिन्न प्रयोगों के द्वारा सरलता से आकर्षक बनाकर प्रस्तुत करना ही तो है, विजुअल आर्ट।  
कुछ वर्ष पहले तक कला संस्थानों में छात्रों का अभाव रहता था। किन्तु वर्तमान में खुले मीडिया व ग्लोबलाइजेशन के कारण आज स्थिति कुछ और ही है। आज अच्छे कला संस्थानों में अच्छे से अच्छे छात्र जो कि वाकई में कुछ रचनात्मक कार्य करना चाहते हैं, उनकी लाइन लगी हुई है। कुछ तो दो साल तक का इन्तजार भी करते हैं। विजुअल आर्ट के इस व्यापक क्षेत्र में विभिन्न शाखाओं के अपने विशेष गुण व उनकी अपनी गम्भीर नवीनतम व रचनात्मक उपयोगिता है।  
इसके अन्र्तगत प्रमुखत : पेटिंग, चित्रकला, ग्राफिक्स (प्रिन्टमेकिंग), म्यूरल, टेक्सटाइल कला. एप्लाइड आर्ट यानि व्यावहारिक कला/ कमर्शियल आर्ट, इलस्ट्रेशन, एनिमेशन, टाइपोग्राफी, फोटोग्राफी, छपाई कला, प्लास्टिक आर्ट, स्कल्पचर या मूर्तिकला, पॉटरी, इस विषय से संबंधित कला इतिहास व अन्य विषयों का अध्ययन किया जाता है। 
पाठ्यक्रम
सामान्यत: सभी संस्थानों में यह एक चार वर्षीय पाठ्यक्रम है। प्रथम वर्ष में उस संस्थान में विजुअल आट्र्स के सभी पाठ्यक्रम पढाए जाते हैं। उनका अध्ययन करना होता है। जिसे फाउण्डेशन कोर्स कहा जाता है। तत्पश्चात प्राप्तांक व मेरिट के आधार पर अपने विषय का तीन वर्षीय स्पेशलाइजशेन कोर्स करना होता है। इसे बी.एफ..ए. (बैचलर इन फाइन आट्र्स) या बी.वी. ए. (बैचलर इन विजुअल आटर््स) कहते हैं। तत्पश्चात यदि रुचि हो व आपको अपने अध्ययन व कला के क्षेत्र में और नवीन प्रयोगों को भी सीखना हो तो दो वर्षीय पोस्ट ग्रैजुएशन कोर्स जिसे एम.एफ..ए. (मास्टर इन फाइन आट्र्स) या एम.वी.ए. (मास्टर इन विजुअल आटर््स) कहते हैं। इसके अन्र्तगत, निर्देशन में सामान्यत: गाइड सिस्टम के तहत शिक्षण संस्थान में कार्यरत अध्यापकों के रजिस्ट्रेशन कराकर किसी एक या दो विषयों पर काफी गूढ़ व प्रयोगात्मक अध्ययन करना होता है। इसके उपरान्त आप चाहें तो इस विषय में पीएचडी भी कर सकते हैं।
रोजगार के अवसर
सामान्यत: सरकारी या प्राइवेट बी.एफ.ए/बी.वी.ए. करने के बाद आप स्कूली स्तर तक के अच्छे कला शिक्षक, सरकारी संस्थानों में कलाकार व फोटोग्राफर इत्यादि बन सकते हैं। एमएफए/एमवीए/पीएचडी करने के बाद सरकारी व प्राइवेट महाविद्यालय/ विश्वविद्यालयों में कला में शिक्षक भी बन सकते हैं जिसमें आप लेक्चरर/रीडर व प्रोफ़ेसर तक के पदों पर आसीन हो सकते हैं। लेकिन यह एक सामान्य पहलू है। इसका रचनात्मक पहलू स्वतंत्र कलाकार बनने में ज्यादा है। इसके अलावा विज्ञापन संस्थानों/आर्ट गैलेरीज/प्रकाशन के क्षेत्र व फिल्मों के क्षेत्र में/फोटोग्राफी/एनिमेशन फिल्मों इत्यादि में अपार रोजगार उपलब्ध है।
पेंटिंग- (चित्रकला) 

