शुक्रवार, 29 मार्च 2013

JAF

फिरकापरस्ती के बबूल बोने वाले माफी के काबिल नहीं- उपाध्याय
मूमल नेटवर्क, जयपुर। जयपुर आर्ट फेस्टिवल के नाम पर जो कुछ हुआ वह कला जगत के लिए अशुभ संकेत है । खासकर इस आयोजन में पर्दे के पीछे से श्रीमती किरण सोनी गुप्ता ने कला के नाम पर जो कुछ किया वह माफी के काबिल नहीं है। उनके द्वारा कला जगत में जिस फिरकापरस्ती के बबूल बोए गए हैं वह शूल पनपने से पहले ही कुचल दिए जाने चाहिए। ऐसे में भविष्य में जहां किसी भी आयोजन में ये होंगी वहां मैं नहीं जाऊंगा। इस तरह के उद्गार वरिष्ठ चित्रकार डा. विद्यासागर उपाध्याय ने व्यक्त किए।
जयपुर में 29 मार्च को अकादमी संकुल के लोकापर्ण समारोह के बाद 'मूमल' से एक बातचीत में उपाध्याय ने कहा कि जयपुर आर्ट फेस्टिवल में कलाकारों के नाम पर जो भीड़ जमा की गई थी उससे कहीं ज्यादा बेहतर लोग तो राजस्थान ललित कला अकादमी के कला मेले में होते हैं। आर्ट फेस्टिवल में युवा कलाकार कहां थे? आम दर्शकों ने भी इस आयोजन को सिरे से नकार दिया।
इस आर्ट फेस्टिवल में उन लोगों का जमावड़ा था जो हस्तशिल्प और ललित कला दोनों क्षेत्रों में अपनी टांग फंसाए रखना चाहते हैं। एक तरफ तो वे हैंडीक्राफ्ट बोर्ड से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त करते हैंं, दूसरी ओर यही लोग ललित कला के क्षेत्र में भी वही सब पाना चाहते हैं और नहीं मिलने पर चिल्लाते हैं। अगर इन्हें ललित कला में कुछ चाहिए तो हैंडीक्राफ्ट के अवार्ड लेने से मना क्यों नहीं कर देते? ऐसे लोगों का नाम पूछे जाने पर उपाध्याय ने कोई नाम नहीं लिया, लेकिन बात को जारी रखते हुए कहा कि 'देखिएगा नवम्बर महीने तक कला जगत में एक और बड़ा आयोजन इन्हीं नाथूलाल जी के संयोजन में होगा और बहुत अच्छे स्तर का होगा।'

