रविवार, 28 दिसंबर 2008
अब बिकाऊ है, एक मुगलकालीन किला
राजस्थान के जिस किले में बादशाह औरंगजेब ने अपने भाई दारा शिकोह को नजरबंद किया था, अब वह ऐतिहासिक किला बेचा जा रहा है।बिल्कुल सुनसान इलाके में चारों तरफ जंगल से घिरे मुगलकालीन इस किले के अंदर की वास्तुकला देखने योग्य है। कहा जाता है कि औरंगजेब शिकार करने के लिए दिल्ली से यहां आता था और इसी किले से वह शिकार के लिए निकलता था। दिल्ली से यहां तक सिर्फ पांच घंटों के अंदर पहुंचा जा सकता है।दिल्ली में सल्तनत पर कब्जा करने की खींचतान जिस समय शुरु हुई थी, उस समय औरंगजेब ने अपने भाई दारा शिकोह को इसी सुनसान इलाके के किले में कैद करके रखा था। दारा शिकोह कई साल तक इस किले में बंद था।भारत सरकार ने इस किले को राज्य सरकार के जिम्मे कर दिया है और राज्य सरकार के पास इतना बजट नहीं है कि वह इसकी देखभाल का जिम्मा ले सके। इसलिए राज्य सरकार सभी ऐतिहासिक इमारतों को निजी हाथ में सौंपने की तैयारी कर रही है।इतना ही नहीं राजस्थान की कई ऐतिहासिक कोठियां विदेशियों ने खरीद ली हैं। अब वे अपने हिसाब से इस तरह ऐतिहासिक और इमारतों को बना रहे हैं। राज्य सरकार को इसकी पूरी जानकारी है। लेकिन सरकार अपनी विरासत को बचाने के लिए ज्यादा गंभीर नहीं दिखाई देती।मुगलकाल के इस किले की दीवारें आज भी इतनी मजबूत हैं कि उसके अंदर आसानी से प्रवेश नहीं किया जा सकता। लेकिन इसे पूरी तरह से छोड़ देने की वजह से इसके अंदर और बाहर झाड़ियां उग आई हैं जो इसकी दीवार और फर्श को नुकसान पहुंचा रही हैं। अगर समय रहते इस पर ठीक से ध्यान नहीं दिया जाता तो ऐतिहासिक महत्व का ये बेजोड़ किला अपना अस्तित्व ही खो देगा।
एतिहासिक महल का सौदा
‘‘कह रहे हैं गैरते कौमी से टूटे बाम-ओ-दर, फिर तुम्हारे सामने लुट जाएगा सरवर का घर”...किसी शायर ने यह शेर हजरत इमाम हुसैन के संदर्भ में कहा था, जिनका घर करबला में दुश्मनों ने नष्ट कर दिया था। यही कारण है कि शिया मुस्लिम मानते हैं कि जो संपत्ति वक्फ को दे दी गई, वह इमाम हुसैन की हो गई। पर यहां हालत उलटी है। उत्तर प्रदेश शिया वक्फ बोर्ड के अलमबरदारों ने सांठगांठ कर फैजाबाद के ऐतिहासिक ‘मोतीमहल’ (बहूबेगम का आवास) का ही सौदा महज एक लाख रुपए में कर डाला। मोतीमहल कोई साधारण इमारत नहीं है। तत्कालीन अवध की राजधानी फैजाबाद के चौक इलाके में बीस एकड़ में फैले मोतीमहल में राजमाता का दर्जा प्राप्त बहूबेगम निवास करती थीं।बहूबेगम नवाब शुजाउद्दौला की पत्नी और विश्वप्रसिद्घ ‘आसिफ का इमामबाड़ा’ बनवाने वाले नवाब आसिफुद्दौला की मां थीं। उनका असली नाम उमतुल जेहरा बेगम था और उनका पालन-पोषण मुगल सम्राट मोहम्मद शाह ने अपनी बेटी की तरह किया था, क्योंकि उनके पिता और मुगल सल्तनत के मंत्री मोहम्मद इश्हाक खान सरकारी फर्ज को अंजाम देते हुए कत्ल कर दिए गए थे। अब जरा दास्ताने शिया वक्फ बोर्ड पर गौर करें। यहां के जिम्मेदार लोगों ने मोतीमहल के मुतवल्ली तबील अब्बास के साथ मिलकर ऑल इण्डिया माइनोरिटीज वेलफेयर एक्शन ग्रुप नामक संस्था को एक लाख एक