चित्रकला अर्थात पेटिंग बनाने की कला के बारे में सामान्यत: इसे हम बचपन से ही सुनते व कुछ स्तर तक स्कूली स्तर पर सीखते आते हैं लेकिन इस विषय की गम्भीरता व रचनात्मकता की व्यापक जानकारी हमें ग्रेजुएशन/पोस्ट ग्रेजुएशन व रिसर्च के माध्यम से मिलती है। इनकी सहायता से हम इस विधा में पारंगत हो सकते हैं व एक सम्मानजनक उपयोगी रोजगारोन्मुख रचनात्मक जीविका चला सकते हैं। सामान्यत: ग्रेजुएशन के दौरान इसको सीखने के लिए नई सोच, नई तकनीक के साथ-साथ ड्राइंग करने के महत्वपूर्ण ज्ञान का होना जरूरी है। इसकी शुरुआत हमें स्केचिंग जैसी विधा से करनी होती है। इसके उपरान्त मानव शरीर/प्राकृतिक दृश्यों/स्टील लाइफ इत्यादि को चित्रित करने की सुन्दर प्रक्रिया सीखनी होती है। इन्हें हम विभिन्न धरातलों जैसे कई तरह के पेपर व कैनवास पर पारंम्परिक व नवीन माध्यमों जैसे वाटर कलर/तैल रंगों/पोस्टर कलर/चारकोल/पेंसिल इत्यादि की सहायता से चित्रित करने की अनवरत प्रक्रिया की ओर बढ़ते रहते हैं। चार वर्षीय डिग्री कोर्स से ग्रेजुएशन करने के उपरान्त दो वर्षीय पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्सों में चित्रकला के तहत विभिन्न पारम्परिक व नए माध्यमों जैसे कम्प्यूटर तक का उपयोग करके उस पर विस्तृत रूप से अपने विषय अनुसार मूर्त व आमूर्त कला का गम्भीर प्रयोगात्मक अध्ययन किया जाता है।
ग्राफिक्स कला (प्रिंटमेंकिंग) 
यह छपाई कला की प्राचीनतम विधि है, जिसे प्राचीन समय से लेकर आज तक उचित सम्मान मिला है। हम अपनी रचनात्मक कलाओं का प्रदर्शन पारम्परिक तरीके जैसे जिंक की प्लेट/लाइम स्टोन/वुड/कास्ट/लिनेन एवं सिल्क के साथ विभिन्न धरातलों पर उकेर कर मशीन तथा स्याही की सहायता से पेपरों पर प्रिन्ट द्वारा करते हैं। इससे लिए गये प्रिन्टों की संख्या सीमित होती है यह इसका सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। वर्तमान समय में कई नवीन कलाकारों ने इस विषय पर गैर पारम्परिक प्रयोगों के जरिए उच्च कोटि का कार्य करके इसकी प्रामाणिकता को और सिद्ध व जनोपयोगी बनाने का प्रयास किया हैं। इस कला को भी सीखने के लिए ड्राइंग के क्षेत्र में पारंगत होना अति आवश्यक है।
म्यूरल कला 
सामान्यत: इसे दीवारों पर बनाई गई पेटिंग के रूप में समझा जाता है। इस कला को भी सीखने में चित्रकला की तरह ही ड्राइंग के क्षेत्र में पारंगत होना व रंगों का उचित ज्ञान भी होना अति आवश्यक है। वर्तमान में म्यूरल की जरूरत समाज में एक नई पहचान बनाने के तौर पर उभरी है। पुरानी परम्परा यानी रंगों की सहायता से दीवारों पर पेंटिंग बनाने से हटकर सोचने व क्रियान्वित करने के ट्रेंड ने इसे बहुआयामी बना दिया है। अब टाइल्स/ टेराकोटा /सीमेन्ट/ बाल ू/ग्लास/ प्लास्टिक/ लोहे व स्टील इत्यादि माध्यमों से परमानेन्ट म्यूरल बनाए जाते हैं साथ ही फोटोग्राफी/डिजिटल तकनीक व विभिन्न प्रकाश माध्यमों की सहायता से अस्थायी म्यूरल भी बनाए जाते हैं। विदेशों में तो कई शहरों में लोग अपने घरों/या आफिसों के बाहरी हिस्सों को सम्पूर्ण म्यूरल कला के जरिए प्रदर्शित करवाते हैं।
टेक्सटाइल कला 
