1.ताज महोत्सव, आगरा, 18-27 फरवरी 2009.
सूरजकुंड मेले की ही तरह ताज महोत्सव भी शिल्प, कला, संगीत व स्वाद के मिश्रण का आयोजन है। बसंद के आते-आते ताज नगरी आगरा में सारे रंग बिखर जाते हैं। महोत्सव ताजमहल के ठीक निकट शिल्पग्राम में होता है। महोत्सव की शुरुआत मुगल साम्राज्य के वैभव की पूरी छटा बिखेरने के साथ होती है। यहां आपको आगरा के संगमरमर का, सहारनपुर के लकडी का, मुरादाबाद के पीतल का, भदोही के कालीनों का, खुर्जा के मिट्टी का, लखनऊ के चिकन का, बनारस के सिल्क का.. काम देखने को मिलेगा। उत्तर प्रदेश के हर इलाके के खास पकवान चखने को मिलेंगे। लोकनृत्य का भी भरपूर आयोजन होता है। यहां आप नौटंकी भी देख सकेंगे, राजस्थान का सपेरा नृत्य भी और महाराष्ट्र का लावणी भी.. ठीक ठेठ उसी अंदाज में जैसे सदियों से होते चले आए हैं। भारत के इतिहास में आगरा और ताजमहल की एक खास जगह है। उसे महसूस करने का इससे बेहतर मौका और कोई नहीं हो सकता।
2.शेखावटी मेला, नवलगढ, सीकर, राजस्थान, 14-17 फरवरी 2009.
राजस्थान के शेखावटी अंचल की विशिष्ट कला व संस्कृतिको बढावा देने के लिए हर साल राज्य के पर्यटन विभाग और सीकर, चुरू व झुंझूनू के जिला प्रशासनों द्वारा मिलकर इस मेले का आयोजन किया जाता है। राजस्थान में सैलानी आम तौर पर इस इलाके में नहीं पहुंच पाते। यह मेला पर्यटन को भी नई जगह देने का प्रयास है। यह इलाका बडी तेजी से रूरल टूरिज्म का केंद्र भी बनता जा रहा है। तीन जिलों में होने वाले इस मेले का केंद्र नवलगढ में होता है जो अपनी हवेलियों पर फ्रेस्को पेंटिंगों के चलते दुनियाभर में लोकप्रिय है। इन हवेलियों को दुनिया की सबसे बडी खुली दीर्घा भी कहा जाता है।
3.मरु मेला, जैसलमेर, राजस्थान। 7-9 फरवरी 2009.
रेगिस्तान को उसके पूरे वैभव के साथ देखने का अद्भुत मौका। राजस्थान पर्यटन विकास निगम (आरटीडीसी) द्वारा हर साल सर्दियों में आयोजित किए जाने वाले इस मेले के तीन दिनों में यहां की सांस्कृतिक छटा अपने पूरे शबाब पर होती है। गैर व अग्नि नृत्य मुख्य आकर्षण होते हैं। पगडी बांधने, मूंछों की लंबाई, पनिहारिन मटका रेस, रस्साकसी और मि. डेजर्ट जैसी स्पर्धाएं भी होती हैं। तमाम स्पर्धाओं में विदेशी सैलानी भी जमकर हिस्सेदारी करते हैं। मेले का समापन माघ पूर्णिमा के दिन होता है। धवल चांदनी में चमकते रेत के टीलों पर ऊंट की सवारी करने और लोकनृत्य देखने का आनंद ही कुछ और है। रेगिस्तान, खास तौर पर जैसलमेर देखने का यह सबसे बेहतरीन समय है जब रेत पर नंगे पांव चलते हुए आपके तलवे जलेंगे नहीं बल्कि ठंडक पहुंचाएंगे।
4.सूरजकुंड हस्तशिल्प मेला, सूरजकुंड, हरियाणा। 1-15 फरवरी 2009.