हजार एक सौ एक रुपए के एवज में इसका पट्टा इस आशय के साथ करा दिया, कि यह संस्था वहां बहूबेगम की यादों को महफूज रखेगी। अभी चेक का भुगतान भी नहीं हुआ था कि वहां कब्जा करा दिया गया और बहूबेगम की यादों को महफूज रखने के इरादे से तमाम इमारती सामान सीमेंट, बालू, मौरंग आदि पहुंच गए और निर्माण भी शुरू हो गया। इस बीच फैजाबाद के इमाम और इमामे जुमा इबे हसन ने मामले की शिकायत कर दी। चूंकि मामला एक ऐतिहासिक संरक्षित इमारत का था, लिहाजा फैजाबाद के जिलाधिकारी अनिल गर्ग ने एडीएम सिटी एन. लाल को जांच सौंप दी।जानकारों का कहना है कि मोतीमहल का तमाम बेशकीमती सामान भी गायब कर दिया गया है। जिसमें फानूस, झाड, आदमकद शीशे, नक्काशीदार पलंग और बहूबेगम के इस्तेमाल में आने वाली तमाम धरोहरें शामिल थीं।इधर शिया वक्फ बोर्ड में बतौर सदस्य फैजाबाद का कार्य देखने वाले अब्बास अली जैदी उर्फ रुश्दी मियां (रुदौली से सपा विधायक) ने ‘आईएएनएस’ को बताया कि तकरीबन एक हफ्ते पहले से जामिन नाम के एक व्यक्ति की ओर से मोतीमहल की जर्जर हो रही चहारदीवारी की मरम्मत करने की पेशकश आई थी, जिसे उन्होंने नियमानुसार कार्यवाही के लिए बोर्ड के सीईओ को भेज दिया था। उन्होंने कहा कि इस मामले में वह और कुछ नहीं जानते। अलबत्ता उन्होंने कहा कि वे सीईओ से इस मामले में रिपोर्ट तलब करेंगे।
शुक्रवार, 26 दिसंबर 2008
लक्ष्मी के लिए कुछ भी करेगा
बालीवुड की कभी न थमने वाली रफ्तार की आप तारीफ कर सकते हैं, लेकिन यहां की कुछ चीजें आपके अंदर वितृष्णा पैदा कर सकती है। यहां कब किस चीज को माल कमाने का जरिया बना दिया जाए, कोई नहीं जानता।
अब मुंबई पर हुए आतंकी हमले को ही लीजिए। एक तरफ देश सांस रोके इस दर्दनाक घटना का टेलीविजन पर प्रसारण देख रहा था, तो दूसरी तरफ कुछ लोग इस पर फिल्म बनाने के लिए टायटल का रजिस्ट्रेशन करवाने में मशगूल थे। यह सिलसिला अभी तक जारी है। इस घटना पर आधारित दो दर्जन से ज्यादा फिल्मों के टायटल दर्ज करवाए जा चुके हैं।
आप कहेंगे किसी सच्ची घटना पर फिल्म बनाने में हर्ज ही क्या है? हम कहते हैं हर्ज है। दरअसल, टायटल लेने की होड़ फिल्म बनाने के लिए नहीं बल्कि बाद में उस टायटल को बेचकर मोटा मुनाफा कमाने के लिए है। मुंबई स्थित इंडियन मोशन पिक्चर्स प्रोड्यूसर्स एसोशिएसन के अनुसार 26/11 पर 30 फिल्मों के नाम पंजीकृत कराए जा चुके हैं।
इसके अलावा दो दर्जन से ज्यादा निर्माता अपने-अपने टायटल के साथ कतार में हैं। ये सभी एक से ज्यादा टायटल का रजिस्ट्रेशन करवा रहे हैं। रजिस्टर कराए गए इन नामों में प्रमुख रूप से 26/11, मुंबई अंडर टेरर, आपरेशन फाइव स्टार मुंबई, ताज टू ओबेराय, 48 आवर्स एट द ताज, 26 ताज, ताज 26 और ब्लैक टोरनेडो जैसे तमान नाम शामिल हैं।
कई निर्माता-निर्देशकों ने बड़े पैमाने पर फिल्मों के नाम पंजीकृत करा लिए हैं। भले इस घटना पर ये फिल्म बनाने की पहल न करें लेकिन जब कोई दूसरा व्यक्ति इस पर फिल्म बनाने की सोचेगा तो ये लोग अपने द्वारा रजिस्टर्ड टाइटल को बेचकर भारी कमाई करेंगे। इसे कहते है हींग लगे न फिटकरी, रंग हो चोखा।
