गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

IAS उमरावमल सालोदिया का धर्म परिवर्तन

जाते हुए साल के आखिरी दिन में अचानक 
उमरावमल सालोदिया खबर बन गए।

दलित IAS ने कबूला इस्लाम, कहा- हिंदू होने के कारण हुआ भेदभाव

मूमल नेटवर्क, जयपुर।   
...और भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी उमराव सालोदिया एकाएक उमराव खान हो गए। उन्होंनेे धर्म परिवर्तन कर लिया। इसके साथ ही स्वैच्छिक सेवा निवृति के लिए सरकार को पत्र सौंप दिया। क्या था यह सब कुछ सरकार के प्रति नाराजगी की हद, एक कलाकार के दुख की अति या फिर एक आम आदमी का अवसाद।
चीफ सैकेट्री पद के प्रबल दावेदार, लेकिन सरकार की गुड बुक में नहीं होने के कारण वो इस पद की पहुंच से दूर...रिटायरमेंट से मात्र 6 महीने दूर...अभी क्या फर्क पड़ता है, रिटायर तो इसी स्केल से होना है फिर जाते-जाते धमाका क्यों नहीं? 
एक प्रशासनिक अधिकारी सरकार के समक्ष भले ही बेबस हो पर एक आम आदमी को मुखर होने से रोकना किसी के वश की बात नहीं... यह कैसा धमाका कि आज तक आमजन को सालोदिया जी की जाति का पता नही था, आज हर जुबान पर जाति चर्चा बन गई। कलाकार के रूप में या एक प्रशासनिक अधिकारी के रूप में आमजन से उन्हें पर्याप्त सम्मान मिला। हां साथी अधिकारियों ने कुछ दूरियां बनाई हो यह अलग बात है। परिणामस्वरूप बरसों से दबे आक्रोश ने धर्म परिवर्तन करवा दिया। क्या अपने अवसाद के चलते कई जगहों सेे बढ़ते हुए दोस्ती के हाथों को नकार अपने आप में सिमटना सालोदिया जी का खुद का निर्णय नहीं था? फिर दोषी कौन?
बात यदि पद स्थापन की करें तो कला संस्कृति विभाग हर उस अधिकारी को सरकार द्वारा दिए गए बेहतर सबक बन जाता है जो सरकार की नजर की किरकिरी बनता है। कलाकार वर्ग जिसे अपने हितों को साधने से ही फुर्सत नहीं, वो भला किसी के आने से खुश और किसी के जाने से दुख क्योंकर मनाए। लेकिन, पद कला-संस्कृति विभाग का हो और अधिकारी कलाकार हो तो यह पद उसका बड़ा पनाहगार बन जाता है। स्थिति तब बिगड़ती है जब सरकारी रवैया उससे उनकी यह पनाह भी छीन लेता है। और यही हुआ उमरावमल सालोदिया अब खान के साथ। हालांकि भारतीय संविधान के अनुसार धर्म परिवर्तन उनकी व्यक्तिगत सोच और अधिकार है। भारत में सभी धर्मों, समुदायों का सम्मान होता है, लेकिन धर्म परिवर्तन...क्या पलायन की निशानी नहीं? क्या अपने नए धर्म के साथ वो सहज जीवन जी पाऐंगे  ...क्या वो स्वयं को समझा पाऐंगे जब गुब्बार गुजर चुका होगा और स्थितियां सामान्य हो चुकी होंगी।
यह तो थी भावनात्मक बात और बात करें बौद्धिक स्तर की तो इस पूरे बखेड़े के पीछे कुछ राज छुपे नजर आते हैं। अपने कार्यकाल के दौरान कुछ आपराधिक काण्डों में फंसे सालोदिया की गिरफ्तारी होते-होते बची है यह सबको विदित है। सरकार से जंग जीती नहीं जा सकती, रैगर समाज से इस मामले में पर्याप्त साथ मिलना नहीं, लेकिन मुस्लिम समाज इस नए सदस्य का साथ दे सकता है अगर इस समाज के कुछ दबंग इन्हें दोयम दर्जे की हैसियत से ना देखें। 
जानकार तो यह भी कहते हैं कि क्या उमराव जी को किसी राजनैतिक पार्टी की तरफ से राजनैतिक पद का प्रलोभन तो नहीं मिल गया है? तो जाति को प्रमाणित करने की और स्वयं को निरीह सिद्ध कर आम की सहानुभूति प्राप्त करने के लिए प्रेस कान्फे्रंस ही कर डाली।  इससे ज्यादा प्रभावी तरीका कोई हो ही नहीं सकता। इन सब से उपजी सहानुभूति समय रहते काम आ सकती है। धर्म का क्या है आज अवसाद के चलते खान बन गए कल ह्रदय परिवर्तन हो जाएगा तो फिर सालोदिया हो जाएंगे। क्या बिगड़ेगा? कुछ भी तो नहीं भारतीय समाज को जिसमें सभी वर्ग जाति व समुदाय शामिल हैं भूलने की अच्छी आदत जो है। खैर समय बताएगा कि साल की इस अन्तिम खबर की वास्तविकता क्या है?

 राजस्थान के सीनियर आईएएस उमराव सालोदिया ने इस्लाम कबूल करते हुए नाम बदलकर उमराव खान रख लिया है। सालोदिया ने सर्विस पूरी होने से 6 महीने पहले ही रिटायरमेंट भी ले लिया है। उन्होंने सीएम वसुंधरा राजे को लेटर लिखा है। इसमें चीफ सेक्रेटरी नहीं बनाए जाने पर नाराजगी जाहिर की है।
सालोदिया ने क्यों बदला मजहब? क्या बताई इसकी वजह...
- गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में सालोदिया ने कहा, "मेरे साथ हिंदू धर्म में भेदभाव हुआ है। मुझे चीफ सेक्रेटरी नहीं बनाया 
गया।"
- "दलित होने की वजह से मेरे साथ अत्याचार किए गए। इस्लाम में ऐसा नहीं होता है।"
सालोदिया ने धर्म बदलने को लेकर चिट्ठी में क्या लिखा है...
- "भारत के संविधान में आर्टिकल 25 (1) में नागरिकों को यह आजादी दी गई है कि वे किसी भी धर्म में अपनी आस्था 
जाहिर कर सकते है।"
- "मैं इसी हक के तहत आज 31 दिसंबर, 2015 को हिंदू धर्म छोड़कर इस्लाम अपना रहा हूं।"
सीएम वसुंधरा राजे को लिखी चिट्ठी में सालोदिया ने क्या कहा?
- "मैं एससी/एसटी कोटा से आईएएस हूं, जिसे सीनियरिटी की बुनियाद पर चीफ सेक्रेटरी बनाया जाना चाहिए था।"
- "लेकिन मौजूदा चीफ सेक्रेटरी सी.एस. राजन को 31 मार्च, 2016 तक 3 महीने का एक्सटेंशन दिया गया है।"
- "राजन को दिए गए एक्सटेंशन के कारण मुझे सीएस बनने का मौका नहीं मिला।"
- "अगर एक्सटेंशन नहीं दिया जाता तो सीनियरिटी के हिसाब से मुझे ही सीएस बनाया जाता।"
- "यह सब राज्य सरकार के कहने पर हुआ है। इन सब बातों के चलते मैं वीआरएस के लिए सरकार से गुजारिश करता हूं।"
आरोपों पर सरकार का क्या है रिएक्शन?
- राजस्थान के संसदीय कार्य मंत्री राजेंद्र राठौड़ ने कहा, "चीफ सेक्रेटरी राजन को तीन महीने का एक्सटेंशन रूल्स के तहत 
दिया गया है।"
- "राजन सीनियर आईएएस हैं। कई पोस्ट पर रहते हुए उन्होंने अपनी काबिलियत दिखाई है।"
- "सालोदिया की सर्विस केवल 6 महीने बाकी थी। अगर वे 31 मार्च तक इंतजार करते तो शायद उनके लिए रास्ते खुले होते।"
- "इतने सीनियर होते हुए भी सालोदिया ने इस तरह के आरोप लगाए हैं, यह बेहद शर्मनाक है।"
- "धर्म बदलना उनका निजी मामला हो सकता है, लेकिन मैं ऐसे आरोपों की निंदा करता हूं।"
'सालोदिया को यह शोभा नहीं देता'
- कटारिया के मुताबिक, सालोदिया जैसे पढ़े-लिखे आदमी को यह शोभा नहीं देता है। ड‌्यूटी में 6 महीने ही बचे हैं, ऐसे में यह फैसला ठीक नहीं है।
सालोदिया पर चल रहा है करप्शन का केस
- सूत्रों के मुताबिक उमराव सालोदिया 2013 में रेवेन्यू बोर्ड के चेयरमैन बने। उस दौरान ही उनके खिलाफ एसीबी में आईएएस (अब रिटायर) नानगराम शर्मा ने मामला दर्ज कराया था। आरोप था कि उमराव सालोदिया ने बटुउद्दीन नाम के शख्स को जमीन के एक मामले में फेवर किया था।
।"
- बताया जा रहा है कि इस मामले के और आगे बढ़ने के दौरान सालोदिया ने खुद को इससे बचाने का मन बना लिया। सालोदिया ने जयपुर के गांधी नगर थाने में नानगराम के खिलाफ 24 मई, 2014 को एफआईआर दर्ज करा दी।
- इसमें आरोप लगाया कि नानगराम चूंकि उस समय के चीफ सेक्रेटरी सलाउद्दीन अहमद का खास है, इसलिए वह उन्हें परेशान कर रहा है।