बुधवार, 20 मार्च 2013

Shail Choyal for Jaipur Art Festival

शैल चोयल 
 ना कोई नाम मेरे कद का और ना ही दाम- शैल
मूमल नेटवर्क, जयपुर। प्रदेश के वरिष्ठ चित्रकारों में प्रमुखता से शुमार उदयपुर के शैल चोयल ने जयपुर आर्ट फेस्टिवल में शामिल होने से साफ इंकार कर दिया। 'मूमल' से एक बातचीत में उन्होंने कहा कि आयोजकों द्वारा जब उनसे सम्पर्क किया गया तो उन्होंने फेस्टिवल में शामिल होने वाले अन्य चित्रकारों के नाम पूछे। इस पर आयोजक कोई भी ऐसा नाम नहीं बता पाए जो मेरी वरिष्ठता के अनुरूप हो। फिर आने वाले कलाकारों की तादाद जानने के बाद यह साफ हो गया कि यह फेस्टिवल संजीदा चित्रकारों के लिए काम करने की जगह नहीं बल्कि सौ-डेढ सौ कलाकारों का एक मेला सा होगा। जाहिर है किसी स्तरीय कैंप में 20 से ज्यादा चित्रकार नहीं होते। अनुभव बताता है कि ऐसे में न तो कलाकार को और न ही उसके काम को अटेंशन मिल पाती हैं। बाकी तो आप समझते ही है।
फिर ऑनरेरियम और अन्य शर्तों की चर्चा होने पर तो बात बिल्कुल ही खत्म हो गई। इतने बड़े फेस्ट की बात करते हुए उन्होंने जो ऑनरेरियम बताया उतना तो हम प्रतिदिन दोस्तों के बीच उठने-बैठने में खर्च कर देते हैं। चोयल ने बताया कि मैं ऐसे किसी कैंप में नहीं जाता जहां ऑनरेरियम 50 हजार रुपए से कम हो। आपने देखा होगा, अकादमी, जेकेके या सांस्कृतिक केन्द्र जैसे सरकारी संस्थानों में भी यह राशि 10 हजार से कम नहीं होती और फिर भी वहां कोई बड़ा चित्रकार प्रतिभागी नहीं होता।
जब चोयल से यह पूछा गया कि क्या कलाकार के लिए ऑनरेरियम महत्वपूर्ण है? तो उनका कहना था 'नहीं, रशिया और कुछ देशों में आर्ट कैंप में ऑनरेरियम नहीं दिया जाता, लेकिन मान-सम्मान बहुत मिलता है, बेतुकी शर्तें नहीं होती। लाइव डेमो के लिए पेंटिंग्स बनाते हैं, लेकिन चित्रकार को यह पूरा अधिकार होता है कि वह अपना काम साथ ले आए या वहीं छोड़ आए। प्राय: कलाकार इतने सुखद अनुभव और मधुर यादों के भार से लदा होता है कि पेंटिंग्स साथ नहीं ला पाता।
शर्तो की बात करें तो यह पहला अवसर है जहां कलाकारों के सामने ऐसी बेतुकी शर्तें आई हैं। प्रतिभागी को दो कलाकृतियां बनानी हैं। इनकी बिक्री पर 60 प्रतिशत राशि कलाकार को मिलेगी। ...और नहीं बिकने पर? क्या आयोजक कलाकार को उसकी पेंटिंग साथ ले जाने देंगे? क्या जयपुर का कला बाजार इतना विकसित हो गया है कि सब पेंटिंग्स बिक जाएं? अरे, अभी तो वो पेंटिंग्स का मूल्य तक तय नहीं कर सकते, बेचेंगे कैसे? क्या उन्होंने कभी पेंटिंग्स बेचीं भी हैं?

Jaipur Art Festival Day-3 कम होती जा रही रौनक


कम होती जा रही रौनक
मूमल नेटवर्क, जयपुर। दिन ब दिन घटती रौनक के चलते बुधवार को तीसरे दिन जयपुर आर्ट फेस्टिवल की रौनक कुछ और कम हो गई। एक और जहां थके-थके से लग रहे कलाकारों ने जैसे-तैसे अपना काम निपटाने पर ज्यादा जोर दिया वहीं आम दर्शकों की कमी के चलते चहल-पहल नहीं रही। सुबह से शाम तक केवल पार्टिसिपेट कर रहे कलाकार, उनके कुछ परिचित, स्थानीय कलाकारों के शिष्य, ब्यूरोकेसी के दबाव में जुटे वालिन्टियर्स, कुछ सरकारी कार्यालयों और कला विभागों के बेगारी करते कर्मचारी और खबरों के लिए जुटे कुछ पत्रकार, बस।
सूनेपन में खो गए सारे दावे
जयपुर लिट्रेचर फेस्टिवल की तर्ज पर आर्ट फेस्टिवल आयोजित होने के सारे दावे यहां सूनेपन की भेंट चढ़ कर रह गए। शहर और प्रदेश के बड़े कलाकारों ने आयोजकों की शर्तोे पर आना गवारा नहीं किया, ऐसे में आयोजन भीड़ नहीं खींच पाया। यही सब बातें आयोजकों के सामने रखी गई तो उनके उत्तर उम्मीद से बिलकुल परे थे। बताया गया कि जो लोग नहीं आने की बात कर रहें हैं, उन्हें दरअसल बुलाया ही नहीं गया। रही भड़ खीचने की बात तो यह आयोजन भीड के लिए नहीं वरन खास बद्धिजीवी वर्ग के लिए है जो आर्ट की समझ रखता है। यह पूछे जाने पर कि जिस शहर में साहित्य के इतने कद्रदान हैं वहां आर्ट की समझ रखने वाले लोगों की गिनती इतनी कम हो क्या यह बात गले उतरती है?
क्या बिक पाएगा यहां काम
जयपुर आर्ट फेस्टिवल में पार्टिसिपेट कर रहे कलाकारों में यह चर्चा आम है कि उनकी पेंटिंग्स बिकने पर दिए जाने वाला 60 प्रतिशत मूल्य ठीक है, लेकिन सवाल ये है कि पेंटिग्स की कीमत कौन तय करेगा। क्या जयपुर में अधिकृत या बाजार द्वारा स्वीकृत कोई वेल्युवर है? अगर कलाकार स्वयं अपनी ओर से मूल्य बताए तो क्या बायर मिल जाएंगे? जो काम नहीं बिकेगा उसका क्या होगा? जो बात कलाकारों सबसे अधिक चर्चा में रही वह ये कि आयोजकों को भले ही लिट्रेचर फैस्टिवल करने को अनुभव है, लेकिन क्या उन्हे पेंटिग्स बेचने का कोई अनुभव है?
ऐसे बिकेगा काम
मूमल के भरोसेमंद सूत्रों की बात पर भरोसा किया जाए तो यह जानकारी सामने आई है कि जयपुर आर्ट फेस्टिवल में तैयार कलाकृतियों के लिए मंबई की कुछ ऐसी आर्ट गैलेरीज से इस 'माल' के लिए आयोजन से पूर्व ही बिक्री का समझौता किया जा चुका है। कला बाजार की बेहतर समझ रखने वाली इन गैलेरीज ने अभी यहां काम रहे कम से कम चार कलाकारों और शिल्पियों को स्पॉसर भी किया है। उनके आने-जाने से लेकर अन्य सभी खर्च स्पॉन्सर ही उठा रहे हैं और उनके द्वारा इस आयोजन के दौरान तैयार कृतियां भी उन्हीं की होंगी।
खबरें और भी हैं... शेष अगले डिस्पैच में

