शुक्रवार, 8 नवंबर 2013

Jaipur Art Summit Day-2

आर्टसमिट का दूसरा दिन 
सेमिनार, पुस्तक विमोचन और जेकेके में सांझी आर्ट के नाम
Sitting from (L-R) Dr. Ashrafi S. Bhagat, Anjolie Ela Menon, Prof.  Jai Krishna Agarwal,  Vinod Bhardwaj at the  1st session of Art Seminar.
मूमल नेटवर्क,जयपुर। आर्टसमिट का दूसरा दिन कला और कलाक्षेत्र में प्रयोग, उसकी प्रकृति, सृजन और आधुनिक दौर में कला के प्रसार आदि विषयों पर गहन चिंतन और मनन का रहा। होटल क्लार्क आमेर में आयोजित सेमिनार के दो सेशन्स में कलासमीक्षक व पेंटर जयकृष्ण अग्रवाल, आर्ट क्यूरेटर व आर्टक्रिटिक अशरफी भगत, वरिष्ठपत्रकार-लेखक मंगलेशडबराल और कवि, लेखक और पत्रकार प्रयाग शुक्ल ने अपने अनुभवों और कलाक्षेत्र के बारे में अपनेबातें रखी। यहां वरिष्ठ पत्रकार व कलासमीक्षक नई दिल्ली के विनोद भारद्वाज की किताब सेप्पकू का विमोचन हुआ। सेप्पकू कलाक्षेत्र के बारे में एक ऐसी किताब है जिसमें कला को कॉर्पोरेट जगत के हिसाब से चलने पर मजबूर हो सेल्फ ऑनर किलिंग यानि आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ता है। उनकी किताब का पूरा नाम सेप्पकू- (शायनिंग एण्ड डार्कनेस ऑफ आर्ट वल्र्ड )है। इसी कड़ी में राजस्थान के वरिष्ठ चित्रकार कन्हैयालालवर्मा की किताब मेघदूत चित्रण का भी विमोचन किया गया।
जो बात बनीठणी  में है वह मोनालिसा में कहां: जयकृष्ण अग्रवाल
जयकृष्ण अग्रवाल ने सेमिनार में कहा कि देशवासियों की मानसिकता अपनी कला को विदेशी कलाकारों से हेय समझने की है जिसे बदलना होगा। अपने बात को कहने के लिए उन्होंने आयातित प्रतिबिम्ब नामक शीर्षक देते हुए समझाई। उन्होंने कलाकारों और कलाविक्रेताओं को  यह समझना होगा कि देश की कला उन्नत है और उसकी अपनी संरचना  और इतिहास हैजिसे हम विदेश से तुलना नहीं कर सकते। जयकृष्ण अग्रवाल ने इस बात को यूं समझाया कि वह राजस्थान आए तो उन्हें बनीठणी ने बेहद प्रभावित किया और वह एक दुकान पर इसे खरीदने के लिए रुके तो दुकानदार न े तुरत कहा आइए सर, मोनालिसा ऑफ इंडिया केवल एक सौ पचास रुपए में। अग्रवाल ने कहा कि दुकानदार की इस बात से वह बेहद आहत हुए। उन्होंने बताया कि उन्होंने दुकानदार से पूछा कि क्या तुमने कभी मोनालिसा को देखा है तो दुकानदार ने कहा कि मोनालिसा कौन है? लेकिन, मोनालिसा का नाम बोलते ही ग्राहक झट से खरीद लेत हैं। अग्रवाल ने कहा कि उन्होंने स्वयं लव्रू मेंं मोनालिसा को घंटों निहारा लेकिन, उसमें उन्हें वह रुप-लावण्य नहीं दिखा, जो बनीठणी में है।