- एफआईआर के मुताबिक सलाउद्दीन अहमद पर आरोप है कि उन्होंने पोस्ट का गलत इस्तेमाल करते हुए नानगराम को 




सुपरटाइम स्केल की लिस्ट में शामिल करा दिया। इसका उमराव ने विरोध भी किया था, लेकिन कथित तौर पर उनकी सुनवाई नहीं हुई।
- आरोप लगाया कि नानगराम इसके बाद से ही लगातार उमराव को दलित होने को लेकर प्रताड़ित करता रहा।

रिटायर होने से 6 महीने पहले ही ऐसा क्यों किया ?
- सालोदिया के नजदीक रहे अफसरों के मुताबिक सालोदिया को डर था कि कहीं रिटायर होने से पहले छह महीनों में ही एसीबी वाला मामला आगे बढ़ गया तो उनका रिटायरमेंट फंस सकता है।

- नजदीकियों के मुताबिक सालोदिया ने सोचा कि कोई बड़ा मामला बने, इससे पहले ही कोई ऐसा मुद्दा बना दिया जाए, ताकि मामला हाई प्रोफाइल ड्रामा बन जाए और सरकार दबाव में आ जाए।
- सालोदिया मान कर चल रहे थे कि यदि वे मीडिया में हाइलाइट कर दें तो सरकार उनके रिटायरमेंट पर किसी तरह का रोड़ा नहीं अटका सकेगी। अगर कोई बात हुई भी तो वे मीडिया में जाकर कह सकेंगे कि उन्होंने आरोप लगाए तो सरकार ऐसा कर रही है।
मुस्लिम धर्म ही क्यों अपनाया?
- नजदीकी अफसरों का यह भी कहना है कि मौजूदा समय में सरकार भाजपा की है। केंद्र में भी और राज्य में भी।
- ऐसे में यदि मुस्लिम पर कोई दिक्कत आएगी तो कहा जा सकेगा कि हिंदूवादी सरकार है, इसलिए मुस्लिम के खिलाफ जबरन मामला बना रही है। 
क्यों नहीं बनाया सीएस?
- सूत्रों के मुताबिक, सरकार कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी। सालोदिया के खिलाफ एसीबी में केस चल रहा है।
- अगर उन्हें सीएस बनाया जाता तो यह बात उछल सकती थी कि जिसके खिलाफ मामला चल रहा हो, उसे सीएस बना दिया।
- सरकार आरोपों के घेरे में आ सकती थी। इसके साथ ही अगर एसीबी सालोदिया के सीएस रहते मामले को खोल देती और आरोप साबित होने के साथ उन्हें गिरफ्तार कर लेती तो इसमें सरकार की जबरदस्त किरकिरी हो सकती थी।
आलोक खण्डेलवाल (भास्कर ) से साभार 
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कौन हैं उमराव सालोदिया?
- 1978 बैच के आईएएस सालोदिया जयपुर के ही रहने वाले हैं।
- वे राजस्थान रोडवेज के चेयरमैन हैं। 






- इससे पहले वे जवाहर कला केंद्र के डायरेक्टर के साथ-साथ ट्रांसपोर्ट और रेवेन्यू डिपार्टमेंट में भी एडिशनल चीफ सेक्रेटरी रहे हैं।


शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015

Moomal December-2 2015 Issue.

सुधि पाठक,
आपके सम्मुख 'मूमल' का December-2 (2015) अंक  है. 
यदि आप इसके नियमित सदस्य पाठक हैं तो इसकी पीडीएफ कॉपी आपकी ईमेल पर भी है. मूमल पत्रिका की मुद्रित प्रति (हार्ड कॉपी) आपके दिए पते पर 19 December 20015 कों यह डाक से भेजी जा रही है, पोस्टमैन को सतर्क करे. 
सहयोग के लिए धन्यवाद।








शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

Moomal Dec-1 (2015) Issue

सुधि पाठक,
आपके सम्मुख 'मूमल' का December-1 (2015) अंक  है. 
यदि आप इसके नियमित सदस्य पाठक हैं तो इसकी पीडीएफ कॉपी आपकी ईमेल पर भी है. मूमल पत्रिका की मुद्रित प्रति (हार्ड कॉपी) आपके दिए पते पर 4 December 20015 कों यह डाक से भेजी गई है, पोस्टमैन को सतर्क करे. 
सहयोग के लिए धन्यवाद।









गुरुवार, 19 नवंबर 2015

Moomal November-2 (2015)

सुधि पाठक,
आपके सम्मुख 'मूमल' का November-2 (2015) अंक  है. 
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मंगलवार, 1 सितंबर 2015

JKK Jaipur अब कोई कलाकार संभालेगा जेकेके की कमान


अब कोई कलाकार संभालेगा जेकेके की कमान
मूमल नेटवर्क, जयपुर।
आखिर जयपुर के जवाहर कला केन्द्र के सर्वोच्च पद पर व्यूरोकेट्स की जगह अब कला जगत के जानकार की नियुक्ति की जाएगी। इसके लिए उपयुक्त व्यक्ति की तलाश की जा रही है।
जवाहर कला केन्द्र के महा निदेशक पद पर कला जगत के पारंगत व्यक्ति को नियुक्त किए जाने के लिए उसकी योग्यता और आर्हताएं निर्धारित की गई हैं। इसके तहत केन्द्र का महानिदेशक 35 से 60 वर्ष के आयु वर्ग का होगा। किसी भी विषय मेेंं स्नात्कोत्तर होगा। इसके साथ ही उसके पास आर्ट मैनेजमेंट के क्षेत्र की कोई डिग्री, डिप्लोमा भी होना चाहिए। उसे विज्युअल और परफार्मिंग आर्ट के क्षेत्र में परम्परागत व समसामयिक कलाओं की उत्तम जानकारी होने के साथ किसी एक या अधिक विषय में पारंगत होना चाहिए। उसे कला जगत के विश्व परिदृश्य पर हो रही गतिविधियों की और कला क्षेत्र की प्रमुख संस्थाओं के कार्यकलापों की जानकारियां अपडेट होनी चाहिए।
महानिदेशक पद के लिए व्यक्ति को प्रशासनिक कुशलता और ठोस नेतृत्व क्षमता वाला भी होना चाहिए। इसके लिए उसे जेकेकेे जैसे किसी कला संस्थान के संचालन का कम से कम 10 वर्ष का अनुभव होना अनिवार्य है। रचनात्मकता और नवीनता के साथ योजनाएं बनाने, व्यवस्थापन और उनके क्रियान्वयन करने की संस्थागत दक्षता होनी चाहिए। इसी के साथ वित्तिय योजनाएं बनाने और उनकों अमल में लाने की सूझबूझ होनी चाहिए। 
इन सब के साथ उसमें अपनी बात सर्व साधारण तक संप्रेषित करने और करीब 20-25 कर्मचारियों की टीम को संभालने योग्य स्ट्रांग लीडरशिप होना लाजमी है।
अगर आपमें यह योग्यताएं हैं तो अगली 21 सितम्बर तक जेकेके मेें अपने योग्यता प्रमाण पत्रों के साथ उन्हीं महानिदेशक से मिलिए भविष्य में जिनके स्थान पर आप को यह पद संभालना है। अगर यह आपको सूट नहीं करता हो तो ऐसी सभी योग्यताओं वाले किसी व्यक्ति को इस पद हेतु प्रेरित कीजिए।

