गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

IAS उमरावमल सालोदिया का धर्म परिवर्तन

जाते हुए साल के आखिरी दिन में अचानक 
उमरावमल सालोदिया खबर बन गए।

दलित IAS ने कबूला इस्लाम, कहा- हिंदू होने के कारण हुआ भेदभाव

मूमल नेटवर्क, जयपुर।   
...और भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी उमराव सालोदिया एकाएक उमराव खान हो गए। उन्होंनेे धर्म परिवर्तन कर लिया। इसके साथ ही स्वैच्छिक सेवा निवृति के लिए सरकार को पत्र सौंप दिया। क्या था यह सब कुछ सरकार के प्रति नाराजगी की हद, एक कलाकार के दुख की अति या फिर एक आम आदमी का अवसाद।
चीफ सैकेट्री पद के प्रबल दावेदार, लेकिन सरकार की गुड बुक में नहीं होने के कारण वो इस पद की पहुंच से दूर...रिटायरमेंट से मात्र 6 महीने दूर...अभी क्या फर्क पड़ता है, रिटायर तो इसी स्केल से होना है फिर जाते-जाते धमाका क्यों नहीं? 
एक प्रशासनिक अधिकारी सरकार के समक्ष भले ही बेबस हो पर एक आम आदमी को मुखर होने से रोकना किसी के वश की बात नहीं... यह कैसा धमाका कि आज तक आमजन को सालोदिया जी की जाति का पता नही था, आज हर जुबान पर जाति चर्चा बन गई। कलाकार के रूप में या एक प्रशासनिक अधिकारी के रूप में आमजन से उन्हें पर्याप्त सम्मान मिला। हां साथी अधिकारियों ने कुछ दूरियां बनाई हो यह अलग बात है। परिणामस्वरूप बरसों से दबे आक्रोश ने धर्म परिवर्तन करवा दिया। क्या अपने अवसाद के चलते कई जगहों सेे बढ़ते हुए दोस्ती के हाथों को नकार अपने आप में सिमटना सालोदिया जी का खुद का निर्णय नहीं था? फिर दोषी कौन?
बात यदि पद स्थापन की करें तो कला संस्कृति विभाग हर उस अधिकारी को सरकार द्वारा दिए गए बेहतर सबक बन जाता है जो सरकार की नजर की किरकिरी बनता है। कलाकार वर्ग जिसे अपने हितों को साधने से ही फुर्सत नहीं, वो भला किसी के आने से खुश और किसी के जाने से दुख क्योंकर मनाए। लेकिन, पद कला-संस्कृति विभाग का हो और अधिकारी कलाकार हो तो यह पद उसका बड़ा पनाहगार बन जाता है। स्थिति तब बिगड़ती है जब सरकारी रवैया उससे उनकी यह पनाह भी छीन लेता है। और यही हुआ उमरावमल सालोदिया अब खान के साथ। हालांकि भारतीय संविधान के अनुसार धर्म परिवर्तन उनकी व्यक्तिगत सोच और अधिकार है। भारत में सभी धर्मों, समुदायों का सम्मान होता है, लेकिन धर्म परिवर्तन...क्या पलायन की निशानी नहीं? क्या अपने नए धर्म के साथ वो सहज जीवन जी पाऐंगे  ...क्या वो स्वयं को समझा पाऐंगे जब गुब्बार गुजर चुका होगा और स्थितियां सामान्य हो चुकी होंगी।
यह तो थी भावनात्मक बात और बात करें बौद्धिक स्तर की तो इस पूरे बखेड़े के पीछे कुछ राज छुपे नजर आते हैं। अपने कार्यकाल के दौरान कुछ आपराधिक काण्डों में फंसे सालोदिया की गिरफ्तारी होते-होते बची है यह सबको विदित है। सरकार से जंग जीती नहीं जा सकती, रैगर समाज से इस मामले में पर्याप्त साथ मिलना नहीं, लेकिन मुस्लिम समाज इस नए सदस्य का साथ दे सकता है अगर इस समाज के कुछ दबंग इन्हें दोयम दर्जे की हैसियत से ना देखें। 
जानकार तो यह भी कहते हैं कि क्या उमराव जी को किसी राजनैतिक पार्टी की तरफ से राजनैतिक पद का प्रलोभन तो नहीं मिल गया है? तो जाति को प्रमाणित करने की और स्वयं को निरीह सिद्ध कर आम की सहानुभूति प्राप्त करने के लिए प्रेस कान्फे्रंस ही कर डाली।  इससे ज्यादा प्रभावी तरीका कोई हो ही नहीं सकता। इन सब से उपजी सहानुभूति समय रहते काम आ सकती है। धर्म का क्या है आज अवसाद के चलते खान बन गए कल ह्रदय परिवर्तन हो जाएगा तो फिर सालोदिया हो जाएंगे। क्या बिगड़ेगा? कुछ भी तो नहीं भारतीय समाज को जिसमें सभी वर्ग जाति व समुदाय शामिल हैं भूलने की अच्छी आदत जो है। खैर समय बताएगा कि साल की इस अन्तिम खबर की वास्तविकता क्या है?

