वैसे हमें कोई असामाजिक शौक नहीं है, लेकिन हमारे ही समाज के वयोवृद्ध खुंशवंत सिंह जी की तरह हमारे भी कुछ किन्नर मित्र हैं। उनका कहना है कि सेन भाई, इस बार सरकार हमें अलग से नहीं गिन सकती क्या? यहां बात केवल शारीरिक रूप से किन्नर की हो रही है। समाज में मर्दानगी जताने वाले शिखंडिय़ों की नहीं, उन्हें अलग से गिना गया तो अपनी कोई जिम्मेदारी नहीं।
पिछली बार तो किन्नर मित्रों को गिनने के बाद यह पूछा गया था कि भई, नाम कहां शामिल करें? जिसने जहां चाहा लिखा दिया। सो कुछ किन्नर पुरुष हो गए और कुछ स्त्री। कुल मिलाकर किन्नर कोई नहीं रहा। अब तो कम से कम हमें अलग से गिनों। जब कुदरत ने ही हमें अलग से गिना है तो ये सरकार क्यों नहीं गिन सकती?जनगणना के पैमाने को खुले आम चुनौती देने वाले हमारे ये मित्र कहते हैं कि इनकी तादाद भी कोई कम नहीं है। कुल आबादी में एक फीसदी से ज्यादा हैं, अर्थात भारत में ही 1।6 करोड़ लोग ना पुरुष हैं ना स्त्री। जब यही इतने हैं तो हमारे सामाजिक शिखंड़ी कितने होंगे? सब जानते हैं, क्योंकि सभी शिखंड़ी हमारे इर्दगिर्द ही तो हैं।
अब जयपुर के जलमहल की महाभारत में ही देखिए, दोनों सेनाओं के बीच एक से बढ़कर एक, क्या नजर नहीं आ रहे? चलिए जलमहल को छोडि़ए, आमेर आ जाईए, यहां तो दीख ही रहे होंगे। जो कल तक हवेलियों के हक पर निजी लोगों के नाम की तालियां पीट रहे थे, अब ललित मोदी के सितारे गर्दिश में देख कर हवेलियों के सरकारी होने की तालियां पीटने लगे हैं। अब नाम भी बताना होगा क्या? हाय अल्ला, आखिर कब समझेंगे आप?
ललित मोदी से ध्यान आया, आई.पी।एल। की महाभारत के शिखंड़ी तो आप से छिपे नहीं है ना? अब गिरे-पड़े पर लात मारने को सभी तीसमार खां उतारू रहते हैं। चारा खाकर लाल हुए राबड़ी पति के लायक क्रिकेटर पुत्र को किसी टीम में नहीं लिया गया, सो उन्होंने भी लात मारी। मंहगाई के बाद जब किसी नए मुद्दे की तलाश में जुटी भाजपा ने भी टांगे चलाई, पर राजस्थान में महारानी सा की टीम के मैनेजर रहे मोदी के खिलाफ यहां बोलने वालों के गले अभी बैठे हुए लगते हैं। अब आमेर में ठंड़ी मलाई खाकर दिल्ली में आईपीएल की गरम हवा में निकल आए तो गला कैसे खुलेगा?
कुल मिलाकर तीस साल नौकरी करने के बाद भी हम तो बी।पी।एल। ही रहे, जब कि लोग तीन साल में देखते-देखते आई।पी।एल। हो गए। अब मेडिकल काउंसिल के आकाओं के आगे आईपीएल भी शर्मसार है। पूरे आईपीएल की कमाई इतनी नहीं जितनी एक केतन देसाई की हो सकती है। अब ढाई हजार करोड़ रुपए या डेढ़ टन सोना कितना होता है, इसकी कल्पना करने की भी तो कुवत होनी चाहिए। हम बीपीएल में वो कहां? आप तो एपीएल होंगे, तो आप कल्पना करके देखों। कैसा लगा?
अब कल्पना करते हुए बाबा रामदेव मत हो जाईए। कभी राजनेताओं का आसन अपने चरणों के पास पाकर पुलकित होते, तो कभी खुद राजनीति में आने की कल्पना करते और नेताओं के पदचिन्हों पर चलते बाबा कब कपालभाटी हो गए, शायद खुद उन्हें भी पता नहीं चला। नेताओं की तरह दूर की कौड़ी सा एक चांदी का वर्क लेकर आए। कहने लगे, उसे मृत पशुओं की आंत और चमड़े के बीच रखकर कूटा जाता है, इसलिए वर्क का सेवन मांसाहार समान है।
सब जानते हैं, मुस्लिम समुदाय का ही एक हिस्सा वर्क बनाने के काम मे जुटा है। अब वर्क कोई आज इस तरीके से बनने लगा है क्या? सदियों से ऐसे ही बनता और सेवन किया जाता रहा है। अब जनता चाहे जितनी भी भोली हो, लेकिन इतनी भी नहीं कि वह वर्क के पीछे वर्क कर रहे दिमांग की उपज नहीं भांप सके।खैर..... इस नॉनसेंसी मसले पर मारामारी करना अपनी समस्या नहीं है, हलवाई और पान वाले की उतनी नहीं है। यह समस्या तो रामजी और उनके परम भक्त बजरंगबली की ज्यादा है, जब वर्क नहीं होगा तो हर मंगलवार और शनिवार को बाबा का चोला कैसे चढेगा? ये तो राम जानें....या बाबा रामदेव ....
टेक केयर फॉर वर्क, बाय -सेन
1 टिप्पणी:
yaha bas itna kahna chahta hun ki aap ye post jarur pade
http://janganana.blogspot.com/2010/05/4.html
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