मंगलवार, 25 अगस्त 2015

​जयपुर में 28 से पूर्वोत्तर राष्ट्रीय रंगोत्सव

जयपुर में 28 से पूर्वोत्तर राष्ट्रीय रंगोत्सव
मूमल नेटवर्क, जयपुर। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की ओर से पूर्वोत्तर रंगोत्सव के तहत जयपुर के जवाहर कला केन्द्र के रंगायन सभागार में 28 अगस्त से 1 सितम्बर तक उत्तर पूर्व क्षेत्र की बेहतरीन नाटकों का प्रदर्शन किया जाएगा।
जवाहर कला केन्द्र, जयपुर के सहयोग से होने वाले इस आयोजन के संबंध में जानकारी देते हुए रानावि के प्रो. सुरेश भारद्वाज ने बताया कि इस समारोह में कुल पांच नाटक प्रदर्शित किए जाएंगे। इनमें दो मणिपुर से, दो असम से और एक सिक्किम से होगा। जयपुर से पहले यही नाटक दिल्ली और अमृतसर में प्रदर्शित होंगे। जयपुर के बाद यही प्रस्तुतियां बडोदा में होंगी। जयपुर चैप्टर की प्रवक्ता सुनीता नागपाल ने बताया कि पहाडों की खूबस्ूरत हरी-भरी वादियों में स्थित उत्तर-पूर्वी क्षेत्र मेमं विविध प्रकार की समृद्ध संस्कृति है, जिसका एक अंश रंगमंच भी है। इसे शेष भरत में पहुचांने के लिए पूर्वोत्तर राष्ट्रीय रंग उत्सव के जरिए यह प्रयास किया जा रहा है।
आयोजन के संयोजक संदीप मदान ने बताया कि जवाहर कला केन्द्र के रंगायान सभागार में निर्धारित तिथियों को शाम 7 बजे नाटक होंगे। इसके लिए 40 रुपए का टिकट होगा। प्रत्येक नाटक का कथासार हिन्दी में बताया जाएगा। वैसे इन सभी भाव प्रधान प्रस्तुतियों के सम्प्रेषण में भाषा समस्या नहीं होगी। जयपुर के थिएटर प्रेमियों के लिए उत्तर पूर्व के रंगकर्म को जानने का यह बेहतर अवसर होगा। 
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बुधवार, 29 जुलाई 2015

जयपुर में रवीन्द्र मंच के नव निर्माण कार्य पर आपत्ति


रवीन्द्र मंच का मूल स्वरूप बिगाडऩे का आरोप
मंच प्रबंधक ने कहा मूल स्वरूप नहीं बिगाड़ा
मूमल नेटवर्क, जयपुर। टैगोर कल्चरल कॉम्पलेक्स योजना के तहत केन्द्र सरकार की ओर से जयपुर में रवीन्द्र मंच के नव निर्माण कार्य पर आपत्ति उठा रहे वरिष्ठ नाट्यकर्मी रणवीर सिंह की मांग है कि वहां मंच के मूल स्वरूप को नष्ट किए जाने की कार्रवाई तत्काल रोकी जाए। इसी के साथ सही काम कराने के लिए कलाकारों की एक समिति बना कर एक वरिष्ठ कलाकार को उसका अध्यक्ष बनाया जाए।
यहां पै्रस क्लब में आयोजित एक कॉन्फे्रंस में रणवीर सिंह ने कहा कि नव निर्माण के लिए नियुक्त आर्किटेक्ट संगीता मेथली को नियमों के विरुद्ध काम दिया गया है। जबकि मंच के पुराने जानकार आर्किटेक्ट प्रमोद जैन को इसके मूल स्वरूप की बेहतर जानकारी है।
नव निर्माण के नाम पर जयपुर रवीन्द्र मंच के एतिहासिक रूप के साथ जिस तरह छेडख़ानी और तोड़-फोड़ की जा रही है वह सहन करने योग्य नहीं है। इस पर रोक के लिए 15 जुलाई को न्यायालय में याचिका दायर की गई। मामले की पहली सुनवाई 20 जुलाई को हुई, लेकिन तब हालात पर बहस नहीं हो पाई। उसके बाद 23 व 28 जुलाई को हुई बहस के दौरान रवीन्द्र मंच प्रशासन द्वारा यह कहा गया कि मंच के मूल स्वरूप से कोई छेडख़ानी नहीं की जाएगी। अगली सुनवाई 31 जुलाई को होगी।
वरिष्ठ कलाकार और नाट्यकर्मियों की संस्था 'इप्टा' के अध्यक्ष रणवीरसिंह का कहना है कि रवीन्द्र मंच को केन्द्र की स्कीम से प्राप्त धनराशि से नव निर्माण के नाम पर व्यावसायिक रूप दिया जा रहा है। इसके लिए नोडल एजेंसी नेशनल स्कूल आफ  ड्रामा को बनाया गया है। पूर्व प्रमुख सचिव सल्लाउद्दीन अहमद के समय आर्किटेक्ट प्रमोद जैन ने जो मूल नक्शा तैयार किया था, उसे रद्द कर दिया गया है। उस समय योजना के अन्र्तगत बनाए गए ग्रीन रूम्स तोड़े जा रहे हैं। ओपन एयर थिएटर और उसके स्टेज को पूरी तरह से तोड़ दिया गया है। जिस कमरे में टिकट काउंटर थे उसमें टायलेट बनाए जा रहे हैं। पहले जहां लॉबी और कैंटीन थी अब उसे आर्ट गैलेरी के रूप में परिवर्तित किया जा रहा है। ग्रीन रूम्स को स्टेज के ऊपर बनाए जाने का प्लान है। कलाकार स्टेज पर कैसे प्रवेश करेंगे और सेटिंग ले जाने की तो जगह ही नहीं छोड़ी गई है। परफोमिंग आर्ट के इस केंद्र में विज्युअल आर्ट की गतिविधियों को बढ़ाया जा रहा है।
आर्किटेक्ट की नियुक्ति नियम विरुद्ध
रणवीर सिंह का कहना है कि संगीता मेशेल नाम की आर्किटेक्ट को नियुक्त किया गया है जो नियम विरुद्ध है। सन् 1972 में जो आर्किटेक्ट एक्ट बना था उसमें स्पष्ट रूप से उल्लेखित है कि सरकारी टेण्डर वही आर्किटेक्ट भर सकता है जो आर्किटेक्ट काउंसिल का सदस्य हो जबकि संगीता मिशेल काउंसिल की मेम्बर ही नहीं है।
ब्लू प्रिंट की कॉपी के मांगे 4500 रुपए
हमारा विवाद आर्ट कल्चर डिर्पाटमेंट और आवास विकास विभाग से है। आरटीआई के जरिए मामले की जानकारी के लिए जब योजना की ब्लू प्रिंट की फोटोकॉपी मांगी थी तो तत्कालीन मंच मैनेजर अनिता मीणा ने 4500 रुपए की राशि जमा कराने का पत्र भेज दिया। हमने यह बात जब वर्तमान मैनेजर सोविला माथुर के आगे उठाई तो उन्होंने राशि को संशोधित करते हुए मात्र 200 रुपए जमा करवा के हमें ब्लू प्रिंट उपलब्ध करवा दिया।
कुछ भी गलत नहीं हो रहा -सोविला माथुर 
इस पर रवीन्द्र मंच की मैनेजर सोविला माथुर से की कई वार्ता में उन्होंने बताया कि रवीन्द्र मंच के मूल स्वरूप के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है। आगे भी जो कुछ  निर्माण कार्य होगा तय योजना के अनुसार ही होगा। योजना के अनुसार ओपन एयर थिएटर की सिटिंग कैपेसिटी बढ़ानी है और उसके फ्लोर के नीचे से लाईट साऊण्ड वगैरह की अण्डर ग्राउण्ड वायरिंग की जानी है, इसलिए फ्लोर तो तुड़वाना ही पड़ेगा। जो वायरिंग के बाद पूर्ववत बनवा दिया जाएगा। पार्किंग व्यवस्था को भी सही किया जाएगा।
अन्दर जो टायलेट दुर्गन्ध फैलाते थे, उसे बाहर निकाला जाना है। कैफेटेरिया और लाबी में कलात्मक रचनाओं का प्रदर्शन किए जाने की भी योजना है। जिसमें कोई व्यावसायिक प्रदर्शन नहीं होगा केवल आर्ट व कल्चर से सम्बन्धित  प्रदर्शनियां लगाई जाएंगी। इसमें विजुअल और परफोर्मिंग दोनों ही आर्ट के प्रदर्शन हो सकेंगे। इसका रूप लगभग वैसा ही होगा जैसा कि स्वर्ण जयंति समारोह के तहत इस जगह पर लगाई गई प्रदर्शनी का था। इसके साथ ही मार्डन आर्ट गैलेरी बनाई जाएगी। यह सब कुछ योजना के फस्र्ट फेज के तहत किया जा रहा है। इसका बजट 14 करोड़ रुपए स्वीकृत हुआ है। यह सब कुछ नेशनल स्कूल आफ  ड्रामा के निरीक्षण में हो रहा है, इसलिए यदि बनाई गई योजना से कुछ अलग होता है तो काम का पैसा ही नहीं मिल पाएगा।
आर्किटेक्ट की नियुक्ति आवास विकास विभाग द्वारा की गई की है इसमें रवीन्द्र मंच प्रशासन का कुछ लेना देना नहींं है।
अधिकारियों ने किया दौरा
रवीन्द्र मंच पर निर्माण को लेकर कोर्ट-कचहरी की चर्चाओं के चलते 29 जुलाई को कला एवं संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव शैलेन्द्र अग्रवाल, राजस्थान आवास विकास संस्थान के एक्सईएन राम सहाय रावल व आर्किटेक्ट संगीता मिशेल ने करीब ढाई धंटे तक मंच के नव निर्माण का काम-काज देखा। रवीन्द्र मंच की प्रबंधक साविला माथुर भी साथ रहीं। अधिकारियों ने निर्माण कार्य पर संतोष व्यक्त किया, लेकिन कार्य की गति पर नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि काम की गति बढ़ाकर इसे अक्टूबर माह तक पूरा किया जाए। इसके लिए प्रबंधक को हर माह प्रगति का विवरण देने के निर्देश दिए।
(विशेष: रवीन्द्र मंच के नवनिर्माण के संबंध में मूमल में एक वर्ष पूर्व ही साइट प्लान सहित विस्तृत आलेख प्रकाशित किया जा चुका है। कृपया 1 अगस्त 2014 के अंक में पृष्ठ 4 व 5 देखें )