Jaipur Art Festival Day-3 तीन तरह के कलाकार

 जयपुर आर्ट फेस्टिवल में तीन तरह के स्थानीय कलाकार हैं 1 वो जो तन के खड़े है 2 वो जो बीच में लटकें हैं और 3 वो जो चारों खाने चित हैं।

Jaipur ArtFetival Day-3 'कुछ तो लोग कहेंगे...


'कुछ तो लोग कहेंगे...
मूमल नेटवर्क, जयपुर। जयपुर आर्ट फेस्टिवल में सभी कलाकार और शिल्पी काम के बाद मिलने वाले मानदेय या बिक्री के लिए चिंतित हो ऐसा कतई नहीं हैं। कुछ कलाकार और शिल्पी ऐसे भी हैं जिन्हें इन बातों से कोई सरोकार नहीं। उनका कहना है कि यहां वे आयोजकों के बुलावे पर केवल कला सृजन के लिए आएं हैं, किसी मानदेय या पारिश्रमिक के लिए नहीं। उन्हीं में से एक हैं मिनीएचर आर्ट के जाने-माने हस्ताक्षर रामू रामदेव।
जयपुर राजघराने के सिटी पैलेस में अपने काम के साथ कंटम्टरी आर्ट की तुलना में बेहतर कारोबार करने वाले रामू रामदेव का कहना है कि जयपुर आर्ट फेस्टिवल का आयोजन करने वाले बहुत-बहुत बधाई के पात्र हैं। इस आयोजन के बाद न केवल आर्ट सिटी के रूप में जयपुर का दर्जा और बढ़ेगा अपितु विस्त स्तर पर भी जयपुर के कला जगत को अलग पहचान मिलेगी। भले ही कुद कलाकारों और आयोजकों के बीच नियमों और शर्तोंं को लेकर मतभेद रहें हों लेकिन कुल मिलाकर यह आयोजन कला जगत के लिए शुभ होगा। हर बड़े आयोजन में कुछ खामियां रह जाती हैं, उन्हें अगले आयोजन में दूर किया जा सकता है, लेकिन बड़े उद्देश्य को लेकर किए जा रहे ऐसे कला यज्ञ में सभी को अपने सामथ्र्य के अनुसार आहुति देनी चाहिए। ऐसे शुभ आयोजन में भाग लेकर अपना समय देकर सृजन करने वाले सभी बधाई के पात्र हैं। ऐसे में इस आयोजन से कोई आर्थिक लाभ पाने की उम्मीद से कहीं परे मैं अपने दलबल और साथी कलाकारों के साथ कला को खुले दिल से बांट रहा हूं और खुश हूं। बाकी तो आप जानते ही हैं- 'कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना...।
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Jaipur Art Festival M.K.Puri said...