 राजस्थान के सीनियर आईएएस उमराव सालोदिया ने इस्लाम कबूल करते हुए नाम बदलकर उमराव खान रख लिया है। सालोदिया ने सर्विस पूरी होने से 6 महीने पहले ही रिटायरमेंट भी ले लिया है। उन्होंने सीएम वसुंधरा राजे को लेटर लिखा है। इसमें चीफ सेक्रेटरी नहीं बनाए जाने पर नाराजगी जाहिर की है।
सालोदिया ने क्यों बदला मजहब? क्या बताई इसकी वजह...
- गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में सालोदिया ने कहा, "मेरे साथ हिंदू धर्म में भेदभाव हुआ है। मुझे चीफ सेक्रेटरी नहीं बनाया 
गया।"
- "दलित होने की वजह से मेरे साथ अत्याचार किए गए। इस्लाम में ऐसा नहीं होता है।"
सालोदिया ने धर्म बदलने को लेकर चिट्ठी में क्या लिखा है...
- "भारत के संविधान में आर्टिकल 25 (1) में नागरिकों को यह आजादी दी गई है कि वे किसी भी धर्म में अपनी आस्था 
जाहिर कर सकते है।"
- "मैं इसी हक के तहत आज 31 दिसंबर, 2015 को हिंदू धर्म छोड़कर इस्लाम अपना रहा हूं।"
सीएम वसुंधरा राजे को लिखी चिट्ठी में सालोदिया ने क्या कहा?
- "मैं एससी/एसटी कोटा से आईएएस हूं, जिसे सीनियरिटी की बुनियाद पर चीफ सेक्रेटरी बनाया जाना चाहिए था।"
- "लेकिन मौजूदा चीफ सेक्रेटरी सी.एस. राजन को 31 मार्च, 2016 तक 3 महीने का एक्सटेंशन दिया गया है।"
- "राजन को दिए गए एक्सटेंशन के कारण मुझे सीएस बनने का मौका नहीं मिला।"
- "अगर एक्सटेंशन नहीं दिया जाता तो सीनियरिटी के हिसाब से मुझे ही सीएस बनाया जाता।"
- "यह सब राज्य सरकार के कहने पर हुआ है। इन सब बातों के चलते मैं वीआरएस के लिए सरकार से गुजारिश करता हूं।"
आरोपों पर सरकार का क्या है रिएक्शन?
- राजस्थान के संसदीय कार्य मंत्री राजेंद्र राठौड़ ने कहा, "चीफ सेक्रेटरी राजन को तीन महीने का एक्सटेंशन रूल्स के तहत 
दिया गया है।"
- "राजन सीनियर आईएएस हैं। कई पोस्ट पर रहते हुए उन्होंने अपनी काबिलियत दिखाई है।"
- "सालोदिया की सर्विस केवल 6 महीने बाकी थी। अगर वे 31 मार्च तक इंतजार करते तो शायद उनके लिए रास्ते खुले होते।"
- "इतने सीनियर होते हुए भी सालोदिया ने इस तरह के आरोप लगाए हैं, यह बेहद शर्मनाक है।"
- "धर्म बदलना उनका निजी मामला हो सकता है, लेकिन मैं ऐसे आरोपों की निंदा करता हूं।"
'सालोदिया को यह शोभा नहीं देता'
- कटारिया के मुताबिक, सालोदिया जैसे पढ़े-लिखे आदमी को यह शोभा नहीं देता है। ड‌्यूटी में 6 महीने ही बचे हैं, ऐसे में यह फैसला ठीक नहीं है।
सालोदिया पर चल रहा है करप्शन का केस
- सूत्रों के मुताबिक उमराव सालोदिया 2013 में रेवेन्यू बोर्ड के चेयरमैन बने। उस दौरान ही उनके खिलाफ एसीबी में आईएएस (अब रिटायर) नानगराम शर्मा ने मामला दर्ज कराया था। आरोप था कि उमराव सालोदिया ने बटुउद्दीन नाम के शख्स को जमीन के एक मामले में फेवर किया था।
।"
- बताया जा रहा है कि इस मामले के और आगे बढ़ने के दौरान सालोदिया ने खुद को इससे बचाने का मन बना लिया। सालोदिया ने जयपुर के गांधी नगर थाने में नानगराम के खिलाफ 24 मई, 2014 को एफआईआर दर्ज करा दी।
- इसमें आरोप लगाया कि नानगराम चूंकि उस समय के चीफ सेक्रेटरी सलाउद्दीन अहमद का खास है, इसलिए वह उन्हें परेशान कर रहा है।