शुक्रवार, 26 जून 2015

चित्रकार और मूर्तिकार शिव सिंह का निधन


 चित्रकार और मूर्तिकार सरदार शिव सिंह का निधन 
मूमल नेटवर्क, चंडीगढ़। विश्व प्रसिद्ध चित्रकार और मूर्तिकार सरदार शिव सिंह का पंचकूला सेक्टर 21 के एक निजी अस्पताल में हार्ट अटैक के कारण निधन हो गया। वह 67 साल के थे और पिछले काफी समय से कैंसर की बीमारी से पीडि़त थे। उन्हें सीने में दर्द के चलते पिछले बुधवार को अस्पताल में भर्ती करवाया गया था, जहां पर उन्हें आज शुक्रवार तडक़े साढ़े 3 बजे हार्ट अटैक आया और उनका निधन हो गया। शिव सिंह की पत्नी गिसऐला मूल रूप से जर्मनी की है और पिछले लंबे समय उनके सेक्टर 6 पंचकूला घर पर उनकी सेवा कर रहीं थी। जबकि बेटा यसमिन अभी जर्मनी में ही है, जो रविवार को पंचकूला पहुंचेगा और उसके बाद उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।
जीवन 
सरदार शिव सिंह का जन्म 1938 में होशियारपुर में हुआ था। 1958 से 1963 तक उन्होंने पहले पंजाब कॉलेज आफ ऑटर्स शिमला और उसके बाद चंडीगढ़ में अध्ययन किया। 1963 में 1968 तक उन्होंने सैनिक स्कूल कपूरथला में कला सिखाई। 1967 में उन्हें दूसरे राष्ट्रीय वास्तुशिल्पि कैंप दिल्ली में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया, जिसके बाद 1968 में जर्मन सरकार ने उन्हें जर्मनी में 3 साल के लिए कला क्षेत्र में एक उन्नत अध्ययन में छात्रवृत्ति और अनुसंधान की पेशकश की। उसके बाद उन्हें अपनी कला को यूरोप में कई बार प्रर्दशित करने का मौका मिला। 1972 से 1982 तक वह नई दिल्ली में ललित कला अकादमी के सदस्य रहे और पंजाब ललित कला अकादमी चंडीगढ़ के संस्थापक सदस्य रहे।
उन्होंने पंजाब कला परिषद के निर्माण में डा. एमएस रंधावा के साथ मिलकर काम किया। 1982 से 1984 ऑल इंडिया रेडियो स्टेशन, जालंधर की सलाहकार समिति के सदस्य थे। उन्होंने दूरदर्शन एवं अन्य टीवी चैनलों में दस डाक्यूमेंट्री टेलीविजन फिल्मों में काम किया। 2006 में दूरदर्शन जालंधर द्वारा दृश्य कला के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए पंज पाणि पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। वह गर्वनमेंट होम साइंस कॉलेज चंडीगढ़ से 1996 में कला के प्रोफेसर के रूप में सेवानिवृत्त हुए। 1999 से 2005 तक चंडीगढ़ ललित कला अकादमी के अध्यक्ष रहे। चंडीगढ़ ललित कला अकादमी के अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने कारगिल हीरो राष्ट्रीय कोष के लिए और सुनामी त्रासदी कोष चंडीगढ़ के कलाकारों की दो प्रदर्शनी का आयोजन किया, जिसमें उन्हों रुपये 65,000 रूपए और 145,000 रूपए एकत्रित कर दिए।
अनेक पुरस्कार रहे शिव सिंह के नाम
1979 में मूर्तिकला में उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार और 1982 में भारत के राष्ट्रपति नई दिल्ली में अखिल भारतीय प्रदर्शनी मे सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए रजत पट्टिका से नवाजा गया। कई अखिल भारतीय और राज्य स्तरीय पुरस्कार भी प्राप्त किए। इसके बाद उन्हें कला के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए पंजाब के राज्यपाल द्वारा सम्मानित किया गया।
मूर्तिसंग्रह
सरदार शिव सिंह द्वारा बनाई गई मूर्तियां दिल्ली की नेशनल गैलरी आफ मार्डन आर्ट, चंडीगढ़ संग्रहालय, पंजाब विश्वविद्यालय के संग्रहालय, राज्य संग्रहालय शिमला, हैक संग्रहालय, गुलाब कला संग्रहालय, जर्मनी, हरियाणा राज्य पर्यटन (पर्यटक रिज़ॉर्ट), रोहतक परिसर, राजहंस होटल सूरजकुंड और शिल्प संग्रहालय सूरजकुंड, तकनीकी संग्रहालय बैंगलोर; उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र पटियाला व चंडीगढ़, पंजाब पुलिस अकादमी के शताब्दी (स्मारकीय मूर्तिकला 92) और भी पंजाब भवन चंडीगढ़ में भी लगी हुई है।
चित्रसंग्रह
उनकी बनाई पेंटिग्स चंडीगढ़ के विभिन्न होटलों, पंजाब राज्य मंडी बोर्ड, पंजाब एग्रो इंडस्ट्रीज कार्पोरेशन चंडीगढ़, पंजाब राजभवन चंडीगढ़, चंडीगढ़ गोल्फ क्लब, चंडीगढ़ क्लब, रेडक्रॉस पटियाला, उपायुक्त कार्यालय, पटियाला, पंजाब राज्य खाद्य कार्पोरेशन चंडीगढ़ और संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, स्विट्जरलैंड, डेनमार्क, स्वीडन, कनाडा, श्रीलंका, सिंगापुर, स्कॉटलैंड, इंग्लैंड और हॉलैंड मेंमें कई अन्य सार्वजनिक और निजी संग्रहालयों में लगी हुई है।