कैसे कहूँ दिल की बात? 
हमें तो लगा विनय या विद्या का काम है- पुरी
दिल्ली की चित्रकार बिरादरी में अपनी बेबाकी के लिए पहचाने जाने वाले एम.के. पुरी जयपुर आर्ट फेस्टिवल में आकर स्वयं को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। एक बातचीत में उन्होंने कहा कि दरअसल जब आयोजकों ने उन से सम्पर्क किया तो उन्हें यह लगा कि जयपुर में कोई आर्ट फेस्टिवल हो रहा है तो निश्चित रूप से इसके लिए मेरे नाम की सलाह विनय या विद्या ने दी होगी। इन नामों से उनका तात्पर्य विनय शर्मा और विद्या सागर उपाध्याय से था। यहां आकर जब मैने विद्या से बात की तो पता चला कि उन्हें तो इसमें आमंत्रित तक नहीं किया गया है। बस! तभी से मूड खराब है।
पुरी ने बताया कि एक तो काम में पहले ही मन नहीं लग रहा था, उस पर जब से यह पता चला है कि फेस्टिवल में काम कर रहे कलाकारों को दिए जाने वाला मानदेय उनकी उम्मीद से काफी कम होगा, इसके बात तो कैनवास पर कोई रंग लगाने का मन भी नहीं कर रहा। यहां यह बताना उचित होगा कि दिल्ली के चित्रकार एम.के. पुरी ने पहले काम के रूप में एक सुन्दर गणेश जी बनाने के बाद दूसरे काम के रूप में कैनवास पर केवल काला रंग पोत कर अपनी बात कहने की कोशिश की है।

सोमवार, 18 मार्च 2013

Jaipur art Festival Day 1st

अंधेरे में राज्यपाल ऒर मात्र एक सुरक्षा कर्मी, ये जो उजाला है वह केमरे के फ़्लैश का है।
राज्यपाल अंधेरे में...
मूमल नेटवर्क। जयपुर आर्ट फेस्टिवल के उद्घाटन अवसर पर राजस्थान की राज्यपाल के काफी समय अंधेरे में रहने को लेकर सुरक्षा प्रबंध में लगी एजेन्सियों के हाथ-पांव फूल गए। अन्य सभी साधनों से लैस सुरक्षाकर्मी एक अदद टार्च की तलाश डिग्गी हाउस मे भटकते रहे जो उन्हें अंत तक नहीं मिली। वे लगभग अंधेरे में शिल्पियों के काम का विजिट कर रही महामहिम को रौशनी में रखना चाह रहे थे।  वहां आयोजकों द्वारा लाइट की कोई व्यवस्था नहीं की गई थी। इस बीच आयोजकों ने राज्यपाल को लॉन में लगी नाश्ते की खुली टेबिल पर बिठा दिया। हालांकि वहां भी पर्याप्त प्रकाश व्यवस्था नहीं थी। ऐसे में सुरक्षा एजेन्सियों में राज्यपाल की देर तक खतरे में रही सिक्यूरिटी को लेकर दूसरे दिन भी चर्चा होती रही। उधर फेस्टिवल के सेक्रेटरी रामप्रताप सिंह ने कहा कि 'इनोग्रेशन शाम 5:30 का रखा था, इसलिए हमने लाइट की व्यवस्था नहीं की थी, लेकिन राज्यपाल महोदया देरी से पहुंचीं। ऐसे में हम क्या करें?'

