चलो ये तो पूरी हो गयी |
हम तो तसल्ली से पूरा करतें है पहले देखने तो दो। |
अब इतने वक्त में तो ऐसा ही होगा। |
मुझे भी तो वक्त पर काम पूरा करना है। |
दिन में दो, ओफ़ ओ। |
वाटर गया पानी मे, हम हेलमेट ने तो एक्रेलिक में कर दिया। |
अरे सब जाने दो, राजपाल जी प्रथम कलाकार को जिमाओ। |
जयपुर आर्ट फेस्टिवल पहला दिन-मार्च 2013
मूमल नेटवर्क, जयपुर। आखिर जयपुर आर्ट फेस्टिवल अपने निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार आज शुरू हो गया। अब आपकी जिज्ञासा भले जो हो उसे तो शांत करना ही है, लेकिन पहले औपचारिक जानकारियां हों जाएं। जैसे राज्यपाल मार्गेट अल्वा ने दीप जला कर उत्सव का शुभारंभ किया। आयोजकों के अनुरोध पर सामने रखे कैनवास पर रंग लगाकर अपने हाथ भी आजमाएं। यहीं उत्सव की प्रमुख कलाकार किरण सोनी गुप्ता द्वारा अपनी पहचान के अनुरूप बनाई एक कलाकृति फीता काटने के लिए भी रखी गई। आयोजन के सचिव राम प्रताप सिंह समेत अपना आसन सभ्भाले सभी गणमान्य लोगों ने एक-एक कर सामने जनता के रूप में खड़ी कलाप्रेमी प्रजा को संबोधित किया। श्रोताओं के लिए बैठने की कोई व्यवस्था नहीं होने के कारण कार्यक्रम के आरंभ से अंत तक सभी कला प्रेमियों ने स्वयं को खड़े-खड़े ही कृतार्थ किया। उम्र के तकाजे ने जिन्हें खड़ा नहीं रहने दिया उन्हें यत्र-तत्र लॉन पर ही बैठना पड़ा।
कुल मिलाकर आयोजकों ने यह साफ किया कि यह समूचा आर्ट फेस्टिवल वैसे ही चलेगा जैसे लिट्रेचर फेस्टिवल चलता रहा है। अब इसमें किसी का अपमान होता हो या वह स्वयं अपमानित होने के लिए आया हो तो उनकी कोई जिममेदारी नहीं है। यह तो साहित्य की तरह कला की भलाई के लिए साफ नीयत से किया जा रहा प्रोगा्रम है। यह भी साफ किया गया कि अभी तो संगीत फेस्टिवल और करना है। यह पहला मौका है जब राजस्थान में चित्रकला को लेकर निजी स्तर पर कोई इतना बड़ा आयोजन हो रहा है।
साफ नजर आने लगी दरार
इस आयोजन की बदौलत इस बात का भी पहला मौका रहा जब प्रदेश के कलाकारों के बीच की दरार खुलकर सामने आ गई। अब तक दबे छिपे रह कर भी एक-मेक दिखने वाले कला जगत को यहां तीन हिस्सों में देखा जा सकता था। पहले वे वरिष्ठ और दिग्गज कलाकार जो आर्ट फेस्टिवल के आयाजकों की अपमान जनक शर्तों के चलते इस आयोजन में शरीक होने को तैयार नहीं हुए। इन्हीं के साथ वे भी यहां नजर नहीं आए जो इनके सच्चे साथी, सहयोगी या शिष्यों की श्रेणी में आते हैं। जाहिर है, इनकी ताताद अच्छी खासी है। यह वे दिग्गज कलाकार हैं तो इस आयोजन में शामिल प्रमुख कलाकार को भी चित्रकार मानने को तैयार नहीं।
दूसरे खाने में वे वरिष्ठ कलाकार नजर आ रहे थे। जिन्हें इस आर्ट फेस्टिवल में शामिल नहीं किया गया, लेकिन वे यहां केवल आयोजन का 'मांजनाÓ देखने चले आए। इनकी सूचि अगले समाचारों में समाहित करेंगे। इन कलाकारों ने यहां शालीन शब्दों में उन कलाकारों की खूब खबर ली जो बिना मानदेय तय कर पांच दिन में दो कृतियां बनाकर दे रहे हैं। वाटर कलर में काम करने वालों की स्थिति तो और भी विकट है जिन्हें प्रतिदिन दो कृतियां देने को कहा गया है। स्थानीय कलाकारों के लिए यह भी काफी अपमान जनक है कि उन्हें यहां रहने को स्थान नहीं दिया गया है। साथ ही यह भी साफ किया गया है कि उन्हें सुबह अपने घर से नाश्ता करके आना है यहां केवल दोपहर का भोजन और चाय ही उपलब्ध होगी। रात का भोजन उन्हें अपने घर जाकर ही करना है।