शुक्रवार, 5 जून 2015

पर्यावरण दिवस पर कलाजगत के रंग


विश्व पर्यावरण दिवस पर कलाजगत ने उकेरे विभिन्न रंग
मूमल नेटवर्क, जयपुर।
पर्यावरण दिवस पर जहां विभिन्न स्तरों पर अनेक कार्यक्रम आयोजित किए गए वहीं कला जगत ने भी अपने तरीके से पर्यावरण की उपयोगिता समझाने और आमजन में जागरुकता के लिए उपाय किए।
इस कलात्मक पहल के लिए कला व्यवसाय से जुड़ी 'कलानेरी' और सामाजिक सरोकार से जुड़ी संस्था 'मैसेज' द्वारा आमजन ओर खासकर नवांकुरों के लिए विभिन्न आयोजन किए गए। इस दौरान जाने-माने कलाकारों ने कैनवास पर रंगों के जरिए पर्यावरण संबंधी संदेशों को आकार दिया इनमें कलाविद डा. चिन्मय मेहता, पदमश्री एस. शाकिर अली, जगमोहन माथोडिय़ा, अशोक गौड़, व कलानेरी निदेशक सौम्या शर्मा प्रमुख थे। कार्टूनिस्ट सुधीर ने भी अपनी शैली से पर्यावरण को उकेरा। इस अवसर पर कलानेरी एकेडमी ऑफ आर्ट के बच्चों ने भी पर्यावरण के प्रति अपने प्यार के रंग भरे। माहौल को संगीतमय बनाने के लिए लीडिंग नॉट ग्रुप के युवा गिटारिस्टों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
डा. चिन्मय मेहता और एस.शाकिर अली ने पर्यावरण की महत्ता पर अपने विचार व्यक्त किए और कला में माध्यम से जन जागृति को अधिक प्रभावी बनाने पर बल दिया। विशेष अतिथि के रूप में आईएएस नीरज के पवन ने कार्यक्रम में पर्यावरण व विशेषकर पॉलीथिन से फैल रहे प्रदूषण पर रोकथाम के लिए आमजन में जन जागृति लाना ही एक मात्र उपाय बताया। इसके लिए विशेषकर युवा पीढ़ी को आगे बढ़कर रोकथाम के प्रयास करने पड़ेंगे। पर्यावरण विद एसपी तोमर रामाराव शर्मा ने कार्यक्रम के दौरान कदम्ब के पेड़ लगाकर कार्यक्रम की शुरूआत की।
मैसेज संस्था की संयोजक पूर्णिमा कौल ने बच्चों के लिए हुई फैंसी ड्रेस को साकार किया। कलानेरी की ओर से जारी विज्ञप्ति के अनुसार इस अवसर पर समाज सेवी पंचशील जैन, डॉ भास्कर गुप्ता, डॉ सतीश त्यागी व युवा कलाकार प्रदीप शर्मा, नवल सिंह चौहान, लाखन सिंह, अरविंद धाकड़ सहित कई पर्यावरण प्रेमी मौजूद थे। शहर के व्यस्तम जेएलएन मार्ग पर आयोजित हुए इस कार्यक्रम के जरिए दोनों संस्थाएं पर्यावरण के प्रति लोगों का ध्यान खींचने और जन जागरुकता लाने में सफल हुई।






शनिवार, 23 मई 2015

नेपाल भूकम्प- कलाकारों की संवेदना या अवसरवादिता


जब भी कोमलता की,  कल्पनाओं की, भावनाओं की या संवेदनशीलता की बात आती है तो प्रथम पंक्ति में कला और कलाकार ही खड़े नजर आते हैं। जब-जब भी कोई प्राकृतिक या मानवीय विपदा सामने आई है तो कलाकार वर्ग अपनी संवेदनाओं के साथ नजर आया है। इस समय भी प्राकृतिक विपदा भूकम्प के चलते पड़ौसी देश नेपाल के साथ भारत के बिहार व उत्तर प्रदेश में जान माल की हानि हुई है। ऐसे में भारत के कलाकारों की संवेदनाओं का मुखर होना लाजमी है। लेकिन संवेदनाओं की आड़ में जब कलाकार व्यापारी बन कर अपना हित सोचे और अवसरवादी बने तो संवेदनाओं पर प्रश्नचिंह लग जाता है।
अपनी बात को सिद्ध करने के लिए हम यहां इन्दौर की एक कला ग्रुप की बात करेंगे, जिसने कलाकारों से भूकम्प पीडि़तों के सहायतार्थ एक विक्रय प्रदर्शनी आयोजित करने के लिए कलाकारों से पेंटिंग्स आमन्त्रित की है। यह ऐलान किया गया है कि बिकने वाली पेंटिंग से प्राप्त राशि का एक हिस्सा भूकम्प पीडि़तों की सहायतार्थ भेजा जाएगा। क्या इस घोषणा से सहज ही यह सवाल नहीं उठता कि विक्रय से प्राप्त राशि का केवल एक हिस्सा? वो भी कितना? पता नहीं, पेंटिंग्स की बिक्री पर गैलेरीज को दिए जाने वाले हिस्से से ज्यादा या कम? और भूकम्प पीडि़तों की सहायता के लिए भेजने वाले कथित हिस्से के बाद शेष बचे हिस्से की आय को स्वयं के पास रखकर संवेदना का कौनसा रूप दर्शाना चाह रहे है? क्या यह कृत्य अपनी वस्तु को बेचने के लिए ग्राहकों को लुभाने के लिए पहले से ही दिए जाने वाले कमीशन को संवेदना के नाम पर भुनाना नहीं दर्शा रहा है? सभी जानते हैं कि पेंटिंग या मूर्तिशिल्प ही ऐसी वस्तुओं में शामिल हैं जिसके मूल्य निर्धारण का कोई वास्तविक व ठोस मापदण्ड अभी तक तय नहीं हो पाया है। इस तरह के प्रदर्शन जो सहायता के नाम पर आयोजित किए जाते हैं वो अवसरवादिता नहीं तो और क्या है?
हम इससे पहले मूमल में कला के इक्कठा होते जा रहे कचरे की समस्या पर भी बात कर चुके हैं। कलाकृतियों के नाम पर कई चीजें ऐसी बन रहीं है जिसकी ना तो सराहना है और ना ही मांग। ऐसे में अपनी उन कृतियों को बेचने के लिए कलाकारों का ऐसी विपदाओं के समय पर प्रदर्शन कर वाहवाही लूटना ओर अपना हित साधना राजनेताओं की कार्यशैली को ही पीछे छोड़ रहा है। अब यह सामान्य होता जा रहा है क्योंकि आज कलाकारों के बीच पनपती जा रही राजनीति और एक-दूसरे की टांग खिंचाई की प्रवृति के चलते उनका आचरण राजनेताओं को भी मात कर रहा है। कला और संवेदना की आड़ में अवसरवादी होता जा रहा कलाकार, कला के नाम पर समाज को क्या दे सकता है, यह सोचने की बात है।
परिस्थिति को समझ सच्चे मन से यदि हम किसी की सहायता करना चाहे, फिर वो सहायता कितनी भी छोटी क्यों ना हो सार्थक साबित होगी ओर हम अवसरवादिता छोड़ अपनी कला साधना को प्रखर करें तो शायद ऐसी प्रदर्शनियों की नौबत ही नहीं आएगी और हम खुले दिल से विपदा के समय अपने भाईयों की सहायता भी कर पाऐंगे।
नेपाल को विश्व भर से सहायता प्राप्त हो रही है। यूनेस्कों में दर्ज इमारतों के नुकसान को संभालने यूनेस्को आगे आया है लेकिन हमारे देश के वह वासी जो इस आपदा का शिकार हुए हैं, क्या वो संवेदना के लायक भी नहीं? यहां प्रश्न यह उठता है कि सारी संवेदना व सहायता, नेपाल को ही क्यों? जबकि हमारे अपने देश में भी भूकम्प से काफी नुकसान हुआ है। लोग मरे भी हैं, घायल, बेघर और अनाथ हुए हैं।
सम्पादकीय लिखने के दौरान यह जानकारी भी मिली हे कि जयपुर के कुछ कलाकारों द्वारा दिल्ली की एक आर्ट गैलेरी में नेपाल के भूकम्प पीडि़तों के लिए विक्रय प्रदर्शनी का आयोजन किया जा रहा है। आयोजनकर्ताओं द्वारा मूमल को यह बताया गया है कि आयोजन में विक्रय से प्राप्त पूरी राशि पीडि़तों की सहायतार्थ भेजी जाएगी। इसलिए इस आयोजन में मूमल ने अपने सहयोग का प्रस्ताव रखा है। ऐसी वास्तविक सहायता के अन्य कार्यक्रमों में भी हम यथासंभव सहयोग देने को तैयार हैं।

मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

ललित कला अकादमी सरकार देखेगी

सरकार ने ललित कला अकादमी का प्रबंध अपने हाथ में लिया

मूमल नेटवर्क, नयी दिल्ली। ललित कला अकादमी में प्रशासनिक और वित्तीय अनियमितताओं का हवाला देते हुए सरकार ने इस संस्था का प्रबंधन अपने हाथ में ले लिया है। इसके बाद अकादमी के बिहार स्थित पटना व  अन्य क्षेत्रीय केन्द्रों के कामकाज की समीक्षा भी होगी। 

गड़बड़ी और निकम्मेपन का पर्याय बन गई ललित कला अकादमी के कामकाज को अब केन्द्र सरकार का संस्कृति विभाग देखेगा। ललित कला अकादमी संस्कृति मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संस्था है। जानकारों ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों से संस्कृति मंत्रालय को ललित कला अकादमी में कथित प्रशासकीय एवं वित्तीय अनियमितताओं के बारे में शिकायतें मिलती रही थीं। आपस में भिड़ते अफसर और कुछ खास मुकदमों के कारण वर्ष 2013 से ललित कला अकादमी की सामान्य परिषद एवं कार्यकारी बोर्ड भी कार्यरत नहीं हैं। यही नहीं, ललित कला अकादमी के प्रमुख कार्यकारी अधिकारी यानी सचिव फिलहाल निलंबित हैं और अकादमी के अध्यक्ष ने उनके खिलाफ विभागीय जांच के आदेश दे दिये हैं। 
जानकारी के अनुसार,ललित कला अकादमी के मुश्किलों से घिरे प्रशासन और अकादमी के गतिशील एवं पारदर्शी कामकाज में आम जनता के व्यापक हित को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने बीती 1 अप्रैल से अकादमी का प्रबंधन अपने हाथ में लेने के लिए संस्कृति मंत्रालय के जरिये अकादमी की कार्य शर्तों के संबंधित प्रावधानों का इस्तेमाल किया है। फिलहाल संस्कृति मंत्रालय में अपर सचिव श्री के.के. मित्तल को ललित कला अकादमी का प्रशासक नियुक्त किया गया है। उनकी नियुक्ति अगले आदेश तक प्रभावी रहेगी। वे आईएएस अफसर हैं। ललित कला अकादमी अपने काम से भटक गई थी। यहां के अफसर कोई काम करके राजी नहीं थे।
इसी के साथ विभिन्न प्रदेशों में  राज्य सरकारों के आधीन कार्यरत अकादमियों की  गतिविधियों की समीक्षा की जरूरत भी महसूस की जाने लगी है। 

बुधवार, 1 अप्रैल 2015

दस बरस पूरे होने पर

अपनों से कुछ बेपर्दा बातें 
गत दस बरस से हर पखवाड़े पाठकों तक कला जगत की चुनिंदा गतिविधियों की खबर पहुंचाना अपने आप में कितना खास है हमसे बेहतर केवल एक वास्तविक कलाकार ही जान सकता है। कला के नाम पर कलाबाजियां करते रहने वालों के लिए ये महसूस करना उनकी सोच के दायरे से बाहर की बात है। गत दस सालों में मूमल का एक-एक अंक कैसे निकला है ये वही जानते हैं जिन्होंने मूमल को करीब से देखा है। साल में 24 अंक, अब तक लगभग 240 अखबार। लगभग इसलिए क्यों कि कई बार अंक छप भी नहीं पाते। जाहिर है प्रमुख कारण आर्थिक होता है।
बाजारू नहीं
मूमल अपने प्रत्येक पाठक को एक विचार मानता है, बाजार नहीं। यही कारण है कि कला जगत में लगभग सब जानते और देखते भी हैं कि मूमल में बाजारू विज्ञापन नहीं होते। होते भी हैं तो केवल कला गतिविधियों या कला संस्थानों के वे विज्ञापन जिनसे पाठकों को जानकारी या सूचना मिलती हो। इसके अलावा होली, दिवाली या वार्षिक अंक पर शुभकामना के विज्ञापन, वह भी केेवल कलाकारों के। जब पैसे की बहुत तंगी होती है तो हम आगे बढ़कर कला संस्थानों और संगठनों से उनके विज्ञापन या अन्य किसी रूप में धन मांगते हैं। ऐसे अनेक सहयोगी कलाकार हैं जो धन नहीं दे पाते तो अपने काम मूमल को देकर कहते हैं कि इसे बेच कर अपना काम चलाईये, लेकिन इस अखबार को जिंदा रखिए।
ये  हैं ताकत
मूमल का सबसे बड़ा आर्थिक संबंल उसके पाठक हैं। वो वरिष्ठ जो कला की गरिमा बनाए हुए हैं या वे युवा और संर्घषशील कलाकार, जो इसे पैसे देकर खरीदते हैं। वे केवल कुछ पन्नों के पतले से अखबार के लिए 250 रुपए खुशी-खुशी निकालते हैं। जबकि उनका हाथ कथित बड़े कलाकारों की तुलना में काफी तंग होता है। 
वे वजूद मिटाएंगें
दूसरी ओर कुछ कथित बड़े कलाकार मूमल को व्यवसायिकता का तकाजा समझाते हुए ये बतातें हैं कि किस-किस बड़े कलाकार को मूमल फ्री भेजा जाना चाहिए। ये वे कलाकार हैं जो मूमल में छपना भी चाहते हैं और ये उम्मीद करते हैं कि मूमल एपाइन्टमेंट लेकर उनसे मिले और उनकी गतिविधियां पता करके छापे। नहीं तो उन्हें मूमल जैसे छोटे से अखबार का वजूद मिटाने में वक्त नहीं लगेगा।  मूमल से जुड़ा हर कलाकार यह अच्छी तरह से जानता है कि मूमल के संसाधन कितने सीमित हैं। लेकिन बिना किसी पहल के छपने के इच्छुक वे कथित बड़े कलाकार सच्चाई के साथ ना तो जुडऩा चाहते हैं और ना ही जोडऩा। अपने अहम् भाव के चलते कला जगत के पूरे परिदृश्य में उन्हें केवल अपने हित ही सर्वोपरी दिखते हैं।
जो मूमल के संसाधनों के बारे में जानते हैं वे आगे बढ़ कर मूमल को सूचनाएं और जानकारियां उपलब्ध कराते हैं। देखा जाए तो वहीं सच्चे संवेदनशील कलाकार हैं। ऐसे में जो जानकारी देते हैं और बिदांस बोलते हैं, जो गुस्सा जाहिर करते हैं तो उस पर कायम भी रहते हैं। वे मूमल के आवरण प्रष्ठ पर प्रमुखता से छपते हैं। यहां यह बताने की जरूरत नहीं कि ऐसे अनेक वरिष्ठ हैं जो चाहते हैं कि उनके समकक्ष साथियों की पोल मूमल खोले। फिर कुछ देर बार ही वे पोल खुलवाने वाले सज्जन कलाकार उन्हीं साथी कलाकार के साथ अति आत्मीयता के साथ बात करते नजर आते हैं। ऐसे बड़े कलाकारों के लिए क्या कहा और सोचा जाए?
एक और नमूना
एक और उदाहरण प्रस्तुत है, पिछले साल जब दिल्ली की ललित कला अकादमी की कुछ अनियमितताओं में जयपुर का भी नाम आया तो एक महिला कलाकार शिक्षिका ने कहा कि जो जैसा करता है वैसा ही भरता है। ऊपर वाले की लाठी जब चलती है तो आवाज नहीं होती। कई उपाधियां देते हुए उन्होंने राजस्थान ललित कला अकादमी, कला मेला  और आर्ट समिट की गतिविधियों पर काफी कड़ी टिप्पणियां की। इस बारे में वरिष्ठों से चर्चा की गई तो उन्होंने सकारात्मक सोच रखते हुए इसे नजरअंदाज करने की सलाह दी। अब वहीं कला शिक्षिका जब 18वें कला मेले की आयोजन समिति में चुन ली गई तो अकादमी की कार्यप्रणाली पर कोई प्रश्र शेष नहीं रहा। बल्कि मूमल में मेले की विफलता के समाचारों पर आपत्ति करती नजर आईं। कुल मिलाकर हम दस सालों में भी ये नहीं समझ पाए कि आखिर किसके दिखाने के दांत कौन से हैं और खाने के दांत कौन से?
गिनती के कुछ लोग
दस सालों के इस सफर ने यह तो समझा ही दिया है कि 15-20 की सीमित संख्या वाले वो कलाकार जो खुद को  कला जगत के प्रतिनिधी रूप में प्रस्तुत करते हैं। जो स्वयं विशेष कर नहीं पाते, लेकिन उन युवाओं पर अपना सिक्का चलाना चाहते हैं जो दुनिया को बहुत कुछ कला की नई सोच के रूप में दे सकते हैं। मूमल को कला मेले के दौरान, इससे पहले और बाद में ऐसे कई पत्र, सुझाव, सांकेतिक कहानी और चित्र प्राप्त हुए हैं। इनमें युवा कलाकारों ने अपने-अपने क्रिएटिव अंंदाज में कला मेले के समय काल को परिभाषित किया। विसंगतियों को उजागर किया। यह साफ महसूस हो रहा है कि यदि समय रहते इन विसंगतियों के उचित समाधान नहीं निकाले गए तो ये विद्रोह कला के इतिहास में अंकित होगा। 
अब और नहीं 
पिछले कुछ अर्से में संवेदनशील और संर्घषशील कलाकारों ने यह स्पष्ट संकेत दे दिए हैं कि वे प्रदेश में कला जगत के स्वयंभू प्रतिनिधियों को और बर्दाश्त नहीं करेंगे। वे पुरानी कुंठित सोच लिए स्वयं कुछ कर नहीं पाते और नई पीढ़ी को कुछ करने का मौका नहीं देना चाहते। ऐसे मेंं अब गंभीरता से विचार का समय आ गया है कि ऐसे विभिन्न चेहरों वाले गिने-चुने वरिष्ठों के लिए कौन सा स्थान निर्धारित करे? 
ऐसे में अब लग रहा है कि सकारात्मकता की कृत्रिम बातें करते हुए नकारात्मकता की गंदगी को छुपाने की बजाए एक सीमा तक उसे जगजाहिर किया जाए। एक आईने की तरह जो है, जैसा है बताया जाए। जाहिर है इसके बदले में कुछ कठिनाइयां और बढ़ जाएंगी, प्रभावित लोग वजूद खत्म करने की कोशिश भी करेंगे, लेकिन हम यह मानते हुए न केवल बने रहेेंगे बल्कि सुधि पाठकों और सच्चे शुभचिंतकों के साथ आगे भी बढ़ते रहेंगे...
क्योंकि, 
जो लोग चाहते हैं मिटाना मेरा वजूद
उनकों खबर नहीं फना हो चुकी हूं मै...
                                         -मूमल

