यहां प्रस्तुत है समन्वयक संपादक के रूप में श्री राहुल सेन का परिचय
पश्चिम बंगाल से राजस्थान आए सेन वंश के बंगाली परिवार में 30 अगस्त 1957 में जन्में श्री राहुल सेन की पैदाईश कोटा में हुई और परवरिश जयपुर में। कॉलेज शिक्षा पूरी करने के बाद पत्रकारिता का क्षेत्र चुना और राजस्थान पत्रिका से केरियर शुरू किया। प्रतिष्ठित रुद्र परिवार की कन्या साधना का सामिप्य पाने के बाद 17 नवम्बर 1979 में इनसे परिणय सूत्र में बंधे। राजस्थान पत्रिका में 15 साल कार्य के दौरान विभिन्न नगरों में रिर्पोटिंग और 'आओ गांव चलेंÓ कॉलम लिखते हुए राजस्थान के इतने गांव देख डाले की अब खुद भी उनकी गिनती नहीं कर पाते। यही कारण है कि राजस्थान का प्रत्येक पक्ष राहुल जी की रक्त शिराओं में रचा-बसा है।
मानवीय संवेदनाओं की चरम पीड़ा तक पहुंच कर व्यंग कर लेना और व्यंग के बीच कड़वे-मीठे सच सा आईना दिखा देना, इनके लेखन को औरों से अलग पहचान देता है। विभिन्न पुरस्कारों और अलंकरणों से सम्मानित राहुल जी ने पत्रकारिता के प्रतिष्ठित सम्मान 'कड़वा-मीठा सचÓ पुरस्कार से तीन बार सम्मानित होने के बाद खुद को पुरस्कारों की होड़ से अलग कर लिया। प्रसिद्ध माणक अलंकरण का प्रस्ताव केवल इसलिए स्वीकार नहीं किया, क्योंकि इसके लिए आवेदन करना होता है।
इसके बाद दैनिक भास्कर में चीफ रिर्पोटर और ब्यूरो चीफ के रूप में विभिन्न एडीशनों में 10 साल से अधिक समय तक कार्य किया। समाज के श्रेष्ठ और उच्च पदस्थ वर्ग की क्रीमी लेयर के साथ उठते-बैठते केरीयर के पीक में अचानक पैसे, पद और प्रतिष्ठा से मोह भंग हुआ। एक दिन सब छोड़-छाड़ कर मानसिक विमंदित बच्चों और उनके अभिभावकों की मदद में जुट गए। अपने स्तर पर इनके लिए नि:शक्तों को समर्पित एक पाक्षिक समाचार पत्र 'शुभदाÓ का प्रकाशन भी शुरू किया। इन्हीं दिनों 'मूमलÓ के सम्पर्क में आए और इसका संपादन कार्य भी संभाला, वर्तमान में भी इस दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं।
राहुल जी मूमल की विकास यात्रा के सबसे निकटतम सहयोगी और साक्षी हैं।श्रद्धेय कर्पूर चन्द 'कुलिशÓ द्वारा समय-समय पर दी गई सीख के मुताबिक जीवन में सफलता के सूत्र के रूप में राहुल जी का मानना है कि आप अपना मुंह धोने का उपक्रम करें, हाथ तो स्वत: ही धुल जाएंगें।
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