कला को लोगों के घर तक पहुंचाने का माध्यम है- फेरी कला
भारत की कला संस्कृति को बचाये रखने के लिए कला वर्ग से जुड़े लोगों कार विशेष योगदान रहा है। इसी योगदान में एक और कड़ी फेरी कला के रूप में जुड़ गई है। लखनऊ में फेरी कला के प्रदर्शन का पहला प्रयास किया गया है। इसका उद्देश्य खास लोगों तक सिमटी कला को आम लोगों के बीच ले जाना है।फेरी कला का औपचारिक उद्घाटन कल 2 नवंबर की शाम ललित कला अकादमी के क्षेत्रीय केंद्र में इप्टा के वरिष्ठ रंगकर्मी राकेश द्वारा किया गया। इस मौके पर स्थापित की गई कागज़ के रोल से बनी प्रतिमा के समक्ष उन्होंने दीप प्रज्ज्वलित किया और फेरी कला के वाहन का अनावरण किया ।
इस मौके पर राकेश ने कला को आम लोगों के बीच ले जाये जाने और उसके सपनों-संघर्षों से जुडऩे के इतिहास को याद करते हुए ताज़ा दौर में इसकी जरुरत को सामने रखा। उन्होंने इस अनूठी पहल का स्वागत करते हुए इप्टा की ओर से पूरा समर्थन दिए जाने का ऐलान किया ।
फेरी कला के पहले चरण में वरिष्ठ मूर्तिकार धर्मेंद्र कुमार की 'लोग' शीर्षक की लगभग 200 से ज्यादा कलाकृतियां शामिल की गई हैं। मुर्तिकार धर्मेंद्र कुमार ने इस पहल को उस कुएं जैसा बताया जो आम लोगों के बीच जाए, उनकी प्यास जगाये और उसे बुझाये। उनके अनुसार यह आंखों को तरावट और जी को सुकून देने के लिए है। फेरी कला इस नन्हीं सी लेकिन अनूठी कोशिश का नाम है। उसकी डगर मेला-बाजारों से होते हुए गली-मोहल्लों तक जायेगी।
कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ चित्रकार अलोक कुशवाहा ने किया ।
क्या है फेरी कला
जैसा कि इसके नाम से साबित होता है, फेरी लगाकर वस्तुओं को गली-गली ले जाकर लोगों को सुलभ करवाने के लिए इसे तैयार किया गया है। फेरी कला कल्पनाओं की उड़ान और उंगलियों के कमाल की घुमंतू प्रदर्शनी है। जिसके माध्यम से कला को लखनऊ के कई स्थानों मेलों बाजारों, गली मोहल्लों तक एक चलित साधन के माध्यम से पहुचाया जाएगा। एक प्रकार से कलादीर्घा वाहन को गंवई अंदाज में लुभावना रूप देकर तैयार किया गया है जिस पर कलाकार की कृतियों को सजाया गया है।
-लखनऊ से भूपेन्द्र कुमार आस्थाना
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