दोहरे चरित्र कैसे करेंगे अधिकारों की रक्षा ?


कर्म में संतुष्टि साधु स्वभाव का परिचय है, लेकिन कोई आपके उस संतुष्टि देने वाले छोटे से भाग पर भी अपना अधिकार जमा कर आपको बेदखल कर दे तो यह सहन करने योग्य नहीं है। अपने हिस्से पर अधिकार की लड़ाई और उसे संरक्षित करना इंसानी धर्म है। इसी को श्रीमद् भगवत गीता में कर्म की शिक्षा के रूप में अंकित किया गया है।
कला क्षेत्र का एक बहुत बड़ा तबका विजूअल आर्टिस्ट का है।  जब भी किसी कला आंदोलन की बात सामने आती है तो यह तबका परिदृश्य पर नजर नहीं आता। तंग गलियारों और बंद कमरों में एक दूसरे के कांधे पर बंदूक रखने के लिए एक दूसरे को सहलाता-बहलाता यह तबका कभी सामने के मोर्चे पर डटा हुआ नहीं दिखता। हां इनके अधिकारों के लिए यदि किसी और ने लड़कर विजय के रूप में अधिकार पाए हैं तो अपने हिस्से को पाने के लिए जरूर उग्र व आक्रमक नजर आता है। जिनकी पीठ पीछे आलोचना करता है उन्हीं के आगे-पीछे अपने तुच्छ हितों की खातिर मंडराता दिखता हैै। अपनी कर्महीनता को वो कला की संवेदना के पर्दे में ओढ़कर पेश करने का अच्छा खिलाड़ी है। 
दूसरी और इसी तबके का एक भाग स्वयं को तटस्थ बताने वाले लोगों का भी है। जो 'ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैरÓ को अपना जीवन मंत्र मानकर सही और गलत के प्रति आंख मूंदे बैठे हैं। ऐसी स्थिति भी विकट है। क्योंकि जब उनकों अपने हितों के लिए सही और गलत की लड़ाई लडऩी पड़ी है तब वह भरी महफिल में तन्हा हो जाते हैं। तटस्थ व्यक्ति समाज के हित में गलत के प्रति चुप्पी साधकर बहुत बुरा कार्य करता है। 

विजुअल आर्टिस्ट को चाहिए की अपनी अकर्मण्यता और तटस्थता को छोड़कर अपने और समाज के वास्तविक हितों को समझे, अधिकारों व दायित्वों के प्रति सतग रहे। सत्ता और शक्ति का गुलाम ना बने। इस बात को समझने का प्रयास करें कि कला जगत में बुरे लोगों की सक्रीयता इतना नुक्सान नहीं पहुंचाती जितना नुक्सान अच्छेे लोगों की निष्क्रीयता या तटस्थता से होता है।
मंचीय कलाकारों के समान साहसी बने तो आज विजुअल आर्टिस्ट की खामोशी से सहन करने वाले की जो छवि है, वह टूटेगी। हम जब हमारे हितों, अधिकारों और दायित्वों के प्रति सजग रहेंगे तो किसी में साहस नहीं होगा कि वह कलाकार के अधिकार क्षेत्र पर डाका डाल सके। जब हमारे बीच सहनशीलता और उग्रता का संंतुलन कायम होगा तब ही हम वास्तव में गरिमामय कहलाएंगे। वो सब कुछ जिससे हम चुप्पी और पीछे हट जाने की आदत के चलते वंचित रह जाते हैं,  बिना किसी लाग-लपेट के हमारे साथ होगा। बस हमें हमारे दोहरे चरित्र के खोल से बाहर निकल कर आना पड़ेगा क्योकि दोहरा चरित्र ना तो कभी अपनी वास्तविक पहचान कायम कर पाता है ओर ना ही अपने अधिकारों का संरक्षण ही। 

अपनी लड़ाई खुद को ही लडऩी पड़ती है। कोई अन्य आपकी मदद तब ही कर पाता है जब आप अपने अधिकारों के प्रति सजग हों। गीता के इस चिर ज्ञान को आत्मसात करते हुए जयपुर के रंगकर्मियों ने आन्दोलनकारियोंं का बाना धारण कर लिया है। लेकिन कला व संस्कृति के अन्य प्रबल पक्षों में किसी बात को लेकर कोई हलचल नहीं है। वो पक्ष 'जो बोले वो कुंडी खोलेÓ के डर से सोए हुए हैं या अज्ञानता की बेहोशी में खोए हुए हैं, इस बात को समझना पड़ेगा। 

