गुरुवार, 21 सितंबर 2017

वृन्दाबन की सांझी कला: एक कला परम्परा

वृन्दाबन की सांझी कला: एक कला परम्परा
(यूं तो भारत के प्रत्येक प्रांत में कला के विभिन्न रूप संस्कृति को जीवन्त करते हैं। लेकिन कुछ कलाओं, उनकी प्रस्तुति व उनके प्रदर्शन का समय उन्हें अति विशिष्ट की श्रेणी में ले आता है। वुंदावन की सांझी कला इनमें से एक है। इस लेख में सांझी कला की कुछ जानकारियां दी जा रही हैं-सं.)

वृंदावन स्थिति श्री मदनमोहन जी के मंदिर जो कि भट्टजी के मंदिर के नाम से प्रसिद्द है में 350 वर्ष पुरानी सांझी कला का आयोजन ना केवल एक परम्परा के रूप में किया जा रहा है बल्कि ये एक सेवा का वार्षिक अंग भी है जो कि श्राद्धपक्ष में एकादशी से अमावस्या तक प्रतिवर्ष किया जाता है।
लोककथाओं के अनुसार सांझी श्रीराधा द्वारा शुरू की गई कला भी मानी जाती है, जिन्होंने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए फूलों, पत्तियों और रंगों और रंगीन पत्थरों के साथ प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल करते हुए विविधवर्णी रंगोली का प्रारूप बनाया और श्रीकृष्ण की कृपा को प्राप्त किया। वर्तमान में भी यह परम्परा बृज संभाग में कुवांरी कन्यायें निभाती हैं। वे सांझी का निर्माण करके अपने लिए अच्छे जीवनसाथी को पाने की कामना करती है।
सांझी शब्द हिंदी शब्द संध्या से लिया गया है, शाम के समय कला में सेवा भावना का एक अद्भुत रूप देखने को मिलता है। वृन्दाबन की सांझी कला का प्रदर्शन मिट्टी के चबूतरे पर स्टैंसिल की सहायता से सूखे रंगों से किया जाता है। यह मिट्टी के चबूतरे चोकोर, छैकोर और आठकोर वाले बनाये जाते हैं।

दंगली सांझी
भट्टजी के मंदिर की सांझीकला आठकोर वाले चबूतरे में बनायीं जाती है जिसको सांझी की भाषा में उस्तादी या दंगली सांझी कहा जाता है। यहाँ की सांझी में बेल और लपेट जिसको सांझी की भाषा में नक्शा या लपेटा कहा जाता है का संयोजन अद्वितीय है जिसमें एक बेल से लेकर 108 बेल तक का लपेटा यहाँ की शुद्ध पारंपरिक रचना है जो पूर्णत: ज्यामिति के मूल सिद्धांतों पर आधारित है। इसके तहत त्रिकोण, चतुष्कोण, वर्ग, षटकोण, पंचभुज, गोले, सकलपारा, स्टार, अंटा, चोपड़, लालटेन, आले, सर्वव्यापक इत्यादि बेलों का निर्माण किया जाता है।
नक़्शे में बेलों की चाल यानि गति को दबाब और उछाल के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि हर बेल एक बार दूसरी बेल के नीचे जाती है जिसको सांझी की भाषा में दबाब कहा जाता है और फिर किसी दूसरी बेल के ऊपर आती है जिसको उछाल कहा जाता है। नक़्शे की पूर्णता या शुद्धि बेलों के एकबार उछाल और फिर एक बार दबाब की प्रक्रिया की पुनरावृत्ति से मानी जाती है, बेलों के लगातार दो बार उछाल या दबाब की स्थिति में नक़्शे को अपूर्ण या अशुद्ध माना जाता है।
नक़्शे की सुंदरता उसकी सर्वव्यापकता यानि चारों और से उसकी समरूपता से मानी जाती है, बेल की चाल में हर एक जैसे स्थान पर फूल की जगह फूल और पत्ती की  जगह पत्ती से होती है, प्रत्येक बेल में उसकी चस यानि अंतरिम रंग संयोजन और बाहरी सफेद लाइन जिसको पछेली कहा जाता है नक़्शे की सुंदरता में चार चाँद लगा देते हैं। नक़्शे का बाहरी सिरा एक मोटी बेल जिसको बोर्डर कहा जाता है से सुसज्जित किया जाता है।