तीसरा खेमा उन स्थानीय कलाकारों का बना है जिन्हें इस आर्ट फेस्टिवल में शामिल किया गया है, फिर भले ही वह क्राफ्ट डेमोस्ट्रेशन के लिए हो। कुछ कलाकार चित्रकार के रूप में भी शामिल हैं और इस बात से गौरवांवित है कि उन्हें ब्यूरोकेसी ने मान्यता दी है। वे उतने ही बड़े चित्रकार हैं, जितने बड़े साहित्यकार यहां जुटते हैं। इनमें कौन कौन शामिल है यह अब सर्वविदित हैं इसलिए सुधि पाठकों को अलग से बताने की आवश्यकता नहीं।
केंन्द्र में अफसरशाह
पूरे आर्ट फेस्टिवल के आयोजन में अफसरशाह ही केंद्र में नजर आते रहे। एक और जहां प्रमुख कलाकार पति जयपुर संभागीय आयुक्त को कलाकार घेरे रहे वहीं समूचे आयोजन की नकेल प्रमुख कलाकार और अजमेर संभागीय आयुक्त के हाथों में नजर आती रही। आयोजन के सचिव की भूमिका यहां किसी फिल्म के फायनेन्सर से ज्यादा नजर नहीं आ रही थी। अब इनके इर्दगिर्द वहीं स्थानीय कलाकार ज्यादा थे जो चित्रकार कम और इंतजाम अली ज्यादा लग रहे थे। इनमें कुछ पदमश्री की दौड़ में हैं तो कुछ को नए ठिकाने की दरकार है। कुछ कलाकार से पहले वे सरकारी कारिंदे हैं जो पानी में रह कर अफसरों से बैर पालना अफोर्ड नहीं कर सकते।
कोई बड़ी आर्ट गैलेरी भी नहीं
कुल मिलाकर जयपुर के नामी कलाकारों की तीन कैटेगरियां आज पानी की तरह साफ हो गई। इसी के साथ यह भी साफ हो गया कि प्रदेश की किसी बड़ी आर्ट गैलेरी का साथ आर्ट फेस्टिवल को नहीं मिल सका। पूरे आयोजन में जयपुर के कला बाजार में सर्वाधिक व्यवसाय करने वाली दो प्रमुख गैलेरीज की कर्ताधर्ता आयोजन में नजर नहीं आईं। अन्य बेहतर व्यवसाय करने वाले भी नहीं दिखे। यहां तक कि तस्वीरे मांडऩे वाले तक नजर नहीं आए। एक मात्र कला दीर्घा के कर्ता-धर्ता दिखे वे भी नेशनल लेवल के कुछ कलाकारों को किसी तरह अपनी गैलेरी में आमंत्रित करने की जुगत में लगे रहे।
खुले आम कॉपी करते रहे कलाकार
आर्ट फेस्टिवल में आमंत्रित कई कलाकार हाथ में मूल कृति की फोटो लिए खुले आम कॉपी करते करते नजर आए। इनका चित्र हमारे ब्लॉग पर दिया जा रहा है। हो सकता है आजकल यह जायज हो, लेकिन जयपुर के कला जगत में तो इस तरह के काम को हेय दृष्टि से देखा जाता है।
केवल वाटर का नहीं हूं
राजस्थान में वाटर कलर के दिग्गजों ने बिना मानदेय तय किए भी प्रतिदिन दो कलाकृतियां देने के लिए जी जान लगा रखी है, लेकिन वाटर कलर में लगभग चमत्कार करने वाले मणिपुर के कलाकार हेमलेट शोधर ने इससे बचने का बेहतर तरीका खोज लिया। उन्होंने कहा बताया मैं एक्रैलिक में भी काम कर सकता हूं और यहां वहीं करुगां। इसके बाद उन्होंने अपना एक काम पहले ही दिन पूरा भी कर लिया, अब एक और करना है, बस।
पहले दिन ही आधा काम पूरा
अधिकांश कलाकारों ने पहले ही दिन अपनी एक-एक पेंटिेग पूरी कर ली और ऐसे अंगडाई ली मानों दिहाडी से निजात मिली हो। कल वे अपनी दूरी भी पूरी कर लेंगे। आर्ट फेस्टिवल में अंतिम समय में शामिल किए गए जयपुर के वरिष्ठ कलाकार सुब्रोतो मंडल ने जरूर पूरी तसल्ली से शाम को काम संभाला और कैनवास का जायजा लिया वे कल आराम से काम शुरू करेंगे।
(खबरे बहुत सी हैं, शेष अगले डिस्पैच में )
1 टिप्पणी:
JAISA DKHAA PAYA ....
LIKH MARA ....
BAHUT HIMMAT CHAHIYE LIKHNE K LIYE ...YAHA TO TIPPPANI DENE M HI PASEENE A RAHE HAI ..
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