एक महाशय तो इतने तेज निकले कि आतंकी हमले के दूसरे दिन ही अपना टायटल रजिस्टर करवा लिया। उन्हें इस बात से क्या मतलब कि भारत की आर्थिक ताकत और समृद्धि के प्रतीक ताज और ट्राइडेंट को नेस्तनाबूद करने आए आतंकियों ने 170 से ज्यादा लोगों को मार दिया।
इससे ज्यादा अफसोसनाक क्या हो सकता है कि एक तरफ हमारे जांबाज सिपाही आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हो रहे थे दूसरी तरफ कुछ फिल्म निर्माता फिल्म पंजीकरण फार्म का जुगाड़ कर रहे थे। सच है पैसा कमाने के लिए बालीवुड किसी भी स्तर तक गिर सकता है।
याद रहे एक नामचीन निर्माता- निर्देशक तो अपने संपर्को के बल पर आतंकी घटना के बाद ताज होटल के अंदर का दृश्य देखने पहुंच गए ताकि फिल्म बनानी पड़े तो उसमें 'रियलिटी' दिखाई जा सके।
अब मुंबई पर हुए आतंकी हमले को ही लीजिए। एक तरफ देश सांस रोके इस दर्दनाक घटना का टेलीविजन पर प्रसारण देख रहा था, तो दूसरी तरफ कुछ लोग इस पर फिल्म बनाने के लिए टायटल का रजिस्ट्रेशन करवाने में मशगूल थे। यह सिलसिला अभी तक जारी है। इस घटना पर आधारित दो दर्जन से ज्यादा फिल्मों के टायटल दर्ज करवाए जा चुके हैं।
आप कहेंगे किसी सच्ची घटना पर फिल्म बनाने में हर्ज ही क्या है? हम कहते हैं हर्ज है। दरअसल, टायटल लेने की होड़ फिल्म बनाने के लिए नहीं बल्कि बाद में उस टायटल को बेचकर मोटा मुनाफा कमाने के लिए है। मुंबई स्थित इंडियन मोशन पिक्चर्स प्रोड्यूसर्स एसोशिएसन के अनुसार 26/11 पर 30 फिल्मों के नाम पंजीकृत कराए जा चुके हैं।
इसके अलावा दो दर्जन से ज्यादा निर्माता अपने-अपने टायटल के साथ कतार में हैं। ये सभी एक से ज्यादा टायटल का रजिस्ट्रेशन करवा रहे हैं। रजिस्टर कराए गए इन नामों में प्रमुख रूप से 26/11, मुंबई अंडर टेरर, आपरेशन फाइव स्टार मुंबई, ताज टू ओबेराय, 48 आवर्स एट द ताज, 26 ताज, ताज 26 और ब्लैक टोरनेडो जैसे तमान नाम शामिल हैं।
कई निर्माता-निर्देशकों ने बड़े पैमाने पर फिल्मों के नाम पंजीकृत करा लिए हैं। भले इस घटना पर ये फिल्म बनाने की पहल न करें लेकिन जब कोई दूसरा व्यक्ति इस पर फिल्म बनाने की सोचेगा तो ये लोग अपने द्वारा रजिस्टर्ड टाइटल को बेचकर भारी कमाई करेंगे। इसे कहते है हींग लगे न फिटकरी, रंग हो चोखा।
एक महाशय तो इतने तेज निकले कि आतंकी हमले के दूसरे दिन ही अपना टायटल रजिस्टर करवा लिया। उन्हें इस बात से क्या मतलब कि भारत की आर्थिक ताकत और समृद्धि के प्रतीक ताज और ट्राइडेंट को नेस्तनाबूद करने आए आतंकियों ने 170 से ज्यादा लोगों को मार दिया।
इससे ज्यादा अफसोसनाक क्या हो सकता है कि एक तरफ हमारे जांबाज सिपाही आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हो रहे थे दूसरी तरफ कुछ फिल्म निर्माता फिल्म पंजीकरण फार्म का जुगाड़ कर रहे थे। सच है पैसा कमाने के लिए बालीवुड किसी भी स्तर तक गिर सकता है।
याद रहे एक नामचीन निर्माता- निर्देशक तो अपने संपर्को के बल पर आतंकी घटना के बाद ताज होटल के अंदर का दृश्य देखने पहुंच गए ताकि फिल्म बनानी पड़े तो उसमें 'रियलिटी' दिखाई जा सके।