सोमवार, 16 मार्च 2015

कलाकारी बंदरों की

कलाकारी बंदरों की
जंगल की एक कहानी है। जंगल के राज की कमाण्ड किसी तरह शेरों के हाथों से निकलकर बंदरों के हाथों में आ गई। एक बार जंगल का मौसम बिगड़ गया। बहुत बरसात हुई। पक्षियों के घौंसले टूटने लगे। अण्डे-बच्चे असुरक्षित हो गए। बकरी के बच्चे नाली में बहने लगे। सब परेशान होकर नए बंदर राजा के पास गए। बन्दर ने पहले तो सबको घुड़की दी। फिर मौके की नजाकत देखते हुए सबको तस्सली दी। अपने साथियों को हालात समझने को कहा। अपनी फितरत के अनुसार नए राजा सहित सभी बन्दर पेड़ों पर चढ़कर हालात का जायजा लेने लगे। बड़ी मेहनत से काफी देर तक एक पेड़ से दूसरे पेड़ तक उछल-कूद करते रहे। इस बीच सब घौंसले उजड़ गए, अण्डे फूट गए अएैर बकरी के बच्चे बह गए। अब बारी आई, पेड़ों से उतर कर जंगल के जीवों को जवाब देने की। बंदरों ने हांफते हुए अपनी राजनैतिक कलाकारी दिखाई। बन्दर बोले 'देखो भाईयों! बरसात में तो हम भी आपके साथ रहे। पूरी जिम्मेदारी निभाई। हमने अपनी भागदौड़ में कोई कमी रखी हो तो कहो?

रविवार, 15 मार्च 2015

यह कैसी 'मूमल'?


इतिहास के साथ खिलवाड़
मूमल नेटवर्क, जयपुर। राजस्थान कला अकादमी के अठारवें कला मेले के तहत सहयोगी राजस्थान सिन्धी अकादमी के आर्ट कैम्प में मरुभूूमि के विख्यात चरित्र मूमल का चित्रण किया जा रहा है। रियलिस्टिक आर्ट शैली में बनाया जा रहा यह चित्र यह चित्र जयपुर के आर्टिस्ट जगदीश चन्द्र सांवलानी बना रहे हैं। मूमल के इस चित्र में नायिका का जो चित्रण किया गया है वो देखने वालों को मूमल की वास्तविकता से भटका कर भ्रमित करने वाला है।
इतिहास की प्रेम गाथाओं में मूमल व राणों महेन्द्रो का नाम विश्व प्रसिद्ध है। यह कहानी अखण्ड भारत के दो विभिन्न प्रदेशों और संस्कृति के राजघरानों की है। मूमल जहां जैसलमेर की राजकुमारी थी वहीं राणों महेन्द्रों सिन्ध (वर्तमान पाकिस्तान) के नगर अमरकोट के शासक थे। पिता द्वारा किसी कारणवश दण्डस्वरूप मूमल जैसलमेर से कुछ दूरी पर जंगल में बनी एक मेड़ी में निवास किया करती थीं। वहीं राणों महेन्द्रो से उनकी मुलाकात हुई।
चित्रकार ने अपने चित्र में जो मूमल के परिधान चित्रित किए हैं वो कहीं पर भी जैसलमेर के राजघराने तो क्या जैसलमेर के मूल जनजीवन से जुड़े भी नहीं हैं। मूमल का ऐसे वस्त्र विन्यास का वर्णन कहीं नहीं पाया जाता। लगभग यही हाल राणों महेन्द्रो के वस्त्र विन्यास का है। इस  चित्र को देखकर लगता है जैसे मूमल पंजाब से संबंधित थी। चित्र में मूमल की वेषभूषा और वस्त्रों में कुर्ता और लूंगी दर्शाई गई है। महेंन्द्र को भी किसी मुगल जैसा दिखाया गया है। इसी के सााि मूमल के हाथ में जो वाद्य यंत्र दिखाया गया है वह भी मूमल से संबंधित नहीं है।
पहली नजर में यह चित्रण फुटपाथों पर अज्ञात चित्रकारों द्वारा निर्मित उस अंकन जैसा है जो पोस्टर विक्रेता उमर खय्याम के चित्रों के नाम से बेचते हैं। जगदीश सावलानी का चित्रण देख कर उमर ख्य्याम के पोस्टर दिमाग में कौंध जाते हैं।
यदि मूमल की अप्रतिम सुन्दरता की बात करें तो वो भी कैम्प में बन रहे इस चित्र में नजर नहीं आती। मूमल की सुन्दरता के किस्से  सुने जाएं तो मालूम चलता है कि उसकी एक छवि पाने के लिए और उनसे विवाह करने की इच्छा लिए कई राजकुमारों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी।
सिन्ध में शाह लतीफ ने अपने पद्य गं्रन्थ में 'सत सूरमियूंÓ में एक सूरमी के रूप में मूमल का वर्णन किया है। राजस्थान के कहानीकारों और इतिहासकारों ने भी मूमल की सुन्दरता, वस्त्र विन्यास और आभूषणों का वर्णन किया है।
पूर्व में हुआ है उग्र विरोध
उल्लेखनीय है पिछले दिनों फरवरी में जैसलमेर में हुई 'मिस मूमलÓ प्रतियोगिता में मिस मूमल चुनी गई युवति के वस्त्र विन्यास को लेकर भी भारी विवाद हुआ था।  मिस मूमल प्रतियोगिता में चुनी गई संध्या द्वारा पहने गए वस्त्रों के रंग और आभूषण को लेकर कड़ा विरोध प्रदर्शन हुआ था। विरोध इतना उग्र था कि पुलिस को उग्र भीड़ पर नियंत्रण के लिए लाठियां भांजनी पड़ी थी। ऐसे में जन भावनाओं को देखते हुए चित्रकार को मूमल की सुन्दरता, वस्त्र विन्यास और वेशभूषा के साथ मूमल द्वारा पहने जाने वाले आभूषणों का पर्याप्त अघ्ययन करने के बाद ही इस एतिहासिक चरित्र को कैनवास पर सजीव करने का प्रयत्न करना चाहिए।

Jaipur Kala Mela Day-4

सुधरा मौसम, खिल उठे चेहरे
मूमल नेटवर्क, जयपुर। राजस्थान ललित कला अकादमी के चौथे दिन मेला शुरु होने के साथ मौसम ने सुधरना शुरू कर दिया। इसके साथ ही कलाकारों के चेहरे खिलने लगे। 
पिछले दो दिनों से मौसम की मार झेल रहे कलाकारों ने धीर-धीरे अपनी- अपनी पेंटिंग्स को स्टाल्स पर डिसप्ले करना शुरू कर दिया। दिन में दो बजे तक लगभग सभी स्टॉल्स कलाकृतियों से सज चुकीं थी। रवीवार होने और मौसम सुधरने के कारण कलाप्रूमी दर्शकों की रेलमपेल चालू हो गई। चार बजे के बाद भारी संख्या में विजिटर्स के आने से बीते दो दिनों की पीड़ा हवा हो गई। कलाकारों का उत्साह देखते बनता था। 
केन्द्र की दीर्घाओं में भी कलाप्रेमियों की खासी भीड़ रही। कैम्पोुं में सृजनरत कलाकारों से अनकी कला के बारे में जानकारी लेने और लाइव डेमों देखने के लिए कला प्रेमी व विद्यार्थी पहुंचे। रंगायन के बरामदे में निर्वाचन आयोग की तरफ से मोस्टर प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जिसमें ल्रभग 70 कला विद्यार्थियों और स्थापित कलाकारों ने भाग लिया।
कला मेले के तहत चौथे दिन 'कला यात्रा एक दर्पणÓ का विमोचन किया गया। यह पुस्तक 3 गुणा 4 फीट की है जो पचास कैनवास से सजी है। इसमें राजस्थान की कला यात्रा का सचित्र विवरण है।
चला उमंग का दौर
शाम 7 बजे शिल्पग्राम में ब्रज की गायकी ने रंग जमाया। लोक गीतों की धुन के साथ मेले में आए युवा कलाकारों ने जोशले अंदाज में नृत्य करते हुए समां बांध दिया। युवा कलाकारों के जोशीले नृत्य को देखकर मेले में आए विजिटर्स ने भी उनका साथ दिया।