गुरुवार, 14 नवंबर 2013

पठन से ज्यादा दर्शन की विषय वस्तु; 'मेघदूत-चित्रण'

पुस्तक विमोचन


मेघदूत-चित्रण
मूमल नेटवर्क, जयपुर। जयपुर आर्ट समिट के दौरान हुए पुस्तक विमोचन के क्रम में वरिष्ठ चित्रकार कन्हैयालाल वर्मा रचित पुस्तक 'मेघदूत-चित्रण' का विमोचन हुआ।
34 चित्रों की दर्शन यात्रा
जैसा कि किसी चित्रकार की पुस्तक में संभावित होता है, वर्मा की पुस्तक 'मेघदूत-चित्रण' भी पठन से ज्यादा दर्शन की विषय वस्तु है।  पुस्तक के 34 चित्रों की दर्शन यात्रा का रोमंाच सहज ही महसूस किया जा सकता है। वर्मा जी ने 18 वर्ष की युवावस्था से अब तक जब वे सत्तर बसंत देख जीवन सांझ का सुख ले रहे हैं, महाकवि कालीदास की कृति मेघदूतम के शब्दों को आकार देते रहे हैं। राजस्थानी परिवेष लिए लघु शैली में बनाए गए यह चित्र 'मेघदूतम के कई ह्रदयस्पर्शी श्लोकों को छूने में सक्षम है। चित्रों में प्रणय है, मिलन की प्यास है, वियोग का दर्द है, सौन्दर्य का बन्धन है और प्रेम की स्वतन्त्रता है। पुस्तक की सबसे महत्वपूर्ण बात है, चित्रकार के कवि ह्रदय के दर्शन।
 चित्रों को आत्मसात करने की राह
चौंतीस  चित्रों से सजी इस पुस्तक के प्रत्येक चित्र के साथ मेघदूतम का मूल संस्कृत श्लोक, उसका हिन्दी में किया गया भावानुवाद और अंग्रेजी का अनुवाद चित्रों को आत्मसात करने की राह प्रशस्त करता है। अंग्रेजी अनुवाद रूपनारायण काबरा ने किया है। इसमें से एक चित्र 'प्रतीक्षा का अन्त' के लिए वर्मा को कालीदास अकादमी उज्जैन द्वारा राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
वर्षा के जल से चलाया काम 
अपनी रचना यात्रा का उल्लेख करते हुए वर्मा ने बताया कि राजस्थान में नमक के झीलों की नगरी संाभर में रहते हुए पारम्परिक तरीके से इन चित्रों को तैयार करने में काफी परेशानियों को सामना करना पड़ा। सर्वाधिक समस्या प्राकृतिक रंगों को घोलने के लिए निर्मल जल के अकाल के कारण होती थी। इसक लिए वे साल में एक बार मानसून के समय मरुधरा में होने वाली सीमित वर्षा का जल एकत्र करते और उसी के सहारे वर्ष पर्यतं काम चलाते। यह पानी खत्म होने पर जयपुर से बोतलबंद पानी भी मंगवाना पड़ता था।
अतिरिक्त बोनस पाने की खुशी जैसा संग्रह
पुस्तक और खासकर इसमें शामिल चित्रों का मुद्रण उच्च कोटि का है, लेखक द्वारा अपने माता-पिता की मधुर स्मृतियों को समर्पित इस पुस्तक का मूल्य मात्र 300 रुपए रखा गया है, जबकि यह मूल्य तो मेघदूत के चित्रों को निहारते हुए ही वसूल हो जाता है। शेष दुर्लभ सामग्री का संग्रह अतिरिक्त बोनस पाने की खुशी जैसा अहसास कराता है।
इसी के साथ समीक्षक विनोद भारद्वाज, राजेश व्यास व राजेश सिंह कि पुस्तकों का भी विमोचन हुआ।  

1 टिप्पणी:

Amrita Tanmay ने कहा…

पाठक गण बोनस से अवश्य लाभ पाना चाहेंगे..