शनिवार, 13 दिसंबर 2008
कपडों पर की कहानियाँ
स्वयम्भू लिटररी कंसल्टेंसी "सियाही" द्वारा तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस मेंटल ऑफ़ मिथ -दा नेरेटिव इन इंडियन का आयोजन शनिवार १३ दिसम्बर से आरम्भ हुआ। यह आयोजन मोरारका फौंडेशन के सहयोग से जयपुर स्थित होटल डिग्गी पैलेस में १३ से १५ दिसम्बर तक होगा। इस कांफ्रेंस में देशभर से आए अंग्रेजीदां साहित्यकार, कलाकार,कथाकार, लेखक, कवि, वस्त्र विशेषग्य और फैशन डिजाइनर भाग ले रहे हैं। कांफ्रेंस के प्रचार - प्रसार हेतु राजस्थान व बाहर के मीडियाकर्मियों को भी आमंत्रित किया गया है। इसमे वस्त्रों पर कथाओं के चित्रण की भारतीय परम्परा से सम्बंधित व्याख्यान विभिन् प्रदेशों से आए विद्वानों द्वारा दिए जायेंगे।
आयोजन की शुरुआत में स्वागत काउंटर पर एक अजीब स्थिति देखि गई। जब आयोजकों द्वारा आने वाले मेहमानों से यह पूछ कर प्रवेश दिया गया कि आपके पास कौनसा निमंत्रनपत्र है। यदि आपके पास पहली श्रेणी का निमंत्रण नही है तो आपको भोजन कि सुविधा नही दी जायेगी। स्थिति और अजीब हो गई जब आयोजकों द्वारा आगुन्तकों के नामों को लिस्ट में देखकर प्रवेश दिया जाने लगा । इस अजीब व्यव्हार से परेशां होकर कुछ स्थानीय पत्रकारों ने उपस्थिति रजिस्टर में अपने हस्ताक्षर करने केबाद वहां उपस्थित रहना उचित नहीं समझा।
कांफ्रेंस में पहले दिन देवदत्त पटनायक और प्रमोद कुमार के जी ने भारतीय वस्त्रों में कथाएँ, जसलीन धमीजा और अलका पांडे आयोजित पंजाब कि फुलकारी, ममंग दाए और प्रज्ञा देब बर्मन ने भारत के उत्तर पूर्व में वस्त्रों पर कथा कहने कि परम्परा के बारे में बताया। इसके अलावा ऋतू बेरी ने द ट्री ऑफ़ लाइफ के महत्त्व को बताया। पुस्तक मुकुंद और रियाज़ पर आधारित फ़िल्म नीना सबनानी ने दिखाई।
शुक्रवार, 12 दिसंबर 2008
पांच सौ बच्चों के लिए दो वर्षीय स्कालरशिप
परफोर्मिंग आर्ट में नई उमर के बच्चों का रुझान बढाने और उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए भारत सरकार के संस्कृति विभाग द्वारा दो वर्षीय स्कालरशिप देने का फ़ैसला किया गया है।
इसमें १० से १४ साल के ऐसे बच्चों को दो साल के लिए ७२०० रुपये दिए जायेंगे जो गायन, वादन, डांस, ड्रामा और पेंटिंग में अच्छा कार्य कर रहें हैं। पुरे भारत में कुल ५०० स्कालरशिप दी जाएँगी। आवेदन की अन्तिम तिथि ३१ दिसम्बर २००८ है। जयपुर स्थित दो संस्थाएं क्युरियो और आलाप इसके लिए फ्री काउंसलिंग दे रही हैं।
अगर आप किसी बच्चे के लिए इसमें रूचि लेना चाहें और विस्तृत विवरण चाहते हों तो भारत सरकार के संस्कृति विभाग से सीधे संपर्क कर सकते हैं और इसमे असुविधा हो तो इस ब्लॉग की टिप्पणी सुविधा के जरिए मूमल से भी और जानकारी ले सकतें हैं।
इसमें १० से १४ साल के ऐसे बच्चों को दो साल के लिए ७२०० रुपये दिए जायेंगे जो गायन, वादन, डांस, ड्रामा और पेंटिंग में अच्छा कार्य कर रहें हैं। पुरे भारत में कुल ५०० स्कालरशिप दी जाएँगी। आवेदन की अन्तिम तिथि ३१ दिसम्बर २००८ है। जयपुर स्थित दो संस्थाएं क्युरियो और आलाप इसके लिए फ्री काउंसलिंग दे रही हैं।