उत्तर भारत के सबसे बहुप्रतीक्षित मेलों में से यह एक है। हर साल इसके आयोजन की तारीख तय होने से पहले से योजना बनाना थोडा आसान हो जाता है। हस्तशिल्प, लोकनृत्यों व लोककलाओं का अद्भुत संगम हरियाणा टूरिज्म के इस आयोजन में देखने को मिल जाता है। इस बार पहली मर्तबा सार्क देशों के शिल्पकारों के अलावा मिस्त्र, थाईलैंड व ब्राजील के भी शिल्पकार हिस्सा लेंगे। जाहिर है कि इस बार से इस शिल्प मेले का स्वरूप अंतरराष्ट्रीय हो जाएगा। राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल मेले का उद्घाटन करने वाली हैं। मिस्त्र से शिल्पकारों के अलावा लोकनर्तकों का एक दल भी आ रहा है जो उद्घाटन समारोह के अलावा रोजाना अपना कार्यक्रम देगा। मिस्त्र के लजीज पकवान भी फूड कोर्ट में खास स्टाल पर चखने को मिलेंगे। कुछ देशभर के माहौल और कुछ विदेशी कलाकारों की भागीदारी के कारण सुरक्षा के खासे इंतजाम रहेंगे। सूरजकुंड दिल्ली से सटा होने के कारण दिल्लीवासियों के लिए तो यह खास मेला होता ही है, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और कई अन्य जगहों से लोग यहां पहुंचते हैं।
5.खजुराहो नृत्य समारोह, खजुराहो, मध्य प्रदेश। 25 फरवरी-3 मार्च 2009.
इतिहास की हर धरोहर के पास कहने को एक कहानी होती है। खजुराहो प्रेम व अध्यात्म के मिलन की अद्भुत कहानी कहता है। सात दिन के इस समारोह में मानो यहां के पश्चिमी समूह के मंदिरों की दीवारें सजीव हो उठती हैं। मंदिरों का वैभव अपने चरम पर होता है। मंदिर परिसर में कत्थक, भरत नाट्यम, ओडिसी, कुचिपुडी, मणिपुरी व कत्थकली देखने का अनुभव ही कुछ अलग है। देश के सर्वश्रेष्ठ शास्त्रीय नर्तक अपनी कला से इस शिल्प को जिंदा कर देते हैं। खजुराहो की अपनी प्रसिद्धि दुनियाभर में कम नहीं, फिर यह नृत्य समारोह देशी-विदेशी पर्यटकों को खींचने का अलग बहाना बन जाता है। इसीलिए इसे अंतरराष्ट्रीय समारोह का दरजा भी हासिल है।
गुरुवार, 15 जनवरी 2009
मेलों की बहार
मंगलवार, 6 जनवरी 2009
राजमल सुराना संगीत समारोह
स्रुतिमंडलकी ओर से आयोजित राजमल सुराना संगीत समारोह रविवार को यहां महाराणा प्रताप सभागार में पंडित जसराज की प्रात: कालीन शास्त्रीय संगीत सभा से आरम्भ। इस मौके पर राज्य राज्यपाल एसके सिंह और उनकी श्रीमती मंजू सिंह भी उपस्थित थीं। राज्यपाल सिंह ने तीन दिवसीय 33वें राजमल सुराना स्मृति समारोह, 09 का दीप प्रज्वलित कर शुभारंभ किया। उन्होंने पद्मश्री उस्ताद राशीद खां को माला पहनाकर फल भेंट कर और शॉल ओढ़ाकर राजमल सुराना संगीत पुरस्कार से नवाजा। पर्यटन, कला एवं संस्कृति मंत्री श्रीमती बीना काक ने उस्ताद खां को इक्यावन हजार रुपए का चेक और स्मृति चिह्न भेंट किया। राज्यपाल सिंह और काक ने स्वर्गीय राजमल सुराना के चित्र पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी।
इससे पहले श्रुति मण्डल के अध्यक्ष प्रकाश सुराना ने राज्यपाल को पुष्प गुच्छ भेंट कर स्वागत किया। मंजू सिंह का शोभा सुराना ने पुष्प गुच्छ भेंट कर स्वागत किया। पंडित जसराज की संगीत प्रस्तुति से स्वर सहयोग रतन मोहन शर्मा ने दिया। तबले पर केदार पंडित, मृदंग पर श्रीधर पार्थसारथी, हारमोनियम पर मुकुंद पेटकर और तानपुरे पर मुकुंद लाठ और अर्पिता चटर्जी ने संगत दी।