Now Start Jaipur Art Festival 2013

चलो ये तो पूरी हो गयी 

हम तो तसल्ली से पूरा करतें है पहले देखने तो दो।

अब इतने वक्त में तो ऐसा ही होगा।

मुझे भी तो वक्त पर काम पूरा करना है।

दिन में दो,   ओफ़ ओ।

वाटर गया पानी मे, हम हेलमेट ने तो एक्रेलिक में कर दिया।

अरे सब जाने दो, राजपाल जी प्रथम कलाकार को जिमाओ। 

जयपुर आर्ट फेस्टिवल पहला दिन-मार्च 2013
मूमल नेटवर्क, जयपुर। आखिर जयपुर आर्ट फेस्टिवल अपने निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार आज शुरू हो गया। अब आपकी जिज्ञासा भले जो हो उसे तो शांत करना ही है, लेकिन पहले औपचारिक जानकारियां हों जाएं। जैसे राज्यपाल मार्गेट अल्वा ने दीप जला कर उत्सव का शुभारंभ किया। आयोजकों के अनुरोध पर सामने रखे कैनवास पर रंग लगाकर अपने हाथ भी आजमाएं। यहीं उत्सव की प्रमुख कलाकार किरण सोनी गुप्ता द्वारा अपनी पहचान के अनुरूप बनाई एक कलाकृति फीता काटने के लिए भी रखी गई। आयोजन के सचिव राम प्रताप सिंह समेत अपना आसन सभ्भाले सभी गणमान्य लोगों ने एक-एक कर सामने जनता के रूप में खड़ी कलाप्रेमी प्रजा को संबोधित किया। श्रोताओं के लिए बैठने की कोई व्यवस्था नहीं होने के कारण कार्यक्रम के आरंभ से अंत तक सभी कला प्रेमियों ने स्वयं को खड़े-खड़े  ही कृतार्थ किया। उम्र के तकाजे ने जिन्हें खड़ा नहीं रहने दिया उन्हें यत्र-तत्र लॉन पर ही बैठना पड़ा।
कुल मिलाकर आयोजकों ने यह साफ किया कि यह समूचा आर्ट फेस्टिवल वैसे ही चलेगा जैसे लिट्रेचर फेस्टिवल चलता रहा है। अब इसमें किसी का अपमान होता हो या वह स्वयं अपमानित होने के लिए आया हो तो उनकी कोई जिममेदारी नहीं है। यह तो साहित्य की तरह कला की भलाई के लिए साफ नीयत से किया जा रहा प्रोगा्रम है। यह भी साफ किया गया कि अभी तो संगीत फेस्टिवल और करना है। यह पहला मौका है जब राजस्थान में चित्रकला को लेकर निजी स्तर पर कोई इतना बड़ा आयोजन हो रहा है।
साफ नजर आने लगी दरार
इस आयोजन की बदौलत इस बात का भी पहला मौका रहा जब प्रदेश के कलाकारों के बीच की दरार खुलकर सामने आ गई। अब तक दबे छिपे रह कर भी एक-मेक दिखने वाले कला जगत को यहां तीन हिस्सों में देखा जा सकता था। पहले वे वरिष्ठ और दिग्गज कलाकार जो आर्ट फेस्टिवल के आयाजकों की अपमान जनक शर्तों के चलते इस आयोजन में शरीक होने को तैयार नहीं हुए। इन्हीं के साथ वे भी यहां नजर नहीं आए जो इनके सच्चे साथी, सहयोगी या शिष्यों की श्रेणी में आते हैं। जाहिर है, इनकी ताताद अच्छी खासी है। यह वे दिग्गज कलाकार हैं तो इस आयोजन में शामिल प्रमुख कलाकार को भी चित्रकार मानने को तैयार नहीं।
दूसरे खाने में वे वरिष्ठ कलाकार नजर आ रहे थे। जिन्हें इस आर्ट फेस्टिवल में शामिल नहीं किया गया, लेकिन वे यहां केवल आयोजन का 'मांजनाÓ देखने चले आए। इनकी सूचि अगले समाचारों में समाहित करेंगे। इन कलाकारों ने यहां शालीन शब्दों में उन कलाकारों की खूब खबर ली जो बिना मानदेय तय कर पांच दिन में दो कृतियां बनाकर दे रहे हैं।  वाटर कलर में काम करने वालों की स्थिति तो और भी विकट है जिन्हें प्रतिदिन दो कृतियां देने को कहा गया है। स्थानीय कलाकारों के लिए यह भी काफी अपमान जनक है कि उन्हें यहां रहने को स्थान नहीं दिया गया है। साथ ही यह भी साफ किया गया है कि उन्हें सुबह अपने घर से नाश्ता करके आना है यहां केवल दोपहर का भोजन और चाय ही उपलब्ध होगी। रात का भोजन उन्हें अपने घर जाकर ही करना है।