अगर आप किसी बच्चे के लिए इसमें रूचि लेना चाहें और विस्तृत विवरण चाहते हों तो भारत सरकार के संस्कृति विभाग से सीधे संपर्क कर सकते हैं और इसमे असुविधा हो तो इस ब्लॉग की टिप्पणी सुविधा के जरिए मूमल से भी और जानकारी ले सकतें हैं।
सोमवार, 8 दिसंबर 2008
शिल्प जगत में स्टुडेंट की कारोबारी दस्तक
पीजी कॉलेज में लगी वस्त्र प्रदर्शनी
जयपुर के एमजेआरपी पीजी महिला महाविद्यालय के गृहविज्ञान विभाग द्वारा आयोजित तीन दिवसीय प्रदर्शनी में वस्त्र एवं परिधान संकाय द्वारा हस्तनिर्मित विभिन्न वस्त्रों को प्रदर्शित किया गया। ब्लाक प्रिंटिग, टाई व डाई, तथा बाटिक प्रीटिंग जैसी प्रचलित विधियों द्वारा विभिन्न वस्त्रों जैसे-सलवार सूट, टॉपर, चादर, दिवान सेट, साड़ी आदि का निर्माण कर प्रदर्शित किया गया। पेटिंग का सलमा- सितारे का कार्य, कांच के गिलास पर स्टेनसिल पेंटिंग, सिरेमिक टाइल्स पर पेटिंग तथा लाख के कड़ों पर ज्योमीट्रिक डिजाइन भी प्रदर्शित किए गए। साड़ी तथा चादरों पर विभिन्न प्रदेशों की पारंपरिक कढ़ाई कर प्रदर्शन किया गया। इसी क्रम में पार्ट मेंकिग में मिट्टी के विभिन्न पोटों को स्टेनशिल, पेपरमैशी तथा ऑयल पेटिंग द्वारा तैयार किए गए। पेपर मैशी के फाउन्टेन भी प्रदर्शनी में रखे गए। जूट से बने विभिन्न सजावटी सामान जैसे फूल ज्वैलरी, जापानी गुडिया, पोट्स आदि भी प्रदर्शित किए गए।
मूमल विचार: प्रत्येक विभाग द्वारा ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन समय समय होते रहना चाहिए, जिससे न केवल विद्यार्थियों की प्रतिभा उभरकर सामने आ सकेगी वरन उसे और परिष्कृत कर समयनुकूल बनाया जा सकेगा।
जयपुर के एमजेआरपी पीजी महिला महाविद्यालय के गृहविज्ञान विभाग द्वारा आयोजित तीन दिवसीय प्रदर्शनी में वस्त्र एवं परिधान संकाय द्वारा हस्तनिर्मित विभिन्न वस्त्रों को प्रदर्शित किया गया। ब्लाक प्रिंटिग, टाई व डाई, तथा बाटिक प्रीटिंग जैसी प्रचलित विधियों द्वारा विभिन्न वस्त्रों जैसे-सलवार सूट, टॉपर, चादर, दिवान सेट, साड़ी आदि का निर्माण कर प्रदर्शित किया गया। पेटिंग का सलमा- सितारे का कार्य, कांच के गिलास पर स्टेनसिल पेंटिंग, सिरेमिक टाइल्स पर पेटिंग तथा लाख के कड़ों पर ज्योमीट्रिक डिजाइन भी प्रदर्शित किए गए। साड़ी तथा चादरों पर विभिन्न प्रदेशों की पारंपरिक कढ़ाई कर प्रदर्शन किया गया। इसी क्रम में पार्ट मेंकिग में मिट्टी के विभिन्न पोटों को स्टेनशिल, पेपरमैशी तथा ऑयल पेटिंग द्वारा तैयार किए गए। पेपर मैशी के फाउन्टेन भी प्रदर्शनी में रखे गए। जूट से बने विभिन्न सजावटी सामान जैसे फूल ज्वैलरी, जापानी गुडिया, पोट्स आदि भी प्रदर्शित किए गए।
मूमल विचार: प्रत्येक विभाग द्वारा ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन समय समय होते रहना चाहिए, जिससे न केवल विद्यार्थियों की प्रतिभा उभरकर सामने आ सकेगी वरन उसे और परिष्कृत कर समयनुकूल बनाया जा सकेगा।
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