टेक्सटाइल कला अर्थात वस्त्र कला। इस कला के अन्र्तगत सामान्यत: ड्रांइग की गहन जानकारी के अलावा कपड़े पर अपनी कला को प्रस्तुत करने के तरीकों को सीखने की प्रक्रिया की ओर आगे बढ़ते रहते हैं। जैसे पहले पेपर पर ड्रांइग बनाना फिर परम्परागत व नई लूम मशीनों की सहायता से उनको कपड़े पर उतारना/धागों से कपड़े बनाने की प्रक्रिया/कपड़ों को रंगने इत्यादि कार्यों को प्रक्रिया को सीखते हैं। बंधनी कला अर्थात राजस्थानी शैली की साडिय़ां व दुपट्टे, बनारसी साडिय़ां इत्यादि इस कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं । स्कूलों, कालेजों व विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के अलावा टेक्सटाइल्स मिल्स/गारमैन्ट्स मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों व स्वतंत्र छपाईकला व स्क्रिन प्रिटिंग के जरिये इस विधा में अत्यन्त रोजगार के अवसर उपलब्ध हैं।
एप्लाइड आर्ट 
सामान्यत: पहले सभी कलाओं को व्यावहारिक कला का ही दर्जा प्राप्त था। लेकिन 19 वीं शताब्दी के प्रारम्भ व तकनीकों के लगातार विकास से यह कला विशेषत: विज्ञापन जगत की कला के तौर पर जानी जाने लगी। वर्तमान में इसे और संशोधित
करके कमर्शियल आर्ट अर्थात व्यापारिक कला के तौर पर मान्यता मिल रही है। जब से पृथ्वी पर व्यापार या समान खरीदने-बेचने की प्रक्रिया आरम्भ हुई, तभी से इस कला का चलन माना जा सकता हैं। इस कला में भी ड्राइंग की अहम जानकारी के साथ-साथ हमें ग्राफिक/कम्पोजिशन/ अक्षरों की पहचान/पोस्टर कला/विज्ञापन कला - समाचार पत्र/पत्रिकाओं में रोजाना छपने वाले विज्ञापन/दुकानों में दिखाई देने वाले पोस्टर/ग्लोसाइन बोड्र्स/डैगलडर्स/उत्पादों की पैकेजिंग व प्रस्तुतीकरण/टीवी पर रोजाना आने वाले विज्ञापन विभिन्न चैनलों का ग्राफिक प्रस्तुतीकरण इत्यादि के बारे में सतही स्तर से लेकर उच्च स्तर तक की शिक्षा ग्रहण करनी होती है। व्यावहारिक कला को सीखने के कई तर्क हैं। सर्वप्रथम किसी भी वस्तु का प्रचार करने के लिए उसका प्रस्तुतीकरण अत्यन्त आवश्यक है। इस प्रक्रिया को विजुएलाइजेशन कहते हैं। जो निरन्तर सीखने की प्रक्रिया से पारंगत होता है। इस कला की पढ़ाई पूरी करने के बाद छात्र के पास कला क्षेत्र के सर्वाधिक रोजगार उपलब्ध रहते हैं। जैसे विज्ञापन संस्थानों में ग्राफिक डिजाइनर/विजुयेलैजर/आर्ट डायरेक्टर, प्रकाशन संस्थानों में ले आउट डिजाइनर/विजुयेलैजर/आर्ट डायरेक्टर/टीवी विज्ञापन जगत में आर्ट डायरेक्टर/सेट डायरेक्टर एनिमेशन, स्वयं की विज्ञापन संस्था इत्यादि तरीके के रोजगार उपलब्ध रहते हैं।
इलस्ट्रेशन कला
 इलस्ट्रेशन कला अर्थात रेखाचित्र, जो कि किसी कहानी, लेख या विचार की सजीवता प्रस्तुत करते हैं। सामान्यत: इस कला को सीखकर छात्र बच्चों की किताबों/कॉमिक्स बुक्स/पत्रिकाओं इत्यादि के साथ-साथ वर्तमान समय के सबसे रुचिपूर्ण शब्द एनिमेशन कला की ओर बढ़ते हैं। वास्तविक रूप में यह काफी धैर्य व समय के उपयोग की कला है, जिससे एनिमेशन फिल्मों इत्यादि में रोजगार की संभावनाएं बढ़ सकती हैं जिसे हम द्विआयामी रेखाचित्रों का त्रिआयामी चित्रों व फिल्मों के जरिए प्रस्तुत करते हैं। इसमें इलेस्टे्रशन के साथ-साथ कम्प्यूटर पर उपलब्ध एनिमेशन साफ्टवेयरों के उपयोग पर खास ध्यान देना होता है। इसी के अन्तर्गत कार्टूनिंग कला भी आती है। इन्हें हम सामान्यत:/समाचार पत्र व पत्रिकाओं में देखते हैं।
फोटोग्राफी कला