पौराणिे कथाओं का चित्रण
सांझी के मध्य में भारतीय पौराणिक कथाओं को कई रूपों में चित्रित किया जाता है, जिसमें श्रीकृष्ण और श्रीराम की लीलाओ  को मुख्य रूप से स्थान दिया जाता है। समस्त रचनाएँ श्रीमद्भागवत, रामायण, गीता, वेद, उपनिषद और धार्मिक कवियों की रचनाओ जिसको वाणी कहा जाता है से सम्बंधित होती हैं। पिछले 50 वर्षों के दौरान कुछ प्रसिद्ध सांझी रचनाएँ नवधा भक्ति, कृष्णजन्म, गोपीगीत, वेणुगीत,अष्टसखी मंडल, रामलीला, दशवतार, गौचारन, अष्टयाम, अष्टसखा, अहिल्या उद्धार, शयनलीला, रासलीला, माखनचोरी, पनघट, होरी, वंशीशिक्षा, इंद्रमानभंग, गोवर्धनलीला इत्यादि हैं। यही कारण है कि भट्टजी की सांझी कला को आध्यात्मिक अभिव्यक्ति की बेहतरीन कला भी माना जाता है जो कि ठाकुरजी की अष्टयाम वार्षिक सेवा का एक महत्वपूर्ण अंग है।

सिमटता कला कौशल
सांझी का निर्माण अत्यधिक श्रमसाध्य होने के फलस्वरूप वर्तमान में ये कला देश में केवल कुछ मंदिरों तक ही सीमित रह गयी है। लेकिन भट्टजी की सांझी कला को उनके परिवार की सोलहवीं पीढ़ी न केवल पारंपरिक सांझी के सिद्धांतों के अनुसार कर रही है बल्कि उनके द्वारा किया जा रहा कला में समसामयिकता का समावेश भी काबिले तारीफ़ है। भट्टजी की सांझाी कला का कमाल है कि देश विदेश से आये शोधकर्ता एवं कलामर्मज्ञ भट्ट जी के द्वारे आए बिना अपनी कला यात्रा को पूर्ण नही मानते।

विदेशी कलाकारों की सांझी कला भक्ति
लंदन की विश्वविख्यात फोटोग्राफर रोबिन बीच ने लगभग दो दशक तक वृन्दावन में रहकर सांझी की फोटोग्राफी की और उनकी प्रदर्शनीयाँ लगाईं वहीँ अमेरिका के मूल निवासी लेखक और आर्ट प्रमोटर असीम कृष्णादास ने तीन दशक तक वृन्दाबन में रहकर सांझी पर एक बहुचर्तित किताब भी लिखी है जिसका नाम इवनिंग ब्लॉसम है। जापानी रिसर्च स्कॉलोर तकाको असानो और अमेरिका के जॉन शेरतनो हौलेय ने भी अपनी रिसर्च में जगह जगह पर सांझी कला का उल्लेख किया है।

सांझी के रूप
सांझी कला का प्रदर्शन पानी के ऊपर और पानी के नीचे भी अति लोकप्रिय है जिसमें प्राय: नागलीला और एक या दो चसी स्टैंसिल को प्रयोग में लाया जाता है। इसी तरह कहीं कहीं पर फूलों और रंगीन कपड़ों का प्रयोग भी सांझी का ही एक प्रकार माना गया है इसमें बिभिन्न प्रकार के फूलों को विपरीत रंगों के कपड़ों के ऊपर सजाया जाता है और केंद्र में कैलेंडर के चित्र को रखकर सांझी पूजा की जाती है।
भट्टजी की सांझी कला का प्रदर्शन देश एवं विदेश के कई स्थानों एवं गैलरीज में हो चुका है इनमें से कुछ नाम माटीघर इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आट्र्स नई दिल्ली, कोलंबिया यूनिवर्सिटी, लंदन गैलरी ऑफ़ आट्र्स, राष्ट्रीय कला केंद्र सिंगापुर, आर्ट सेंटर जॉर्जिया, जयपुर आर्ट समिट जयपुर प्रमुख हैं।

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