आर्टसमिट का दूसरा दिन
सेमिनार, पुस्तक विमोचन और जेकेके में सांझी आर्ट के नामSitting from (L-R) Dr. Ashrafi S. Bhagat, Anjolie Ela Menon, Prof. Jai Krishna Agarwal, Vinod Bhardwaj at the 1st session of Art Seminar. |
जो बात बनीठणी में है वह मोनालिसा में कहां: जयकृष्ण अग्रवाल
जयकृष्ण अग्रवाल ने सेमिनार में कहा कि देशवासियों की मानसिकता अपनी कला को विदेशी कलाकारों से हेय समझने की है जिसे बदलना होगा। अपने बात को कहने के लिए उन्होंने आयातित प्रतिबिम्ब नामक शीर्षक देते हुए समझाई। उन्होंने कलाकारों और कलाविक्रेताओं को यह समझना होगा कि देश की कला उन्नत है और उसकी अपनी संरचना और इतिहास हैजिसे हम विदेश से तुलना नहीं कर सकते। जयकृष्ण अग्रवाल ने इस बात को यूं समझाया कि वह राजस्थान आए तो उन्हें बनीठणी ने बेहद प्रभावित किया और वह एक दुकान पर इसे खरीदने के लिए रुके तो दुकानदार न े तुरत कहा आइए सर, मोनालिसा ऑफ इंडिया केवल एक सौ पचास रुपए में। अग्रवाल ने कहा कि दुकानदार की इस बात से वह बेहद आहत हुए। उन्होंने बताया कि उन्होंने दुकानदार से पूछा कि क्या तुमने कभी मोनालिसा को देखा है तो दुकानदार ने कहा कि मोनालिसा कौन है? लेकिन, मोनालिसा का नाम बोलते ही ग्राहक झट से खरीद लेत हैं। अग्रवाल ने कहा कि उन्होंने स्वयं लव्रू मेंं मोनालिसा को घंटों निहारा लेकिन, उसमें उन्हें वह रुप-लावण्य नहीं दिखा, जो बनीठणी में है।
कला और उस पर विदेशी प्रभाव : अशरफी भगत
आर्ट क्यूरेटर और आर्टक्रिटिक अशरफी भगत ने अपनी स्टडीट्रांजिट एण्ड ट्रांसफॉर्मेशन: मोबलाइजिंग आइडियाज एण्ड आर्टिस्टिक अप्रेटस- ए स्टडी ऑफ फाइव चेन्नई आर्टिस्ट के माध्यम से कहा कि कला और कलाकार के विचारों पर देश और दुनिया में घूमने से बड़ा वैश्विक प्रभाव पड़ता है और उसे और प्रभावी बनाने में मदद मिलती है।
कला को कैसे देखना है सीखना होगा: मंगलेशडबराल
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक मंगलेश डबराल ने सेमिनार अपने विचार रखते हुए कहा कि हम सभी को सीखना होगा कला को कैसे देखना है। उन्होंने सत्रहवीं सदी के महान डच चित्रकार फरमीर की एक कृति मिल्कमेड या किचनमेड का उदाहरण देते हुए बताया कि एक स्त्री एक बर्तन में दूध डाल रहीहै। दूध की धार, मेज पर रखी रोटी, महिला का चेहरा और आधा शरीर एक मुलायम प्रकाश में चमक रहे हैं। अब इस चित्र को बेहद महत्वपूर्ण बनाने वाला केवल प्रकाश है। फरमीर ने अपने दस चित्रों में ऐसा प्रयोग किया है जिसे देखने के सबके अपने-अपने नजरिए हैं, लेकिन कलाकृति के मूल मनोभावों को समझने की कला को समझना ही कलाकार और कलाकृति के असली उद्देश्य को समझने में मदद करताहै।
कला की रेंज बहुत बड़ी है: प्रयाग शुक्ल
कवि, लेखक और पत्रकार प्रयाग शुक्ल ने कहा कि कला की रेंज बहुत बड़ी है। आदि युग से लेकर आज तक की दुनिया में कला इतनी विविध शैलियों में, विविध रचना सामग्री में और इतने आशयों में परिलक्षित हुर्इ है की व्यक्ति चकित रह जाता है। यह इसलिए संभव हुआ है कि काल और कला के विभिन्न चरणों में कलाकार को यही लगता है कि कई क्षेत्र ऐसे हैं जिन्हें आज तक नहीं छुआ गया। कला के आयाचिक क्षेत्र ही कला की रेंज को व्यापक बनाने में मदद करतेहैं।
जवाहर कला केंद्र में सांझी आर्ट ने मोहा सबका मन
( समाचार सौजन्य: अनुराग रायजादा )
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