जब भी कोमलता की, कल्पनाओं की, भावनाओं की या संवेदनशीलता की बात आती है तो प्रथम पंक्ति में कला और कलाकार ही खड़े नजर आते हैं। जब-जब भी कोई प्राकृतिक या मानवीय विपदा सामने आई है तो कलाकार वर्ग अपनी संवेदनाओं के साथ नजर आया है। इस समय भी प्राकृतिक विपदा भूकम्प के चलते पड़ौसी देश नेपाल के साथ भारत के बिहार व उत्तर प्रदेश में जान माल की हानि हुई है। ऐसे में भारत के कलाकारों की संवेदनाओं का मुखर होना लाजमी है। लेकिन संवेदनाओं की आड़ में जब कलाकार व्यापारी बन कर अपना हित सोचे और अवसरवादी बने तो संवेदनाओं पर प्रश्नचिंह लग जाता है।
अपनी बात को सिद्ध करने के लिए हम यहां इन्दौर की एक कला ग्रुप की बात करेंगे, जिसने कलाकारों से भूकम्प पीडि़तों के सहायतार्थ एक विक्रय प्रदर्शनी आयोजित करने के लिए कलाकारों से पेंटिंग्स आमन्त्रित की है। यह ऐलान किया गया है कि बिकने वाली पेंटिंग से प्राप्त राशि का एक हिस्सा भूकम्प पीडि़तों की सहायतार्थ भेजा जाएगा। क्या इस घोषणा से सहज ही यह सवाल नहीं उठता कि विक्रय से प्राप्त राशि का केवल एक हिस्सा? वो भी कितना? पता नहीं, पेंटिंग्स की बिक्री पर गैलेरीज को दिए जाने वाले हिस्से से ज्यादा या कम? और भूकम्प पीडि़तों की सहायता के लिए भेजने वाले कथित हिस्से के बाद शेष बचे हिस्से की आय को स्वयं के पास रखकर संवेदना का कौनसा रूप दर्शाना चाह रहे है? क्या यह कृत्य अपनी वस्तु को बेचने के लिए ग्राहकों को लुभाने के लिए पहले से ही दिए जाने वाले कमीशन को संवेदना के नाम पर भुनाना नहीं दर्शा रहा है? सभी जानते हैं कि पेंटिंग या मूर्तिशिल्प ही ऐसी वस्तुओं में शामिल हैं जिसके मूल्य निर्धारण का कोई वास्तविक व ठोस मापदण्ड अभी तक तय नहीं हो पाया है। इस तरह के प्रदर्शन जो सहायता के नाम पर आयोजित किए जाते हैं वो अवसरवादिता नहीं तो और क्या है?
हम इससे पहले मूमल में कला के इक्कठा होते जा रहे कचरे की समस्या पर भी बात कर चुके हैं। कलाकृतियों के नाम पर कई चीजें ऐसी बन रहीं है जिसकी ना तो सराहना है और ना ही मांग। ऐसे में अपनी उन कृतियों को बेचने के लिए कलाकारों का ऐसी विपदाओं के समय पर प्रदर्शन कर वाहवाही लूटना ओर अपना हित साधना राजनेताओं की कार्यशैली को ही पीछे छोड़ रहा है। अब यह सामान्य होता जा रहा है क्योंकि आज कलाकारों के बीच पनपती जा रही राजनीति और एक-दूसरे की टांग खिंचाई की प्रवृति के चलते उनका आचरण राजनेताओं को भी मात कर रहा है। कला और संवेदना की आड़ में अवसरवादी होता जा रहा कलाकार, कला के नाम पर समाज को क्या दे सकता है, यह सोचने की बात है।
परिस्थिति को समझ सच्चे मन से यदि हम किसी की सहायता करना चाहे, फिर वो सहायता कितनी भी छोटी क्यों ना हो सार्थक साबित होगी ओर हम अवसरवादिता छोड़ अपनी कला साधना को प्रखर करें तो शायद ऐसी प्रदर्शनियों की नौबत ही नहीं आएगी और हम खुले दिल से विपदा के समय अपने भाईयों की सहायता भी कर पाऐंगे।
नेपाल को विश्व भर से सहायता प्राप्त हो रही है। यूनेस्कों में दर्ज इमारतों के नुकसान को संभालने यूनेस्को आगे आया है लेकिन हमारे देश के वह वासी जो इस आपदा का शिकार हुए हैं, क्या वो संवेदना के लायक भी नहीं? यहां प्रश्न यह उठता है कि सारी संवेदना व सहायता, नेपाल को ही क्यों? जबकि हमारे अपने देश में भी भूकम्प से काफी नुकसान हुआ है। लोग मरे भी हैं, घायल, बेघर और अनाथ हुए हैं।
सम्पादकीय लिखने के दौरान यह जानकारी भी मिली हे कि जयपुर के कुछ कलाकारों द्वारा दिल्ली की एक आर्ट गैलेरी में नेपाल के भूकम्प पीडि़तों के लिए विक्रय प्रदर्शनी का आयोजन किया जा रहा है। आयोजनकर्ताओं द्वारा मूमल को यह बताया गया है कि आयोजन में विक्रय से प्राप्त पूरी राशि पीडि़तों की सहायतार्थ भेजी जाएगी। इसलिए इस आयोजन में मूमल ने अपने सहयोग का प्रस्ताव रखा है। ऐसी वास्तविक सहायता के अन्य कार्यक्रमों में भी हम यथासंभव सहयोग देने को तैयार हैं।