हवा-हवाई बातें बनाकर करीब 10 लाख समेटे
फिर राजस्थानी पपेट्स व पिक-पॉकेटर्स बताया
मूमल नेटवर्क, जयपुर। इंटरनेशनल आर्ट फेस्टिवल के नाम पर आयोजकों ने जयपुर के कलाकारों से लगभग 10 लाख रुपए समेटे और दिल्ली लौटने के बाद उनकी टोली ने यहां के ठगे से कलाकारों, सहयोगियों और बिंदास रिर्पोटिंग करने वालों को राजस्थानी पपेट्स व पिक-पॉकेटर्स जैसे शब्दों से नवाजा।आयोजन से जुड़े सूत्रों के अनुमान अनुसार यदि 250 कलाकारों की भागीदारी भी मानी जाए तो फीस के रूप में प्राप्त राशि 7 लाख 50 हजार रुपए होती है। इसमें स्पॉन्सर्स और स्टॉल लेने वाले लोगों से प्राप्त धन को जोड़ा जाए तो यह राशि लगभग 12 लाख होनी चाहिए। जानकारों के अनुसार रवीन्द्र मंच की गैलेरीज के लिए लगभग 28 हजार रुपए का भुगतान किया गया। बाहर लॉन पर हुए आयोजन का दायित्व सह-आयोजक के रूप में एसोसिएट अविनाश त्रिपाठी पर था। अविनाश, अनिमेश फिल्म प्रा.लि. के कर्ताधर्ता हैं। एक समझौते के अनुसार अपनी फिल्म कम्पनी के प्रमोशन के साथ यहां से होने वाले आय-व्यय का नफा-नुकसान त्रिपाठी को ही होना था। अविनाश के साथ काम करने वाले लोगों की मानें तो स्पॉन्सर का पूरा पैसा और कुछ स्टॉलों से प्राप्त राशि मैडम ने सीधे ले ली, जो उनके सर को अभी तक नहीं मिली है। सूत्रों के अनुसार इस आयोजन में अविनाश त्रिपाठी करीब 4 लाख रुपए के नीचे आए हैं, अब टेंट, लाइट, साउण्ड आदि के बिल भरने के जुगाड़ में लगे हैं।
कलाकारी गैंग
हालांकि कलाजगत में अपनी ही बिरादरी के कलाकारों को चूना लगाने के लिए नित-नए आयोजनों की कलाकारी करने वाले गैंग देशभर में सक्रिय हैं। जयपुर जैसे शहर अब तक इनकी चपेट में आने से बचे हुए थे, लेकिन पिछले कुछ बरसों में गुलाबी नगर में आयोजित कुछ सफल और बड़े आयोजनों के बाद ऐसे गैंग्स को यहां भरपूर पैसा नजर आने लगा है। यहां के सरल कलाकारों को अपने प्रभाव में लेना भी उनके लिए आसान होता है। उस पर अगर आयोजक अन्य बड़े कलाकारों, ब्यूरोकेट्स और फिल्मी लोगों के साथ अपनी तस्वीरें दिखाकर उनसे करीबी रिश्ते होने की बात कहे तो काम और आसान हो जाता है।
पहले कलाकारों से मीठी-मीठी बातें करने वाले आयोजक और उसकी कलाकारी गैंग के मैम्बर्स बुकिंग के बाद पार्टिसिपेट्स से सीधे मुंह बात नहीं करते, कई बार तो बदतमीजी पर उतर आते हैं। यहां तो सहयोगियों तक से ऐसा व्यवहार किया गया। इसी के चलते पहले मनीष अग्रवाल और उसके बाद अविनाश त्रिपाठी से झगड़े की स्थिति बनी। आयोजकों के अनुरूप नहीं चलने वाले कलाकारों और सहयोगियों के लिए कथित कलाकारी गैंग ने किसी ओर के हाथों में नाचने वाले राजस्थानी पपेट्स और पिक-पॉकेटर्स जैसे शब्दों का उपयोग किया।
कमोबेश यही बात आयोजन का असल रंग दिखाने वाली रिपोर्टिंग के लिए भी कही गई। 'रंग बिखेरे और रंग जमायाÓ जैसे हैड लाइन के साथ बिना किसी खास जानकारी वाली खबरों के आदि आयोजकों को मूमल की बेबाक रिपोर्टिंग बिलकुल नहीं सुहायी। आयोजन के फ्लाप होने की आशंका से संबंधित समाचार को कथित कलाकारी गैंग ने आयोजन की विफलता का प्रमुख कारण बताया। आमतौर पर आलोचना के शिकार आयोजकों की तरह कलाकारी गैंग ने भी मूमल को सही पत्रकारिता का पाठ पढ़ाते हुए ज्ञान प्रदान किया।
मेहता की सहमति नहीं
आयोजन की कोर टीम में नम्बर वन की स्थिति में प्रकाशित वरिष्ठ कलाकार चिन्मय मेहता के चित्र पर हुई चर्चा पर मेहता ने इससे अनभिज्ञता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि यदि ऐसा है तो आयोजकों ने इसके लिए उनसे कोई सहमति प्राप्त नहीं की। उनसे जब यह पूछा गया कि क्या मनीष अग्रवाल और गीता दास के बीच झगड़ा मिटाने के लिए दोनों आप ही के घर पर नहीं मिले थे? मेहता ने कहा कि उन्होंने कहा था कि वे मुझ से मिलना चाहते हैं, मैने सहमति दे दी। ऐसे में जब कोई मुझ से मिलना चाहे तो वह मेरे ही घर तो आएगा, मै उनसे मिलने थोड़े ही जाउंगा। आयोजन के दौरान वहां प्रमुखता से नजर आने पर पूछे गए सवाल पर मेहता ने बताया कि वे कला जगत के लगभग छोटे-बड़े आयोजन में आमंत्रित होने पर ऐसे ही नजर आते हैं। मेहता ने कहा कि वे आयोजकों से कोर टीम में बिना उनकी सहमति के उन्हें शामिल करने और उनके फोटो का उपयोग करने के बारे में बात करेंगे। उन्होंने यह भी बताया कि वे इस आयोजन के संबंध में कला एवं संस्कृति विभाग को भी पत्र लिखेंगे।
'कलाचर्चा' जैसा आयोजन करें
इस संबंध में कला जगत के वरिष्ठ और जिम्मेदार लोगों से हुई चर्चा के बाद यह विचार निकल कर आया कि अब कला जगत के तेजी से बदलते परिदृश्य को देखते हुए कलाकारों को ठगी से बचने के लिए किसी भी कलाकारी गैंग से स्वयं सतर्क रहना होगा। ऐसे गिरोहों का सहयोग करने वाले स्थानीय लोगों को भी परखना होगा। ठगे गए महसूस होने पर उनका खुलकर विरोध भी करना होगा। ऐसे मेें अपने छोटे-छोटे समूह बनाकर स्वयं ही प्रदर्शनी का आयोजन किया जा सकता है। कलाचर्चा जैसे युवा कलाकारों के समूह इसकी एक से अधिक मिसाल पेश कर चुके हैं। इसी के साथ अनेक गंभीर व्हाट्सऐप ग्रुप हैं, जो बिना कोई फीस लिए ऑन लाइन प्रदर्शनी का आयोजन करते हैं।