शुक्रवार, 2 मई 2014

मनी लांड्रिंग की पेंटिंग्स बनी मुद्दा

अब पेंटिंग पर भी पॉलिटिक्स 
मनी लांड्रिंग की पेंटिंग्स बनी मुद्दा
पहला निशाना ममता बनर्जी पर
मूमल नेटवर्क, जयपुर। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की कला और उनकी कलाकृतियों की अप्रत्याशित कीमत का रहस्य अब पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को भी परेशान करने लगा है। कॉरपोरेट जगत में भीतर की जानकारियां लेने के बाद अब मोदी ने कला बाजार की कारगुजारियों को जानने का प्रयास भी किया है। इसे देखकर तो यही लगता है कि 'अबकी बार मोदी सरकार' वाकई सत्ता में आई तो इंडियन आर्ट मार्केट की असलियत को अलग से खंगाला जाएगा।
दिल्ली की कुर्सी के लिए चुनावी संग्राम के चलते ममता बनर्जी की पेंटिग्स की कीमतों को अब मुद्दा बनाकर भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने भले ही अब पेंटिंग्स पर पॉलिटिक्स शुरू की है, लेकिन कला जगत में यह मुद्दा पुराना है। कला बाजार की आड़ में चलने वाले मनी लांडिं्रग के खेल को लेकर मोदी ने ममता बनर्जी पर तीखे हमले करते हुए उनकी पेंटिंग्स की कीमतों पर ही सवाल उठा दिए। उन्होंने कहा कि दीदी की पेंटिंग्स शुरू में ही आठ से दस लाख रूपए में बिकती थी। उसके बाद अब वह पेंटिंग्स एक करोड़ 80 लाख में कैसे बिकने लगी। इसे किसने खरीदा? उन्होंने ये बातें ममता बनर्जी को उनके घर में घेरने के लिए श्रीरामपुर में एक रैली में कहीं। हालांकि इस पर तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता डेरेक ओ ब्रायन ने पलटवार करते हुए कहा कि मोदी के पास अगर पेंटिंग्स की ब्रिकी को लेकर किए गए दावों से संबंधित सबूत हैं तो इसे सिद्ध करें, नहीं तो वह मानहानि के मुकदमे के लिए तैयार रहें।

मूमल ने उठाया था यह मुद्दा
कला बाजार पर नजर रखने वाली मूमल डेस्क सेलीब्रिट्री कलाकारों की कलाकृतियों की कीमतों और उनके खरीदारों पर खास नजर रखती रखती रही है। इनमें बॉलीवुड के अभिनेताओ से लेकर बड़े बिजनेसमैन और कुछ नेता भी शामिल हैंं। इन्हीं में एक ममता बनर्जी भी रही हैं। इनकी कृतियों, प्रदर्शनियों और बिक्री के विवरण मूमल समय-समय पर प्रकाशित करती रही है। पिछले बरसों में बिकी उनकी पेंटिंग की अधिकतक कीमत 80 हजार रुपए थी। पिछले साल इन्हीं दिनों कोलकाता की एक चिट फंड कंपनी शारदा ग्रुप के साथ ममता बनर्जी और उनकी पार्टी के गहरे रिश्तों की परतें खुलने के साथ ही यह अंदाजा भी लगने लगा था कि पेंटिंग्स के जरिए मनी लांड्रिंग का कारोबार कितनी तेजी से पनप रहा है। राजनेता ममता बनर्जी की कलाकृतियों की मंहगी कीमत और धड़ाधड़ बिक्री के राज भी कला बाजार को अचंभे में डाल रहे थे।
इससे पहले तक एक के बाद एक हो रही अपनी कला प्रदर्शनियों में कलाकार ममता बनर्जी यही कहती रही हैं कि  'उगाही के माध्यम से धन इक_ा करने के बजाए अगर हम इस तरह के रचनात्मक कार्यों के माध्यम से धन इक_ा कर सकें तो हमें ऐसा करना चाहिए।Ó वे यह भी बताती रही हैं कि रॉयटर्स बिल्डिंग में पार्टी के काम-काज के दौरान कड़ी मेहनत के बाद जब उनका सिर भारी हो जाता है तो वह दस से पंद्रह मिनट तक पेंटिंग करती हैं। ममता हर बार जोर देकर कहती है कि यह उनकी रुचि है, पेशा नहीं।
यह सवाल भी उठने लगे थे कि हर बार मात्र दस से पंद्रह मिनट तक पेंटिंग करने के बाद भी वे इतना काम कर लेती हैं कि आए दिन उनकी पेंटिंग्स की प्रदर्शनियों के समाचार आते रहते हैं और उनमें यह सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात होती है कि सभी प्रदर्शित पेंटिंग्स बिक जाती हैं। वह भी लाखों और करोड़ों में।
उन्हीं दिनों कोलकाता के टाउन हॉल में अपनी 250 पेंटिंग्स की प्रदर्शनी का उद्घाटन करते हुए टीएमसी अध्यक्ष ममता बनर्जी ने अपनी पार्टी के लोगों को कड़ा संदेश देते हुए कहा कि वह उगाही के खिलाफ  हैं और अपनी पेंटिंग बेचकर पंचायत चुनावों के लिए धन इक_ा करेंगी। बनर्जी ने कहा था कि इस काम से उन्हें काफी राहत मिलती है। उन्हीं दिनों एक प्रदर्शनी में उनके 55 काम प्रदर्शित किए गए, जाहिर है सभी काम पहले ही दिन बिक भी गए। इनमें सबसे छोटा और कम कीमत का काम 80 लाख का था।