विजुअल आर्ट में फोटोग्राफी कला का भी एक अहम पहलू है। इसमें हम वस्तु को सामान्य नजरिये से हटाकर एक विशेष नजरिए से नई तकनीक के साथ प्रस्तुत करते हैं। इसका सर्वाधिक उपयोग विज्ञापनकला के अन्र्तगत ही आता है। कई बार तो सिर्फ  फोटोग्राफ  ही बिना कुछ लिखे कई बातें व कहानियों के साथ-साथ उत्पादों की विशेषता बता देते हैं। वर्तमान में डिजिटल फोटोग्राफी तकनीक आने से यह कला कम खर्चीले व समय की काफी बचत व तुरन्त रिजल्ट देने वाली कला के रूप में भी प्रचलित हो रही है। इस कला को सीखने के बाद छात्र स्वयं का रोजगार जैसे फोटोग्राफी स्टूडियो/समाचार पत्र, पत्रिकाओं में प्रेस फोटोग्राफर, फिल्मों में स्टिल फोटोग्राफर, फैशन फोटोग्राफर,आर्किटेक्चरल फोटोग्राफर, इंडस्ट्रियल फोटोग्राफर या स्वतंत्र फोटोग्राफर के रूप में अपनी जीविका सम्मानपूर्वक तरीके से चला सकते हैं।
टाइपोग्राफी कला 
टाइपोग्राफी अर्थात लेखन की कला। इस कला के अन्तर्गत अक्षरों की बारीकियां जैसे उनकी बनावट, उनकी विशिष्टता व शैली इत्यादि की खोज पर ध्यान दिया जाता है। इसके अन्र्तगत कुछ समय पहले तक धातु की ढलाई करके बने हुए अक्षरों से लेटर प्रेस मशीन द्वारा छपाई होती थी। कम्प्यूटर तकनीक के आ जाने व अक्षरों की उपलब्धता व सुगमता के कारण अक्षर कला अर्थात टाइपोग्राफी का महत्व काफी बढ़ गया है। इस विधि के अन्तर्गत छात्र अपनी विशिष्ट लिखावट शैली व नई फॉण्ट इजाद कर सकते हैं। इसी के अन्तर्गत कैलीग्राफी कला भी आती है।
जिसकी सहायता से ब्रश/क्रोकिल/विभिन्न तरीके व स्ट्रोक के फाउण्टेन पेन व निब की सहायता से एक विशिष्ट शैली की स्वयं की लिखाई की डिजाइन प्रक्रिया को सीखा व अपनाया जाता हैं। यह आपकी रचनात्मकता को और सुगम बनाता है।
छपाई कला  
इसके अन्र्तगत प्रिंटिंग तकनीकों के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की जाती हैं व वर्तमान समय में आ रहे आधुनिक बदलावों को भी सिखाया जाता है। इस तकनीक के अन्तर्गत लेटर प्रेस/ ऑफसेट प्रिंटिंग/डिजिटल ऑफफसेट प्रिंटिंग/डिजिटल प्रिटिंग/साल्वेन्ट प्रिंटिग (फ्लैक्स/विनायल/वन वे विजन छपाई) स्क्रीन प्रिंटिंग आदि छपाई कला से जुड़ी तकनीकों को सिखाया जाता है। इन तकनीकों के माध्यम से किताबों/ समाचार पत्रों/ पत्रिकाओं/ पोस्टर/विज्ञापन सम्बन्धित अन्य छपाई के कार्यों इत्यादि के बारे में गहन जानकरी मिलती हैं। चूँकि एप्लाइड आर्ट से सम्बन्धित सभी कार्यों का नतीजा छपाई विधि द्वारा आना ही सम्भव है इसलिए डिजाइन बनाते समय छपाई सम्बन्धित तकनीकी जानकारियों जैसे पेपर साइज पेपर क्वालिटी/छपाई के तरीके। इत्यादि के बारे में जानकारी होना आवश्यक है।
प्लास्टिक आर्ट
 प्लास्टिक आर्ट या स्कल्पचर या मूर्तिकला-वर्तमान में नवीन माध्यमों के उपयोग के कारण सामान्यत: अब इसे प्लास्टिक आर्ट के नाम से जाना जाने लगा है। इस कला के लिए भी हमें सर्वप्रथम ड्राइंग की अहम शिक्षा का होना अत्यन्त जरूरी है। इसके बाद सर्वप्रथम मिट्टी के साथ अपने विचारों व भावों को एक मूर्त रूप या अमूर्त रुप देने की प्रक्रिया शुरू होती हैं। तत्पश्चात विभिन्न तरीकों के पत्थर जैसे सैण्ड स्टोन/रेडस्टोन/मार्बल्स इत्यादि पर हम अपने भावों को