जनजातीय व लोक कलाएं हों सार्वजनिक-राजीव सेठी
मूमल नेटवर्क, जयपुर। विलुप्त होती जा रही लोक एवं जनजातीय कलाओं को प्रदर्शनी और कला दीर्घाओं से बाहर निकालकर सार्वजनिक स्थलों पर प्रदर्शित किए जाने से ही उनका संरक्षण बेहतर तरीके से किया जा सकता है। एयरपोर्ट, रेल्वे स्टेशन और बस स्टैण्ड आदि सार्वजनिक स्थान ऐसे हैं, जहां बड़ी संख्या में आमजन का आवागमन होता है। ऐसे में इन कलाओं को सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शित किए जाने से लोगों में उनके प्रति जागरूकता बढ़ेगी। यह कहना था एशियन हैरिटेज फाउण्डेशन, नई दिल्ली के संस्थापक एवं अध्यक्ष राजीव सेठी का। सेठी ने यह वक्तव्य राजस्थान ललित कला अकादमी एवं भारतीय शिल्प संस्थान जयपुर के संयुक्त तत्वावधान आयोजित संगोष्ठी में अपने प्रजेन्टेशन ‘‘मैं आदिवासी हूं’’ में दिया।तीन दिवसीय राष्ट्रीय स्तर की संगोष्ठी एवं कला प्रदर्शनी का उद्घाटन राजस्थान सरकार के पर्यटन, कला एवं संस्कृति विभाग के प्रमुख शासन सचिव कुलदीप रांका ने 29 अगस्त को दीप प्रज्वलित कर किया। इस अवसर पर एशियन हैरिटेज फाउण्डेशन, नई दिल्ली के संस्थापक अध्यक्ष राजीव सेठी, राजस्थान ललित कला अकादमी अध्यक्ष अश्विन एम. दलवी, सचिव डॉ. सुरेन्द्र कुमार सोनी, भारतीय शिल्प संस्थान की निदेशक डॉ. तूलिका गुप्ता, वरिष्ठ कलाविद् सी.एस. मेहता, मिन्हाज़ मजूमदार, चित्रकार पद्मश्री शाकिर अली, अकादमी प्रदर्शनी अधिकारी विनय शर्मा सहित कला जगत के कई गणमान्य उपस्थित थे।
उद्घाटन सत्र के मुख्य वक्ता एशियन हैरिटेज फाउण्डेशन, नई दिल्ली के संस्थापक एवं अध्यक्ष राजीव सेठी थे। सेठी ने अपने प्रजेन्टेशन में भारत के विभिन्न राज्यों के लोक एवं जनजातीय जीवन की छवि प्रस्तुत की, जिनमें उन्होंने आदिवासियों का रहन-सहन, खान-पान, लोक कलाओं और संस्कृति पर विस्तार से जानकारी साझा की। इसके साथ उन्होंने लोक जनजीवन के रीति-रिवाजों की प्राचीनता के साथ आधुनिकता का समावेश दर्शाया। संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए सेठी ने कहा कि आधुनिक समय में एनीमेशन का कलात्मक प्रयोग बहुत हो रहा है, लेकिन एनीमेशन स्टोरीज भारतीय कथाओं को ध्यान में रखकर नहीं बनाई जा रही हैं।
राजस्थान ललित कला अकादमी के अध्यक्ष अश्विन एम. दलवी ने कहा कि अकादमी का प्रयास है कि हम अन्य संस्थानों के साथ मिलकर फोक एण्ड ट्राइबल आर्ट को आमजन तक पहुंचाएं। इसी कड़ी में इस तीन दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है ताकि कला से जुड़े शोधार्थियों, कलाविदें एवं हर वर्ग तक इनके संरक्षण का संदेश पहुंचाया जा सके। भारतीय शिल्प संस्थान की निदेशक डॉ. तूलिका गुप्ता ने कहा कि संगोष्ठी में संस्थान के क्राफ्ट और डिजाइन फैकल्टीज के अलावा देश के विभिन्न स्थानों से आए कलाविदों के ज्ञान का लाभ स्थानीय कलाकारों और कला के विद्यार्थियों को मिलेगा।
राजस्थान ललित कला अकादमी के सचिव डॉ. सुरेन्द्र कुमार सोनी ने बताया कि संगोष्ठी के अन्य सत्र ‘‘ट्रेडिशनल ऑर्ट फॉम्र्स अ क्रॉस द वल्र्ड: एक्सपोजर, लर्निंग एण्ड फ्यूचर स्कोप’’ को नई दिल्ली से आई कलाविद् मिन्हाज मजूमदार, सिटी पैलेस के प्रो. यूनूस खिमानी एवं आदित्य ज्ञा ने सम्बोधित किया, वहीं सत्र ‘‘फोक एण्ड ट्राइबल आर्ट टेऊडिशन्स: रिवाइवल मॉडल्स फॉर लर्निंग’’ में नई दिल्ली से आए कलाविद् चन्द्रशेखर भेड़ा, प्रो. चिन्मय मेहता और भारतीय शिल्प संस्थान की प्रो. पाम्पा पंवार ने परिचर्चा की।
संगोष्ठी के दूसरे दिन 30 अगस्त के पहले सत्र मेें ‘‘कन्टेम्पराइजिंग इंजीनियस क्राफ्ट्स थ्रू स्टाइल एण्ड लग्जरी इन्टरप्रिटेशन्स’’ को फ्रांस से आईं आर्ट क्यूरेटर वेण्डी गेयर, बड़ौदा से प्रो. जयराम पौडवाल, सारिका नारायण तथा निवेदिता नारायण ने सम्बोधित कियो। दूसरे सत्र ‘‘एक्सपीरियन्स ऑफ आर्चीविंग शोकेसिंग फोक एण्ड ट्राइबल आर्ट’’ में जयपुर के बृज भसीन, भूपेश तिवारी, सुमन पाण्डे एवं रेखा भटनागर के बीच परिचर्चा हुई। इसके साथ ही तीसरा सत्र ‘ट्रेडीशनल आर्ट फार्मस अक्रोस द वल्र्ड-एक्सपोजर, लर्निंग एण्ड फ्यूचर स्कोप‘’ सम्पन्न हुआ।
इस आयोजन में फोक व ट,ाईबल आर्ट प्रदर्शनी भी लगाई गई है। प्रदर्शनी को मिहाज मजूमदार ने क्यूरेट किया है। आयोजन का समापन कल 31 अगस्त को होगा।