खरीददारों में राजस्थानी भी
ममता बनर्जी कि कलाकृतियों के खरीदारों में ज्यादातर वही उद्योगपति हैं जिनका कारोबार पश्चिम बंगाल में हैं। चिट फंड कंपनी शारदा ग्रुप के सुदिप्तो सेन उन खरीदारों की सूचि में हैं जो ममता की कोई भी कलाकृति एक करोड़ से कम में नहीं खरीदते। हर्ष नेयोतिया और संजय बोस के नाम भी प्रमुख खरीदारों में शामिल हैं। ममता बनर्जी की कलाकृतियों के कद्रदानों में प्रवासी राजस्थानियों की संख्या भी काफी है। ममता की कलाकृतियों के राजस्थानी खरीदारों में नए नाम संजीव गोयनका और ऋषि अग्रवाल के शामिल हुए हैं।
कंपनी के चेयरमैन सुदीप्तो सेन को गिरफ्तार कर मनी लांड्रिंग की इस तकनीक का पूरा गणित खोले जाने की कवायद की गई थी, लेकिन वक्त के साथ यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया। -राहुल सेन

मूमल मीमांसा 
जैसे-जैसे कला को एक निवेश के रूप में विश्व समाज द्वारा स्वीकृति मिलने लगी है, वैसे-वैसे इस निवेश की आड़ में कई गोरखधंधे भी पनपने लगे हैं। नेता हों या अभिनेता अचानक कलाकार के रूप में सामने आने लगे हैं। पेंटिंग्स में वो क्या कलाकारी करते हैं, यह तो पता नहीं लेकिन काले धन को सफेद करने की उनकी यह कला जरूर समझ में आ रही है। इन सब के पीछे उनका सेलिब्रीटी होना भी काम का सिद्ध हो रहा है।
चूंकि, अभी तक कला के मूल्यांकन की कोई ठोस व स्थायी नीति नहीं बन पाई है, अत:एव ये सेलिब्रिटीज लोग जो बना रहे होते हैं, उनका तैयार किया गया खरीददार काफी बड़ी रकम देकर उसे खरीद लेता है। बहुत ही कलात्मक और योजनाबद्ध तरीके से ये खरीददारियां काले धन को सफेद में बदली कर देती हैं।
चूंकि कलाकार बनने के लिए किसी ऐकेडेमिक प्रोफाइल की जरूरत नहीं रहती, इसलिए ये लोग बहुत ही आसानी से कलाकार के भेस में आकर अपना मतलब सिद्ध कर जाते हैं। ऐसे कलाकारों में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का नाम  प्रमुखता से उभर कर सामने आया है।
अभी आस-पास के दिनों की बात करें तो बालिवुड के सलमान खान से लेकर श्रीदेवी तक के नाम भी कलाकार के रूप में पत्र-पत्रिकाओं में प्रसिद्धि पा चुके हैं। थोड़ा सा पीछे चलें, कुछ महीने पहले तो आपको याद आएगा, कई प्रशासनिक अधिकारी या उनके परिजन न केवल कलाकार के रूप में सामने आए बल्कि उनकी बनाई कृतियां महंगे दामों में खरीदी भी गई। मूमल ने तब भी इस बात की गंभीरता के प्रति अपने कलाकार व कलाप्रेमी पाठकों को इस ओर चेताया था। आज स्थिति और गंभीर होती जा रही है। ऐसे लोग जो सीधे-सीधे जनता के खून-पसीने की कमाई को हड़प रहें हैं और उसी को कला के नाम पर अपनी उजली कमाई के रूप में शो कर रहे हैं। समाज का सशक्त वर्ग अपनी जरूरत और मतलब के चलते उन पर मेहरबान रहता है और संरक्षण दे रहा है।
भारत के भ्रष्टाचारी और कई असामाजिक तत्व जो अपने कारनामों के चलते विश्व भर में पहचान बनाते जा रहे हैं, अब कला जैसे पवित्र और संवेदनशील क्षेत्र को अपना हथियार बना रहे हैँ। इस गंभीर मसले के प्रति चेतना होगा। क्या वास्तविक कलाकार अपनी सृजन की दुनिया में इन तथाकथितों को घुसपैठ करने देना चाहेंगे। सोच का विषय है। इस मसले के प्रति गंभीरतापूर्वक सोच कर कठोर कदम उठाने से ही हम कला की दुनियां की सादगी व वास्तविकता को बनाए रख सकेगें।

1 टिप्पणी:

कविता रावत ने कहा…

बहुत बढ़िया चिन्तन
कला से जीवन निर्वाह ठीक ढंग से हो वह बिकाऊ न हो तो ही उसका मान है।