तीसरा खेमा उन स्थानीय कलाकारों का बना है जिन्हें इस आर्ट फेस्टिवल में शामिल किया गया है, फिर भले ही वह क्राफ्ट डेमोस्ट्रेशन के लिए हो। कुछ कलाकार चित्रकार के रूप में भी शामिल हैं और इस बात से गौरवांवित है कि उन्हें ब्यूरोकेसी ने मान्यता दी है। वे उतने ही बड़े चित्रकार हैं, जितने बड़े साहित्यकार यहां जुटते हैं। इनमें कौन कौन शामिल है यह अब सर्वविदित हैं इसलिए सुधि पाठकों को अलग से बताने की आवश्यकता नहीं।
केंन्द्र में अफसरशाह
पूरे आर्ट फेस्टिवल के आयोजन में अफसरशाह ही केंद्र में नजर आते रहे। एक और जहां प्रमुख कलाकार पति जयपुर संभागीय आयुक्त को कलाकार घेरे रहे वहीं समूचे आयोजन की नकेल प्रमुख कलाकार और अजमेर संभागीय आयुक्त के हाथों में नजर आती रही। आयोजन के सचिव की भूमिका यहां किसी फिल्म के फायनेन्सर से ज्यादा नजर नहीं आ रही थी। अब इनके इर्दगिर्द वहीं स्थानीय कलाकार ज्यादा थे जो चित्रकार कम और इंतजाम अली ज्यादा लग रहे थे। इनमें कुछ पदमश्री की दौड़ में हैं तो कुछ को नए ठिकाने की दरकार है। कुछ कलाकार से पहले वे सरकारी कारिंदे हैं जो पानी में रह कर अफसरों से बैर पालना अफोर्ड नहीं कर सकते।
कोई बड़ी आर्ट गैलेरी भी नहीं
 कुल मिलाकर जयपुर के नामी कलाकारों की तीन कैटेगरियां आज पानी की तरह साफ हो गई। इसी के साथ यह भी साफ हो गया कि प्रदेश की किसी बड़ी आर्ट गैलेरी का साथ आर्ट फेस्टिवल को नहीं मिल सका। पूरे आयोजन में जयपुर के कला बाजार में सर्वाधिक व्यवसाय करने वाली दो प्रमुख गैलेरीज की कर्ताधर्ता आयोजन में नजर नहीं आईं। अन्य बेहतर व्यवसाय करने वाले भी नहीं दिखे। यहां तक कि तस्वीरे मांडऩे वाले तक नजर नहीं आए। एक मात्र कला दीर्घा के कर्ता-धर्ता दिखे वे भी नेशनल लेवल के कुछ कलाकारों को किसी तरह अपनी गैलेरी में आमंत्रित करने की जुगत में लगे रहे।
खुले आम कॉपी करते रहे कलाकार
आर्ट फेस्टिवल में आमंत्रित कई कलाकार हाथ में मूल कृति की फोटो लिए खुले आम कॉपी करते करते नजर आए। इनका चित्र हमारे ब्लॉग पर दिया जा रहा है। हो सकता है आजकल यह जायज हो, लेकिन जयपुर के कला जगत में तो इस तरह के काम को हेय दृष्टि से देखा जाता है।
केवल वाटर का नहीं हूं
राजस्थान में वाटर कलर के दिग्गजों ने बिना मानदेय तय किए भी प्रतिदिन दो कलाकृतियां देने के लिए जी जान लगा रखी है, लेकिन वाटर कलर में लगभग चमत्कार करने वाले मणिपुर के कलाकार हेमलेट शोधर ने इससे बचने का बेहतर तरीका खोज लिया। उन्होंने कहा बताया मैं एक्रैलिक में भी काम कर सकता हूं और यहां वहीं करुगां। इसके बाद उन्होंने अपना एक काम पहले ही दिन पूरा भी कर लिया, अब एक और करना है, बस।
पहले दिन ही आधा काम पूरा
अधिकांश कलाकारों ने पहले ही दिन अपनी एक-एक पेंटिेग पूरी कर ली और ऐसे अंगडाई ली मानों दिहाडी से निजात मिली हो। कल वे अपनी दूरी भी पूरी कर लेंगे। आर्ट फेस्टिवल में अंतिम समय में शामिल किए गए जयपुर के वरिष्ठ कलाकार सुब्रोतो मंडल ने जरूर पूरी तसल्ली से शाम को काम संभाला और कैनवास का जायजा लिया वे कल आराम से काम शुरू करेंगे।
(खबरे बहुत सी हैं, शेष अगले डिस्पैच में )

शनिवार, 2 मार्च 2013

अब जयपुर में भी Art Festival

 यहां मूमल कला पत्रिका के मार्च महीने के प्रथम अंक के पृष्ठ चित्र हैं। हो सकता है आप इसे ठीक से नही पढ़ सकें। इसे इन्लार्ज कर ठीक से पढऩे के लिए अपना ई-मेल पता हमें ताकि आपको इसकी पीडीएफ कापी भेजी जा सके। आप अपना पता ब्लॉग के अंत में 'टिप्पणी' के साथ भी दे सकते हैं और हमें सीधे अपने मेल से संदेश भेज कर भी। हमारा ई मेल एड्रेस है moomalnews@gmail.com




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