- एफआईआर के मुताबिक सलाउद्दीन अहमद पर आरोप है कि उन्होंने पोस्ट का गलत इस्तेमाल करते हुए नानगराम को 




सुपरटाइम स्केल की लिस्ट में शामिल करा दिया। इसका उमराव ने विरोध भी किया था, लेकिन कथित तौर पर उनकी सुनवाई नहीं हुई।
- आरोप लगाया कि नानगराम इसके बाद से ही लगातार उमराव को दलित होने को लेकर प्रताड़ित करता रहा।

रिटायर होने से 6 महीने पहले ही ऐसा क्यों किया ?
- सालोदिया के नजदीक रहे अफसरों के मुताबिक सालोदिया को डर था कि कहीं रिटायर होने से पहले छह महीनों में ही एसीबी वाला मामला आगे बढ़ गया तो उनका रिटायरमेंट फंस सकता है।

- नजदीकियों के मुताबिक सालोदिया ने सोचा कि कोई बड़ा मामला बने, इससे पहले ही कोई ऐसा मुद्दा बना दिया जाए, ताकि मामला हाई प्रोफाइल ड्रामा बन जाए और सरकार दबाव में आ जाए।
- सालोदिया मान कर चल रहे थे कि यदि वे मीडिया में हाइलाइट कर दें तो सरकार उनके रिटायरमेंट पर किसी तरह का रोड़ा नहीं अटका सकेगी। अगर कोई बात हुई भी तो वे मीडिया में जाकर कह सकेंगे कि उन्होंने आरोप लगाए तो सरकार ऐसा कर रही है।
मुस्लिम धर्म ही क्यों अपनाया?
- नजदीकी अफसरों का यह भी कहना है कि मौजूदा समय में सरकार भाजपा की है। केंद्र में भी और राज्य में भी।
- ऐसे में यदि मुस्लिम पर कोई दिक्कत आएगी तो कहा जा सकेगा कि हिंदूवादी सरकार है, इसलिए मुस्लिम के खिलाफ जबरन मामला बना रही है। 
क्यों नहीं बनाया सीएस?
- सूत्रों के मुताबिक, सरकार कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी। सालोदिया के खिलाफ एसीबी में केस चल रहा है।
- अगर उन्हें सीएस बनाया जाता तो यह बात उछल सकती थी कि जिसके खिलाफ मामला चल रहा हो, उसे सीएस बना दिया।
- सरकार आरोपों के घेरे में आ सकती थी। इसके साथ ही अगर एसीबी सालोदिया के सीएस रहते मामले को खोल देती और आरोप साबित होने के साथ उन्हें गिरफ्तार कर लेती तो इसमें सरकार की जबरदस्त किरकिरी हो सकती थी।
आलोक खण्डेलवाल (भास्कर ) से साभार 
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कौन हैं उमराव सालोदिया?
- 1978 बैच के आईएएस सालोदिया जयपुर के ही रहने वाले हैं।
- वे राजस्थान रोडवेज के चेयरमैन हैं। 






- इससे पहले वे जवाहर कला केंद्र के डायरेक्टर के साथ-साथ ट्रांसपोर्ट और रेवेन्यू डिपार्टमेंट में भी एडिशनल चीफ सेक्रेटरी रहे हैं।


1 टिप्पणी:

sameer ने कहा…

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