कला और उस पर विदेशी प्रभाव : अशरफी  भगत
 आर्ट क्यूरेटर और  आर्टक्रिटिक अशरफी भगत ने अपनी स्टडीट्रांजिट एण्ड ट्रांसफॉर्मेशन: मोबलाइजिंग आइडियाज एण्ड आर्टिस्टिक अप्रेटस- ए स्टडी ऑफ फाइव  चेन्नई आर्टिस्ट के माध्यम से कहा कि कला और कलाकार के विचारों पर देश और दुनिया में घूमने से बड़ा वैश्विक प्रभाव पड़ता है और उसे और प्रभावी बनाने में मदद मिलती है।

कला को कैसे देखना है सीखना होगा: मंगलेशडबराल
 वरिष्ठ पत्रकार और लेखक मंगलेश डबराल ने सेमिनार अपने विचार रखते हुए कहा कि हम सभी को सीखना होगा कला को कैसे देखना  है। उन्होंने सत्रहवीं सदी के महान डच चित्रकार फरमीर की एक कृति मिल्कमेड या किचनमेड का उदाहरण देते हुए बताया कि एक स्त्री एक बर्तन में दूध डाल रहीहै। दूध की धार, मेज पर रखी रोटी, महिला का चेहरा और आधा शरीर एक मुलायम प्रकाश में चमक रहे हैं। अब इस चित्र को बेहद महत्वपूर्ण बनाने वाला केवल प्रकाश है। फरमीर ने अपने दस चित्रों में ऐसा प्रयोग किया है जिसे देखने के सबके अपने-अपने नजरिए हैं, लेकिन कलाकृति के मूल मनोभावों को समझने की कला को समझना ही कलाकार और कलाकृति के असली उद्देश्य को समझने में मदद करताहै।
  कला की  रेंज बहुत बड़ी है: प्रयाग शुक्ल
 कवि, लेखक और पत्रकार प्रयाग शुक्ल ने कहा कि कला की रेंज बहुत बड़ी है। आदि युग से लेकर आज तक की दुनिया में कला  इतनी विविध शैलियों में, विविध रचना सामग्री में और इतने आशयों में परिलक्षित हुर्इ है की व्यक्ति चकित रह जाता है। यह इसलिए संभव हुआ है कि काल और कला के विभिन्न चरणों में कलाकार को यही लगता है कि कई क्षेत्र ऐसे हैं जिन्हें आज तक नहीं छुआ गया। कला के आयाचिक क्षेत्र ही कला की रेंज को व्यापक बनाने में मदद करतेहैं।
जवाहर कला केंद्र में सांझी आर्ट ने मोहा सबका मन

जवाहर कला केेंद्र दूसरे दिन भी रंगों से सराबोर रहा। यहां पारिजात गैलरी-2 में वृंदावन की सांझी कला विशेष रुप से आकर्षण का केंद्र रही। वृन्दावन से नीलमणि भट्ट के नेतृत्व में सांझीे कलाकारों की टीम आई है। सांझी एक लुप्त होती कला मानी जा रही है जो कि अब केवल वृन्दावन में ही रह गई है। 450 साल पुरानी सांझी आर्ट वंश परंपरा के तौर पर संजोई जा रही है। सांझी एक कला है जिसके तहत मंदिरों में श्रीकृष्ण के जीवन से संबंधित घटनाओं का चित्रण किया जाता है। जवाहर कला केंद्र में शुक्रवार को श्रीमद्भागवत गीता के दसवें स्कंद के तहत वर्णित उखल बंधन को चित्रित किया गया। इसे बनाने में करीब 90 से 100 घंटे लगते हैं। सूखे रंगों जैसे पेपडी, सीलू, हीरमिच, संगमरमर के पाउडर आदि के प्रयोग से जवाहर कला केंद्र में पीली मिट्टी की एक वेदी तैयार की गई, इस पर Óयोमितिय आकृतियों को विभिन्न रंगों से सजाते हुए यशोदा मैया के भगवानश्रीकृष्ण के बालरूप को ओखली से बंधा हुआ बताया है। यहां पर दर्शकों ने भक्तिभाव से इस कला को देखा वहीं कला के विभिन्न स्वरूपों से जुड़ते हुए दर्शकों ने कला के अन्य पक्ष भी देखे।
( समाचार सौजन्य: अनुराग रायजादा


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