उपयुक्त औजारों व तकनीक की सहायता से प्रस्तुत करते हैं, तत्पश्चात लकड़ी-विभिन्न प्रकार की। अन्य नवीन माध्यमों जैसे प्लास्टर आफ पेरिस/ प्लास्टिक /लोहा/ स्टील/ एल्युमीनियम, वैक्स इत्यादि से अपनी विषय वस्तु को सजीव बनाने की प्रक्रिया व नवीन रचनात्मकता की ओर बढ़ते हैं। वर्तमान में इसमें किसी भी माध्यम व तकनीक को प्रस्तुतीकरण के साथ अत्यन्त आकर्षक माना जाता है। इसी के अन्र्तगत कई माध्यमों की एक साथ प्रस्तुत करने की नई कला इन्स्टालेशन आर्ट का भी उदय हो चुका है। जिसे आज एक विश्वव्यापी कला के रूप में भी  समर्थन मिल रहा है। इन्स्टालेशन आर्ट अर्थात परम्परागत तरीके सिर्फ  मिट्टी/लकड़ी या पत्थर के साथ-साथ एक ही कार्य में नवीन माध्यमों जैसे प्लास्टिक/स्टील/ब्रोन्ज इत्यादि का उपयोग करके उसे नई रचनात्मकता के साथ प्रस्तुत करना (फिल्म व संगीत को मिलाकर) भी सम्मिलित हैं। इस कला को सीखने के बाद छात्र अपनी प्रदर्शनियां लगाकर खुद व दूसरों के लिए भी रोजगार का अवसर उत्पन्न करते हैं।
पॉटरी 
सामान्यत: यह शब्द सुनते ही हमें चीनी मिट्टी के बने बर्तनों की याद तरोताजा हो जाती है। लेकिन वास्तविक रूप में यह एक विश्वव्यापी कला है एवं इसका एक वृहद् बाजार है। इसके अन्र्तगत रोजाना उपयोग में आने वाले घरेलू बर्तनों जैसे कप/प्लेट इत्यादि के साथ-साथ घर व ऑफिस के सजावटी फ्लावर पॉट इत्यादि की परम्परागत कुम्हारी तकनीक के साथ-साथ नवीनतम तकनीकों के मिश्रण से प्रत्येक वस्तु पर एक नई कलात्मक डिजाइन के रेखांकन द्वारा इसे बनाने की प्रक्रिया शुरू होती है। तत्पश्चात अपनी कृति के अनुसार रंगों का मिश्रण कर भट्टी में पकाने की क्रिया के साथ यह कार्य सम्पन्न होता है। इसमें हमेशा नवीनतम प्रयोगों की गुंजाइश रहती है। इसकी एक खास विशेषता यह है कि इसमें बनी किसी भी वस्तु की डिजाइन को तकनीकी रूप से दुबारा नहीं बनाया जा सकता है। इसलिए यह सामान्य कप/प्लेट बनाने की कला न होकर एक रचनात्मक पॉटरी कला के रूप में प्रसिद्ध है। इसमें सामान्यत: मिट्टी/सिरॉमिक इत्यादि वस्तुओं का उपयोग होता है इन कलाओं को सीखने के बाद छात्र अपने व अन्यों के लिए भी रोजगार के साधन जुटाने में प्रयत्नशील हो जाता है।
कला इतिहास 
सबसे अंतिम लेकिन सबसे महत्वपूर्ण विषय है-कला की शिक्षा। सही मायने में यह एक गंभीर विषय है। क्योंकि इसी विषय के पढऩे के बाद छात्रों को इतिहास को साथ-साथ नवीन व परम्परागत प्रयोगों की जानकारी मिलती है। साथ ही इसका समाज पर दिनों दिन पडऩे वाले प्रभाव की भी जानकारी मिलती है। सम्पूर्ण विश्व कला इतिहास के उदाहरणों व कला की परम्परागत व नवीनतम तकनीकों/रंगों के प्रयोग/पदार्थों के प्रयोग/विषयों के प्रयोग आदि के उदाहरणों से भरा पड़ा है। यह विषय प्रत्येक छात्र के लिए उतना ही गम्भीर है जितना कि अन्य सभी रुचिपूर्ण विषय गम्भीर हैं। इस विषय में पारंगत होने के बाद हम कला इतिहास शिक्षक के रूप में सम्मानित जीविका चला सकते हैं।   -गायत्री

व्यक्तिगत मार्गदर्शन के लिए ई -मेल करें moomalnews@gmail.com 

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