मूमल नेटवर्क, जयपुर। राजस्थान ललित कला अकादमी के जिम्मेदार सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सन् 2012 के कलाविद सम्मान हेतु कन्हैयालाल वर्मा और डॉ. वीरबाला भावसार को चुन लिया गया है।
लगभग सोलह वष बाद दिए जाने वाले इस सम्मान के लिए कलाकारों को पुररूकार राशि के रूप में 51-51000 रुपए प्रदान किए जाएंगे। पिछले दिनों अकादमी अध्यक्ष ने इस पुरस्कार राशि के लिए एक लाख रुपए दिए जाने की घोषणा की थी। पिछले माह अकादमी कार्यालय में हुई बोर्ड की मीटिंग में पांच नाम कलाविद सम्मान के लिए प्रस्तावित किए गए थे। उसी मीटिंग में सर्वसम्मति से कन्हैयालाल वर्मा और डॉ. वीरबाला भावसार के नामों को मुजूर किया गया था। गौरतलब है कि अकादमी के वर्तमान हाउस के ये दोनों कलाकार सम्माननीय सदस्य हैं और उस मीटिंग में भी उपस्थित थे। इधर अकादमी अध्यक्ष क्षरा इन घोषित हो चुके नामों को गुप्त रखने के कारण इसकी अधिकारिक घोषणा अभी तक नहीं की गई ।
कन्हैयालाल वर्मा
लघु शैली चित्रण के जान-पहचाने हस्ताक्षर कन्हैयालाल वर्मा का जन्म 7 मार्च 1943 में हुआ। लघु शैली में होने के बावजूद भी उनके चित्रों में नवीनता रहती है। वे अपने चित्रण में इतिहास में बन चुके चित्रों के दोहराव की प्रवृति नहीं रखते। भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय द्वारा दिए जाने वाले राष्ट्रीय पुरस्कार राजस्थान सरकार द्वारा दिए जाने वाले राज्य स्तरीय पुरस्कार पाने की दौड़ में वो कभी शामिल नहीं हुए। उनका कहना है कि जब मुझे पता चला कि वहां कभी इतिहास में बनी हुई पेंटिंग्स की नकल को ही प्रमुखता दी जाती है तो मैने इन पुरस्कारों के बारे में सोचना भी ठीक नहीं समझा।
कन्हैयालाल वर्मा जी को राजस्थान ललित कला अकादमी द्वारा ऑल इण्डिया अवार्ड ़771 में तथा अकादमी के स्टेट अवार्ड सन् 1974, 75, 77, 82 व 84 में प्राप्त हुए। उन्हें कालीदास अकादमी, उज्जैन द्वारा चार बार और दिल्ली के आईफेक्स पुरस्कार के साथ कई सम्मान व पुरस्कार मिल चुके हैं।
वीरबाला भावसार
वीरबाला भावसार का जन्म 10 अक्टूबर 1941 को हुआ। अन्होने बरसों तक राजस्थान विश्वविद्यालय के ड्राइंग एण्ड पेंटिंग विभाग में प्रोफेसर के पद पर अपनी सेवाएं दीं । इसी विभाग से वो विभागाध्यक्ष के पद से सेवानिवृत हुईं। पोट्रेट इनका प्रिय विषय है। शुरूआत में कैनवास पर ऑयल कलर इनके सृजन का माध्यम रहा। सन् 1965 से वो कैनवास पर ब्रश और रंग के स्थान पर रेत को अपना माध्यम बना प्रयोग करने लगीं। रेत से बने हुए इनके बोलते हुए चित्र किसी रंगीन पेंटिंग सा ही आभास देते हैं।
इन्हें राजस्थान ललित कला अकादमी द्वारा 1992 में ऑल इण्डिया अवार्ड, 1982 में ललित कला अकादमी का स्टेट अवार्ड, 1987 में उज्जैन से कालीदास अवार्ड के साथ कई अवार्ड व सम्मान मिल चुके हैं।
लगभग सोलह वष बाद दिए जाने वाले इस सम्मान के लिए कलाकारों को पुररूकार राशि के रूप में 51-51000 रुपए प्रदान किए जाएंगे। पिछले दिनों अकादमी अध्यक्ष ने इस पुरस्कार राशि के लिए एक लाख रुपए दिए जाने की घोषणा की थी। पिछले माह अकादमी कार्यालय में हुई बोर्ड की मीटिंग में पांच नाम कलाविद सम्मान के लिए प्रस्तावित किए गए थे। उसी मीटिंग में सर्वसम्मति से कन्हैयालाल वर्मा और डॉ. वीरबाला भावसार के नामों को मुजूर किया गया था। गौरतलब है कि अकादमी के वर्तमान हाउस के ये दोनों कलाकार सम्माननीय सदस्य हैं और उस मीटिंग में भी उपस्थित थे। इधर अकादमी अध्यक्ष क्षरा इन घोषित हो चुके नामों को गुप्त रखने के कारण इसकी अधिकारिक घोषणा अभी तक नहीं की गई ।
कन्हैयालाल वर्मा
लघु शैली चित्रण के जान-पहचाने हस्ताक्षर कन्हैयालाल वर्मा का जन्म 7 मार्च 1943 में हुआ। लघु शैली में होने के बावजूद भी उनके चित्रों में नवीनता रहती है। वे अपने चित्रण में इतिहास में बन चुके चित्रों के दोहराव की प्रवृति नहीं रखते। भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय द्वारा दिए जाने वाले राष्ट्रीय पुरस्कार राजस्थान सरकार द्वारा दिए जाने वाले राज्य स्तरीय पुरस्कार पाने की दौड़ में वो कभी शामिल नहीं हुए। उनका कहना है कि जब मुझे पता चला कि वहां कभी इतिहास में बनी हुई पेंटिंग्स की नकल को ही प्रमुखता दी जाती है तो मैने इन पुरस्कारों के बारे में सोचना भी ठीक नहीं समझा।
कन्हैयालाल वर्मा जी को राजस्थान ललित कला अकादमी द्वारा ऑल इण्डिया अवार्ड ़771 में तथा अकादमी के स्टेट अवार्ड सन् 1974, 75, 77, 82 व 84 में प्राप्त हुए। उन्हें कालीदास अकादमी, उज्जैन द्वारा चार बार और दिल्ली के आईफेक्स पुरस्कार के साथ कई सम्मान व पुरस्कार मिल चुके हैं।
वीरबाला भावसार
वीरबाला भावसार का जन्म 10 अक्टूबर 1941 को हुआ। अन्होने बरसों तक राजस्थान विश्वविद्यालय के ड्राइंग एण्ड पेंटिंग विभाग में प्रोफेसर के पद पर अपनी सेवाएं दीं । इसी विभाग से वो विभागाध्यक्ष के पद से सेवानिवृत हुईं। पोट्रेट इनका प्रिय विषय है। शुरूआत में कैनवास पर ऑयल कलर इनके सृजन का माध्यम रहा। सन् 1965 से वो कैनवास पर ब्रश और रंग के स्थान पर रेत को अपना माध्यम बना प्रयोग करने लगीं। रेत से बने हुए इनके बोलते हुए चित्र किसी रंगीन पेंटिंग सा ही आभास देते हैं।
इन्हें राजस्थान ललित कला अकादमी द्वारा 1992 में ऑल इण्डिया अवार्ड, 1982 में ललित कला अकादमी का स्टेट अवार्ड, 1987 में उज्जैन से कालीदास अवार्ड के साथ कई अवार्ड व सम्मान मिल चुके हैं।
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